हिंदी साहित्य परंपरा में बाल साहित्य की अपनी एक महत्वपूर्ण उपस्थिति रही है. लेकिन, बीते समय में तकनीकी विकास क्रम ने बच्चों की साहित्यिक रुचियों में सेंध लगायी है और अब वे टीवी कार्टून और वीडियो गेम ज्यादा खेलने लगे हैं. बाल साहित्य और बच्चों में साहित्य की अभिरुचियां कैसे बढ़ें, इस पर बाल साहित्यकार प्रकाश मनु से विस्तार से बात की है वसीम अकरम ने.
किसी समृद्ध साहित्य परंपरा में बाल साहित्य का होना कितना जरूरी है?
वसीम भाई, कोई भी समृद्ध साहित्य परंपरा बाल साहित्य के बिना पूर्ण नहीं होती. जिस तरह गद्य को कवियों की कसौटी माना गया है, इसी तरह बाल साहित्य भी लेखकों की कसौटी है. बिना अच्छा बाल साहित्य लिखे, कोई लेखक अपने में पूर्ण नहीं हो सकता. बच्चे कल की दुनिया की नींव हैं, हमारा भविष्य हैं. और बाल साहित्य बच्चे के मन को रंजित करते हुए, उसके सर्वांगीण विकास की आधार-भूमि तैयार करता है.
बाल साहित्य खेल-खेल में उसे आसपास की दुनिया से परिचित कराता है, उसकी सुकोमल जिज्ञासाओं को शांत करता है और उसे कल्पना के पंखों के सहारे उड़ना सिखाता है. बिना बाल साहित्य के न स्वस्थ बच्चे की कल्पना की जा सकती है और न स्वस्थ समाज की. इसीलिए विश्व की जितनी भी प्रमुख भाषाएं हैं, उनमें बाल साहित्य को बहुत महत्त्वपूर्ण दर्जा मिला है.
बाल साहित्य की भाषा प्रक्रिया क्या होनी चाहिए? इसमें भाषाई स्थानीयता कितना मायने रखती है?
बच्चों के लिए लिखते समय कोई साहित्यकार भाषा प्रक्रिया के बारे में नहीं सोचता. उसके सामने तो बस बालक का चेहरा होता है, जिस तक वह अपने मन की भावनाएं पहुंचाना चाहता है. वह एक गहरी डुबकी लगाकर अपने बचपन में उतरता है तो उसकी भाषा, संवेदना और अभिव्यक्ति खुद-ब-खुद ऐसी चपल-चंचल हो जाती है, जो हर बच्चे को आकर्षित करे, और खेल-खेल में जीवन की बड़ी से बड़ी बातों को बच्चे के जिज्ञासु मन तक पहुंचा दे.
जाहिर है, बच्चों के लिए लिखी गयी रचनाओं में लंबे और उलझाऊ वाक्य नहीं होते. पेचीदा अभिव्यक्ति की भी वहां दरकार नहीं है. सीधी-सरल भाषा में सीधी-सादी बात कही जाती है, पर वह सच्ची भावना के कारण बच्चे को अपने साथ बहा ले जाती है. जाहिर है, बोलचाल की भाषा ही बाल साहित्य की भाषा हो सकती है, जिसमें स्थानीयता तो होगी ही.
क्या बाल साहित्य से बच्चों में बेहतर और सकारात्मक संवाद की क्षमता विकसित की जा सकती है? या फिर इससे उनके बाल मन का केवल मनोरंजन भर होता है?
बाल साहित्य निश्चित रूप से बच्चे के मन को रंजित करता है. बच्चा अपने लिए लिखी गयी रचनाओं को पढ़कर आनंदित होता है, नहीं तो वह बाल साहित्य पढ़ेगा ही क्यों? बाल साहित्य सिर्फ यही नहीं करता. वह खेल-खेल में बच्चे को अपने आसपास की दुनिया के सुख-दुख से जोड़ता है और अधिक संवेदनशील बनाता है.
यही कारण है कि बाल साहित्य से बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा आती है और देश-समाज के लिए कुछ करने का भाव पैदा होता है. इस अर्थ में अच्छा बाल साहित्य बच्चे की संवेदना का विस्तार करता है, उसे अधिक समझदार और जिम्मेदार बनाता है और उसमें सकारात्मक संवाद की क्षमता विकसित करता है.
आज के तकनीकी दौर में जब बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर पर गेम खेलना ज्यादा पसंद करते हैं, ऐसे में उन्हें अपने बाल मन की कहानियां पढ़ने के लिए कैसे प्रेरित किया जाये?
आज के दौर में ही बाल साहित्य की जरूरत सबसे ज्यादा है. ऊपर से देखने पर लगता है कि आज के बच्चे मोबाइल, लैपटाप और कंप्यूटर गेम्स खेलने में मगन हैं, पर सच यह है कि आज का बच्चा बहुत अकेला है.
पहले संयुक्त परिवारों में बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार की छाया में पलते थे, जो उन्हें अपने प्यार के रस से सींचते थे. दादी-नानी की कहानियों से बच्चे की कल्पना को पंख लग जाते थे. आज के एकल परिवारों में बच्चा दादा-दादी, नाना-नानी से तो दूर हो ही गया है, नौकरीपेशा माता-पिता के पास उसे देने के लिए समय नहीं है. उसके पास ढेरों सुविधाएं हैं, टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब है, पर कहीं अंदर से वह अकेला है. ऐसे में अगर वह कोई अच्छी बाल कविता या कहानियों की पुस्तक पढ़ता है, तो उसे लगता है कि उसे सच ही कोई अच्छा साथी मिल गया है, और तब उसके भीतर मानो आनंद का सोता फूट पड़ता है.
लोग कह रहे हैं कि अच्छा बाल साहित्य न तो रचा जा रहा, न उसे अच्छी प्रकाशन सामग्री के जरिये बच्चों तक पहुंचाया जा रहा है, इसलिए बच्चे गैजेट में उलझे हुए हैं.
जिन लोगों को बाल साहित्य के बारे में कुछ भी पता नहीं है, जो खुद कभी कुछ पढ़ते नहीं हैं, ऐसे लोग ही कह सकते हैं कि आजकल अच्छा बाल साहित्य नहीं लिखा जा रहा. मैंने अपने जीवन के बीस वर्ष लगाकर, पिछले सौ-सवा सौ वर्षों के हिंदी बाल साहित्य का इतिहास लिखा है, जिसमें बाल साहित्य की अलग-अलग विधाओं की हजारों महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की चर्चा है.
इसे पढ़कर समझ में आयेगा कि आज हिंदी का बाल साहित्य किन असंभव लगती ऊंचाइयों तक पहुंच गया है. हां, यह दीगर बात है कि आज अच्छा बाल साहित्य बच्चों तक नहीं पहुंच रहा है. इस काम में बच्चों के माता-पिता और अध्यापकों की बड़ी भूमिका हो सकती है. अगर वे खुद अच्छा बाल साहित्य पढ़ें और उसे बच्चों के लिए उपलब्ध कराएँ तो बहुत कुछ बदल सकता है.
कौन सा साहित्य बाल मन में ज्यादा रुचि पैदा करता है? कविता, कहानी, कार्टून कहानियां, या कुछ और?
बाल साहित्य की सभी विधाओं का अपना आकर्षण है. यह बच्चे की रुचियों पर निर्भर करता है कि उसे क्या अधिक मोहता है. वैसे छोटे बच्चों को अपने लिए लिखी गयी कविताएं याद करके बार-बार गाने-दोहराने में आनंद आता है.
कुछ और बड़े होने पर उन्हें कहानियों का आकर्षण अधिक बांधता है. कुछ आगे चलकर बच्चे बाल उपन्यास, नाटक, जीवनियां और ज्ञान-विज्ञान की विविध विधाओं का आनंद लेने लगते हैं. बाल साहित्य की हर विधा का अपना रस-आनंद है. बच्चे के मन और व्यक्तित्व में नयी ऊर्जा और प्रेरणा भरकर, उसमें कुछ कर गुजरने का भाव पैदा करना ही बाल साहित्य का उद्देश्य है.
आज के दौर में बाल साहित्य की चुनौतियां और संभावनाएं क्या-क्या हैं?
आपका यह सवाल बहुत अच्छा है. मेरे खयाल से बाल साहित्य की सबसे बड़ी चुनौती है सुदूर गांव के बच्चों, गरीब सर्वहारा परिवारों के बालकों और आदिवासी बालकों तक पहुंचकर, उनके अंदर जीवन का हर्ष-उल्लास, आत्मविश्वास और कुछ करने की धुन पैदा करना, ताकि आगे आकर वे भी अपने जीवन के अधूरे सपनों को पूरा करें. बाल साहित्य की सबसे बड़ी संभावना मुझे यह लगती है कि आनेवाले कल में वह घर-घर पहुंचकर बच्चों से दोस्ती करेगा और उन्हें अपना जीवन सार्थक ढंग से जीने को प्रेरित करेगा.
आज अखबारों में मैं किशोर अपराधों के बारे में पढ़ता हूं, तो दिल कांप उठता है, और मैं सोचता हूं कि काश, हमारा बाल साहित्य इन भटके हुए किशोरों तक पहुंचता, तो वे इस अपराध की राह पर कभी न आते. बाल साहित्य बच्चे में न सिर्फ अच्छा और ईमानदार होने की प्रेरणा पैदा करता है, बल्कि वह अपराधियों को भी उस दलदल से बाहर निकालकर प्यार, सच्चाई, नेकी और मनुष्यता की राह पर ले आता है. इस काम को बाल साहित्य जितने अच्छे ढंग से कर सकता है, वैसा कोई और नहीं कर सकता. इस लिहाज से बाल साहित्य की संभावनाएं अपार हैं. काश, हमारे समाज के चिंतकों और नीति-निर्माताओं ने भी यह बात समझी होती, तो इस देश की तस्वीर कुछ और होती.