डॉ पीयूष अग्रवाल
सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, एशियन हॉस्पिटल फरीदाबाद
डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में लंग कैंसर ने विश्वभर में करीब 20 लाख लोगों को अपनी चपेट में लिया है. अन्य तमाम कैंसर के मुकाबले यह सबसे आम जानलेवा कैंसर बन गया है. दो-तीन दशक पहले तक जहां इसके लिए प्रमुख रूप से धूम्रपान को ही जिम्मेवार माना जाता था, वहीं अब वायु प्रदूषण भी लगातार इसके मामले बढ़ा रहा है. विकट स्थिति यह है कि इसके 75-80 फीसदी मामले थर्ड और फोर्थ स्टेज पर डायग्नोज होते हैं, जिससे उपचार के बाद भी बचने की संभावना कम रह जाती है. एयर विजुअल्स एनालिसिस और ग्रीन पीस के आंकड़ों के अनुसार, विश्व के सर्वाधिक 30 प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं.
फेफड़ों में असामान्य कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास है लंग कैंसर. आमतौर पर उन कोशिकाओं में, जो वायुमार्ग की अंदरूनी परत में होती हैं. ये कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं और ट्यूमर बना लेती हैं. इनके कारण फेफड़ों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है. कैंसरग्रस्त कोशिकाएं लगातार बढ़ती रहती हैं और आसपास के उत्तकों को भी नष्ट कर देती हैं. जब यह असामान्य वृद्धि फेफड़ों की कोशिकाओं में शुरू होती है, तो इसे प्राइमरी लंग कैंसर कहते हैं और जब ये कोशिकाएं अन्य अंगों में शुरू होकर रक्त के माध्यम से फैल कर फेफड़ों में आ जाती हैं, तो इसे मेटास्टैटिक (सेकेंडरी) लंग कैंसर कहते हैं. एक स्टडी के मुताबिक अगर आप स्मोकिंग करते हैं, तो आपको लंग कैंसर का खतर 40-45 गुना तक बढ़ जाता है, खासतौर पर जब आप प्रदूषित शहर में रह रहे हैं.
लक्षणों से पहचानें : अधिकतर मामलों में लक्षण तभी प्रकट होते हैं, जब कैंसर थर्ड या फोर्थ स्टेज पर पहुंच जाता है. कुछ प्रमुख लक्षणों से आप इसे जान सकते हैं, जैसे- लगातार खांसी, खांसी में खून आना, बलगम के रंग व मात्रा में बदलाव, सांस फूलना, वजन में कमी, बार-बार सीने में संक्रमण व दर्द रहना, सांस संबंधी समस्या, न्यूमोनिया आदि.
उपचार : लंग कैंसर का उपचार तीन प्रमुख स्थितियों पर निर्भर करता है. पहला, कैंसर कौन-से चरण में है. दूसरा, व्यक्ति का संपूर्ण स्वास्थ्य कैसा है और तीसरा उसकी आयु. जिन मरीजों की उम्र 75-80 वर्ष है, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के साइड इफेक्ट्स को देखते हुए टारगेट थेरेपी व इम्यून थेरेपी से उपचार का प्रयास किया जाता है. ऐसे दो-तिहाई लोगों में उपचार की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती.
सर्जरी : फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी तब संभव है जब उसका उपयुक्त स्टेज पर डायग्नोसिस हो जाये. पहले और दूसरे चरण में सर्जरी कारगर रहती है, क्योंकि तब तक बीमारी फेफड़ों तक ही सीमित रहती है. सर्जरी थर्ड स्टेज में भी की जा सकती है, लेकिन जब कैंसर फेफड़ों के अलावा छाती की झिल्ली से बाहर निकल जाता है या दूसरे अंगों तक फैल जाता है तब सर्जरी से उपचार नहीं किया जा सकता. ऐसे में कीमोथेरेपी, टारगेट थेरेपी और रेडिएशन थेरेपी की सहायता ली जाती है.
कीमोथेरेपी : इसके तहत ‘साइटोटॉक्जिक’ ड्रग को शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है, जो कैंसर सेल के लिए घातक होता है. हालांकि इससे अनियंत्रित रूप से बढ़ती हुई कोशिकाएं तो नष्ट होती हैं, लेकिन कई स्वस्थ कोशिकाएं भी प्रभावित हो जाती हैं.
टारगेट थेरेपी : कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को देखते हुए इसका विकास हुआ. इसमें सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाये बिना कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है. इसके साइड इफेक्ट कम होते हैं. ज्यादातर इसके बहुत अच्छे परिणाम आये हैं.
रेडिएशन थेरेपी : कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए अत्यधिक शक्ति वाली ऊर्जा की किरणों का उपयोग किया जाता है.
इम्यूनोथेरेपी : बॉयोलॉजिकल उपचार के अंतर्गत कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए इम्यून तंत्र को स्टीम्युलेट किया जाता है. दो-तीन वर्षों से इसका प्रयोग लंग कैंसर के उपचार में किया जा रहा है.
बचाव के उपाय
लंग कैंसर से बचाव पूरी तरह तो संभव नहीं, लेकिन कई उपाय हैं, जिनसे इसके खतरे को कम किया जा सकता है.
शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, नियमित योग और एक्सरसाइज करें.
धूम्रपान न करें. तंबाकू व अन्य नशे से बचें.
विषैले पदार्थों के संपर्क से बचें. फल-सब्जियों का अधिक मात्रा में सेवन करें.
प्रदूषित हवा में सांस लेने से बचाव का हर संभव प्रयास करें.
वायु प्रदूषण के घातक प्रभावों से बचने के लिए मास्क, रूमाल या स्कार्फ का प्रयोग करें.
अगर माता-पिता या परिवार में किसी को लंग कैंसर रहा है, तो विस्तृत जांच कराएं.
घर और ऑफिस में वायु स्वच्छ करने वाले एरिका पॉम, एलोवेरा, स्नैक प्लांट आदि लगाएं.
कामकाज में रसायनों के एक्सपोज़र से बचें.
महिलाओं का अनुपात बढ़ा
लंग केयर फाउंडेशन द्वारा हाल में किये एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लंग कैंसर के शिकार 21 प्रतिशत लोग 50 वर्ष से कम उम्र के हैं. इनमें से कुछ की उम्र तो 30 वर्ष से भी कम है. युवा पुरुषों के साथ-साथ युवा महिलाएं भी अब इसकी चपेट में आ रही हैं. पहले 10 पुरुषों पर 1 महिला का अनुपात था, जो अब बढ़ कर 4 हो गया है.
वायु प्रदूषण बढ़ा देता है खतरा
वायु प्रदूषण के कारण पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 कण सीधे सांस द्वारा फेफड़ों में पहुंचते हैं. ये प्रदूषक पावर प्लांट्स, कारों, ट्रकों, अग्नि और उद्योगों से निकलने वाले उत्सर्जनों से आते हैं. पीएम 2.5 की लगभग 22 माइक्रोग्राम मात्रा फेफड़ों के लिए एक सिगरेट जितना और 220 माइक्रोग्राम, 10 सिगरेट जितना नुकसानदेह है.
लंग कैंसर के विभिन्न चरण
स्टेज : कैंसर फेफड़ों तक ही सीमित रहता है. उनके बाहर तक नहीं फैलता है.
स्टेज : कैंसर फेफड़ों के अलावा आस-पास के क्षेत्रों में भी फैल जाता है.
स्टेज : कैंसर फेफड़ों के अलावा छाती के लिम्फ नोड्स में भी फैल जाता है.
स्टेज : कैंसर दोनों फेफड़ों में फैल जाता है. इसके अलावा आस-पास के क्षेत्रों या आस-पास के अंगों में भी फैलता है. इस स्टेज पर उपचार कराने के बाद भी अगले पांच वर्ष तक जीवित रहने की संभावना पांच प्रतिशत से भी कम होती है.
रिस्क फैक्टर्स
स्मोकिंग : इससे तो फेफड़ों को नुकसान पहुंचता ही है, साथ ही सेकेंड हैंड स्मोकिंग यानी धूम्रपान करने वालों के आस-पास रहने से भी लंग कैंसर की आशंका 24 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.
सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) : इससे पीड़ित लोगों में लंग कैंसर का खतरा चार से छह गुना तक बढ़ जाता है.
कुछ अन्य कारक : वायु प्रदूषण, अनुवांशिकी, निष्क्रिय जीवनशैली,फेफड़ों से संबंधित अन्य समस्याएं, कार्य क्षेत्र में विभिन्न रसायनों, जैसे- आर्सेनिक, क्रोमियम और निकल का एक्सपोजर, कमजोर इम्यून तंत्र आदि.
प्रदूषण कम करने का लक्ष्य
डब्ल्यूएचओ की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आइएआरसी) ने पीएम को एक कार्सिनोजन माना है, जो इसका प्रमुख रिस्क फैक्टर है. बेंजीन, फार्मेलडिहाइड, विनाइल क्लोराइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड, क्लोरोफार्म का लगातार एक्सपोजर लंग कैंसर का कारण बन सकता है. बढ़ते वायु प्रदूषण और उसके हानिकारक प्रभावों को देखते हुए भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम प्रारंभ किया है, जिसके तहत अगले पांच वर्षों में पीएम प्रदूषकों को 20-30 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा गया है.
इनपुट : शमीम खान