Ravidas Jayanti 2022: काशी में संत रविदास का एक ऐसा मंदिर है जिसे दूसरे गोल्डन टेंपल के नाम से जाना जाता है. 1965 में बना रविदासी मंदिर दशकों से दलित श्रद्धा का केंद्र रहा है. इसके अलावा 2 राज्यों में दलित वोटरों को साधने का भी यह एक बड़ा केंद्र रहा है. इन दिनों की सियासत में राजनीति और धर्म एक दूसरे के साथ चल रहे हैं. ऐसे में संत रविदास राजनीतिक दलों की इन दोनों जरूरतों को पूरा कर रहे हैं. इस समय उत्तर प्रदेश समेत देश के पांच राज्यों में चुनाव हो रहा है और इस चुनावी मौसम में सभी नेता रविदास मंदिर का रुख कर रहे हैं.
Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath
offers prayers at Ravidas Temple in Varanasi on the occasion of Ravidas Jayanti pic.twitter.com/z3h3ffiSG0— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) February 16, 2022
पंजाब और यूपी दलित वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है. उत्तर प्रदेश में रविदासी समाज के लिए बहुत बड़ा वोट बैंक नहीं हैं. लेकिन राज्य में दलितों की कुल आबादी 20 प्रतिशत से ज़्यादा है. पंजाब में रविदासी एक बड़े वोट बैंक के तौर पर मौजूद हैं, पंजाब में उनकी आबादी 13 प्रतिशत से ज़्यादा है. यह लोग राजनीतिक तौर पर किसी भी पार्टी की जीत हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं और इन लोगों के लिए वाराणसी का सीर गोवर्धनपुर सबसे बड़ा तीर्थ है.
"न तसवीस खिराजु न माल ।। खउफ न खता न तरस जवाल…काइम दाइम सदा पातिसाही, दोम न सेम एक सो आही…जो हम सहरी, सु मीत हमारा।।"
हर साल की तरह आज के दिन वाराणसी स्थित संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी महाराज की जन्मस्थली पर मत्था टेकूँगी। आज भाई के साथ जाने में और भी ख़ुशी हो रही है। pic.twitter.com/vb4PM6YCNF
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) February 16, 2022
भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेता मंदिरपहुंचे. अखिलेश यादव जाने वाले हैं लेकिन, कोई नहीं पहुंचा तो वो नेता जो रविदास पर सबसे ज्यादा हक जताती रही हैं. यानी मायावती. मंदिर में नेताओं की भीड़ को देखकर ही मायावती ने रविदास जयंती के संदेश को याद दिलाते हुए ट्वीट किया है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा.
सभी दलों के नेता जानते हैं कि दलित समाज अपनी ओर कर लेने से स्थिति कितनी बेहतर हो जायेगी. पूजा पाठ और लंगर के सहारे सत्ता के प्रसाद को सभी चखना चाहते हैं. प्रधानमंत्री के राजनीतिक क्षेत्र वाराणसी का हर मुद्दा और प्रत्येक विपक्षी गतिविधि चुनावी होती है. इस मंदिर की अहमियत का सबसे बड़ा प्रमाण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भक्ति में देखने को मिला जब 2019 के लोक सभा चुनावों के पहले वह बनारस आए और संत रविदास जी के दरबार में नतमस्तक हुए.