UP Assembly Election 1962: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के इतिहास को बखान करने के क्रम में साल 1962 में आयोजित लोकतंत्र के महापर्व का बड़ा अहम महत्व है. देश में काफी कुछ बदल रहा था. केंद्र की राजनीति पूरे देश पर हावी हो रही थी. ऐसे में देश के सबसे बड़े राज्य के विधानसभा चुनाव के परिणामों पर भी उसका असर पड़ना लाजिम था. पिछली कड़ियों में ‘प्रभात खबर’ ने आपको बताया था साल 1951 और 1957 के विधानसभा चुनाव के बारे में. आइए इस क्रम को आज आगे बढ़ाते हुए साल 1962 के राजनीतिक समीकरणों को समझने की कोशिश करते हैं…
उत्तर प्रदेश विधानसभा के साल 1962 के चुनाव का भी बड़ा ही रोचक इतिहास रहा है. 1962 के चुनाव के परिणामस्वरूप इंडियन नेशनल कांग्रेस ने जीत दर्जकर करते हुए चंद्रभानु गुप्त को मुख्यमंत्री के रूप में पद पर बैठाया गया था. हालांकि, भारतीय जनसंघ ने पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले खुद को कुछ और मजबूत किया था. साथ ही, कम्यूनिस्ट पार्टी ने भी बढ़त बनाने में कामयाबी हासिल की थी.
इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, साल 1962 में प्रदेश में 430 विधानसभा सीट पर चुनाव हुए थे. इनमें से 341 जनरल, 89 एससी और शूण्य सीट एसटी कैटेगरी के लिए आरक्षित थे. उस समय 2620 उम्मीदवारों ने विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकते हुए चुनौती थी. यानी हर सीट पर करीब 6 प्रत्याशियों ने पर्चा भरा था. साथ ही, एक विधानसभा क्षेत्र में कम से कम दो और अधिकतम 17 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे. आंकड़े बताते हैं कि उस समय प्रदेश में कुल 109867851 वोटर्स ने मतदान किया था. इनमें से 6601595 वोट निरस्त हो गए थे. कुल उम्मीदवारों में 2559 पुरुष एवं 61 महिला नेत्रियों ने पर्चा भरा था. इनमें से 410 पुरुष एवं 20 महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी.
साल 1962 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा रणक्षेत्र में जीतकर मुख्यमंत्री बनने वाले चंद्रभानु गुप्त का जन्म 1902 में अलीगढ़ जिले के अतरौली में हुआ था. वे 17 साल की उम्र में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे. उन्होंने सीतापुर में रॉलेट बिल विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेते हुए अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. वे साल 1929 में लखनऊ के लिए कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए थे.
साल 1962 के विधानसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को 14, इंडियन नेशल कांग्रेस को 249, जनसंघ को 49, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) को 38, समाजवादी (एसओसी) 24, स्वतंत्र (एसडब्ल्यूए) 15, हिंदू महासभा (एचएमएस) 2, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) 8 और स्वतंत्र (आईएनडी) को 31 सीट पर जीत मिली थी.