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एके राय स्मृति शेष : तीन बार विधायक और तीन बार सांसद व्यक्तिगत संपत्ति शून्य, बैंक बैलेंस शून्य

संत व्यक्तित्व के मार्क्सवादी चिंतक पूर्व सांसद एके राय शायद अकेले राजनेता रहे हों जिनके नाम का नारा “मेरी राय आपकी राय, सबकी राय एके राय” नाम का नारा कम और जन-जन से उभरा एक भरोसा अधिक था. जब राजनीति शक्ति को पूंजीभूत करते हुए सत्ता के इर्द-गिर्द मंडराती है तो उसी समय राय दा […]

संत व्यक्तित्व के मार्क्सवादी चिंतक पूर्व सांसद एके राय शायद अकेले राजनेता रहे हों जिनके नाम का नारा “मेरी राय आपकी राय, सबकी राय एके राय” नाम का नारा कम और जन-जन से उभरा एक भरोसा अधिक था.
जब राजनीति शक्ति को पूंजीभूत करते हुए सत्ता के इर्द-गिर्द मंडराती है तो उसी समय राय दा की राजनीति, विचारधारा और संघर्ष सब कुछ जीवनमुखी थे. वह निजी बातचीत में बहुधा इस संदर्भ में ‘जीवनमुखी’ पद का जिक्र किया करते थे. और जनधर्मी राजनीति करनेवाले इस राय दा के लिए यह कैसे संभव होता कि उनकी पोटली में एके राय नाम की कोई व्यक्तिगत जगह हो.
साम्यवाद के लिए राज्य की अवधारणा में व्यक्तिगत संपत्ति का कोई अस्तित्व भी तो नहीं. लोकसभा में सांसद के वेतन-भत्ते में किसी भी तरह के इजाफे का विरोध करनेवाले वह इकलौते सांसद थे. यही कारण है कि ‘भूतपूर्व सांसद’ होने के बावजूद उन्होंने पेंशन लेना स्वीकार नहीं किया. तर्क यह था कि राजनेता कभी रिटायर नहीं होते. उनका समग्र जीवन इसका सबूत रहा. … न उनके नाम की संपत्ति और न ही बैंक में उनके नाम कोई बैलेंस रहा.
न गाड़ी-घोड़ा न बंगला, छोटे से कमरे में काट दी जिंदगी
सुधीर सिन्हा
पूर्व सांसद एके राय की जीवन शैली में गजब की सादगी थी. जब तक स्वास्थ्य ठीक रहा, पुराना बाजार टेंपल रोड स्थित खपरैल के पार्टी कार्यालय या रत्नेश्वर मंदिर के पीछे 10/12 के कमरे में रहे.
सुबह पांच बजे उठना और रात करीब बारह बजे सोना, फिर भी लगभग पांच बजे सुबह उठ जाना, उनका डेली का रूटीन था. 1971 से लेकर 2012 तक यहीं रहे. उसके बाद उनकी तबीयत अक्सर खराब होने लगी तो पार्टी कार्यकर्ता सबूर गोराईं अपने घर उन्हें नुनूडीह ले गये. लंबे समय से नुनूडीह में ही रहे.
जमीन पर ही सोते थे पूर्व सांसद
वह पार्टी कार्यालय में ही सोते थे. कभी चौकी या पलंग नहीं रखा. न ही पंखा लगाया. जमीन पर पेपर बिछा कर सोने में उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती थी. सुबह पांच बजे उठ जाते थे. शौच के बाद ऑफिस की साफ-सफाई करते थे. उनसे मिलनेवालों के लिए कोई समय निर्धारित नहीं था.
जब चाहे लोग उनसे मिलने चले आते थे. पार्टी कार्यालय से थोड़ी दूर रत्नेश्वर मंदिर के पीछे उनका छोटा सा खपरैैल का घर था. उसे लोग दो नंबर ऑफिस भी कहते हैं. उनकी सादगी से प्रभावित होकर उनके साथी रामलाल, सत्यवान बोस, वासुदेव चौरसिया, शत्रुघ्न मंडल, राजनंदन सिंह, एसके बख्शी, रवींद्र पसाद, सीताराम शास्त्री आदि जुड़े. शिबू सोरेन व बिनोद बिहारी महतो भी पार्टी कार्यालय आते रहते थे.
खुद धोते थे कपड़े
अविवाहित जीवन व्यतीत करने वाले कॉमरेड राय अपना कपड़ा खुद धोते थे. कपड़े पर कभी आयरन नहीं करवाते. घर में एक घड़ा रहता था. गर्मी हो या ठंडा उस घड़े के पानी से वह स्नान करते.
लालटेन में पढ़ते थे राय दा
कॉमरेड एके राय के पार्टी कार्यालय में पहले बिजली नहीं थी. लालटेन के सहारे पढ़ते और एक से एक लेख लिखते. शाम ढलते ही लालटेन जला लेते थे और पढ़ने-लिखने बैठ जाते थे.
पहले रेल यूनियन का ऑफिस था पार्टी का कार्यालय
बिहार कामगार यूनियन का पार्टी कार्यालय कभी रेल यूनियन का ऑफिस हुआ करता था. राय साहब यहां बीच-बीच में आते थे.
बिना आयरन का कुरता-पायजामा व टायर की चप्पल पहनते थे राय दा
जुझारू राजनेता थे एके राय : राजद
पटना : पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव, पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव, सांसद मीसा भारती ने एके राय के निधन पर शोक जताया है. उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा कि स्वर्गीय राय कर्मठ, जुझारू, संवेदनशील सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता व राजनेता थे. तेजस्वी ने कहा कि स्वर्गीय राय का संसदीय जीवन काफी लंबा रहा था. वह तीन बार सांसद व तीन बार विधायक चुने गये थे.
वामपंथी आंदोलन में राय का अमूल्य योगदान : माले
पटना : भाकपा (माले) ने कामरेड एके राय के निधन पर शोक जताया है. पार्टी ने कहा कि राय ने झारखंड और देश के वामपंथी और लोकतांत्रिक आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान दिया. झारखंड के कोयला श्रमिकों के वह एक बड़े प्रतीक थे. वह अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए व्यापक रूप से सम्मानित थे. वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापकों में से थे. बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन के साथ उन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया.
कोइलवर में मजदूरों के आंदोलन का नेतृत्व किया : माकपा
पटना : धनबाद के पूर्व सांसद एवं सीटू के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एके राय के निधन पर सीपीएम के राज्य सचिव अवधेश कुमार, सीटू के राज्य महासचिव गणेश शंकर सिंह, सीपीएम के पटना जिला सचिव मनोज कुमार चंद्रवंशी ने शोक व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि राय मजदूरों के बीच काफी लोकप्रिय नेता थे. उनके नेतृत्व में मजदूरों ने कोइलवर में आंदोलन किया और सफलता पायी थी.
1984 के दंगे में लाठी लेकर निकले थे राय दा
1984 के दंगा में राय दा लाठी लेकर निकले थे. वाकया यह था कि पुराना बाजार में नारायण सिंह नामक एक पंजाबी रहता था. अचानक लोगों ने नारायण सिंह के घर पर हमला बोल दिया. उनको बचाने के लिए राय दा खुद लाठी लेकर निकल गये. आगे-आगे राय दा थे और पीछे उनके कार्यकर्ता. राय दा को देखते हुए लोग भाग गये.
होटल में खाते थे राय दा
राय दा पहले पुराना बाजार के एक होटल में खाना खाते थे. लंबे समय तक राय दा ने होटल का खाना खाया. अगर किसी दिन वह होटल नहीं गये तो होटल के मालिक खुद राय दा से मिलने चले आते थे. होटल के खाने से उनकी तबीयत खराब होने लगी. 1980 के बाद दो नंबर ऑफिस में खाना बनने लगा. राय दा दोपहर को ज्यादातर दाल-भात चोखा पसंद करते थे.

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