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तकनीक पर सवार लेखन की बाढ़ गु‍णवत्ता का आकलन मुश्किल

कथा जगत में अपने विशेष रचना-शिल्प के लिए जानी जानेवाली हजारीबाग की जयश्री रॉय हमारे समय की महत्वपूर्ण कथा-हस्ताक्षर हैं. प्रेम और संवेदनाओं को तीव्रता प्रदान करने के साथ ही रॉय हाशिये के लोगों के संघर्ष को एक सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करती हैं और इसलिए मानवता के लिए वे साहित्य को एक महान उद्देश्य मानती […]

कथा जगत में अपने विशेष रचना-शिल्प के लिए जानी जानेवाली हजारीबाग की जयश्री रॉय हमारे समय की महत्वपूर्ण कथा-हस्ताक्षर हैं. प्रेम और संवेदनाओं को तीव्रता प्रदान करने के साथ ही रॉय हाशिये के लोगों के संघर्ष को एक सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करती हैं और इसलिए मानवता के लिए वे साहित्य को एक महान उद्देश्य मानती हैं.एक कविता-संग्रह, सात कथा-संग्रह और चार उपन्यास लिख चुकीं रॉय फिलहाल गोवा में रहती हैं और अध्यापन-कार्य त्यागकर पूर्णत: साहित्य-सेवा में जुटी हुई हैं. कई सम्मानों से नवाजी जा चुकीं रॉय को इसी साल ‘स्पंदन सोशल क्रिएटिव अवॉर्ड’ भी मिला है. एक मुलाकात में वसीम अकरम ने उनसे लंबी बातचीत की. प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंश…
Q कहानियां लिखने के लिए जो ऊर्जा रूपी रोशनाई है, वह आप में कहां से आती है?
हमारा जीवन कहानियों का भंडार है. जीवन की बड़ी-बड़ी बातें नहीं, बल्कि बहुत छोटी-छोटी बातें कहानियों का मजबूत केंद्र होती हैं, क्योंकि यह वह बिंदु है, जो पाठक के जीवन को उनके मन को छू लेता है, प्रभावित करता है. आजकल जमाना ग्लोबल हुआ जा रहा है, इसलिए कहानियों में लोग बड़ी-बड़ी समस्याएं उठाने की बात करते हैं. लेकिन, मेरा मानना है कि लेखक की संवेदनशीलता बहुत छोटी बातों से निकलकर आती है और एक बड़ी कहानी का बड़ा कैनवास बनाती है. एक लेखक हमेशा प्रगतिशील और संवेदनशील होगा, गलत चीजों के लिए खड़ा होनेवाला नहीं होगा, इसलिए उसका लेखन उद्देश्य और सरोकार के लिए होता है. जिस लेखन कामानवीय जीवन के प्रति कोई सरोकार नहीं है, उसे मैं लेखन नहीं मानती. यही वह बिंदु है, जो मेरे लेखन में रोशनाई का काम करता है.
Q भाषाई और साहित्यिक कार्यक्रमों के अलावा कई अन्य माध्यम भी रहे हैं, जिनसे साहित्य का विस्तार होता रहा है. आज इंटरनेट जैसा एक बड़ा माध्यम भी है. तो क्या इस माध्यम से भी साहित्य अपना विस्तार पा रहा है?
हां जरूर. आज सूचना तकनीकी का दौर है. और हर वह चीज जिसके लिए इंटरनेट माध्यम बन सकता है, उसमें साहित्य भी है. इसलिए पहले के बनिस्बत आज साहित्य का प्रसार ज्यादा है. पहले के जमाने में साहित्य को पहुंचने में बहुत वक्त लग जाता था, लेकिन आज एक झटके में आपकी रचना न सिर्फ ज्यादातर लोगों तक पहुंच सकती है, बल्कि बहुत दूर तक भी पहुंच सकती है. लेकिन, इस तीव्रता और प्रसार की इस गतिशीलता का एक नुकसान यह हुआ है कि साहित्य की गुणवत्ता नहीं बढ़ रही है.
पहले के दौर में जब साहित्य का चुनाव होता था, उसकी एक सख्त प्रक्रिया थी, पत्र-पत्रिकाओं के संपादक पहले रचनाओं को चुनते थे, फिर उसे जगह देते थे. तब किसी के लिए भी छप जाना इतना आसान नहीं था. आज ऐसा नहीं है. अब तो सोशल मीडिया पर आप कुछ लिखते हैं और वह दूर-दराज के जाने-अनजाने सभी तक पहुंच जाता है. चूंकि इन रचनाओं को कोई चुननेवाला नहीं है, इसलिए इसकी गुणवत्ता का आकलन कर पाना मुश्किल है.
Q अपने आखिरी समय में राजेंद्र यादव ने कहा था कि अब कविता का नहीं, कहानी का दौर है. लेकिन, इधर अच्छी कहानियां नहीं लिखी जा रही हैं.
पहले जो कहानियां आती थीं, वे बहुत छन कर आती थीं. तब साहित्यिक प्रतिभा का एक विस्फोट भी था, जिसने बेहतरीन कहानियों को जन्म दिया. ऐसे विस्फोट का एक समय भी होता है, जैसे संगीत में स्वर्णयुग वाला विस्फोट है. साहित्य में आज वैसा विस्फोट नहीं है, बल्कि तकनीक के परों पर सवार होकर एक बाढ़ सी आयी हुई है, और बाढ़ में जो चीजें आती हैं, उनके छनकर आने की उम्मीद तो नहीं की जा सकती न. शायद इसीलिए आज अच्छी कहानियों का कुछ अभाव दिखता है.
लेकिन, मैं निराश नहीं हूं, आज भी अच्छा साहित्य लिखा जा रहा है, जिसके समाज में प्रसार की जरूरत है. पत्रिका के संपादक कॉल पर कहानीकार से दो-चार दिन में ही कहानी भेजने को कहते हैं, जो ठीक नहीं है. लेखक और संपादक को छपने-छापने की हड़बड़ी से बचना होगा और साहित्य के चुनाव के लिए वक्त देना होगा. प्रियम्वद इतने बड़े लेखक हैं, लेकिन उन्होंने 27 साल में सिर्फ 27 कहानियां ही लिखी हैं और सभी कहानियों का स्तर बहुत ऊंचा है.
Q क्या हिंदी साहित्य में बेस्ट सेलर की परंपरा का सूत्रपात हिंदी साहित्य के विस्तार में सहायकहोगा?
सबसे पहले तो मैं यह समझ ही नहीं पा रही हूं कि बेस्ट सेलर का पैमाना क्या है. क्योंकि, मैंने हाल में ऐसा भी देखा है कि जिस साहित्य को बहुत सराहा जा रहा है, वह बेस्ट सेलर में कहीं नहीं है. और जो किताबें बेस्ट सेलर में शामिल हैं, उनमें दो बातें हैं- एक तो यह कि वह साहित्य कोई उम्दा साहित्य नहीं है और दूसरा यह कि उसके बाजार का पक्ष मजबूत है, यानी उसकी बिक्री संख्या ज्यादा है. ऐसे में तो यही लगता है कि जो ज्यादा बिकेगा, वही बेस्ट सेलर होगा. ज्यादा बिकने के लिए आज जो भी हथकंडे अपनाये जायें, चाहे सोशल मीडिया के जरिये या फिर कोई मार्केटिंग स्ट्रेटजी बनाकर, यह कोई जरूरी नहीं कि वह उम्दा साहित्य होगा. ऐसे में बेस्ट सेलर का पैमाना मुझे बाजार ही लगता है. इसलिए इस बारे में कुछ और कहने में मैं सक्षम नहीं हूं.
Q बाजार से याद आया. आज कई लेखक ऐसा मानते हैं कि अगर लेखन से घर में रोटी नहीं आयेगी, तो लेखक के लिखने का कोई अर्थ नहीं. लेखन से रोटी तो तभी आयेगी, जब बाजार में उसकी ज्यादा किताब बिकेगी. आपकी राय?
बात सही है. हमारे जीवन की सच्चाइयां भी हैं. आदमी को जीना भी तो है. लेखक का भी परिवार होता है. अगर वह सिर्फ अपने लेखन पर ही निर्भर है, तो जाहिर है उसके लिए लेखन से रोटी आनी ही चाहिए.
विडंबना कह सकते हैं कि हिंदी साहित्य आज तक ऐसा नहीं रहा, जो लेखक को रोजी-रोटी दे सके. बहुत कम ऐसे लेखक हैं, जो साहित्य-कर्म से अपना गुजारा करते रहे होंगे. समाज के लिए साहित्य बहुत जरूरी है, साहित्य एक महान उद्देश्य है, लेकिन साहित्यकार का पेट भी तो है, उसके कंधे पर जिम्मेदारी भी तो है.
लेखन से तो लेखकों के पास कागज-कलम खरीदने के लिए भी पैसे नहीं आ पाते, तो जाहिर है जीने के लिए तो पैसा चाहिए ही. तो लेखक के लिए रोटी की बात करना गलत नहीं है. बाजार बुरा नहीं है, पाठक भी कम नहीं हैं और इतनी किताबें बिना फायदे कभी नहीं छपतीं, लेकिन लेखक को कुछ खास नहीं मिलता, यह एक बड़ी विडंबना है.

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