यूपी के लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से कुचले जाने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज प्रदीप कुमार श्रीवास्तव के नेतृत्व में एक जांच कमीशन गठित की गई है. राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने मामले में जांच के लिए आयोग का गठन किया है. आयोग घटना की पूरी जांच करेगी और दो महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.
क्या होता है न्यायिक जांच: ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर न्यायित जांच क्या होता है. यह पुलिस की जांच और सीबीआई जांच से कैसे अलग होता है. सबसे पहले तो यह जान लें कि न्यायिक जांच पुलिस और सीबीआई से अलग होती है. इसकी अपनी ही एक प्रक्रिया है. जांच के लिए किसी जज को ही नियुक्त किया जाता है. दरअसल, जब किसी घटना के बाद उसकी न्यायिक जांच की मांग उठती है तो जांच का जिम्मा वर्तमान न्यायाधीश या किसी रिटायर्ड जज को ही दिया जाता है.
न्यायिज जांच: अदालत जब किसी घटना की न्यायिक जांच के आदेश देती है तो मामले को वर्तमान जज या किसी अवकाश प्राप्त जज के अधीन कर देती है. न्यायिक जांच कर रहे जज वारदात वाली जगह पर जाकर उसका मुआयना करते हैं. गवाहों के बयान दर्ज करते हैं, और सबूत जुटाते है. छानबीन पूरी हो जाने के बाद अपनी रिपोर्ट बनाकर संबंधित कोर्ट को रिपोर्ट सौंप देते हैं. जांच में एक से अधिक जज भी शामिल हो सकते हैं.
न्यायिक जांच की प्रक्रिया पुलिस जांच या सीबीआई जांच से अलग होती है. किसी घटना के बाद जब पुलिस या सीबीआई मामले की जांच करती है तो विभाग किसी वर्तमान अधिकारी को इसका जिम्मा दे देता है. जांच से जुड़े अधिकारी मामले की तफ्तीश कर अपनी रिपोर्ट या चार्जशीट कोर्ट को सौंपता है. हालांकि कई बार पुलिस और सीबीआई की जांच पर सवाल भी उठ जाते हैं. इससे अलग, न्यायिक जांच में अदालत किसी वर्तमान जज या रिटायर्ड जज को जांच का जिम्मा सौंप देती हैं. संबंधित जज मामले की पूरी तफ्तीश कर अपनी जांच रिपोर्ट तय समय में संबंधित अदालत को सौंप देते हैं.
Posted by: Pritish Sahay