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कानपुर वाले सात दिनों तक क्यों मनाते हैं होली, 1942 से शुरू हुआ सिलसिला, जानें इसके पीछे का इतिहास…

कानपुर एक ऐसा शहर है, जहां 7 दिनों तक होली खेली जाती है. यहां होली के 6 से 7 दिन बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन एक और होली खेली जाती है. यह होली वर्ष 1942 से लगातार खेली जा रही है. गंगा मेला के दिन यहां सुबह ध्वजारोहण के बाद राष्ट्रगान होता है. क्रांतिकारियों को नमन करने के बाद रंग का ठेला निकलता है.

Kanpur: कानपुर को क्रांतिकारियों के शहर कहा जाता है. इसका इतिहास भी गवाह है. यहां पर सात दिनों तक होली का रंग खेला जाता है. सातवें दिन गंगा मेला होता है. इस प्रथा के शुरू होने की भी रोचक कहानी है. जो बेहद लोकप्रिय है.

कानपुर एक ऐसा शहर है, जहां 7 दिनों तक होली खेली जाती है. यहां होली के 6 से 7 दिन बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन एक और होली खेली जाती है. खास बात यह है कि यह होली वर्ष 1942 से लगातार खेली जा रही है. आइए जानते हैं कि इस परंपरा के पीछे का क्या है इतिहास.

1942 में शुरू हुई थी प्रथा

दुनिया में क्रांतियां तो बहुत हुई हैं. लेकिन, कानपुर की रंग वाली क्रांति कहीं पर नहीं हुई. दरअसल जब ब्रिटिश हुकूमत थी, उस दौरान होली का पर्व मनाया जा रहा था. लोग रंग गुलाल खेल रहे ही थे. इसी दौरान नौजवान क्रांतिकारी हटिया में एक दूसरे पर रंग और गुलाल लगाकर होली का पर्व मना रहे थे. साथ ही आजादी के नारे लगा रहे थे.

अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बिना उन्होंने वहां पर तिरंगा भी फहराया. इसकी भनक जब अंग्रेजी हुक्मरानों को लगी तो कई सिपाही घोड़े पर सवार होकर आए और झंडा उतारने लगे. इसे लेकर होली खेल रहे नौजवानों और अंग्रेज सिपाहियों के बीच में संघर्ष शुरू हो गया.

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संघर्ष के दौरान एक ब्रिटिश अधिकारी ने अपनी सेना के सिपाहियों को ऐलान कर दिया कि हटिया में जितने भी लोग रंग खेल रहे हैं, सबको उठा कर जेल में बंद कर दो. फिर क्या इस आदेश के बाद गुलाब चंद्र सेठ, बुद्धलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, विश्वनाथ टंडन, हमीद खान, गिरिधर शर्मा समेत करीब 45 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. इसके बाद लोगों ने अलबेला आंदोलन छेड़ दिया.

लोग विरोध पर उतर गए. मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता सबने काम करने से मना कर दिया. आस-पास के ग्रामीण इलाकों का भी व्यापार बंद हो गया. मजदूरों ने फैक्टरी में काम करने से मना कर दिया. ट्रांसपोर्टर ने चक्का जाम कर सैकड़ों ट्रकों को खड़ा कर दिया. सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. क्षेत्र की महिलाएं और बच्चे उसी पार्क में धरने पर बैठ गए. ठप हुए व्यापार से अंग्रेज परेशान हो गए. एक अंग्रेज अफसर को उस पार्क में आना पड़ा जहां चार घंटे तक बातचीत चली. इसके बाद क्रांतिकारियों को जेल से रिहा किया गया.

क्रांतिकारियों के साथ खेली गई होली

ब्रिटिश अधिकारी और धरने पर बैठे लोगों से हुई बातचीत के करीब 6 दिन के बाद क्रांतिकारियों को अनुराधा नक्षत्र पर रिहा किया गया. पूरा शहर उनको लेने जेल के बाहर एकत्रित हो गया. जेल से रिहा हुए क्रांतिकारियों के चेहरों पर रंग लगा हुआ था. जेल से रिहा होने के बाद जुलूस पूरा शहर घूमते हुए हटिया बाजार में आकर खत्म हुआ. उसके बाद क्रांतिवीरों के साथ लोगों ने जमकर होली खेली. तब से चली आ रही इस परंपरा को हर साल निभाया जाता है.

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अब कुछ इस तरह खेली जाती है होली

गंगा मेला के दिन यहां पर भीषण होली होती है. सुबह ध्वजारोहण के बाद राष्ट्रगान होता है. क्रांतिकारियों को नमन करने के बाद रंग का ठेला निकलता है. साथ में ट्रैक्टर पर रंग भरे ड्रमों के साथ ऊंट-घोड़े आदि भी चलते हैं. बिरहाना रोड, जनरल गंज, मूलगंज, चौक, मेस्टन रोड होते हुए कमला टावर आदि जगह से ठेला गुजरता है. जहां रास्ते में पुष्पवर्षा होती है.

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लोग एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं. ठेले पर होली का जुलूस निकाला जाता है. ये जुलूस कानपुर के कई मोहल्ले में घूमता हुआ दोपहर के 2 बजे रज्जन बाबू पार्क में आकर समाप्त होता है. इसके बाद शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन किया जाता है, जहां लोग एकत्रित होते हैं. एक-दूजे को होली की बधाई देते हुए रंग भी खेलते हैं.

रिपोर्ट: आयुष तिवारी

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