10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विश्व रंगमंच दिवस: कला की नगरी में कभी नाटक देखने के लिए उमड़ती थी भीड़, आज ऐसे हैं हालात

हेमंत कुमार साहू के अनुसार कलाकार को नाटक मंडली से जोड़ने के लिए सरकार को आगे आना होगा. सरकार अगर कलाकारों के प्रति संवेदनशील होगी, तो कलाकार अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों से हटकर कला के प्रति जागरूक होगा. इसके लिए सरकार को प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था करनी चाहिए.

सरायकेला, धीरज कुमार. कला की नगरी सरायकेला में हर वर्ष नाट्य प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है. यहां नाटकों को देखने के लिये लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है. सबसे पहले 1959 में सरायकेला के इंद्रटांडी में इंद्रटांडी ड्रैमेटिक क्लब की स्थापना कर रंगमंच के जरिये नाटकों का मंचन होता था. रंगमंच के वरिष्ठ कलाकार 85 वर्षीय हेमंत कुमार साहू बताते हैं कि तब रंग मंच पर ओड़िया नाटकों को देखने के लिये लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. बाद में सरायकेला के उत्कलमणि आदर्श पाठागार में भी ओड़िया नाटकों का मंचन होने लगा. तब ओड़िशा सरकार की ओर से नाटकों के लिये कई तरह की सुविधायें भी दी जाती थी. सरायकेला में वर्तमान में रंगमंच के दो संस्थायें सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं. हेमंत कुमार साहू के अनुसार कलाकार को नाटक मंडली से जोड़ने के लिए सरकार को आगे आना होगा. सरकार अगर कलाकारों के प्रति संवेदनशील होगी, तो कलाकार अपनी पारिवारिक जिम्मेवारियों से हटकर कला के प्रति जागरूक होगा. इसके लिए सरकार को प्रोत्साहन राशि की व्यवस्था करनी चाहिए.

उत्कल युवा एकता मंच में 100 से अधिक हैं कलाकार

2021 में उत्कल युवा एकता मंच नाटक मंडली की शुरुआत इंद्रटांडी से की गई. उसके बाद से उत्कल युवा एकता मंच द्वारा लगातार नाटक रंगमंच का मंचन किया जा रहा है. उत्कल युवा एकता मंच से 100 से अधिक कलाकार जुड़े हुए हैं. इस संस्था के कलाकारों ने करलगभग दस मंचो पर नाटक का मंचन किया जा चुका है.

Also Read: विश्व रंगमंच दिवस : रंगकर्मियों का छलका दर्द, कहा- सरकार पैसे और कार्यक्रम की जगह एक ऑडिटोरियम दे

1976 में हुई गणपति नाट्य अनुष्ठान की शुरुआत

वर्ष 1976 में स्थापित सरायकेला के गणपति नाट्य अनुष्ठान के कलाकार हर वर्ष रंगमंच के जरीये का मंचन करते हैं. गणपति नाट्य अनुष्ठान से 50 से अधिक कलाकार जुड़े हुए हैं. निर्देशक रजत कुमार पटनायक के निर्देशन में कलाकारों द्वारा ओड़िया नाटकों का मंचन किया जा रहा है.

Also Read: झारखंड: नशे के कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई, 20 ग्राम ब्राउन शुगर के साथ 3 तस्कर अरेस्ट, बाइक व कैश जब्त

पहले और आज का रंगमंच

वरिष्ठ कलाकार हेमंत कुमार साहू ने बताया कि पहले और आज के रंगमंच में काफी भिन्नताएं हैं. पूर्व के कलाकार पहले खुद से नाटक की रचना करते थे. उसके बाद इसका मंचन किया जाता था. पहले सीमित संसाधन में कला का मंचन किया जाता था फिर भी ज्यादा से ज्यादा दर्शक नाटक देखने आते थे. आज के तकनीकी दौर में कलाकार द्वारा तकनीक के माध्यम से कला का प्रदर्शन किया जा रहा है.

वक्त के साथ नाटक में आया है बदलाव

कलाकार रूपेश साहू ने बताया कि पूर्व में छह से सात दिनों तक नाटक का मंचन किया जाता था. उस जमाने में कम खर्च में छोटे से मंच पर नाटक का मंचन हो जाता था किंतु वर्तमान में तीन दिनों तक का ही मंचन होता है. जिसके लिए प्रत्येक दिन के हिसाब से पचास हजार से लेकर एक लाख रुपए तक का खर्च हो जाता है. वर्तमान में टेक्नोलॉजी का जमाना है. इसलिए नाटक मंचन के लिए बड़ा मंच होने के साथ साउंड क्वालिटी भी बढ़िया रखनी पड़ती है.

पहले जैसी कलाकारी नहीं

कलाकार बद्री नारायण दरोगा ने बताया कि पूर्व के कलाकार सीमित संसाधन में भी मंच पर पात्र के अंदर घुसकर पात्र को जीवंत करते थे. किंतु वर्तमान में सभी प्रकार की टेक्नोलॉजी होने के बावजूद भी कलाकारों द्वारा कला का उचित निर्वहन नहीं किया जा रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें