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भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की संयुक्त पहल, इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने पर विचार…जानें

II कमलेश पांडे II वरिष्ठ पत्रकार आखिर कैसी होगी भारत-प्रशांत क्षेत्र की वैकल्पिक राह? खरबों डालर की चीनी परियोजना ‘वन बेल्ट वन रोड’ के बरक्स भारत-प्रशांत क्षेत्र में चार देश- भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका- संयुक्त रूप से क्षेत्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना विकसित करने पर आपसी बातचीत कर रहे हैं. हालांकि इस पहल में शामिल अधिकारियों […]

II कमलेश पांडे II
वरिष्ठ पत्रकार
आखिर कैसी होगी भारत-प्रशांत क्षेत्र की वैकल्पिक राह?
खरबों डालर की चीनी परियोजना ‘वन बेल्ट वन रोड’ के बरक्स भारत-प्रशांत क्षेत्र में चार देश- भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका- संयुक्त रूप से क्षेत्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना विकसित करने पर आपसी बातचीत कर रहे हैं. हालांकि इस पहल में शामिल अधिकारियों ने चीन से सहयोग की उम्मीद भी जतायी है तथा इस बात से इनकार किया है कि ये कोशिशें चीन के विरोध में हैं. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्यापार-वाणिज्य आज अहम आयाम हैं. देखना यह है कि इन दो बड़ी परियोजनाओं को लेकर कूटनीति की राह क्या होती है. इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर नजर डालते हुए प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
द-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और आधारभूत ढांचे को बढ़ाने की सामूहिक फिक्र के चलते अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत ने जिस ‘संयुक्त क्षेत्रीय बुनियादी ढांचा परियोजना’ की परिकल्पना को अपनी सहमति प्रदान की है, वह चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड परियोजना’ का रणनीतिक रूप से करारा जवाब है. इस प्रस्तावित परियोजना की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस पर किसी एक देश का आधिपत्य नहीं होगा, बल्कि चारों देशों के परस्पर सहयोग से ही उनके आर्थिक और सामरिक हित सधेंगे.
भारत के लिए इस परियोजना का क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों नजरिये से विशेष महत्व है, क्योंकि इस परियोजना से चीन को चुनौती देनेवाला न केवल एक नया विकल्प उभरा है, बल्कि उसे अपने कारोबारी विस्तार के लिए एक नया वैकल्पिक रास्ता भी मिलेगा, जिस पर उसके धुर-विरोधी चीन की तो कतई नहीं चलेगी.
प्रस्तावित परियोजना भारतीय नेतृत्व के द्वारा अर्जित एक और बड़ी रणनीतिक सफलता है, जिससे देश-दुनिया में उसका निःसंदेह महत्व बढ़ेगा.
नये दौर की दुनिया को एक ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है, जो सभी देशों को आपस में जोड़े, जिससे उनका कारोबारी विस्तार हो. यही वजह है कि चीन ने न केवल अपनी ‘वन बेल्ट, वन रोड परियोजना’ प्रस्तुत की है, बल्कि इसे लेकर पूरी दुनिया के बहुतेरे देशों को अलग-अलग सब्जबाग भी दिखाये हैं. दरअसल, यह परियोजना चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा योजना है, जिसके तहत चीन के पड़ोसी देशों के अलावा यूरोप को सड़क मार्ग से जोड़ेगा.
ऐसा होने से चीन दुनिया के कई बंदरगाहों से सीधे जुड़ जायेगा. रूस, ईरान, इराक के अलावा इंडोनेशिया, बंगाल की खाड़ी, श्रीलंका, भारत, पाक, ओमान के रास्ते इराक तक उसका पहुंचना भी आसान हो जायेगा.
इसके अलावा, चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर (सीपेक) के तहत पाक के ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग से जोड़ा जा रहा है. इस परियोजना का आर्थिक पक्ष/ तर्क बेहद मजबूत है. इसकी विशेषता यह है कि रोड, रेलवे समेत कई आधारभूत ढांचे विकसित किये जायेंगे. भारत समेत कुछ देश इसे चीन की बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षा का प्रतिफल समझ रहे हैं और अपनी ओर से अपेक्षित सावधानी भी बरत रहे हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं कि एशिया, यूरोप और अफ्रीका में भी ऐसे बहुत से देश हैं, जिन्हें ऐसी किसी परियोजना की जरूरत है, लेकिन सिर्फ इसके लिये वे चीन जैसे महत्वाकांक्षी और विस्तारवादी देश पर कतई भरोसा नहीं कर सकते.
ऐसे देशों का मानना है कि चीन अपनी ‘वन बेल्ट वन रोड परियोजना’ के नाम पर दुनिया में राजनीतिक आधिपत्य चाहता है, क्योंकि यह परियोजना उसे वह ढांचा दे देगी, जिससे वह जरूरत पड़ने पर कहीं भी हस्तक्षेप कर सके. भारत ने इस परियोजना का लगातार विरोध किया है, जिसे अब चीन विरोधी देशों का समर्थन हासिल हो चुका है. भारत समेत चार मजबूत देशों की ‘संयुक्त क्षेत्रीय बुनियादी ढांचा परियोजना’ इसी का प्रतिफल है.
दरअसल, चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना’ से जिसे कई बार ‘वन बेल्ट वन रोड परियोजना’ भी कहा जाता है, का पहला हिस्सा माना जानेवाला ‘चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर’ से भी उसकी बदनियति को आसानी से समझा जा सकता है. क्योंकि चीन से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जानेवाली यह सड़क पाक अधिकृत कश्मीर से निकलती है.
हैरत की बात है कि चीन ने न तो भारत की भावनाओं का ख्याल रखा और न ही कश्मीर पर उसके दावों का कोई ख्याल रखा. यही वजह है कि भारत इसका विरोध कर रहा है. चीन ने भारत के साथ ऐसा पहली बार नहीं किया है. पहले भी वह उसी क्षेत्र में काराकोरम मार्ग बना चुका है. हाल-फिलहाल में उसने भूटान के नाथुला तक सड़क बनाने की कोशिश की, जिसका भारत ने कड़ा प्रतिवाद किया. जाहिर है कि चीन उन तमाम जगहों पर अपनी पहुंच बना रहा है, जो भारत के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं.
लिहाजा, अब यह किसी से छिपा नहीं है कि भारत को घेरने के लिए चीन पाकिस्तान के अलावा नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव आदि देशों में भी आधारभूत ढांचे के नाम पर अपने केंद्र बना रहा है. इसके अलावा, दक्षिण चीन सागर में भी चीन अपना एकाधिकार जताता है, जिसके चलते जापान समेत चार देशों से उसका विवाद चल रहा है. यही वजह है कि भारत भी चीन को घेरने के लिए चीन विरोधी धुरी में शामिल हो चुका है.
हाल में ही एक प्रतिष्ठित ऑस्ट्रेलियाई अखबार ने भी इस बात का खुलासा किया है कि भारत ने बीजिंग के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर एक ‘संयुक्त क्षेत्रीय बुनियादी ढांचा परियोजना’ बनायी है, जो भले ही प्राथमिक चरण में है, लेकिन इन देशों के आपसी कूटनीतिक समझौतों में शामिल हो चुका है. बहरहाल, जापान के कैबिनेट सचिव योशीहीदा सुगे भी बता चुके हैं कि हाल ही में मनीला में हुई आसियान बैठक में भी इस पर अलग से चर्चा की गयी थी, जिससे इसके महत्व का पता चलता है.
इसी सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल के बीच भी अमेरिका में इस अहम मसले पर भी चर्चा होगी. लिहाजा यह तय हो चुका है कि देर-सबेर ही सही, लेकिन उक्त महत्वाकांक्षी परियोजना से जुड़ा सामूहिक स्वप्न भी अब शीघ्र साकार हो जायेगा.
दरअसल, आर्थिक और सामरिक मामलों में भारत और चीन की प्रतिद्वंद्विता अब दिन-प्रतिदिन बढ़ेगी ही, यह बात जगजाहिर है.पास-पड़ोस की चिंताजनक स्थिति भी इसी बात की चुगली कर रही हैं कि निकट भविष्य में ये हालात और जटिल होंगे. भारत समेत चार देशों की भागीदारी वाली प्रस्तावित ‘संयुक्त क्षेत्रीय बुनियादी ढांचा परियोजना’ का खाका क्या होगा? इस पर कैसे अमल सुनिश्चित किया जायेगा? क्या इससे किसी दूसरे शीत युद्ध की शुरुआत होगी? यह जानने की दिलचस्पी सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि सारेजहां की बढ़ी है और बढ़नी भी चाहिए.
चीन की बलूच लड़ाकों से गुपचुप बातचीत
अरबों डॉलर की चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की सुरक्षा को चाक-चौबंद करने के लिए चीन हरसंभव प्रयास कर रहा है. ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक इस गलियारे की सुरक्षा के लिए चीन पाकिस्तान के बलूच लड़ाकों के साथ तकरीबन पांच वर्षों से गुपचुक तरीके से संपर्क में है.
पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम प्रांत बलूचिस्तान में गलियारे से संबंधित कई प्रमुख परियोजनाओं पर काम चल रहा है और चीन नहीं चाहता है कि बलूच विद्रोहियों की वजह से इन पर आंच आये. पाकिस्तानी अधिकारियों ने भी बलूच विद्रोहियों और चीनी प्रतिनिधियों के बीच होनेवाली इस बातचीत का स्वागत किया है, हालांकि उन्हें इन दोनों के बीच होनेवाली बातचीत के बारे में विस्तार से कुछ भी पता नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस बातचीत को लेकर एक अधिकारी ने कहा है कि अगर बलूचिस्तान में शांति आती है, तो इससे दोनों देशों को फायदा होगा. इस बारे में दूसरे अधिकारी का कहना है कि अमेरिका द्वारा सुरक्षा सहायता राशि में कटौती के निर्णय के बाद सरकार ने लोगों को यह भरोसा दिलाया है कि अमेरिका की बजाय चीन पाकिस्तान का सच्चा साझीदार है.
वहीं, इस प्रांत के एक कबीलाई नेता का कहना है कि यहां के युवाओं को धन लाभ के वादे के साथ हथियार डालने के लिए राजी किया गया है. दूसरे, कई लोगों का यह भी मानना है कि आर्थिक गलियारा बनने के बाद इस इलाके में समृद्धि आयेगी. तीन हजार किलोमीटर लंबे गलियारे का उद्देश्य रेल, सड़क, पाइप लाइन और ऑप्टिकल केबल फाइबर नेटवर्क के जरिये चीन-पाकिस्तान के बीच संपर्क स्थापित करना है.
चीन के बेल्ट व रोड का विकल्प
चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया मिलकर काम करेंगे. इसके लिए चारों देश ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना से मुकाबला करने के लिए एक वैकल्पिक बुनियादी ढांचा तैयार करने पर विचार कर रहे हैं. इस बारे में ऑस्ट्रेलियाई फाइनेंशियल रिव्यू ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस वैकल्पिक बुनियादी ढांचे के बारे में पिछले साल से बातचीत चल रही है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अक्तूबर में भारत आये अमेरिकी विदेश सचिव रेक्स टिलरसन ने चीनी पहल का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और भारत के बीच सहयोग बढ़ाने की बात कही थी. साथ ही, अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ सुरक्षा सहयोग को गहरा करने और चीनी परियोजना के विकल्प के लिए आपसी समन्वय बढ़ाने को भी कहा था.
सीपीइसी पर भारत से मतभेद सुलझाने को इच्छुक चीन
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर भारत की नाराजगी को देखते हुए चीन ने भारत से बात करने की इच्छा जतायी है. चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘वन बेल्ट वन रोड’ के तहत आनेवाला यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर से होकर भी गुजरेगा, इससे भारत को अापत्ति है. भारत इस इलाके समेत समूचे कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानता है.
हालांकि इस मामले को सुलझाने के लिए चीन ने पहल की है. इस संबंध में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा है कि अरबों डॉलर की यह परियोजना किसी तीसरे देश को परेशान करने के लिए नहीं है. इस मतभेद को सुलझाने के लिए चीन भारत के साथ बातचीत को तैयार है ताकि दोनों देशों के हितों को नुकसान पहुंचे बिना इस मामले का सही हल निकल सके. हुआ ने यह भी कहा कि ईमानदारी और परस्पर सम्मान के साथ इस मतभेद को सुलझाया जा सकता है और इसके लिए दोनों देशों को रास्ता तलाशना होगा. इसके लिए चीन भारत के साथ संवाद और बातचीत करने को इच्छुक है.
मंदारिन बनी पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा
चीनी भाषा मंदारिन को पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा बनाया गया है. अंग्रेजी, उर्दू और अरबी पहले से पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा हैं. इस बात को लेकर पाकिस्तान में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है. संसद के इस कदम की सराहना करते हुए मीडिया ने कहा है कि ऐसा पाकिस्तान और चीन के बीच रिश्तों को मजबूत करने के लिए किया गया है.
समर्थकों का कहना है कि इससे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से जुड़े लोगों के बीच संचार आसान हो जायेगा. साथ ही, पाकिस्तानी नागरिकों को एक और भाषा सीखने का अवसर मिलेगा. ‘डान’ अखबार ने एक सरकारी अधिकारी मारवी मेमन के हवाले से लिखा है कि मंदारिन से पाकिस्तान की मूल भाषाओं को कोई खतरा नहीं है और ऐसा डर बेमानी है. अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने संसद के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि पिछले 70 सालों में पाकिस्तान ने अपनी मूल भाषाओं की उपेक्षा की है और उसकी जगह अंग्रेजी, उर्दू और अरबी को बढ़ावा दिया है और अब इस कड़ी में चीनी भाषा भी जुड़ गयी है.
गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तान में अधिसंख्य लोग पंजाबी बोलते हैं, लेकिन अभी तक इस भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा हासिल नहीं है, न ही पश्तो और दूसरी मूल भाषाओं को इस सूची मेें शामिल किया गया है. विदित हो कि मंदारिन को आधिकारिक भाषा बनाये जाने से महज एक महीने पहले पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक ने चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार के लिए डॉलर की जगह चीनी मुद्रा युआन को मान्यता दी थी. पाकिस्तान के इन कदमों से सहज ही समझा जा सकता है कि वह किस कदर चीन के प्रभाव में है.
ओबोर की वजह से दबाव में वैश्विक चोकप्वाइंट : हैरी हैरिस
चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना की आलाचना करते हुए अमेरिकी-प्रशांत क्षेत्र के कमांडर एडमिरल हैरी हैरिस ने कहा है कि चीनी परियोजना की वजह से सभी वैश्विक चोकप्वाइंट दबाव में हैं. यह परियोजना केवल यूरोप, अफ्रीका और मध्य एशिया के लोगों की बेहतरी के लिए शुरू नहीं की गयी है, बल्कि इसके जरिये चीन अमेरिका और इसके दोस्तों को भारत-प्रशांत क्षेत्र से बेदखल करना चाहता है.

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