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बजट की दिलचस्प यात्रा : जानें बदलाव लाने वाले 10 महत्वपूर्ण बजट और कुछ विशेष तथ्य के बारे
केंद्रीय बजट देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है. वित्त मंत्री द्वारा आय-व्यय के ब्योरे और आवंटन से आम नागरिक से लेकर उद्योग जगत के शीर्षस्थ तक प्रभावित होते हैं. किसानों, कामगारों, महिलाओं, वेतनभोिगयों, उद्यमियों आदि विभिन्न तबके आवंटनों, कराधान तथा नीतिगत पहलों पर नजर लगाये रहते हैं. इस वर्ष के बजट […]
केंद्रीय बजट देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है. वित्त मंत्री द्वारा आय-व्यय के ब्योरे और आवंटन से आम नागरिक से लेकर उद्योग जगत के शीर्षस्थ तक प्रभावित होते हैं. किसानों, कामगारों, महिलाओं, वेतनभोिगयों, उद्यमियों आदि विभिन्न तबके आवंटनों, कराधान तथा नीतिगत पहलों पर नजर लगाये रहते हैं. इस वर्ष के बजट के मौजूदा माहौल में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक पेश कुछ खास बजटों तथा संबंधित जानकारियों के साथ यह विशेष प्रस्तुति…
बदलाव लाने वाले 10 महत्वपूर्ण बजट
1947
स्वतंत्र भारत के इस पहले बजट को पहले वित्त मंत्री आर के षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 को पेश किया था. यह बजट 15 अगस्त, 1947 से 31 मार्च, 1948 तक सिर्फ साढ़े सात महीने के लिए था. इस बजट में वर्ष के लिए कुल अनुमानित व्यय 197.39 करोड़ रुपये था, जिसमें सबसे ज्यादा 91.74 करोड़ रुपये का व्यय रक्षा क्षेत्र के लिए था.
1951
गणतंत्र भारत का यह पहला बजट था जिसे वित्त मंत्री जाॅन मथाई ने 28 फरवरी, 1950 को पेश किया था. इसी बजट में योजना आयोग की स्थापना की रूपरेखा तैयार की गयी थी. इस बजट ने परंपरागत मान्यताओं को तोड़ा और सभी सामग्री को व्याख्यात्मक ज्ञापन के साथ एक श्वेत पत्र में सामान्य बजट भाषण के साथ प्रस्तुत किया.
1957
15 मई, 1957 को वित्त मंत्री तिरुवेल्लोर थत्ताइ कृष्णमचारी (टीटीके) ने इस बजट को पेश किया था. इस बजट में आयात लाइसेंस प्रणाली के जरिये आयात पर कड़े प्रतिबंध लगाये गये थे. प्रत्यक्ष (वेतन या व्यवसाय) और अप्रत्यक्ष आय (ब्याज या किराया) में पहली बार इस बजट के जरिये भेद करने का प्रयास किया गया था. इस बजट में कर को लेकर भी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये थे और टीटीके ने यह निर्णय हंगरी के अर्थशास्त्री निकोलस काल्डोर की सलाह पर लिया था.
1997
28 फरवरी, 1997 को तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा पेश इस बजट को बेहद ऐतिहासिक माना जाता है, क्योंकि इसमें आम नागरिकों के साथ-साथ कंपनियों के लिए भी मामूली कर दर तय की गयी थी और काले धन को बाहर निकालने के लिए वालंटरी डिस्क्लोजर ऑफ इनकम स्कीम यानी वीडीएलएस को लाया गया था. मामूली कर दर रखे जाने का उद्देश्य कर आधार को बढ़ाना था क्योंकि तब कुल आबादी का महज एक प्रतिशत ही कर दायरे में आता था.
1968
यह बजट जन संवेदी था. इसे मोरारजी देसाई ने 29 फरवरी, 1968 को पेश किया था. इस बजट में फैक्ट्री गेट पर उत्पाद शुल्क विभाग के अधिकारियों द्वारा वस्तुओं पर लगाये जाने वाले मुद्रांकन और मूल्यांकन को समाप्त कर दिया गया था और सभी बड़े व छोटे निर्माताअों द्वारा स्वमूल्यांकन प्रणाली की शुरुआत की गयी थी. वस्तुओं के स्वनिर्धारण की इस प्रणाली के कारण निर्माताओं को काफी सुविधा हुई, फलस्वरूप निर्माण को बढ़ावा मिला और उत्पाद शुल्क विभाग पर से प्रशासनिक कार्यों का बोझ कम हुआ.
1973
इस वर्ष 28 फरवरी, 1973 को तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण ने बजट पेश किया था. इस बजट की प्रमुख बातें थीं जनरल इंश्योरेंस कंपनी, इंडियन कॉपर कॉर्प और कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के लिए 56 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराना. 1973-74 वित्त वर्ष के लिए यह बहुत बड़ी रकम थी क्योंकि इस वित्त वर्ष में 550 करोड़ रुपये का बजट घाटा अनुमानित था. काेयला खदानों के राष्ट्रीयकरण की आलोचना करते हुए यह कहा जाता है कि इससे लंबी अवधि में कोयले के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ा और बाजार प्रतिस्पर्धा के लिए भी कोई संभावना नहीं बची.
1986
1986-87 वित्त वर्ष के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने 28 फरवरी, 1986 को बजट पेश किया था. इस बजट में वीपी सिंह ने मोडवैड क्रेडिट की शुरुआत की ताकि किसी वस्तु के अंतिम कीमत पर करों का कम प्रभाव पड़े. अप्रत्यक्ष कर में होनेवाले महत्वपूर्ण सुधारों का यह शुरुआती कदम था. इस बजट में लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना, रिक्शा चालक, मोची और इसी तरह के स्वरोजगार करने वालों के लिए सब्सिडी के साथ बैंक ऋण का प्रस्ताव भी था.
1987
28 फरवरी, 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस बजट को पेश किया था. इस बजट में न्यूनतम व्यावसायिक कर का प्रावधान किया गया था जिसे आज हम न्यूनतम वैकल्पिक कर यानी मैट के नाम से जानते हैं. इस कर का प्रावधान इसलिए किया गया था ताकि अत्यधिक लाभ कमा रही कंपनियों से कर वसूला जा सके, क्योंकि वे कानूनी तरीके से कर से बचाने का तरीका ढूंढ लेती थीं. इस प्रावधान से कर संग्रह का अनुमान महज 75 करोड़ रुपये ही था, लेकिन तब से यह राजस्व प्राप्ति का एक प्रमुख स्रोत बन गया है. इस तरह के बजट पेश करने का आइडिया अमेरिका से लिया गया था.
1991
इस वर्ष तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई को आम बजट पेश किया था. इस बजट में आयात-निर्यात नीति को सुधारने, आयात लाइसेंसिंग को घटाने और भारतीय उद्योग को विदेश से प्रतिस्पर्धा करने लायक बनाने के लिए निर्यात को प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव किया गया था. सीमा शुल्क में कटौती कर शुल्क संरचनाओं को व्यवस्थित करने का प्रस्ताव भी इस बजट में किया गया था.
2000
29 फरवरी, 2000 को तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इस बजट को सदन के पटल पर रखा था. सभी को शिक्षा का अधिकार के तहत सर्व शिक्षा अभियान की घोषणा की गयी. 1991 सॉफ्टवेयर निर्यात पर इनसेंटिव को फेज आउट करने की शुरुआत की गयी. सॉफ्टवेयर निर्यात से होनेवाली आय को टैक्स फ्री किया गया.
वैश्विक स्तर पर घटती बजट पारदर्शिता
बजट सरकारों के आय-व्यय का लेखा-जोखा होने के कारण एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. लेकिन यह देखा जा रहा है कि सरकारें बजट के संबंध में पारदर्शिता बरतने में कोताही कर रही हैं.
इससे लोगों में सरकारों के प्रति भरोसा कम हो रहा है तथा विषमता बढ़ रही है. इंटरनेशनल बजट पार्टनरशिप नामक वैश्विक संस्था की रिपोर्ट ‘द ओपेन बजट सर्वे, 2017’ में यह जानकारी दी गयी है. मंगलवार को वाशिंग्टन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे के दायरे में रखे गये 115 में से 89 देश जनता को ‘समुचित’ बजट सूचना उपलब्ध कराने में असफल रहे हैं. इन 115 देशों का पारदर्शिता औसत 100 में से 42 रहा है, जबकि 2015 में यह 45 था. दुनियाभर की कई संस्थाओं के सहयोग से यह सर्वेक्षण हर दो साल पर प्रकाशित होता है.
इसके अनुसार बीते एक दशक में पहली बार पारदर्शिता में गिरावट दर्ज की गयी है. अध्ययन का कहना है कि सब-सहारन अफ्रीकी देशों (सहारा मरुस्थल के दक्षिण में स्थित देश) में यह गिरावट सर्वाधिक है. वर्ष 2015 से 2017 के बीच उन देशों में औसत पारदर्शिता में 11 अंकों की कमी आयी है. रिपोर्ट में सरकारों को सलाह दी गयी है कि वे बजट से जुड़े सभी दस्तावेजों को ऑनलाइन उपलब्ध कराएं तथा उन पर नजर रखनेवाली संस्थाओं की स्थापना करें या उन्हें मजबूत करें. बजट तैयार करने की प्रक्रिया को समावेशी बनाने पर जोर देते हुए इस अध्ययन में लोगों की सहभागिता बढ़ाने पर ध्यान देने की बात भी कही गयी है.
इसमें रेखांकित किया गया है कि ज्यादातर देश नागरिकों की भागीदारी के अवसर मुहैया नहीं कराते हैं. यह संतोष की बात है कि जॉर्जिया, जॉर्डन, मेक्सिको और सेनेगल जैसे देशों में पारदर्शिता बढ़ी है. दक्षिण एशियाई देशों के औसत में भी 2015 की तुलना में पांच अंकों की बेहतरी दर्ज की गयी है. सौ अंकों में से भारत को पारदर्शिता के हिसाब से 48, जन भागीदारी के हिसाब से 15 और बजटपर नजर रखने के हिसाब से 48 अंक मिले हैं. वर्ष 2015 के रिपोर्ट में भारत को पारदर्शिता में 46 और जन भागीदारी में 19 अंक मिले थे.
इस लिहाज से प्रगति संतोषजनक नहीं है तथा इस रिपोर्ट के सुझावों पर ध्यान देने की जरूरत है. बजट पारदर्शिता के मामले में सबसे ऊपर के देशों में न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, नॉर्वे और जॉर्जिया हैं.
आम बजट : कुछ विशेष तथ्य
भारत में पहली बार बजट सात अप्रैल, 1860 को जेम्स विल्सन ने प्रस्तुत किया.
स्वतंत्र भारत का पहला बजट वित्त मंत्री आरके षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 को पेश किया.
वर्ष 1950-51 के लिए बजट पेश करते समय योजना आयोग अस्तित्व में आया.
वर्ष 1955-56 से बजट के दस्तावेज हिंदी में भी तैयार किये जाने लगे.
जवाहर लाल नेहरू वर्ष 1958-59 का बजट पेश करने वाले पहले प्रधानमंत्री थे. उनके पास वित्त मंत्रालय का प्रभार भी था.
1973-74 के बजट को ‘ब्लैक बजट’ के नाम से जाना जाता है. इस वित्तीय वर्ष में बजट घाटा 550 करोड़ रुपये था.
मोरारजी देसाई एक मात्र वित्त मंत्री थे, जिन्होंने अपने जन्मदिन पर 29 फरवरी, 1964 और 1968 को बजट पेश किया.
इंदिरा गांधी अब तक की अकेली वित्त मंत्री रही हैं, जिनके पास 1970-71 के समय वित्त मंत्रालय का प्रभार था. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए बजट पेश किया है.
वर्ष 1999 तक आम बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को शाम पांच बजे पेश होता आया था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने इस समय को बदला और उसके बाद से बजट पेश करने का समय दिन के 11 बजे तय किया.
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2000 में सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की. इसका उद्देश्य छह से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना है.
बतौर वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने सबसे अधिक बार बजट प्रस्तुत किया था. मोरारजी देसाई ने 10 बार, उसके बाद पी चिदंबरम ने नौ बार और प्रणब मुखर्जी ने आठ बार बजट पेश किया है.
वर्ष 2016 तक आम तौर पर बजट फरवरी माह के आखिरी कार्य दिवस को प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2017 से इस परंपरा में बदलाव करते हुए इसके लिए एक फरवरी का दिन निर्धारित किया.
तर्क दिया गया कि एक अप्रैल से बजट लागू करने के लिए उसे संसद में पारित कराने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा.
वर्ष 2016 तक आम बजट और रेल बजट, दोनों अलग-अलग होते थे. यानी आम बजट से एकाध दिन पहले रेल बजट पेश किया जाता था. वर्ष 2017 में पिछले 92 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को भी खत्म कर दिया गया और रेल बजट को आम बजट में ही समाहित कर दिया गया.
बजट निर्माण संबंधी विविध तथ्य
बजट दस्तावेजों की छपाई करने वाले कर्मचारियों को आम बजट पेश होने के एक सप्ताह से गोपनीय तरीके से रखा जाता है.देश के आम बजट की प्रिंटिंग की प्रक्रिया हलवा परोसे जाने की रस्म के साथ वर्षों से चली आ रही है. एक बड़ी कड़ाही में हलवा बनाया जाता है और वित्त मंत्रालय के सभी कर्मचारियों को परोसा जाता है.
इसके साथ ही बजट की तैयारियों में लगे अधिकारी और कर्मचारियों को अपने परिवार तक से अलग होकर नॉर्थ ब्लॉक के प्रेस में रहना होता है.
बजट पेश किये जाने से सात दिन पहले वित्त मंत्रालय के बजट से जुड़े अधिकारी, विशेषज्ञ, प्रिंटिंग का काम करने वाले तथा अन्य संबंधी लोग दुनिया से अलग होकर नॉर्थ ब्लॉक स्थित वित्त मंत्रालय के भूतल में स्थित कक्ष में बजट को अंतिम रूप देते हैं. इस दौरान इन लोगों पर नजर रखने के लिए खुफिया ब्यूरो के अधिकारियों का दल इनकी आवाजाही पर नजर रखता है.
पहले बजट की प्रिंटिंग राष्ट्रपति भवन में होती थी, लेकिन 1950 में बजट लीक हो गया, जिसके बाद प्रिंटिंग के काम को नयी दिल्ली में ही मिंटो रोड स्थित सरकारी प्रेस में भेज दिया गया. फिर 1980 से बजट नॉर्थ ब्लॉक यानी वित्त मंत्रालय में प्रिंट किया जाता है. बजट की पूरी प्रक्रिया समाप्त होने तक सभी कर्मचारियों को मंत्रालय में ही रोका जाता है.
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