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निवेशकों से पर्याप्त रकम हासिल होने से भारत में एग्रीटेक स्टार्टअप्स का बढ़ रहा दायरा

भारत में करीब 157.35 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि है और खेती संबंधी कार्यों में जुटे करीब 12 करोड़ किसानों को देशभर में संचालित करीब 250 एग्रीटेक स्टार्टअप्स मदद मुहैया करा रहे हैं. खेती की प्रक्रिया को उन्नत बनाने और उसमें व्यापक सुधार लाने में इन स्टार्टअप्स की बड़ी भूमिका सामने आ रही है. भारत में […]

भारत में करीब 157.35 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि है और खेती संबंधी कार्यों में जुटे करीब 12 करोड़ किसानों को देशभर में संचालित करीब 250 एग्रीटेक स्टार्टअप्स मदद मुहैया करा रहे हैं. खेती की प्रक्रिया को उन्नत बनाने और उसमें व्यापक सुधार लाने में इन स्टार्टअप्स की बड़ी भूमिका सामने आ रही है. भारत में खेती सेक्टर में एक बार फिर से क्रांति पैदा करने का भार इन्हीं स्टार्टअप्स के कंधों पर है.
हाल के वर्षों में एग्रीटेक स्टार्टअप्स को विविध स्रोतों से फंडिंग हासिल करने में मदद मिली है. साथ ही, भविष्य में इस क्षेत्र में तेजी से विस्तार होने की उम्मीदों के बीच इसका बाजार बढ़ने की उम्मीद है. एग्रीटेक स्टार्टअप्स के बढ़ते दायरे और उन्हें हासिल होने वाली फंडिंग समेत संबंधित अन्य पहलुओं को फोकस कर रहा है आज का स्टार्टअप पेज …
भारत में करीब 58 फीसदी ग्रामीण आबादी की आजीविका का साधन खेती से जुड़ा है और भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा देश है, जहां लोग खेती से जुड़े हैं. ‘इंक42 डेटा लैब्स’ की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में खेती और उसकी सहायक गतिविधियों में पिछले वर्षों के दौरान तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है. वर्ष 2011-12 में भारत से 24.7 अरब डॉलर के खेती के उत्पादों का निर्यात किया गया, जबकि वर्ष 2015-16 में यह बढ़ कर 32.08 अरब डॉलर तक पहुंच गया. यानी इसमें वार्षिक रूप में करीब 6.75 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है.
केंद्र सरकार की कई योजनाएं
दूसरी ओर, इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की रिपोर्ट बताती है कि देश की जीडीपी में खेती का योगदान वित्तीय वर्ष 2017 के दौरान 1,640 डॉलर से ज्यादा रहा. देश में कृषि उत्पादन की दशा को सुधारने के लिए सरकार ने इसकी मार्केटिंग को सुविधाजनक बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. इनमें से कुछ प्रमुख योजनाएं इस प्रकार हैं :
– परंपरागत कृषि विकास योजना
– प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना
– संसद आदर्श ग्राम योजना
वर्ष 2017-18 के केंद्रिय बजट में खेती और सहयोगी सेक्टर के लिए कुल बजटीय आबंटन में 24 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी की गयी और यह 1,87,233 करोड़ रुपये रहा. मई, 2017 में कर्नाटक सरकार ने घोषणा की थी कि राज्य में एग्रीटेक स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने के लिए 1.5 मिलियन डॉलर की रकम मुहैया करायी गयी है.
खेती सेक्टर में तेजी की उम्मीद
पिछले कुछ दशकों में सतत औद्योगिक ग्रोथ के बावजूद भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में खेती सेक्टर अब भी हाशिये पर है. बाजार आधारित सर्वेक्षणों से यह जाना गया है कि फूड प्रोसेसिंग की बढ़ती जरूरतों और देश की आबादी तक पोषक खाद्य पदार्थ मुहैया कराने के लिहाज से खेती सेक्टर में अभी और तेजी आने की उम्मीद है.
हाल के वर्षों में डेटा-आधारित सिस्टम के जरिये संगठित तरीके से तकनीकी सुधारों ने खेती की प्रक्रिया को दोबारा से खड़ा करने में किसानों को मदद मुहैया करायी है. इसका मकसद छोटे किसानों को बेहतर जीवन मुहैया कराना है. इस दिशा में निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी ने देशभर में एग्रीटेक स्टार्टअप्स को नये सिरे से फंडिंग मुहैया कराने पर जोर दिया है.
भारतीय एग्रीटेक स्टार्टअप्स में टॉप फंडिंग
स्टार्टअप फंडिंग निवेशक
उत्कल ट्यूबर्स 4.6 कैपएलेफ इंडियन मिलेनियम एसएमइ फंड एंड जेफाइर पिकॉक इंडिया फंड
निंजाकार्ट 5.5 एक्सेल पार्टनर्स, नंदन निलेकनी का एनआरजेएन ट्रस्ट
वेकूल 2.5 एस्पाडा इनवेस्टमेंट
एग्रोस्टार 10 आइडीजी वेंचर्स एंड आविष्कार
पालक डॉट इन सीड फंडिंग एंजेल इनवेस्टर्स
आरएमएल एगटेक 4 आइवीकैप वेंचर्स
मेरा किसान अघोषित महिंद्रा यूनिवेज
लीफ अघोषित बेस्टसेलर फाउंडेशन एंड यूनिटस इंपैक्ट
भारत बाजार अघोषित बीटनेक्स्ट, टीवी मोहनदास पई, कुनाल शाह, संदीप टंडन, रोहित बंसल और कुनाल बहल, अनुपम मित्तल, अमित गुप्ता, ट्रैक्सन लैब्स और अन्य.
सिद्धीविनायक एग्री प्रो अघोषित लॉक कैपिटल
(नोट : फंडिंग की रकम मिलियन डॉलर में है और निवेश के ये आंकड़े जनवरी, 2016 से मई, 2017 तक के हैं)
तकनीकी विकास के लिए ग्लोबल इनाेवेशन फंड
नोएडा-आधारित इएम3 एग्री सर्विसेज को हाल ही में सीरीज बी फंडिंग राउंड के तहत ग्लोबल इनोवेशन फंड से 10 मिलियन डॉलर की रकम हासिल हुई है. दूसरी ओर, क्रोफार्म नामक एग्रीटेक स्टार्टअप को प्री-सीरीज फंडिंग के तहत पांच करोड़ रुपये मिले हैं. इएम3 को अपने भौगोलिक दायरे को बढ़ाने के लिए यह मदद मुहैया करायी गयी है.
कामयाबी की राह
उद्यम को सफल बनाने में त्वरित निर्णय की बड़ी भूमिका
कुछ लोग इसके शीर्षक से चकित हो सकते हैं. कॉरपोरेट दुनिया में जो लोग निर्णय लेने में बहुत देर करते हैं, वे या तो कभी कोई निर्णय ले नहीं पाते या फिर असामान्य रूप से ज्यादा समय लेते हैं.
उन्हें अच्छा लीडर नहीं समझा जाता है. जब आप युद्ध के मैदान में घिरे होते हैं, तो आपके पास इतना समय और सुविधा नहीं होती कि आप इस बारे में मीटिंग करें कि बदला कैसे लेना है और तब निर्णय लें. कॉरपोरेट दुनिया में तेजी से निर्णय लेने का नेतृत्व अब ज्यादा प्रासंगिक इसलिए भी हो गया है, क्योंकि अब हम स्मार्टफोन और इंटरनेट के युग में आ चुके हैं.
कारोबार को विस्तार देने के सिलसिले में आप देश-दुनिया में कहीं भी हो सकते हैं. किसी विदेशी कंपनी के साथ संक्षिप्त वार्तालाप या इ-मेल के जरिये संबंधित जानकारियां हासिल करते हुए निर्णय ले सकते हैं.
जो उद्यमी त्वरित निर्णय लेते हैं, वे उन्हें कंपनी के सभी संबंधित साझेदारों से प्रोत्साहन मिलता है. दूसरी ओर वे अपने उद्यम के विकास से संबंधित सभी प्रकार के मसलों के प्रति पूरी तरह सजग और जागरूक रहते हैं. तुच्छ मसलों पर वे कभी अपनी ऊर्जा व समय नहीं बर्बाद करते हैं. बिजनेस स्कूलों में उनके प्रबंधन के तरीकों को अध्ययन के हिस्से के रूप में शामिल किया जाता है.
स्टार्टअप क्लास
शुगर-फ्री फूड और ड्रिंक्स में कामयाबी का मौका
ऋचा आनंद
बिजनेस रिसर्च व एजुकेशन की जानकार
लोगों में स्वास्थ को लेकर बढ़ती जागरुकता की वजह से शुगर-फ्री ड्रिंक और फूड तेजी से प्रचलन में आ रहे हैं. इसके अलावा डायबिटीज की बढ़ती समस्या भी एक कारण है कि लोग शुगर-फ्री प्रोडक्ट ढूंढने लगे हैं. शुगर-फ्री प्रोडक्ट का मतलब है, प्राकृतिक या एडेड शुगर की जगह दूसरे विकल्प का इस्तेमाल. आम तौर पर ऐसे उत्पादों में अस्पर्टेम, सैकरीन, स्टेविआ जैसे विकल्पों का इस्तेमाल करते हैं.
(क) आपको स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रमाणित विकल्पों की जानकारी होनी चाहिए, जो संबंधित सरकारी प्रतिष्ठानों से मान्यता प्राप्त हो.
(ख) इनको बनाने के लिए आपके पास कुशल कारीगर होने चाहिए, जिन्हें इनके विकल्पों के इस्तेमाल और उसकी मात्रा की जानकारी होनी चाहिए.
(ग) इनकी बिक्री के लिए शुरुआती दौर में आप बड़े स्टोर व मिठाई की दुकानों आदि से संपर्क कर सकते हैं. बाद में आप अपना स्टोर और एक्सक्लूसिव फ्रैंचाइस खोल सकते हैं.
शुगर-फ्री प्रोडक्ट में एक बड़ी चुनौती यह है कि सारे विकल्प डायबिटीज के लिए उपयुक्त नहीं होते और इसलिए कुछ खास विकल्पों का ही इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा कुछ रिसर्च शुगर-फ्री का लंबे समय तक और अधिक इस्तेमाल को स्वास्थ्य की परेशानियों से जोड़ते हैं, जिस कारण कुछ लोग इसके इस्तेमाल से बचते हैं. शुगर-फ्री प्रोडक्ट्स अभी आम उत्पाद और बिक्री में प्रचलित नहीं हुआ है, जो स्वयं में चुनौती भी हैं और अवसर भी. इन चुनौतियों के बावजूद आने वाले समय को ध्यान में रखते हुए आप इस क्षेत्र में कारोबार की शुरुआत कर सकते हैं.
निवेश अधिक होने से जापानी फूड की बढ़ रही लोकप्रियता
जी हां. पिछले कुछ वर्षों में भारत में जापानी निवेश काफी बढ़ा है और इसमें फूड और बेवेरेज इंडस्ट्री भी शामिल है. खाने में विविधता के प्रति रुचि के कारण भी यह लोकप्रिय हो रहा है. फिलहाल कई विदेशी जापानी रेस्टोरेंट चेन देश में अपनी पैठ बनाने के लिए निवेश कर रहे हैं. इनमें प्रमुख नाम हैं सूमो सुशी एंड बेंटो, बेनिहाना आदि. इस कारण अब जापानी फूड फाइव स्टार होटलों से निकल किफायती दामों में आम जनता तक पहुंचने लगा है. भारत के प्रोफाइल को देखते हुए ये रेस्टोरेंट अपने मेनू में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों चीजें मुहैया करा रहे हैं.
इस बाजार को देखते हुए आप ऐसे किसी रेस्टोरेंट चेन का फ्रैंचाइजी ले सकते हैं और बड़े शहरों में नये रेस्टोरेंट खोल सकते हैं. इसमें आप फाइन डाइनिंग या फास्ट फूड, दोनों ही तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं. फिलहाल ये रेस्टोरेंट मेट्रो में ही ज्यादा हैं, इसलिए आप अन्य बड़े शहरों में इसकी शुरुआत कर सकते हैं.
हालांकि आपको फ्रैंचाइजी मॉडल में निवेश करनेवाली कंपनी जापानी फूड से जुड़ी सारी जानकारी मुहैया करायेंगी, पर अपनी तरफ से भी आपको सुनिश्चित करना होगा कि आपके रेस्टोरेंट के कर्मचारी भी ग्राहकों को जापानी तरीकों का अनुभव दे सकने में सक्षम हों.
इसके अलावा रेस्टोरेंट का इंटीरियर डिजाइनिंग भी जापानी कल्चर के हिसाब से हो, तो और जुड़ाव ज्यादा होगा. इससे आपके रेस्टोरेंट का प्रचार होगा और आपके ब्रांड को जापानी फूड के हिसाब से भरोसेमंद समझा जायेगा. किसी भी शहर में आपके रेस्टोरेंट का लोकेशन भी महत्वपूर्ण है. अगर शहर में कोई और जापानी फूड चेन नहीं है, तो किसी बड़े मॉल के फूड कोर्ट से अपना रेस्टोरेंट शुरू करने में मदद मिल सकती है.

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