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म्यूचुअल फंड निवेश का एक बेहतर विकल्प, जानें निवेश की प्रक्रिया और लाभ
शेयरों में अनिश्चितता की स्थिति हमेशा बनी रहती है. पता नहीं रहता कि किस कारण से कब उसका मूल्य कम हो जायेगा और कब उसमें तेजी आ जायेगी. सही समय पर शेयरों को खरीदने व बेचने की जानकारी न हो पाने के कारण निवेशकों के सामने हमेशा असमंजस की स्थिति बनी रहती है. वे तय […]
शेयरों में अनिश्चितता की स्थिति हमेशा बनी रहती है. पता नहीं रहता कि किस कारण से कब उसका मूल्य कम हो जायेगा और कब उसमें तेजी आ जायेगी. सही समय पर शेयरों को खरीदने व बेचने की जानकारी न हो पाने के कारण निवेशकों के सामने हमेशा असमंजस की स्थिति बनी रहती है. वे तय नहीं कर पाते कि कब और किस समय किसमें कितना निवेश करना उनके लिए फायेदमंद होगा. ऐसे में म्यूचुअल फंड निवेश का एक बेहतर विकल्प है जिसमें बहुत ही आसानी से निवेश किया जा सकता है. यह शेयरों और बांडों में निवेश करने का अच्छा विकल्प है.
क्या होता है म्यूचुअल फंड?
म्यूचुअल फंड निवेश किये जानेवाले पैसों का एक पूल होता है जिसे एक प्रोफेशनल फंड मैनेजर द्वारा संचालित किया जाता है. यह एक ट्रस्ट होता है जिसमें बहुत सारे निवेशकों, जिनका एक लक्ष्य व उद्देश्य होता है, और उसके पैसे को इक्विटी, बांड या मनी मार्केट में लगाया जाता है.
इससे होनेवाली आय या लाभ से फंड मैनेज करने में हुए खर्चों को घटा कर, बराबर हिस्सों में निवेशकों के बीच बांट दिया जाता है. इसको निवेशकों के बीच यूनिट्स के रूप में बेचा या खरीदा जाता है जिसका एक बाजार मूल्य होता है, जो एनएवी कहलाता है. हर स्कीम के लिए एनएवी अलग होता है, जो बाजार के अनुरूप तय होता है. एनएवी के अनुपात में ही निवेश किये गये रकम के अनुसार निवेशकों को यूनिट्स प्रदान किया जाता है. वैसे तो भारत में अभी भी जमीन, सोना व फिक्स्ड डिपोजिट को सुरक्षित मान कर अधिकांश निवेश होते हैं, परंतु पिछले कुछ वर्षों से निवेशकों का रूझान म्यूचुअल फंड की ओर बढ़ा है.
विभिन्न योजनाएं
म्यूचुअल फंड में अलग-अलग उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग तरह की योजनाएं होती है. निवेशकों के निवेश करने के विकल्प, जोखिम लेने की क्षमता, निवेश की समय सीमा आदि पहलुओं के अनुसार कुल सात प्रकार की योजनाएं होती हैं – इक्विटी फंड, डेब्ट फंड, बैलेंस फंड, इटीएफ, फंड्स ऑफ फंड और गोल्ड इटीएफ.
इक्विटी फंड
इस फंड का अधिकांश हिस्सा शेयरों, स्टॉकों में निवेश होता है. यह शेयर बाजार के अनुसार उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण रहता है और बाजार के जोखिम के अनुरूप होता है. इसमें लंबी अवधि के लिए किया गया निवेश बेहतर होता है. ये अलग-अलग लक्ष्य व उद्देश्यों के अनुरूप होते हैं, जैसे लार्ज कैप, मिड कैप, स्मॉल कैप, मल्टी कैप, थिमैटिक फंड एवं इएलएसएस. इन सभी स्कीम में रिटर्न अलग-अलग होता है.
इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (इएलएसएस) : यह एक ऐसी योजना है जो निवेश के बाद तीन साल तक के लिए लॉक रहती है यानी क्लोज रहती है. इसमें निवेश करने के तीन साल के बाद ही पैसा निकाल सकते हैं. आयकर अधिनियम 80 सी के प्रावधानों के तहत यह स्कीम आता है.
म्यूचुअल फंड के प्रकार
मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं.
ओपन इंडेड स्कीम : इसमें कभी भी निवेश किया जा सकता है और इसे कभी भी बंद कर पैसा निकाला जा सकता है.
क्लोज्ड इंडेड स्कीम : इसमें एनएफओ के माध्यम से निवेश किया जाता है और एक सीमित अवधि के बाद ही बेचा जा सकता है.
निवेश की प्रक्रिया
म्यूचुअल फंड में निवेश करना बहुत ही सरल है. एकमुश्त या बैंकों में रेकरिंग डिपॉजिट की तरह प्रति माह भुगतान कर यानी एसआइपी प्रक्रिया द्वारा आसानी से निवेश किया जा सकता है. इसके लिए डीमैट एकाउंट की बाध्यता नहीं होती है. हां, किसी भी बैंक में एक एकाउंट होना जरूरी है. कोई भी व्यक्ति कभी भी किसी भी म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकता है. इसके लिए सिर्फ तीन चीजों की जरूरत होती है : स्वहस्ताक्षरित पैन की कॉपी, स्वहस्ताक्षरित एड्रेस प्रूफ की कॉपी एवं पासपोर्ट साइज की तसवीर.
लोन की सुविधा
म्यूचुअल फंड में लोन लेने की सुविधा उपलब्ध होती है. डेब्ट फंड और गोल्ड इटीएफ में बड़ी आसानी से लोन लिया जा सकता है. इक्विटी फंड में भी कई बैंकों में लोन की सुविधा है.
फंड का चयन कैसे करें …
पिछले एक साल के परफार्मेंस के आधार पर म्यूचुअल फंड का चयन नहीं करना चाहिए बल्कि पिछले पांच से 10 साल के परफार्मेंस को देखते हुए ही निवेश के लिए चुनाव करना लाभदायक होता है. सिर्फ रिटर्न देखकर निवेश करना काफी जोखिम भरा व नुकसानदायक भी साबित हो सकता है.
डेब्ट फंड
इस तरह के फंड में निवेश किये गये पैसों को सरकारी प्रतिभूतियों या कॉरपोरेट बांड्स में लगाया जाता है. इसे इनकम फंड या बांड फंड भी कहा जाता है. यह इक्विटी फंड की तुलना में कम जोखिम वाला होता है.
अत: यह फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प साबित होता है जो एक निश्चित रिटर्न की अपेक्षा रखते हैं. इसका संबंध ब्याज दरों से होता है, इसलिए रिजर्व बैंक के मॉनिटरी पॉलिसी का प्रभाव इस तरह के फंड पर अधिक होता है. इसमें फंड मैनेजमेंट शुल्क इक्विटी फंड की तुलना में कम होता है. इसमें मूलत: लिक्विड फंड (मैचुरिटी 91 दिनों), अल्ट्रा शार्ट टर्म बांड फंड (एक साल से कम अवधि का), शार्ट टर्म इनकम फंड (1-3 वर्ष का), फिक्स्ड मैचुरिटी प्लान (एफएमपी: एफडी की तरह), लांग टर्म इनकम फंड (3 – 10 साल का), गिल्ट फंड (3 – 20 साल का), एमआइपी, डायनिमक बांड फंड व क्रेडिट अपॉरचुनिटी फंड होते हैं.
तीन साल से कम अवधि के लिए निवेश करने पर कर देयता सामान्य रूप में होता है. लेकिन इससे अधिक अवधि के लिए निवेश करने पर इसे लांग टर्म माना जाता है और इसमें इंडेक्सेशन के बाद 20 प्रतिशत कर देयता होती है, जिससे टैक्स कम हो जाता है. इसकी वजह से पोस्ट टैक्स रिटर्न अन्य विकल्पों से बेहतर साबित होता है. लिक्विड फंड वैसे निवेशकों या फर्म या कंपनियों के लिए बेहतर विकल्प होता है जो करेंट एकाउंट या सेविंगस एकाउंट में पैसा रखते हैं. इसमें जोखिम सबसे कम होता है.
बैलेंस फंड
यह एक हाइब्रिड फंड होता है जिसमें इक्विटी फंड और डेब्ट फंड का मिश्रण होता है. वैसे निवेशक जो मध्यम जोखिम की क्षमता के साथ दोनों इक्विटी और डेब्ट में निवेश कर अच्छा रिटर्न पाना चाहते हैं, उनके लिए यह अच्छा निवेश विकल्प है. इस फंड का 65% हिस्सा इक्विटी में लगाया जाता है और शेष हिस्सा डेब्ट फंड या मनी मार्केट में लगाया जाता है. चूंकि इस फंड का अधिकांश हिस्सा इक्विटी में लगा होता है, इसलिए इससे प्राप्त होनेवाली आय पर एक वर्ष के उपरांत, लांग टर्म कैपिटल गेन शून्य होने की वजह से कर देयता नहीं रह जाती है.
एक्सचेंज ट्रेडेड फंड
यह निवेशकों के लिए सबसे सुरक्षित और कम खर्चे वाला फंड होता है. इसका पैसा बीएसइ या एनएसइ के इंडेक्सों में निवेश होता है. लंबी अवधि के लिए निवेश करने का यह एक बेहतर विकल्प है. भारत में प्रचार प्रसार न हो पाने के कारण अभी भी निवेशकों के बीच में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाया है. विदेशों में इस तरह के फंड अधिक लोकप्रिय हैं. कम जोखिम लेने वालों के लिए यह अच्छा निवेश विकल्प है.
फंड्स ऑफ फंड
यह फंड दूसरे म्यूचुअल फंडों में निवेश कर उससे रिटर्न जेनरेट करता है. इसमें मल्टी फंड मैनेजर होते हैं. जोखिम कम होती है. इसमें कोई टैक्स लाभ नहीं मिलता. इसे भी नॉन-इक्विटी की तरह की माना जाता है.
गोल्ड इटीएफ
इसमें निवेश किया गया पैसा मूलत: बुलियन मार्केट में लगाया जाता है. इसमें एक ग्राम सोने के मूल्य का एक यूनिट होता है अर्थात इसमें निवेश करने का मतलब इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में सोना खरीदना होता है. इसको बीएसइ या एनएसइ में खरीदा या बेचा जा सकता है.
इसमें शुद्ध सोने के मूल्य की गारंटी होती है. कोई अतिरिक्त शुल्क या चार्ज नहीं लगता. यह स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होता है. एक साल के निवेश की अवधि के बाद यह भी लांग टर्म गेन के रूप में स्वीकार्य होता है और उस पर कोई कर देय नहीं होती है. ऐसे लोग जो लिक्विडिटी सुरक्षा और शुद्धता के लिए सोने में निवेश करना चाहते हैं, उनके लिए गोल्ड इटीएफ अच्छा विकल्प है.
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