Independence Day 2023: देश अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है. जिसकी तैयारी पूरे देशभर में जोर-शोर से की जा रही है. ऐसे में देश को आजादी दिलाने वाले अमर शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को भुलाया नहीं जा सकता, जिनकी वजह से आज हम स्वतंत्र वातावरण में सांस ले पा रहे हैं. जब बंबई (अब मुंबई) के ऐतिहासिक ग्वालियर टैंक मैदान में 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जिसमें अंग्रेजों भारत छोड़ो प्रस्ताव पास हुआ.
तब अंग्रेजी शासन ने तत्कालीन शीर्ष नेता महात्मा गांधी, पंडित नेहरू समेत अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. इन नेताओं की गिरफ्तारी की सूचना जैसे-जैसे देश के कोने कोने में पहुंची. अंग्रेजों का विरोध होने लगा. सभाएं होने लगीं. विरोध प्रदर्शन होने लगा.
महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू समेत शीर्ष कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी से उपजे आक्रोश की चिंगारी तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के आखिरी पूर्वी छोर देवरिया के बनकटा ब्लॉक तक पहुंची तो यहां भी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. अहिरौली बघेल निवासी सुरेश सिंह बताते हैं कि उनके परदादा महेंद्र सिंह बुजुर्ग हो गए थे. वह गांव के युवाओं को अंग्रेजी हुकूमत की दमनकारी नीतियों के बारे में बताकर युवाओं में आजादी का जज्बा जगाते थे. इन्हीं से प्रेरणा लेकर गांव के बाबू चंदर सिंह ने अपने साथियों बाबू बीरेन्द्र सिंह, राम बिहारी सिंह, राधा किशुन सिंह के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध क्षेत्र में क्रांति का आगाज किया.
तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत का प्रतीक रतसिया कोठी क्रांतिकारियों के निशाने पर थी. अंग्रेज अफसर मार्टिन ने उत्तर प्रदेश बिहार सीमा के निकट 2400 एकड़ खेती योग्य भूमि के बीच यह कोठी स्थापित की थी जिसमें कई बड़े बड़े गोदाम भी थे. क्रांतिकारियों ने दर्जनों गांवों के लोगों के साथ धावा बोल दिया. अंग्रेज कर्मचारी भाग निकले. भारतीय कर्मचारी भी उग्र क्रांतिकारियों से रहम की भीख मांगते हुए खिसक लिए. जिसके हाथ जो लगा वह लेकर चलता बना.
अंग्रेजों के दमन से आक्रोशित क्रांतिकारियों ने रतसिया कोठी में आग लगा दी. कोठी धू-धूकर जलने लगी. यहां तैनात अंग्रेज मैनेजर वर्कले घोड़े पर सवार होकर प्रतापपुर की तरफ भाग गया. आग से घिर जाने पर वर्कले की दो युवा लडकियां जान बचाने की गुहार करती हुई निकलीं. आक्रोशित भीड़ ने उन्हें जिंदा आग में झोंकना चाहा. लेकिन बाबू चंदर सिंह ने न केवल वर्कले की लड़कियों की भीड़ से रक्षा की बल्कि उन्हें सुरक्षित जाने भी दिया.
अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने वाले कांड से आक्रोशित अंग्रेजों ने आरोपियों का दमन शुरू कर दिया. बाबू चंदर सिंह घटना के बाद फरार हो गए. अंग्रेजों ने उनका दो बार घर फूंक दिया. उनकी पत्नी गर्भवती थी. उन्होंने अपनी दो बेटियों के साथ मक्के के खेतों में रात और दिन बिताए. वहीं बाबू बीरेन्द्र सिंह चंपारण के रास्ते नेपाल में अपनी बुआ के शरण लिए थे. उनके एक रिश्तेदार जो तत्कालीन अंग्रेजी सेना में उच्च पदस्थ थे. गोरखपुर के कलेक्टर को तार भेजकर बाबू बीरेंद्र सिंह का नाम साजिशन शामिल किया गया है. इस कांड से निकालने की अपील की. जिसके फलस्वरूप बाबू बीरेन्द्र सिंह का नाम रतसिया कोठी लूटकांड से निकल गया.
वहीं बाबू चंदर सिंह की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. बाबू चंदर सिंह ने पकड़े जाने के भय से सलेमपुर के नाद घाट से बस्ती जिले के चनहर गांव में अपने रिश्तेदार के यहां शरण ली. बस्ती जिले के जिस गांव में बाबू चंदर सिंह ने शरण ली थी. उस गांव के एक जमींदार ने कुछ दिन पहले अपना हाथी बेच दिया था. दूसरा हाथी खरीदने के लिए कुछ रकम कम पड़ रही थी. तभी किसी ने सलाह दी कि गांव का जो रिश्तेदार यहां शरण लिए है. उसके ऊपर अंग्रेजों ने ईनाम रखा है. अगर उसे पकड़वा दो तो ईनाम की रकम मिल जायेगी. जमींदार ने ऐसा ही किया और चंदर सिंह की गिरफ्तारी हो गई.
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गिरफ्तारी के बाद बाबू चंदर सिंह को फांसी की सजा सुनिश्चित थी. गोरखपुर कोर्ट में मुकदमा चला. लेकिन अंग्रेज मैनेजर वर्कले की दोनों बेटियों की गवाही पर मृत्यदंड की सजा बदलकर 25 वर्ष कारावास कर दी गई. बाबू चंदर सिंह को सजा हो जाने और घर जला दिए जाने की खबर पंडित नेहरू को मिली तो उन्होंने अपनी बहन विजय लक्ष्मी पंडित को भेजा. विजय लक्ष्मी पंडित जब अहिरौली बघेल आईं तब परिजनों की दशा देखकर द्रवित हो गईं. उन्होंने घर बनाने के लिए परिजनों को रकम दी. पंडित नेहरू की अगुआई में वर्ष 1945-46 गठित अंतरिम सरकार के आदेश से बाबू चंदर सिंह की रिहाई हुई. गांव पहुंचने पर लोगों का हुजूम दरवाजे पर जुट गया. अंग्रेज़ी कोर्ट से सजा पाए चंदर सिंह के बारे में लोगों की धारणा थी कि वह लौट कर नहीं आएंगे.