Lucknow: प्रदेश में मैनपुरी लोकसभा और रामपुर व खतौली विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के नतीजे आज घोषित किए जाएंगे. इसके लिए सुबह 8:00 बजे से मतगणना शुरू हो जाएगी. उपचुनाव के नतीजे कई मायनों में बेहद अहम होंगे और इनका दूरगामी संदेश जाएगा.
समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी में इस बार उपचुनाव में 54.37 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 2019 के आम चुनाव में 57.37 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इस लिहाज से उपचुनाव में तीन प्रतिशत मतदान कम हुआ है.जबकि 2014 में 60.46 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. इस तरह देखा जाए तो 2019 और 2022 में मतदाताओं ने कम दिलचस्पी दिखायी है. इस बार कम हुए मतदान से कौन नफा और कौन नुकसान में रहा, ये आज पता चलेगा.
मैनपुरी में अगर सपा मुलायम की विरासत को आगे बढ़ाने में कामयाब होती है तो ये उसके लिए लोकसभा चुनाव 2024 के लिहाज से भी अहम होगा. पार्टी जनता के बीच ये संदेश देने में कायमाब होगी कि सैफई कुनबा एकजुट होने से ताकतवर हो गया है और भाजपा को केवल वही चुनौती दे सकता है, क्योंकि मैनपुरी में जिस तरह से भाजपा ने अपनी ताकत झोंकी, सरकार और संगठन के स्तर पर रणनीति को धरातल पर उतारकर कड़ी मशक्कत की गई, वह किसी से छिपा नहीं है.
अगर भाजपा यहां से सपा का तिलिस्म तोड़ने में कामयाब होती है, तो यह नया इतिहास लिखने की स्थिति होगी. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2019 में जिस तरह राहुल गांधी को हराकर स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के गढ़ अमेठी में कब्जा किया, उसके बाद पार्टी वहां लगातार कमजोर होती जा रही है. राहुल को 2024 में अमेठी से उतारने के लिए कांग्रेस रणनीतिकारों को अभी से कई बार सोचना पड़ रहा है. इसी तरह मैनपुरी को कब्जा करने की स्थिति में भाजपा ये प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी कि यूपी के अजेय सियासी किले ढहाकर उसने मतदाताओं का पूरा विश्वास हासिल किया है. ऐसे में सपा के लिए 2024 में यहां से वापसी करना और मुश्किल होगा.
रामपुर की बात करें तो ये आजम खां का अभेद किला है. आजम इस सीट से 10 बार विधायक रह चुके हैं. भाजपा एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी आज तक यहां जीत दर्ज नहीं कर सकी है. लेकिन, पहली बार आजम अपने घर में परेशान और बेचैन नजर आए. इस वर्ष विधानसभा चुनाव में रामपुर में 59.71 प्रतिशत वोटिंग हुई थी, जबकि उपचुनाव में महज 33.94 फीसदी मतदाता ही घर से बाहर निकले. मतदान का कम प्रतिशत सपा उम्मीदवार आसिम राजा की मुश्किलें बढ़ा सकता है.
यही वजह है कि आजम और उनका परिवार कम मतदान से बेहद नाराज दिखा और उपचुनाव प्रभाति करने का आरोप लगाया. ऐसे में अगर भाजपा यहां से जीत दर्ज करती है तो न सिर्फ आजम का किला ढह जाएगा, बल्कि उनकी सियासी विरासत पर भी पहली बार किसी और का कब्जा होगा. ये सपा से कहीं ज्यादा आजम की हार होगी. वहीं अगर ऐसा नहीं होता है तो जीत का सेहरा भी उनके ही सिर बंधेगा, भले ही वह स्वयं उम्मीदवार न हों. सपा की जीत यहां भाजपा पर बड़ा दबाव डालने का काम करेगी.
खतौली से भाजपा लगातार दो बार जीत दर्ज कर चुकी है. उपचुनाव में यहां सबसे ज्यादा 56.46 प्रतिशत मतदान हुआ है. जबकि विधानसभा चुनाव में कुल 45.34 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. इस लिहाज से यहां दस प्रतिशत से ज्यादा मतदाता अपने घरों से बाहर निकले हैं. ऐसे में अगर भाजपा अपनी सीट बचाने में सफल होती है तो उसका आत्मविश्वास बरकार रहेगा. वहीं अगर रालोद-सपा गठबंधन यहां से जीत दर्ज करता है तो इससे पश्चिमी यूपी में रालोद की वापसी का रास्ता खुलेगा. विपक्ष इस बात को बड़ा मुद्दा बनायेगा कि भगवा खेमा पूरी ताकत लगाने के बाद भी अपनी सीट नहीं बचा सका, क्योंकि जनता का उससे विश्वास उठ चुका है.
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इस तरह मैनपुरी लोकसभा और रामपुर व खतौली विधानसभा तीनों ही यूपी की सियासत के अगले रूख को तय करने का काम करेंगे. इनके नतीजे न सिर्फ सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के लिए अहम होंगे, बल्कि उनकी अगली रणनीति की भी दिशा तय करेंगे. विपक्ष के जीतने पर जहां उसकी उम्मीद कायम होगी, वहीं भाजपा के जीत विपक्ष की राह मुश्किल करने का काम करेगा.