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चीन की विकास दर में उम्मीद से अधिक बढ़ोतरी, वर्ष 2018 में शीर्ष पर होंगे ये देश

वित्त वर्ष की पहली तिमाही में चीनी आर्थिक विकास दर की अनुमानों से परे रफ्तार ने चीनी अर्थव्यवस्था में एक उत्साह पैदा कर दिया है. हाल के महीनों में रीयल एस्टेट और मांग में आयी तेजी जैसे कई कारण बताये जा रहे हैं. लेकिन, सही मायनों में चीन ने पिछले तीन दशकों में जिन ढांचागत […]

वित्त वर्ष की पहली तिमाही में चीनी आर्थिक विकास दर की अनुमानों से परे रफ्तार ने चीनी अर्थव्यवस्था में एक उत्साह पैदा कर दिया है. हाल के महीनों में रीयल एस्टेट और मांग में आयी तेजी जैसे कई कारण बताये जा रहे हैं.
लेकिन, सही मायनों में चीन ने पिछले तीन दशकों में जिन ढांचागत सुविधाओं के विकास और निर्यात में तत्परता दिखायी, उससे आर्थिक तरक्की का एक नया मार्ग प्रशस्त हुआ. विश्व आर्थिक मंचों पर अब चीन भूमंडलीकरण का महज पक्षधर ही नहीं, बल्कि एक अगुवा के रूप में स्थापित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है.
हालांकि, मौजूदा दौर में ट्रंप शासित अमेरिका का अप्रत्याशित रवैया और चीन की आंतरिक चुनौतियां व लंबित सुधारों के मसले तमाम आशंकाओं को जन्म देते हैं. मौजूदा आर्थिक परिप्रेक्ष्य में बदलती परिस्थितियों के मायने और विश्लेषण के साथ प्रस्तुत आज का इन-डेप्थ…
उपभोग, निवेश और निर्यात से चीनी अर्थव्यवस्था में आयी तेजी
डॉ अविनाश गोडबोले
असिस्टेंट प्रोफेसर, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी
चीन की अर्थव्यवस्था में इस वर्ष की पहली तिमाही में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर से एक उत्साह और उम्मीद जताई जा रही है. पिछले साल की राष्ट्रीय बैठक में प्रधानमंत्री ली कचियांग ने 6.75 के वृद्धि दर की उम्मीद जताई थी. पहली तिमाही के दौरान चीन में नववर्ष मनाया जाता है, जिसमें लाखों परिवार यात्राएं करते हैं तथा अपने और परिजनों के लिए तोहफों और अन्य चीजों की खरीदारी करते हैं. पूरे साल घर से दूर रहनेवाला श्रमिक वर्ग अपनी साल भर की बचत इस त्यौहार में खर्च करता है.
इस तिमाही में उपभोक्ता खर्च, निवेश और निर्यात से अधिक होने के कारण यह आर्थिक वृद्धि दिख रही है. उल्लेखनीय है कि इसी कारण से साल की पहली तिमाही चीनी अर्थव्यवस्था के लिए हमेशा अच्छी रही है.
एक तिमाही के रुझान अच्छे ही क्यों न हों, लेकिन चीनी अर्थव्यवस्था के मूलभूत प्रश्न बड़े हैं और बड़े गंभीर भी हैं. चीन में उपभोक्ता खर्च का हिस्सा हमेशा ज्यादा नहीं रहा है और न ही आज जैसी परिस्थिति में रह सकता है.
पिछले 35 सालों में चीन निर्यात और बुनियादी सुविधाओं के निवेश में अग्रसर रहा है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था इतनी तेजी से आगे बढ़ी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के बीच चल रहे व्यापारिक तनातनी और शुल्क युद्ध का नकारात्मक प्रभाव उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, जो बड़ा भी हो सकता है.
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से ही चीन भूमंडलीकरण के समर्थन में बोल रहा है. दावोस आर्थिक मंच पर 2017 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक जोरदार भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने आर्थिक भूमंडलीकरण को बचाने पर और उसे मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया था. भले ही चीन की सरकार एक पार्टी द्वारा संचालित हो, उसे पता है कि भूमंडलीकरण एवं वैश्विकीकरण उसकी अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े मूलाधार हैं.
उसका बचाव करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि चीन अभी भी एक मध्य-आय वाला देश है. वह यह जानता है कि इससे आगे बढ़ने के लिए उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था से और जुड़ना होगा. हाल ही में संपन्न बोआओ फोरम में दिये गये भाषण में नरमी दिखाते हुए शी जिनपिंग ने निवेश और ऑटोमोबाइल सेक्टरों में विदेशी निवेश में बढ़ोतरी करने के संकेत दिये हैं, जिससे यह संदेश जाता है कि वह ट्रंप के साथ अभी कड़ा रुख लेने की परिस्थिति में नहीं हैं.
चीन को यह भी ठीक से पता है कि मध्य-आय एक ऐसा चक्रव्यूह है, जिससे आगे बढ़ना बहुत ही मुश्किल और जटिल काम है. पिछले अनेक वर्षों से मध्य-आय में फंसने का डर चीनी सरकार जता रही है. साथ ही, इससे आगे बढ़ने के तरीकों पर भी वह काम कर रही है.
शी जिनपिंग की बहुचर्चित ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना इसी का एक नतीजा है. इससे चीन को पश्चिमी देशों पर कम निर्भर रहना होगा, उसे विकासशील देशों में नये बाजार मिलेंगे और उसके कंपनियों को नये व्यावसायिक विकल्प उपलब्ध होंगे. घरेलू स्तर पर चीन संशोधन और विकास पर भी जोर दे रहा है.
पिछले पांच सालों से दुनिया में पेटेंट मिलनेवाले देशों में चीन लगातार पहले तीन पायदानों पर रहा है. यह एक बड़ी उपलब्धि है, जिसका फायदा उसे भविष्य में मिलेगा. सौर ऊर्जा, उच्च गति की रेल सेवाओं का विकास, जन परिवहन सेवा में संशोधन, कृषि एवं मत्स्य संशोधन, बायोटेक्नोलॉजी, हवाई जहाज तंत्र ज्ञान का विकास, स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे अनेक क्षेत्रों में चीन का विकास वाकई में सराहनीय है.
चीन की अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा खतरा उसके स्थगित सुधारों से है. वर्ष 2013 में जब शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बने थे, तब से उनसे अनेक उम्मीदें रखी गयी हैं.
जिनपिंग का नजरिया सुधारों का है और जब वह शंघाई के महासचिव थे, तब उनके नेतृत्व में अनेक अच्छे सुधार किये गये थे. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसकी पुनरावृत्ति करने में वह लगभग नाकामयाब रहे हैं. वर्ष 2014 की तीसरी बैठक के बाद उन्होंने सुधारों का एक साझा कार्यक्रम पेश किया था, जिसके लिए उन्हें सराहा भी गया था. लेकिन उन सुधारों को कार्यान्वित करना उनके लिए मुश्किल रहा है. इसका प्रमुख कारण यह है कि आज की चीनी अर्थव्यवस्था 30 वर्ष पहले से बहुत ज्यादा अलग है. राज्य की सरकारें अनेक बार केंद्र की सुनती नहीं हैं या उसे नजरअंदाज करती हैं.
शी के सुधारों से आनेवाली स्थिति, रोजगारों का जाना और श्रमिकों के पुनर्स्थापन की समस्या जैसी दिक्कतें राज्य सरकारों की नींद हराम कर सकती है. चीनी अर्थव्यवस्था के कोयला, इस्पात और चमड़े और कागज उत्पाद जैसे क्षेत्रों में सुधारों की बात शी जिनपिंग लगातार करते आ रहे हैं.
यहां तक कि उन्होंने इन क्षेत्रों को ‘सुधारो या मिट जाओ’ जैसी चेतावनी भी दी है. लेकिन इसका अब तक कोई भी रुझान नहीं दिख रहा है. दूसरी ओर, गैर-सरकारी क्षेत्रों का अर्थव्यवस्था में हिस्सा लगातार बढ़ रहा है तथा उन्हें और अधिक तरक्की के लिए बैंकिंग और नियम-कायदे के क्षेत्रों में सुधारों की जरूरत है. इन दो विभागों में भी शी जिनपिंग की घोषणाएं और उनके क्रियान्वयन में बहुत बड़ा अंतर रहा है.
इन्हीं कारणों से चीनी अर्थव्यवस्था को लेकर चिंताएं हैं और उम्मीद की जा रही है कि इन समस्याओं का समाधान जल्द ही हो, क्योंकि दुनिया में दूसरे पायदान की अर्थव्यवस्था की बीमारी पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता पैदा कर सकती है.
ग्रामीण इलाकों में मजदूरी दर में हुई बढ़ोतरी
खुदरा बिक्री के आंकड़े उपभोक्ताओं के बारे में बहुत कुछ बताते हैं. यह सीजनल भी नहीं है- यदि आप कॉस्मेटिक्स, कपड़े और ऑटोमोबाइल पर खर्चे को देखेंगे, तो इसमें पिछले कुछ माह में लगातार काफी तेजी आयी है. इसमें एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी पाया गया है कि इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी में वृद्धि हुई है. अब तक हमने चीन में उपभोग की ताकत का कम करके आकलन किया था. चीन के एक्सपोर्ट सेक्टर में भी पहली तिमाही में व्यापक बढ़ोतरी देखी गयी है.
– आइरिस पैंग, अर्थशास्त्री, आईएनजी, हॉन्गकॉन्ग
उपभोक्ता मांग में मजबूती ने दी चीन की अर्थव्यवस्था को रफ्तार
उपभोक्ताओं की मांग में मजबूती और संपत्ति के व्यापक निवेश से उत्साहित चीन की अर्थव्यवस्था पहली तिमाही में 6.8 की दर से बढ़ी है, जो पूर्व के अनुमान से कहीं अधिक तेज रही है.
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में लचीलेपन की संभावना समकालिक वैश्विक हालातों में उतार-चढ़ाव के बीच लंबे समय तक उसे पटरी पर बनाये रखती है, लेकिन मौजूदा दौर में चीन और अमेरिका के बीच जारी तनाव से चीन का अरबों डॉलर का कारोबार प्रभावित हो रहा हो.
हालांकि, इस वर्ष की पहली तिमाही में उपभोक्ता वस्तुओं की खपत ऐसा मसला रहा, जिसका योगदान अर्थव्यवस्था को तेजी प्रदान करने में करीब 80 फीसदी तक रहा है. बीते माह खुदरा बिक्री में भी 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
सिंगापुर में नाेमुरा के चीफ इकोनोमिस्ट रॉबर्ट सुब्बारमन कहते हैं कि इस जीडीपी ग्रोथ से यह झलकता है कि औद्योगिक, विनिवेश और अर्थव्यवस्स्था के पुराने सेक्टर्स के मुकाबले उपभोग, सर्विस और तकनीक जैसे अर्थव्यवस्स्था के नये क्षेत्रों ने इस तेजी को संतुलित बनाने में अधिक योगदान दिया है.
क्या है प्रति व्यक्ति जीडीपी
विश्व की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्था दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 70 प्रतिशत है. एक बड़ी अर्थव्यवस्था का मतलब आमतौर पर यही होता है कि उस देश के औसतन लोग खुशहाल हैं. हालांकि ऐसा हो यह जरूरी नहीं है. लेकिन अगर हम प्रति व्यक्ति जीडीपी की बात करें तो सामान्य तौर पर इसका मतलब किसी भी देश के निवासियों के जीवन स्तर और जीवन की गुणवत्ता से लिया जाता है.
प्रति व्यक्ति जीडीपी के आधार पर अगर देखा जाये तो जरूरी नहीं कि शीर्ष अर्थव्यवस्था वाले देश इस सूची में भी शीर्ष पर हों, वे नीचे भी हो सकते हैं. इसे ऐसे समझा जा सकता है. अर्थव्यवस्था के मामले में शीर्ष पायदान पर रहने वाला अमेरिका प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में छठे स्थान पर है, जबकि कनाडा 17वें व चीन 62वें स्थान पर है.
प्रति व्यक्ति जीडीपी के आधार पर वर्ष 2018 में शीर्ष पर होंगे ये देश
देश अमेरिकी डॉलर
लक्जम्बर्ग 107,500
स्विटजरलैंड 80,922
नॉर्वे 73,334
आइसलैंड 70,228
आयरलैंड 67,342
अमेरिका 59,578
कतर 58,820
डेनमार्क 55,939
ऑस्ट्रेलिया 54,888
सिंगापुर 53,847
शीर्ष पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था के मामले में वैश्विक स्तर पर शीर्ष स्थान पर विराजमान रहने वाले देशों की अगर बात की जाये, तो उसमें साल तो बदलते हैं, लेकिन देशों का स्थान कमोबेस एक जैसा ही रहता है. ‘इन्वेस्टोपीडिया’ की मानें, तो इस सूची में अमेरिका अनेक वर्षों से शीर्ष पर बना हुआ है. हालांकि, बीते कुछ वर्षों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चीन से चुनौती मिल रही है, कुछ लोग तो यह भी दावा कर रहे हैं कि वर्तमान में चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिका से आगे निकल गयी है.

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