हमारी दुनिया में कृत्रिम बौद्धिकता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का दखल लगातार बढ़ता जा रहा है. आने वाले समय में कुछ भी घटने से पहले हम यह जान लेने में सक्षम हो जायेंगे कि आगे क्या होनेवाला है. आप बस सोचेंगे और आपका रोबोट रूपी मित्र आपकी जरूरतों को पूरा कर देगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक और इसके विभिन्न आयामों की जानकारी प्रस्तुत है आज के इन्फो-टेक में…
हालिया वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बौद्धिकता) की तकनीक चर्चा में रही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का काम बौद्धिक मशीनें बनाना है. आसान शब्दों में कहें, तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ है एक मशीन में सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना. यह कंप्यूटर साइंस का सबसे उन्नत रूप है.
भारतीय संदर्भ में अगर बात करें, तो नीति आयोग और गूगल के बीच इसे लेकर सहमति बनी है कि हमारे देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दिया जायेगा. नीति आयोग को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकें विकसित करने और अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है. यह तकनीक आज कई रूपों में हमारे सामने है. पूर्णतः प्रतिक्रियात्मक, सीमित स्मृति, मस्तिष्क सिद्धांत और आत्मचेतना इनमें प्रमुख हैं. इसके अतिरिक्त, प्रसारण के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक बहुत बड़े बदलाव की बयार लेकर आया है.
क्या है एआई तकनीक
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत साल 1950 में हुई थी. इसकी खोज करनेवाले जॉन मैकार्थी बौद्धिक मशीनों को बौद्धिक कंप्यूटर प्रोग्राम बनाने का विज्ञान और तकनीक मानते थे. उनके अनुसार, यह मशीनों द्वारा दिखायी गयी इंटेलिजेंस है.
इसके जरिये, कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है. जिस आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है, उसी तर्कों के आधार पर इन्हें चलाने का प्रयास किया जाता है. दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर से नियंत्रित रोबोट और मनुष्य की तरह सोचनेवाले सॉफ्टवेयर बनाने की तकनीक है. जापान ने सबसे पहले इस तकनीक पर काम करना शुरू किया था और 1981 में फिफ्थ जेनरेशन नामक योजना शुरू की थी. इसके अंतर्गत, सुपर-कंप्यूटर के विकास के लिये 10-वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गयी थी.
जापान के बाद, इंग्लैंड ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दिशा में कदम बढ़ाया था और ‘एल्वी’ नाम का प्रोजेक्ट तैयार किया था. इसी तरह, यूरोपीय संघ के देशों ने भी ‘एस्प्रिट’ कार्यक्रम की शुरुआत की थी. साल 1983 में कुछ निजी संस्थाओं ने मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उन्नत तकनीकों और सर्किट का विकास करने के लिए ‘माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कंप्यूटर टेक्नोलॉजी’ संघ की स्थापना की थी.
प्रसारण और कृत्रिम बौद्धिकता
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का दखल प्रसारण के क्षेत्र में अब व्यापक हो चला है तथा भविष्य में इसके और ज्यादा व्यापक होने की उम्मीद है. इस तकनीक पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्टार वार, आई रोबोट, टर्मिनेटर, ब्लेड रनर जैसी फिल्में भी बन चुकी हैं. इन फिल्मों के जरिये आप कृत्रिम बौद्धिकता और उसके महत्व को समझ सकते हैं.
रजनीकांत की फिल्म ‘रोबोट’ में एआई तकनीक का उपयोग किया गया था. इतना ही नहीं, एआई वाले कंप्यूटर सिस्टम ने साल 1997 में शतरंज के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे रूस के गैरी कास्पोरोव को हरा दिया था. आज टीवी प्रोडक्शन से लेकर विषयवस्तु निर्माण तक में, एआई तकनीक का उपयोग शुरू हो चुका है.
पहले यह सिनेमा के साइंस फिक्शन कैटेगरी तक ही सीमित था, लेकिन आज पॉप गीतों, न्यूज मीडिया, रियलिटी शो बनाने से लेकर हॉलीवुड की बड़ी फिल्मों के निर्माण में भी इसकी भूमिका बढ़ रही है. फिल्म ‘अवतार’ के लिए न्यूजीलैंड के वेटा डिजिटल ने इसी तकनीक का इसका इस्तेमाल किया था.
‘द प्लैनेट ऑफ द एप्स’ फिल्म के लिए वैंकूवर स्थित जीवा डायनामिक्स ने इस तकनीक की मदद से कंप्यूटर द्वारा ऐसे प्रभाव उत्पन्न किये, जिसने विजुअल इफेक्ट से फिल्म के चरित्र पैदा कर दिये. प्रसारण के क्षेत्र में इसके प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब 2017 में उत्तर कोरिया के लीडर किम जोंग-उन के सौतेले भाई का मलेशिया में कत्ल कर दिया गया था, तब जापान की न्यूज एजेंसी जेएक्स प्रेस कॉर्प ने बाकियों की तुलना में आधे घंटे पहले ही यह खबर प्रसारित कर दी थी.
फिलहाल, एआई के ज्यादातर प्रयोग कंप्यूटर गेम्स बनाने, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, एक्सपर्ट प्रणाली, दृष्टि प्रणाली, वाक् पहचान, बौद्धिक रोबोट निर्माण के क्षेत्र में हो रहे हैं. इनके अतिरिक्त, जटिल सिस्टम प्रणाली चलाने, नयी दवा तैयार करने, नये केमिकल तलाशने, खनन उद्योग, अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीकों, शेयर बाजार से लेकर बीमा आदि क्षेत्र ऐसे हैं, जिसमें एआई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. हवाई जहाज भी कंप्यूटर द्वारा संचालित होने लगे हैं. इनके एयर ट्रैफिक कंट्रोल के लिए एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है.
भारत में कृत्रिम बौद्धिकता
भारत में भी रोबोटिक्स, वर्चुअल रियल्टी, क्लाउड टेक्नोलॉजी, बिग डेटा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा मशीन लर्निंग सहित तमाम तकनीकी क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक का बोलबोला लगातार बढ़ रहा है. नीति आयोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा देश में व्यवसाय करने के तरीके को बदलने जा रही है.
विशेष रूप से जन कल्याण के क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जायेगा. स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र को बेहतर बनाने, नागरिकों के लिये बेहतर शासन प्रणाली लाने और आर्थिक उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी भविष्य की ओर ले जाने वाली तकनीकों का उपयोग अब अपने देश में भी किया जायेगा.
कुछ बातों का रखना होगा खयाल
इसमें कोई दो राय नहीं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारे रहने और कार्य करने के तरीकों में बड़ा परिवर्तन लाने जा रहा है. रोबोटिक्स और वर्चुअल रियलिटी जैसी तकनीकों द्वारा अब उत्पादन और निर्माण के क्षेत्रों में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. लेकिन इसके नकारात्मक प्रभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता. एक अध्ययन के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के कारण भारत में साल 2022 तक 10 लाख से ज्यादा नौकरियां समाप्त हो जायेंगी. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख से ज्यादा रोजगार खत्म हो जायेंगे.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में रोजगार से उत्पन्न चुनौतियों से हम लड़ सकते हैं, लेकिन इसकी वजह से भविष्य में जो बड़े खतरे सामने आयेंगे उनसे निपटना मुश्किल होगा. विशेषज्ञों की मानें तो रोबोट अगर बौद्धिक क्षमता रखने लगेंगे और किसी कारणवश मनुष्य को अपना दुश्मन मान बैठेंगे तो मानवता के लिये वह कहीं बड़ी मुश्किलें पैदा करने वाली स्थिति होगी. हॉलीवुड फिल्म टर्मिनेटर और भारत की रोबोट जैसी फिल्मों से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.