-बिहार में भरपूर पानी, पर नहीं है जल संरक्षण की नीति
पटना : बिहार में प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध है पर, इस पानी का प्रबंधन नहीं है. विश्व जल दिवस पर पूरी दुनिया जहां जल संरक्षण की जरूरत को महसूस कर रही है, बिहार में जल संरक्षण को लेकर अब तक कोई नीति नहीं बनी है. इस कारण यहां लोगों के बीच जल संरक्षण के प्रति जागरूकता की कमी है. हर साल यहां की बड़ी आबादी बाढ़ और दूसरी तरफ सुखाड़ से पीड़ित रहती है. साथ ही यहां के कई जिलों का भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है. इस कारण कई जिलों में तो गर्मियों में पेयजल संकट भी पैदा होने लगा है. जानकारों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन का असर बिहार में भी पड़ा है.
यहां बारिश प्रभावित हुई है. पिछले 15 वर्षों में नियमित अंतराल पर बारिश नहीं हुई है. उसमें भी अब जुलाई-अगस्त में अपेक्षाकृत बारिश कम हो गयी है. पिछले 10 साल के आंकड़े बताते हैं कि मई और जून में बारिश की मात्रा तुलनात्मक रूप में तीन से चार गुना अधिक हो गयी है. बारिश में कमी का सीधा असर भूजल पर पड़ रहा है. बारिश का पानी भूजल तक नहीं पहुंच पाने से उसमें लगातार कमी हो रही है. वहीं इस संबंध में कोई नीति नहीं रहने के कारण भी जल संरक्षण के प्रति लोग जागरूक नहीं हैं.
प्रदेश में गुणवत्ता वाला पानी
पिछले दिनों राज्य में पानी की गुणवत्ता पर रिसर्च को दुनिया के कई देशों के विशेषज्ञों की टीम आयी थी. इस टीम ने राज्य के विभिन्न 27 जगहों से पानी के नमूनों पर रिसर्च किया. उन्होंने पाया कि देश के अन्य हिस्सों की अपेक्षा बिहार का पानी बेहतर गुणवत्ता वाला है.
फसलों की नयी प्रजातियां की जाएं विकसित
पर्यावरणविद और तरुमित्र के निदेशक फादर रॉबर्ट एथिकल कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से वैश्विक स्तर पर परेशानी हो रही है. बिहार में भी मौसम चक्र प्रभावित हुआ है. इसका बुरा असर फसल चक्र पर पड़ रहा है. ऐसे संकट के समाधान के लिए नयी प्रजाति के बीजों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि पिछले साल धान की नयी प्रजाति के बीज पर रिसर्च किया. सामान्य रूप से धान की फसल करीब 120 दिन में तैयार होती है, वहीं नयी प्रजाति की धान की करीब 80 दिन में ही तैयार हो गयी. रिसर्च की आवश्यकता है.
पूर्व राष्ट्रपति ने भी जल संरक्षण की जतायी थी आवश्यकता
पूर्व राष्ट्रपति स्व डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2013 में पटना में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि बिहार में जल संपदा भरपूर है. यदि यहां जल संपदा का सही प्रबंधन हो जाये, तो यहां की बाढ़ अभिशाप नहीं, वरदान बन जायेगी. इससे राज्य 50 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई कर सकता है. एक हजार मेगावाट बिजली उत्पादन व 90 लाख लोगों को रोजगार भी मिल सकता है.