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सरकारें चाहें तो प्रदूषण पर लग सकती है लगाम ….जानिए कैसे
मौत का तांडव है तेजी से बढ़ता प्रदूषण स्वास्थ्य, पर्यावरण और धरती पर प्रदूषण के भयावह असर के बारे में हमें लंबे समय से जानकारी है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस समस्या पर अंकुश के लिए किये जानेवाले उपाय नाकाफी साबित हुए हैं. नतीजा यह है कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन […]
मौत का तांडव है तेजी से बढ़ता प्रदूषण
स्वास्थ्य, पर्यावरण और धरती पर प्रदूषण के भयावह असर के बारे में हमें लंबे समय से जानकारी है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस समस्या पर अंकुश के लिए किये जानेवाले उपाय नाकाफी साबित हुए हैं.
नतीजा यह है कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन 90 लाख लोग सालाना असमय ही मौत के शिकार हो जाते हैं. वर्ष 2015 में हमारे देश में यह संख्या 25 लाख से अधिक रही थी. लांसेट की हालिया रिपोर्ट ने एक बार फिर समूचे विश्व को चेताया है कि यदि जल्दी ही प्रदूषण पर लगाम लगाने की ठोस पहलें नहीं की गयीं, तो न सिर्फ जीना दूभर हो जायेगा, बल्कि विकास और समृद्धि की तमाम महत्वकांक्षाएं भी पूरी नहीं हो सकेंगी. मानव सभ्यता के सामने आज यह एक भयंकर चुनौती है जिसका सामना अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिल-जुल कर करना होगा. इस मसले के विविध पहलुओं पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों.
सरकारें चाहें तो प्रदूषण पर लग सकती है लगाम
दुनू रॉय
निदेशक, हजार्ड्स सेंटर
दुनियाभर में प्रदूषण की बड़ी वजहाें को नजरअंदाज किया जाता है और गाहे-ब-गाहे आनेवाली वजहों पर शोर मचाया जाता है. करीब-करीब सारे देशों की सरकारें इसी ढोंग को रचती हैं, ताकि असली और बड़ी वजहाें पर लोगों का ध्यान ही न जाये. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा तो दिया, लेकिन यह प्रदूषण के लिए सिर्फ एक वजह है और चूंकि यह इसलिए दिख रही है, क्योंकि एक दिन का मामला है और बहुत सारा धुआं दिखने लगता है.
इसलिए इस पर प्रतिबंध की राजनीति आसानी से की जा सकती है. लेकिन, हर रोज का और हर क्षण, जो प्रदूषण का अजगर बैठा हुआ है, उस पर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है. और जो कुछ लोग इस अजगर के बारे में सचेत भी करते हैं, तो उनकी बात ही नहीं सुनी जाती है. सरकार और अदालतों को एक दिन का प्रदूषण दिख जाता है, लेकिन बाकी 364 दिन का प्रदूषण नहीं दिखता है. और सबसे बड़ी बात यह है कि एक दिन का इसलिए इस्तेमाल किया जाता है, ताकि 364 दिन ओझल हो जाये.
प्रदूषण के जिम्मेदार इस अजगर के तीन मुख्य स्रोत हैं. परिवहन, निर्माण और ईंधनों (कोयला, तेल, लकड़ी) का जलना. ये तीनों दुनिया के हर शहर में तेजी से बढ़ रहे हैं.
पहले बात परिवहन की- सड़कों पर जितनी ही गाड़ियां दौड़ेंगी, उतना ही प्रदूषण को बढ़ावा देंगी. उसका धुआं पेड़-पौधों के कार्बन डाइ ऑक्साइड को सोखने की क्षमता को कम करता है, जिससे पेड़ों से ऑक्सीजन उत्सर्जन क्षमता भी प्रभावित होती है. सिर्फ गाड़ियों के धुएं से ही नहीं, बल्कि उनके सड़क पर घिसनेवाली पहियों से भी धूल के कण उत्पन्न होते हैं, जिनसे महीन धूल का निर्माण होता है. यह हमारी सांसों के लिए बहुत घातक है. इसीलिए दुनियाभर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बात की जाती है.
मसलन, अगर एक व्यक्ति अपनी कार से आता-जाता है, और कई व्यक्ति मिलकर बस से आते-जाते हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि एक कार वाला व्यक्ति जितना प्रदूषण उत्पन्न करता है, उसके मुकाबले बस में बैठा एक व्यक्ति बहुत ही कम प्रदूषण उत्पन्न करता है. वाहनों से उत्पन्न प्रदूषण एक ऐसा जहर है, जो गंभीर बीमारियां देकर तिल-तिल करके मारता रहता है. लेकिन, क्या आज तक किसी अदालत ने गाड़ियों की बिक्री पर रोक लगाने के लिए कोई फैसला दिया है? पटाखे की बिक्री पर रोक लगाने की मांग पर फौरन अदालत का फैसला आ जाता है, लेकिन गाड़ियों की बिक्री पर कोई फैसला नहीं आता है.
इसकी वजह क्या है? दरअसल, पटाखों को बनानेवाला तबका कमजोर है, जबकि गाड़ियों का निर्माण करनेवाला तबका बहुत मजबूत है. गाड़ी कंपनियां बहुत ताकतवर हैं. अदालत को यह फैसला भी देना चाहिए कि गाड़ियों की बिक्री का मानक बदला जाये, ताकि 15 साल पुरानी गाड़ियां सड़क पर न चलने पायें. और इसमें गाड़ी कंपनियों को भी कोई नुकसान नहीं है.
निर्माण क्षेत्र का भी ऐसा ही हाल है. सारी बड़ी कंपनियां निर्माण क्षेत्र में हैं और निर्माण कार्य को ही विकास का द्योतक मान लिया जाता है.
और यह प्रदूषण को बढ़ावा देने के लिए बड़ा जिम्मेदार है. निर्माण कार्य में इस्तेमाल होनेवाली चीजों और माल ढुलाई में ट्रकों के चलन से बहुत धूल कणों का उत्पादन होता है, जो प्रदूषण को बढ़ा देता है.
तीसरा स्रोत है ऊर्जा के लिए कोयला-तेल का जलना. कहीं पर भी, किसी भी तरह के उपयोग के लिए अगर कोयला, तेल या लकड़ी वगैरह को जलाया जायेगा, उससे प्रदूषण पैदा होगा ही. खेतों में साल में एक बार किसानों के खूंट जलाने को तो मुद्दा बनाया जाता है, लेकिन सालों-साल जलाये जानेवाले कोयले, तेल और लकड़ी पर कोई चर्चा तक नहीं होती. ताप विद्युत गृह में जिस कदर कोयले को जलाया जाता है, वह बहुत प्रदूषण पैदा करता है और इसकी तुलना किसान के खूंटी जलाने से नहीं हो सकती. वहीं, लकड़ी के लिए पेड़ों के कटने से पर्यावरण भी प्रभावित होता है. लेकिन, किसानों पर लगाम लगाना ज्यादा आसान है, बनिस्बत ताप विद्युत गृहों पर लगाम लगाने के. प्रदूषण से लोग दिन-प्रतिदिन बीमार होते जा रहे हैं और उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती जा रही है, फिर भी अगर हम नहीं चेत रहे हैं, तो यह हमारी जान-बूझकर की जानेवाली गलती है.
दुनियाभर में प्रदूषण का कारण बड़े और छोटे के बीच सरकारों की विभाजनकारी मानसिकता है. बड़ी कंपनियां चाहे जितना प्रदूषण पैदा कर लें, सरकारें उन पर लगाम लगाने से डरती हैं. लेकिन, वहीं छोटे लोगों से अगर जरा सा ही प्रदूषण पैदा हो जाये, तो उन पर फौरन लगाम लगाने की बात होती है. लगाम लगनी चाहिए, लेकिन सभी पर. परिवहन, निर्माण, और ईंधनों का इस्तेमाल, इन सबकी हमें जरूरत है. लेकिन, ऐसा नहीं है कि इन पर नियंत्रण कर प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता है.
यूरोप के कई शहरों में गाड़ियों पर लगाम लगा दी गयी और लोग वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं. दुनिया का विकसित देश अमेरिका के न्यूयार्क शहर की मुख्य सड़क पर गाड़ियों के चलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और वहां लोग पैदल ही चलते हैं. ऐसा क्या हमारे देश में नहीं हो सकता? बिल्कुल हो सकता है, लेकिन हमारी सरकारों में इच्छाशक्ति ही नहीं है ऐसा करने की और न ही उनके पास कोई दूरदर्शिता ही है. अगर सरकारें सही मायने में जनहित चाहती हैं, कंपनियों के हाथ में नहीं बिकती हैं, तो यह बहुत मुमकिन है कि वे प्रदूषण पर लगाम लगा सकती हैं.
वैसे तो प्रदूषण खत्म करने का कोई तकनीकी उपाय नहीं है. लेकिन, अगर कोई तकनीक है भी, तो उसके उपयोग के लिए न तो जागरूकता है और न ही इच्छाशक्ति है. क्योंकि, किसी भी देश में तकनीक का उपयोग करने के लिए सबसे पहले राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए.
नर्मदा बचाओ आंदोलन के लोग कबसे अपनी मांग मनवाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकारें बांध बनाकर लोगों की जिंदगी तबाह कर रही है. नदियों, तालाबों, बावड़ियों का इतना बुरा हाल है कि उनके पानी का इस्तेमाल घातक है. सरकार चाहे, तो इसका हल निकाल सकती है और प्रदूषण को खत्म तो नहीं, लेकिन कुछ हद तक जरूर कम कर सकती है. लेकिन, सिर्फ राजनीति करने के अलावा सरकारें कुछ भी नहीं करतीं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
चीन समेत कई देशों में बढ़ रहा प्रदूषणजनित मौतों का आंकड़ा
18.3 लाख लोग मारे गये प्रदूषण की वजह से वर्ष 2015 में चीन में, जिनमें 15.8 लाख (1.58 मिलियन) लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई थी.
3.1 लाख (0.31 मिलियन) लोग असमय मौत की गोद में समा गये थे प्रदूषण के कारण पाकिस्तान में 2015 में, जिनमें 2.2 लाख (0.22 मिलियन) लोगों की मृत्यु का कारण वायु प्रदूषण और 74,000 लोगों का जल प्रदूषण था.
2.5 लाख यानी .21 मिलियन लोग असमय मारे गये थे प्रदूषण के कारण नाइजीरिया में 2015 में जिनमें 1.6 लाख (0.16 मिलियन) लोगों की मृत्यु हुई थी जल प्रदूषण की वजह से.
2.1 लाख (0.21 मिलियन) लोगों की मृत्यु बांग्लादेश में हुई थी 2015 में वायु प्रदूषण की वजह से.
1.7 लाख यानी .17 मिलियन लोगों का निधन हुआ प्रदूषण के कारण इस वर्ष रूस में, जिनमें 1.4 लाख (0.14 मिलियन) लोगों की मौत का कारण वायु प्रदूषण था.
1.5 लाख लोग मारे गये अमेरिका में पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण 2015 में.
1.2 लाख लोग मारे गये कांगो में प्रदूषण की वजह से 2015 में.
01 लाख लोग मारे गये ब्राजील में प्रदूषण के कारण
2015 में.
90 हजार (0.9 मिलियन) लोग फिलीपींस में मर गये प्रदूषण के कारण 2015 में.
– बांग्लादेश, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, दक्षिण सूडान और हैती जैसे देश भी प्रदूषण के कारण असमय होने वाली मौतों में पीछे नहीं हैं. 2015 में प्रदूषण के कारण विश्व में जितनी असमय मौतें हुईं, उन मौतों का लगभग पांचवा हिस्सा इन्हीं देशों से था.
एड्स, टीबी व मलेरिया से तीन गुना ज्यादा मौत प्रदूषण से
वर्ष 2015 में प्रदूषण के कारण असमय होनेवाली मृत्यु के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. जीबीडी यानी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के अनुसार इस वर्ष पर्यावरणीय प्रदूषण से धूम्रपान से होनेवाली मौतों का डेढ़ गुना, एड्स, टीबी व मलेरिया से हाेनेवाली मौतों का तीन गुना, सड़क दुर्घटना में होनेवाली मौतों का छह गुना और युद्ध या दूसरी तरह की हिंसा में होनेवाली मौतों का छह गुना ज्यादा थी.
प्रदूषण और स्वास्थ्य के अध्ययन पर आधारित लैंसेट कमीशन की रिपोर्ट कहती है कि प्रदूषण से संबंधित बीमारी के कारण होनेवाली मौतों में ज्यादातर गैर-संक्रामक रोगों जैसे दिल की बीमारी, स्ट्रोक, फेफड़े का कैंसर और क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के कारण हुई थी.
प्रदूषण से बच्चों पर पड़ रहा बुरा प्रभाव
वर्ष की शुरुआत में पर्यावरणीय प्रदूषण पर आयी डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण बच्चों को न सिर्फ बीमार बना रहा है, बल्कि मौत का कारण भी बन रहा है. डब्ल्यूएचओ के डायरेक्टर जनरल डॉ मार्गरेट चैन का कहना है कि प्रदूषित वातावरण छोटे बच्चों के लिए बेहद घातक है. प्रदूषित वायु व जल के कारण इनके विकसित होते अंगों और राेग प्रतिरोधक क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. यह घातक प्रभाव मां के गर्भ से ही शुरू हो जाता है, नतीजा बच्चे के समयपूर्व जन्म का खतरा बढ़ जाता है.
– 4 में से 1 पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे की मृत्यु का कारण अस्वस्थ पर्यावरण है.
– 17 लाख पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे प्रतिवर्ष घरेलू व बाहरी प्रदूषण, सेकेंड हैंड स्मोक, असुरक्षित जल और स्वच्छता की कमी के कारण प्रतिवर्ष मौत की गोद में समा जाते हैं.
– 1 महीने से पांच वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के बड़े हिस्से की मृत्यु का आम कारण डायरिया, मलेरिया और न्यूमोनिया है.
– 5,70,000 पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे सांस के संक्रमण के कारण मर जाते हैं.
– 3,61,000 पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे डायरिया के कारण मर जाते हैं.
– 2,00,000 पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे मलेरिया से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं.
– 2,00,000 पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर्यावरण संबंधी अन्य कारणों से मौत की गोद में समा जाते हैं.
– 11-14 प्रतिशत पांच वर्ष और उससे अधिक आयु के बच्चों में दमा की शिकायत पायी गयी है विश्व भर में.
आपके घर की हवा भी है प्रदूषित!
दुनियाभर में कोई भी ऐसा प्रमुख शहर नहीं बचा है, जो वायु प्रदूषण की चपेट में आने से बचा रह गया हो. पिछले कुछ वर्षों में सांस लेने योग्य हवा की गुणवत्ता बहुत प्रभावित हुई है और कई शहरों में यह सामान्य से कई गुना अधिक खराब हो गयी है.
चूंकि, स्माॅग से बादलों के ढक जाने के कारण हमें वातावरण में फैला हुआ बाहरी प्रदूषण तो नजर आ जाता है, लेकिन घरों के भीतर के यानी आंतरिक वायु प्रदूषण को हम ज्यादा नहीं जान पाते हैं. जबकि बाहरी वायु प्रदूषण के मुकाबले आंतरिक वायु प्रदूषण 10 गुना ज्यादा हो सकता है. ‘डेक्कन क्रॉनिकल डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में क्राेनिक रेस्पिरेटरी डिजीज यानी सांस संबंधी गंभीर बीमारी के कारण होनेवाली मौतों की संख्या में से करीब एक-चौथाई लोगों की मौतें भारत में होती हैं और इसका बड़ा कारण धूम्रपान और वायु प्रदूषण को माना गया है.
यह एक बेहद गंभीर समस्या है, और जन-सामान्य में इस बारे में जागरूकता का अभाव होने के कारण लोगों ने अभी तक इस समस्या की गंभीरता को नहीं महसूस किया है. हनीवेल होम एंड बिल्डिंग टेक्नोलॉजीज, इंडिया के जनरल मैनेजर सुधीर पिल्लई के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आंतरिक और बाहरी वायु प्रदूषण के संबंध में कुछ मिथक भी जुड़े हुए हैं. जानते हैं कुछ प्रमुख मिथक के बारे में :
सर्जिकल मास्क से हो सकता है बचाव
मिनट सस्पेंडेड पार्टिकल्स यानी जिसे आम बोलचाल में पार्टिकुलेट मैटर या पीएम कहा जााता है, जो इंसान के बाल से 30 गुना ज्यादा पतले (पीएम 2.5) होते हैं.
पीएम 2.5 के कारण अस्थमा का खतरा बढ़ता है और हृदय की दशा खराब होती है. इससे अक्सर नाक बहने, छींक आने और सर्दी जुकाम होने का जोखिम बढ़ जाता है. एंटी-पॉलुशन एयर मास्क इन छोटे कणों से हमारा बचाव करने में कुछ हद तक ही सक्षम होते हैं. एयर फ्रेशनर्स, धूप या सुगंधित मोमबत्तियाें का इस्तेमाल उस दशा में ही सही होता है, जब आपके घर के भीतर की हवा में किसी तरह की बदबू फैल गयी हो.
लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि इन चीजों में हानिकारक केमिकल नहीं मिलाये गये हैं, और जब उन्हें जलाया जाता है, तो उनसे किसी तरह का हानिकारक केमिकल नहीं निकलता है? रोजाना अपने घर में इन चीजों का इस्तेमाल करने से आपके घर की वायु की गुणवत्ता धीरे-धीरे कम होती जाती है, जो दीर्घकाल में आपके परिवार की सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकती है.
आंतरिक प्रदूषण से होती हैं 13 लाख मौतें
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, आंतरिक और बाहरी वायु प्रदूषण दोनों ही स्वास्थ्य के दृष्टिकाेण से पर्यावरण के लिहाज से जोखिमभरा है. आंतरिक वायु प्रदूषण के कारण भारत में सालाना करीब 13 लाख लोगों की मौतें होती है.
हालिया अध्ययनों के अनुसार बाहरी वायु प्रदूषण के मुकाबले आंतरिक वायु प्रदूषण की चुनौती हमारे लिए ज्यादा जोखिमभरी है. खराब आंतरिक वायु गुणवत्ता वास्तविक में आपकी सेहत को अनेक तरीके से नुकसान पहुंचा सकता है. यदि आपके घर में लंबे समय तक आंतरिक वायु प्रदूषण का जोखिम है, तो आपको इन बीमारियों का जोखिम बना रहेगा : साइनस कंजेशन, जी मिचलाना, सिरदर्द, सांस लेने में मुश्किल.
गरीब देश व लोग प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित
जीबीडी के आंकड़े बताते हैं कि प्रदूषण और इस कारण होने वाली मृत्यु में 92 प्रतिशत लोग निम्न या मध्य आय वाले विकाशसील देशों के शामिल होते हैं. धनी देशों की अगर बात करें तो यहां भी प्रदूषण की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर ही पड़ती है, क्योंकि इन्हें ही सबसे ज्यादा प्रदूषित वातवारण में रहना पड़ता है. इस संबंध में विश्व बैंक की प्रमुख पर्यावरण विशेषज्ञ अर्नेस्टो सांचेज-ट्रियाना कहती हैं कि प्रदूषण और गरीबी के बीच का रिश्ता एकदम स्पष्ट है.
प्रदूषण से हार्मोन असंतुलन का खतरा!
ज्यादा लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से इंसान के भीतर तनाव पैदा करनेवाला हार्मोन बढ़ जाता है और इससे हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह जैसी बीमारियों का जोखिम पैदा होता है. यहां तक कि खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में रहने पर सेहतमंद लोगों में भी अनेक बीमारियों का जोखिम पैदा हो सकता है.
आपके घर में बीमारी पैदा करनेवाले वायु कारक हैं, इसे आप इन तथ्यों से पुष्टि कर सकते हैं कि यदि घर से बाहर जाने पर आपको सिरदर्द, जी मिचलाने या साइनस जैसे लक्षण दिखें, तो समझिए कि आपके घर के भीतर की वायु भी प्रदूषित है.
घरों के भीतर के ज्यादातर प्रदूषक एलर्जी और अस्थमा पैदा करते हैं. इस संबंध में अच्छी बात यह है कि बाहरी वायु प्रदूषण को हम भले ही खुद नहीं ठीक कर सकें, लेकिन घर के भीतर के वायु प्रदूषण को हम आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से सुधार सकते हैं.
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