नवंबर 2016 की शाम आठ बजे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों की वैधता को समाप्त करने का निर्णय लोगों से साझा किया, तो पूरा देश चकित हो गया था. पर कठिनाइयों के बावजूद आम जनता ने इसका भरपूर समर्थन किया. हालांकि विपक्षी दलों ने इस बाबत जोर-शोर से विरोध किया. कुछ कठिनाइयों के बाद देश में नगदी बहाल हुई, परंतु देश में वैधानिक नकदी की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहे, इसके लिए केंद्र सरकार ने पांच सौ और एक हजार के पुराने नोटों के बदले पांच सौ और दो हजार के नये नोटों का चलन शुरू किया.
उस समय देश में कुल 17.74 लाख करोड़ की मुद्रा जनता के पास थी, जिसमें से 85 प्रतिशत पांच सौ और एक हजार के नोटों के रूप में थी. पांच सौ के नोटों के मुद्रण में देरी के कारण दो हजार के नोटों को जारी करना सरकार और रिजर्व बैंक की मजबूरी थी. मार्च 2018 तक दो हजार के नोट 6.73 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गये थे. बड़े नोटों के विमुद्रीकरण के नाम पर दो हजार के नोट का जारी किया जाना विमुद्रीकरण की भावना के ही विरुद्ध था. इसलिए मार्च 2018 से ही दो हजार के नोटों की वापसी शुरू हो गयी थी. प्रारंभ में चलन में आये 6.73 लाख करोड़ रुपये के दो हजार के नोट मार्च 2023 तक मात्र 3.62 लाख करोड़ तक ही रह गये. रिजर्व बैंक का कहना है कि दो हजार के कुल जारी नोटों में से 89 प्रतिशत मार्च 2017 से पहले जारी किये गये थे, जो वैसे भी अपना समय काल पूरा कर चुके हैं. तो दो हजार के नोटों की वापसी को अचानक लिया गया निर्णय नहीं कहा जा सकता.
विपक्षी दलों का कहना है कि, सरकार का दावा सही सिद्ध नहीं हुआ कि विमुद्रीकरण का मकसद डिजिटल भुगतानों द्वारा ‘लेस कैश’ अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ना था. विमुद्रीकरण के समय देश में कुल 17.74 लाख करोड़ की नगदी जनता के पास थी, जो दिसंबर 2022 तक बढ़कर 32.42 लाख करोड़ तक पहुंच गयी. पर समझना होगा कि 2015-16 में देश में चालू कीमतों पर जीडीपी मात्र 135 लाख करोड़ रुपये थी, जो 2022-23 में बढ़कर 272 लाख करोड़ पहुंच गयी. समझा जा सकता है कि जीडीपी के अनुपात में नगदी, पूर्व के 13.14 प्रतिशत से घटती हुई अब 11.91 प्रतिशत तक आ गयी है. यानी डिजिटलीकरण के कारण देश में ‘कैश’ का चलन कम हो गया है. रिजर्व बैंक का कहना है कि आम जनता के पास दो हजार के बहुत कम नोट हैं. तो दो हजार के जो नोट चलन में हैं, वे अधिकतर उन लोगों के पास हैं, जिन्होंने अपने धन को नकदी में रखा हुआ है. रिजर्व बैंक की मानें, तो इस निर्णय से बैंकों की जमा में भारी वृद्धि हो जायेगी, सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता भी आयेगी.
विरोधियों का तर्क है कि विमुद्रीकरण से छोटे उद्यमियों को नुकसान हुआ, रोजगार घटे और अर्थव्यवस्था को हानि पहुंची. लेकिन आंकड़ों की मानें, तो 2015-16 के बाद से अब तक के लगभग छह वर्षों में चालू कीमतों पर जीडीपी 135 लाख करोड़ से बढ़कर 272 लाख करोड़ से अधिक हो गयी है. देश के निर्यात 2013-14 में 465.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2022-23 में 767 अरब डॉलर हो गये. कृषि, सेवा, उद्योग सभी क्षेत्रों में प्रगति दिखाई दे रही है. सरकारी मदद से ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए आवास, इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्तीय समावेशन की व्यवस्था हो रही है. सभी इस ओर इंगित करते हैं कि अर्थव्यवस्था बिना बाधाओं के आगे बढ़ रही है.
विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा लाभ मुद्रास्फीति के संदर्भ में हुआ है. विमुद्रीकरण के बाद के छह वर्षों (दिसंबर 2016 से नवंबर 2022 के बीच), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (उपभोक्ता मुद्रास्फीति) में केवल 32.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि उससे पहले के छह वर्षों (दिसंबर 2010 से नवंबर 2016 के बीच) में यह वृद्धि 54.1 प्रतिशत थी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नोटबंदी के कारण देश में बड़े पैमाने पर विदेशों, खासकर शत्रु देशों से आ रहे नकली नोट चलन से बाहर हो गये. चूंकि मुद्रा की मात्रा ही घट गयी, तो मुद्रास्फीति का कम होना स्वाभाविक ही था. नोटबंदी से पाकिस्तान को भी अचानक एक बड़ा धक्का लगा. आज उसकी अर्थव्यवस्था लगभग ध्वस्त हो चुकी है. उसके विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो गये और वह अंतरराष्ट्रीय देनदारियों में कोताही के कुचक्र में फंस गया है. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर भी लगाम लगी है. नक्सली गतिविधियां भी पहले से घटी हैं.
माना जा रहा है कि चूंकि दो हजार का नोट आमजन के व्यवहार से लगभग बाहर हो चुका था, इसलिए आम जनता पर इन नोटों की वापसी से कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है. साथ ही, बीस हजार तक के दो हजार के नोटों को 30 सितंबर तक बैंक जाकर बदलवाया जा सकता है. जिनका काला धन दो हजार रुपये के नोटों के रूप में पड़ा है और यदि वे बैंकों में जमा नहीं करते हैं, तो फौरी तौर पर कुछ विशिष्ट प्रकार का खर्च बढ़ सकता है, उसका भी लाभ अर्थव्यवस्था को मिलेगा. कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इससे भारत के बैंकों समेत वित्तीय संस्थानों में लगभग एक लाख करोड़ रुपये और जुड़ जायेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)