* सेना को जरूरी सैन्य-संसाधन दिये जाएं
!! अजय साहनी !!
(आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञ)
जब भी इस तरह का कोई बड़ा हमला होता है, तो इसमें कहीं न कहीं चूक जरूर होती है. यह चूक अब एक इन्क्वाॅयरी (जांच) का मुद्दा है. मोटे तौर पर देखें, तो जब भी सेना के जवानों का इस तरह कोई कॉन्वॉय (काफिला) होता है, तो जहां से चलना है और जहां जाना है, वहां तक चाकचौबंद सड़क व्यवस्था के साथ संदिग्ध गतिविधियों पर सेना की नजर रहती है, ताकि कोई चूक न होने पाये. यह एक लंबी प्रक्रिया है.
जाहिर है, इस प्रक्रिया को पूरा नहीं किया गया होगा, तभी चूक की स्थिति बनी होगी. यह सब एक बड़ी जांच का विषय है, क्योंकि आम तौर पर इतनी बड़ी कॉन्वॉय को नहीं चलाया जाता.
ऐसे हादसों पर मीडिया में यह फैलने लगता है कि इसमें खुफिया सक्रियता में कमी थी, क्योंकि अगर खुफिया तंत्र मजबूत होता, तो हादसा होता ही नहीं. एक हद तक यह बात ठीक है, लेकिन इस बात से कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता. यह एक फिदायीन (सुसाइड बम्बिंग) हमला है, जिसे रोकना बहुत ही मुश्किल होता है.
अफगानिस्तान में न जाने कितने हजार करोड़ झाेंक दिये गये, अमेरिका ने बड़े-बड़े हथियारों-उपकरणों का इस्तेमाल किया, लेकिन वहां फिदायीन हमले नहीं रुके. हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत में फिदायीन हमले के खिलाफ कुछ नहीं किया जा सकता. मगर, इसके लिए जरूरी यह है कि सैन्य-क्षमता का विस्तार हो.
देशभर में चारों तरफ से प्रतिक्रिया आ रही है कि अब भारत सरकार कुछ करे. मुझे समझ में यह नहीं आता कि सरकार को अभी कुछ क्यों करना चाहिए? सरकार बीते पांच साल से क्या कर रही थी? या पिछले दस या पंद्रह साल से क्या कर रही थी? सरकार यह कब समझेगी कि आंतरिक सुरक्षा में बहुत सारा धन-संसाधन लगाने की जरूरत है? दरअसल, इंटरनल एजेंसीज में, एक्सटर्नल एजेंसीज में, कोवर्ट ऑपरेशंस (गुप्त ऑपरेशनों) में पैसा लगाने की जरूरत है और यह काम सरकार को दशकों पहले से ही करना चाहिए था.
बीते कई सालों से सरकार हमेशा रक्षा के क्षेत्र में कम पैसा खर्च कर रही है, इसका खामियाजा यह है कि हमारी सेना के पास सैन्य-संसाधनों की कमी है. हर साल सरकार रक्षा बजट में मात्र पांच-छह प्रतिशत बजट बढ़ाती है, जबकि आज इतना प्रतिशत तो मुद्रास्फीति है. इसका मतलब साफ है कि सैन्य-खर्चों में बढ़ोतरी करने की बजाय लगातार कटौती हो रही है. और सरकार यह कहती है कि वह बहुत तैयारी कर रही है.
आखिर किस चीज की तैयारी कर रही है यह सरकार?
पिछले साल पार्लियामेंट की स्टैंडिंग कमेटी ऑन डिफेंस के चेयरमैन थे आरसी खंडूरी, जिन्होंने रिपोर्ट दी थी कि भारतीय सेना के 68 प्रतिशत सैन्य-उपकरण इस्तेमाल के काबिल नहीं हैं. खंडूरी ने रिपोर्ट में लिखा था कि भारत के पास इतना सैन्य-संसाधन नहीं है कि वह दस दिन तक कोई लड़ाई लड़ सके. इस रिपोर्ट पर ध्यान देने की बजाय सरकार ने खंडूरी को ही चेयरमैन पद से हटा दिया. क्या यही है सेना को मजबूत करने की तैयारी? सरकार इस रवैये से सेना को कैसे मजबूत करेगी, हादसों को कैसे रोक पायेगी?
कोई भी रणनीति सेना की क्षमता पर निर्धारित होती है. सेना के पास ताकत होगी, उसी आधार पर वह ठोस रणनीति बना पायेगी. महंगे रफायल खरीदकर निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की बेईमानी से फुरसत जब किसी को मिले, तब तो वह किसी सैन्य-क्षमता या रणनीति पर काम करेगा! जब रणनीति नहीं होती है, तो सरकारों के पास नौटंकी होती है और बड़े-बड़े बयान होते हैं कि हम ये कर देंगे, वो कर देंगे. रोज सीमा पर हमारे जवान शहीद हो रहे हैं, और देश के भीतर नेता वाहियात बयान देते फिर रहे हैं
. इन बयानों से सेना का मनोबल कभी नहीं बढ़ सकता. उसके लिए चाहिए कि सेना को जरूरी सैन्य-संसाधन मुहैया कराये जायें, ताकि जवानों का कोई वार खाली न जाये.
इस सरकार ने पिछले पांच साल में ऐसा कोई तंत्र या रणनीति नहीं बनायी, जो ऐसे हादसे के बाद 24 घंटे के अंदर-अंदर जैश-ए-मुहम्मद के सरगना को धर दबोचे. जैश सरगना मसूद अजहर हो या हाफिज सईद, ये सब पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं. क्या सरकार ने भारतीय सेना को इतना मजबूत बनाया है कि जवान पाकिस्तान में घुस कर लड़ाई लड़ सकें? नहीं! सरकार ने सेना को कमजोर बनाया है. इस देश में तमाम सरकारें झूठ के आधार पर नीतियां बनाती रही हैं.
बीते तीस साल से यही हो रहा है. हर हमले के बाद झूठे नेता बयानवीर बन जाते हैं और कहते हैं कि अब ऐसा आगे कभी नहीं होगा. हमले पर हमले होते जा रहे हैं, लेकिन ये सरकारें सेना के नाम पर वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं. इस तरह से राष्ट्रनिर्माण संभव नहीं है और न ही इस तरह देश सशक्त बन पायेगा.
(बातचीत : वसीम अकरम)