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उथल-पुथल से गुजर रही वैश्विक राजनीति के साये में मोदी-पुतिन की वार्ता

विश्व-व्यवस्था में अनिश्चितताओं के घने होते गुबार और अमेरिका के अप्रत्याशित रुख ने चीन, रूस, जापान के अलावा तमाम यूरोपीय देशों को भी नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है. नयी चुनौतियों और संभावनाओं के मद्देनजर भारत का कूटनीतिक तौर पर सक्रिय होना लाजिमी है. हाल में रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और […]

विश्व-व्यवस्था में अनिश्चितताओं के घने होते गुबार और अमेरिका के अप्रत्याशित रुख ने चीन, रूस, जापान के अलावा तमाम यूरोपीय देशों को भी नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है. नयी चुनौतियों और संभावनाओं के मद्देनजर भारत का कूटनीतिक तौर पर सक्रिय होना लाजिमी है.
हाल में रूस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच हुई चर्चा में मौजूदा भू-राजनीतिक बदलावों, एशिया-प्रशांत में सुरक्षा और सहयोग की नयी संरचनात्मक व्यवस्था, आतंकवाद-चरमपंथ पर कार्रवाई के साझा प्रयास और भारतीय सुरक्षा तंत्र की बेहतरी के लिए रक्षा सौदे जैसे मुद्दों का शामिल होना एक बानगी भर नहीं, बल्कि भारत-रूस की सदाबहार दोस्ती का अप्रतिम मिसाल भी है. मोदी और पुतिन के बीच हुई इस अनौपचारिक वार्ता से निकले निष्कर्षों और उससे जगी उम्मीदों के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ पेज…
मोदी और पुतिन के बीच प्रमुख वार्ता
स्पेशल एंड प्रिविलेज्ड स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप : भारत और रूस के बीच स्पेशल एंड प्रिविलेज्ड स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप के गठन पर सहमति बनी, ताकि प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मामलों पर आपस में बातचीत की जा सके. वैश्विक शांति बहाली और स्थिरता कायम रखने के लिहाज से यह महत्वपूर्ण फैक्टर हो सकता है.
नीति आयोग और रूसी आर्थिक विकास मंत्रालय के बीच रणनीतिक आर्थिक वार्ता : व्यापार और निवेश में अधिक तालमेल कायम करने के मकसद से दोनों नेताओं ने नीति आयोग और रूसी फेडरेशन के आर्थिक विकास मंत्रालय के बीच रणनीतिक आर्थिक वार्ता कायम करने पर सहमति जतायी.
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन : अतिवादियों, पृथकतावादियों और आतंकियों के खिलाफ लड़ाई में एकदूसरे का साथ देने के लिए दोनों देशों के नेताओं ने अगले माह चीन में आयोजित सम्मेलन में हस्ताक्षर करने पर सहमति जतायी
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आर्थिक सहयोग पर जोर
दोनों नेताओं ने हमारी विशेष रणनीतिक सहभागिता के सभी पहलुओं पर चर्चा की. आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान दिया गया. उन्होंने द्विपक्षीय व्यापार में सतत बढ़ोतरी को रेखांकित किया. वर्ष 2017 में रूस-भारत वाणिज्य में 20 प्रतिशत और मौजूदा वित्त वर्ष के आरंभिक महीनों में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस संदर्भ में दोनों नेताओं ने प्राथमिकता की परियोजनाओं पर साझा समूह तथा नये तौर-तरीकों के तहत सक्रिय प्रासंगिक सरकारी संरचनाओं के सफल कार्यों की सराहना करने के साथ वाणिज्य, आर्थिक एवं निवेश में सहयोग की रणनीति की प्रशंसा की.
ऊर्जा क्षेत्र पर विशेष ध्यानदेते हुए उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि वर्ष 2017 में भारत को रूसी तेल के निर्यात में लगभग 10 गुणा बढ़ोतरी हुई है. हमारे तेल कॉरपोरेशनों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए गंभीर योजनाएं हैं. राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी इस बात पर पूरी तरह अड़े हैं कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और सहयोग की नयी व्यवस्था हो, जो गुटरहित सिद्धांतों, खुलेपन तथा समान और अभेदकारी सुरक्षा पर आधारित हो.
– सर्जेई लावरोव, विदेश मंत्री, रूस
भारत-रूस संबंध और चीन
चीन से संबंध खराब होने के कारण 1960 और 1980 के दशकों के बीच भारत और रूस में निकटता बहुत बढ़ी थी, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. भारत अमेरिका से बड़ी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार खरीदने लगा है, तो रूस सुखोई-35 जैसे जोरदार लड़ाकू जहाज चीन को दे रहा है. रूस के एस-400 हवाई सुरक्षा प्रणाली का सबसे बड़ा खरीदार भी चीन है. पिछले पांच सालों में चीन-रूस की बढ़ती नजदीकी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगले 25 वर्षों में रूस से आधे ट्रिलियन डॉलर मूल्य के तेल और गैस की आपूर्ति चीन को होनी है.
चीन बड़े स्तर पर रूस में विदेशी पूंजी निवेश भी कर रहा है. चीन के महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना में रूस भी भागीदार है तथा रूस के यूरेशियाई आर्थिक संघ की कार्यवाहियों में चीन भी शामिल हो रहा है. पिछले दिसंबर में दिल्ली दौरे पर आये रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने भारत से बेल्ट रोड परियोजना में शामिल होने का आह्वान किया था.
एशिया-प्रशांत का मसला
पुतिन और मोदी की बैठक के बाद रूस द्वारा जारी बयान में कहा गया कि दोनों देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र को गुटबाजी से दूर रखने पर सहमत हैं.
परंतु, भारतीय पक्ष के बयान में ऐसी सहमति का उल्लेख नहीं था और उसमें कहा गया कि इस क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर दोनों पक्ष आगे बातचीत करते रहेंगे. रूस ने इस इलाके के लिए ‘एशिया-प्रशांत’ का इस्तेमाल किया, जबकि भारत की ओर से ‘हिंद-प्रशांत’ लिखा गया है. भारत और अमेरिका ‘हिंद-प्रशांत’ नाम को पसंद करते हैं. पिछले कुछ समय से भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहभागिता से वाणिज्यिक और रणनीतिक पहल करने की दिशा में काम कर रहे हैं. नवंबर, 2017 में इस संबंध में दस सालों के अंतराल के बाद इन देशों के अधिकारियों की बातचीत भी हो चुकी है.
हालांकि, इस मामले में चार देशों ने कोई साझा बयान नहीं जारी किया है, पर अलग-अलग प्राथमिकताओं को इंगित करते हुए इन देशों ने अपने बयान जारी किये हैं. इस पहल को चीन के अपने बढ़ते वर्चस्व का प्रतिकार मानता है तथा उसकी समझ से रूस भी सहमत है. चार देशों की बैठक के अगले महीने दिसंबर में रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने दिल्ली में संकेतों में इस पहल की आलोचना की थी और कहा था कि अंतरराष्ट्रीय नियमों पर आधारित खुले और साझा रवैये से ही एशिया-प्रशांत में समृद्धि और स्थायित्व संभव है.
रूसी विदेश मंत्री 2017 के रूस-भारत संयुक्त घोषणा में उल्लिखित बातों को ही कह रहे थे व यही बात दिसंबर में रूस, भारत और चीन के साझा बयान में भी कही गयी थी. चीन के विदेश मंत्री वांग यी कह चुके हैं कि चीन किसी भी तरह के शक्ति की राजनीति और वर्चस्व के विरुद्ध है.
उनका संकेत भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की पहल की ओर था. पिछले साल भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कह चुकी हैं कि भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विवादों के निपटारे और सहयोग बढ़ाने के लिए आसियान देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है.
बहरहाल, रूसी नेता और प्रधानमंत्री की मुलाकात इस साल दोनों देशों की सालाना बैठक में तथा शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भी होनी है. जानकारों को उम्मीद है कि रूस और चीन के साथ भारत एशिया-प्रशांत के मसले पर मध्य मार्ग निकालने में कामयाब होगा. इसमें एक कारक अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का रुख भी होगा.
रूस और पाकिस्तान के सहयोग
वर्ष 2015 में हुए करार के तहत पिछले महीने से रूस ने पाकिस्तान को एमआई- 35एम हमलावर हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति शुरू कर दी है. मध्य एशिया में अपने हितों के मद्देनजर भी रूस पाकिस्तान के साथ संबंध को देखता है. चूंकि इस इलाके में चीन का मजबूत वर्चस्व है, पर रूस सुरक्षा और आर्थिक लिहाज से अपनी बड़ी जगह को बनाये रखना चाहता है. ऐसे में पाकिस्तान के जरिये मध्य-पूर्व में पहुंच को रूस एक अहम कदम मानता है. पाकिस्तान में बीते दिनों रूसी निवेश में इजाफा हुआ है तथा वह यूरोप में कमजोर होने पर पूर्व की ओर देख रहा है.
उत्तर दक्षिण यातायात गलियारा
भारत और ईरान के साथ रूस इस महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है. इसके तहत समुद्री जहाज, रेल और सड़क मार्ग के साझा 7,200 किलोमीटर गलियारा बनाने की योजना है. इस गलियारे से भारत, ईरान, अफगानस्तिान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया तथा यूरोप के बीच माल ढुलाई होगी.
द्विपक्षीय रिश्तों पर अमेरिकी कानून का साया
अमेरिका में एक कानून है, जिसका नाम ‘प्रतिबंधों द्वारा अमेरिका के प्रतिद्वंद्वियों का प्रतिकार कानून’ है. इस कानून के तहत तीन देशों- रूस, ईरान और उत्तर कोरिया- पर प्रतिबंध लागू हैं. इसमें एक प्रावधान यह भी है कि जो देश रूसी रक्षा क्षेत्र से व्यापार करते हैं, उन पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है.
भारतीय रक्षा के साजो-सामान का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा रूस में निर्मित है. इसमें पनडुब्बियां और मिसाइलें भी शामिल हैं, जिनकी आपूर्ति करने में अमेरिका को हिचकिचाहट होती है. अमेरिकी कानून भारत-रूस रक्षा सहयोग को मुश्किल में डाल सकता है. हालांकि, कुछ छूट देने की चर्चाएं भी हैं, पर क्या भारत को ऐसे देश के साथ सामरिक संबंध बढ़ाने चाहिए, जो हमेशा प्रतिबंधों की चेतावनी देता रहता हो.
भारत और रूस साझेदारी के तत्व
ब्रह्मोस
इस घातक हथियार के निर्माण में दोनों देशों की हिस्सेदारी है. इस हथियार को मुहैया कराने के लिए मास्को ने रूस में निर्मित रक्षा उपकरण भारत के लिए मंजूर किया.
सुखोई
इस लड़ाकू विमान को आज भी भारतीय वायु सेना की रीढ़ के तौर पर समझा जाता है. रूस निर्मित यह विमान भारत के लिए अहम है.
हाइड्रोकार्बन
हाइड्रोकार्बन मुहैया कराने के लिए रूस से भारत तक पाइपलाइन बिछायी जा रही है.
भारत का सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रूस की प्रमुख तेल कंपनियों के जरिये आता है.
रूस के हाइड्रोकार्बन सेक्टर में भारत ने 10 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है.
रूसी फेडरेशन के आर्कटिक शेल्फ में हाइड्रोकार्बन की शोध और उसे निकालने के लिए दोनों देशों ने पिछले साल एक संयुक्त प्रोजेक्ट लाॅन्च किया है.
अंतरिक्ष विज्ञान
40वीं वर्षगांठ मनायी गयी वर्ष 2015 में रूसी लॉन्च व्हिकल ‘सोयुज’ के जरिये भेजे गये भारत के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट की.
अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग की संभावनाएं तलाशने के लिए दोनों देशाें के बीच आपसी सहमति.
परमाणु ऊर्जा
कुडानकुलम न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए रूस निर्मित दो रिएक्टर की आपूर्ति की जा रही है. चार अन्य का निर्माण जारी है.
मौजूदा समय में भारत में सिविल न्यूक्लियर प्लांट के क्षेत्र में रूस एकमात्र विदेशी आपूर्तिकर्ता है.भारत के अन्य न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए भी ईंधन की आपूर्ति रूस ने ही की है.
संपर्क बहाली
ईरान के रास्ते बनने वाला इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर संपर्क बहाली के मामले में गेम चेंजर साबित हो सकता है.
अफगानिस्तान के रास्ते रूस को जोड़ने के मामले में चाबहार बंदरगाह के निर्माण में भारत की अहम भूमिका.
रूस अपने सुदूर-पूर्वी इलाकों तक आसान संपर्क बहाली को आसान बनाने के लिए भारत को निवेश का प्रस्ताव दिया है, ताकि इसके जरिये सुदूर-पूर्वी रूस और भारत को आपस में जोड़ने के लिए ब्लाडिवोस्टक- चेन्नई शिपिंग लिंक को
पुनर्जीवित किया जा सकता है.

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