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योगी आदित्यनाथ से प्रतिद्वंद्विता और अखिलेश यादव की रणनीति, बनी केशव मौर्य की हार का सबसे बड़ा कारण?

केशव प्रसाद मौर्य की हार को लेकर कौशांबी समेत आस पास के जिलों के मतदाता हैरान नहीं है. लोगों का कहना है कि जैसी करनी वैसी भरनी. केशव मौर्य के चुनाव हारने पर लोगों को जरा सी भी हैरानी नहीं हुई.

Kaushambi Sirathu Election Results 2022: शायर मुनव्वर राणा का शेर है, बुलंदी कब तलक किस शख्स के हिस्से में होती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है. ये लाइन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का परिणाम आने के बाद सूबे के कद्दावर नेता केशव प्रसाद मौर्य पर बहुत फिट बैठती हैं. यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी को जब 312 सीटें मिली तो केशव मौर्य प्रदेश में एक बड़े नेता के रूप में उभरे. यहां तक कि उन्होंने स्वयं को बतौर सीएम प्रोजेक्ट भी कर दिया था, लेकिन संघ के आगे किसी की एक न चली. संघ की पहली पसंद बतौर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ थे और संघ ने उन्हें प्रोजेक्ट भी किया.

केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा. वक्त के साथ दोनों लोगों ने सूबे के लिए अपने-अपने तरीके से काम किया, लेकिन जब यूपी विधानसभा चुनाव 2022 का परिणाम आया तो इसने सभी को चौका दिया.

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योगी सत्ता में लौटे , लेकिन केशव कुर्सी गंवा बैठे

2017 के चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ की एक अलग छवि थी. उनके व्यक्तित्व को लेकर लोग उन्हें एक कट्टर हिंदू नेता के तौर पर ज्यादा जानते थे, लेकिन 2017 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद जहां योगी आदित्यनाथ के तेवर में थोड़ी नरमी आई, वहीं बतौर सीएम संगठित अपराध को लेकर योगी द्वारा माफियाओं पर की गई कार्रवाई ने उनकी एक और अलग इमेज गढ़ी- बुलडोजर बाबा.

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बीजेपी को 2022 में मिली 55 सीटें 

जी हां, अब उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें बुलडोजर बाबा के नाम से भी संबोधित करने लगी है. इसका असर उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला. सहयोगी दलों को छोड़ दे तो अकेले बीजेपी को 255 सीटें मिली है. योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर शहर से 1,65,499 मत मिले है. उनकी प्रतिद्वंद्वी सपा प्रत्याशी सुभावती शुक्ला 62,109 मत पर ही सिमट गई. योगी ने 1,03,390 मत के अंतर से ऐतिहासिक जीत दर्ज की है.

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कौशांबी में अपना जनाधार खो बैठे केशव प्रसाद मौर्य

केशव प्रसाद मौर्य की बात करें तो वह अपने ही गृह जनपद कौशांबी में अपना जनाधार खो बैठे. सपा की पल्लवी पटेल को कुल 1,06,278 वोट हासिल हुए. जबकि केशव प्रसाद मौर्य को 98,941 वोट मिले और वह 7,337 मत के अंतर से चुनाव हार गए. केशव की हार को लेकर कौशांबी समेत आस पास के जिलों के मतदाता हैरान नहीं है. लोगों का कहना है कि जैसी करनी वैसी भरनी. केशव मौर्य के चुनाव हारने पर लोगों को जरा सी भी हैरानी नहीं हुई.

10 साल में ‘केशव’ ने जमीन से लेकर आसमां तक, सब देख लिया

केशव प्रसाद मौर्य ने 10 साल में सब कुछ देख लिया. शुरू की राजनीति में दो बार मात खा चुके केशव मौर्य 2012 में सिराथू से ही पहली बार विधायक बने. 2014 में फूलपुर से मोदी लहर में सांसद निर्वाचित हुए. नेहरू और गांधी खानदान की विरासत कही जाने वाली इस सीट से मोदी लहर में ‘केशव’ की जीत ने पार्टी में उनका कद बढ़ा दिया था, जो 2017 में तब देखने को मिला, जब बीजेपी ने 312 सीट हासिल की.

जनता ने बीजेपी को दिया प्रचंड जनादेश

केशव प्रसाद मौर्य ने बतौर सीएम अपनी दावेदारी पेश कर दी थी, लेकिन पार्टी ने पटेल और मौर्य मतदाताओं को साधने के लिए उन्हें डिप्टी सीएम बना दिया. लेकिन इस बार के नतीजों ने बीजेपी को जहां प्रचंड जनादेश दिया वहीं, केशव चुनाव हार गए.

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केशव प्रसाद मौर्य की हार का सबसे बड़ा कारण

राजनीतिक जानकार जहां केशव प्रसाद मौर्य की हार की बड़ी वजह उन्हें खुद मानते हैं, तो वहीं बची कसर अखिलेश यादव ने पूरी कर दी. राजनीतिक विद्वानों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर हमेशा प्रतिद्वंदिता का तेवर अख्तियार करना केशव प्रसाद मौर्य के लिए भरी पड़ा. केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के संबंध को लेकर किस्से कहानियां आज जगजाहिर है. वहीं, उनकी हार को लेकर बची कसर अखिलेश यादव ने उनके सामने अपना दल (कमेरावादी) की प्रत्याशी पल्लवी पटेल को खड़ा करके पूरा कर दिया. वह भी समाजवादी पार्टी के सिंबल पर.

पल्लवी पटेल और केशव प्रसाद मौर्य के बीच रहा कड़ा मुकाबला

पल्लवी पटेल और केशव प्रसाद मौर्य के बीच कड़े मुकाबले को देखते हुए लोगों का यह भी कहना है कि अगर पल्लवी पटेल अपना दल के सिंबल पर चुनाव लड़तीं तो हो सकता है केशव चुनाव जीत लेते. बहरहाल, अखिलेश यादव ने आखिरी समय में पल्लवी को समाजवादी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ाकर जो रणनीति बनायी, उसमें वह कामयाब हो गए और केशव को शिकस्त दे दी.

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रिपोर्ट- एस के इलाहाबादी, प्रयागराज

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