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प्रभुता के बाई-प्रोडक्ट

।। इंदर सिंह नामधारी ।। बाई-प्रोडक्ट एक ऐसा तकनीकी शब्द है जिसका सही अर्थ समझने के लिए औद्योगिक इकाइयों में होने वाली रासायनिक क्रियाओं का सहारा लेना पड़ेगा. बाई-प्रोडक्ट वैसी वस्तु को कहते हैं जो किसी अन्य वस्तु का निर्माण करने के क्रम में अपने आप वजूद में आ जाती हो. उदाहरण स्वरूप खाद या […]

।। इंदर सिंह नामधारी ।।

बाई-प्रोडक्ट एक ऐसा तकनीकी शब्द है जिसका सही अर्थ समझने के लिए औद्योगिक इकाइयों में होने वाली रासायनिक क्रियाओं का सहारा लेना पड़ेगा. बाई-प्रोडक्ट वैसी वस्तु को कहते हैं जो किसी अन्य वस्तु का निर्माण करने के क्रम में अपने आप वजूद में आ जाती हो. उदाहरण स्वरूप खाद या उर्वरक का उत्पादन करते समय सल्फ्यूरिक एसिड अपने आप निर्मित हो जाता है.
यही कारण है कि सल्फ्यूरिक एसिड को खाद-कारखानों का बाई-प्रोडक्ट कहा जाता है. कुछ इसी तर्ज पर प्रभुता (सत्ता) प्राप्ति के क्रम में बाई-प्रोडक्ट भी अपने आप पैदा हो जाया करते हैं. प्रभुता के इसी बाई-प्रोडक्ट का प्रमाण देते हुए गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि ऐसा को उपजयो जग मांहि. प्रभुता पाये जासु मद नाहि अर्थात ऐसा कौन सा व्यक्ति पैदा हुआ है जिसको प्रभुता मिलने के बाद अहम न हुआ हो ? तुलसी दास जी के अनुसार प्रभुता का मद या अहंकार से अनन्याश्रित रिश्ता है, क्योंकि प्रभुता प्राप्ति के बाद बाई-प्रोडक्ट के रूप में अहम अपने आप पैदा हो जाता है. सत्ता के इस वैश्विक सिद्धांत के घेरे में दुनिया के लगभग सभी प्रभुता संपन्न लोग आ ही जाते हैं.
इतिहास साक्षी है कि वर्ष 1970 के दशक में देश में लगी इमरजेंसी के पहले के दिनों में इदिंरा गांधी का कांग्रेस पर कुछ ऐसा एकाधिकार एवं दबदबा हो गया था जिसको प्रभुता की संज्ञा दी जा सकती है. इस प्रभुता के चलते ही तत्कालीन अध्यक्ष स्व देवकांत वरूआ ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि ह्य इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा अर्थात इंडिया एवं इंदिरा दोनों एक हो गये हैं.
कांग्रेस में इंदिरा जी की प्रभुता की यह स्थिति तब पैदा हुई थी जब उनकी सत्ता पर एकक्षत्र प्रभुत्व हो गया था.
वातावरण ऐसा बन गया था कि विनोबा भावे जैसे संत को भी इमरजेंसी को अनुशासन-पर्व कहना पड़ा. कांग्रेस के इस रवैये पर भाजपा उस समय खुलकर हाय-तौबा मचाती थी, लेकिन आज भाजपा की स्थिति कांग्रेस से भिन्न नहीं है. कांग्रेस में प्रभुता का नशा आने में 35 वर्ष लगे थे लेकिन भाजपा में वैसा नशा मात्र चार महीनों में ही दिखने लगा है. नरेंद्र मोदी आज भाजपा के एकक्षत्र नेता बन गये हैं जिन पर भाजपा का कोई तथाकथित बड़ा से बड़ा नेता चाहकर भी कोई टिप्पणी नहीं कर सकता.
भाजपा का कोई भी नेता चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, आज मोदी से कुछ भी पूछने से कतराता है. क्या भाजपा के किसी नेता में इतना दम-खम बचा है, जो पूछ सके कि नरेंद्र मोदी ने अपने इतने हाई-फाई अमेरिकी दौरे से आखिर कौन सी सौगात लेकर आये है? भारत की मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आज के दिन पूर्णत: मोदीमय हो गया है और कोई भी टीवी चैनल मोदी के अमेरिकी दौरे की निष्पक्ष विवेचना करने को भी तैयार नहीं.
सिर्फ एक टीवी चैनल न्यूज 24 ही यह कहने की हिम्मत जुटा सका कि नरेंद्र मोदी अमेरिका से कुछ लेकर तो आये नहीं, उलटे भारत की जनता को अनदेखा करके अमेरिका में दवा बनाने वाले तीन जेनेरिक कारपोरेट घरानों को अरबों रुपये का तोहफा देकर आ गये हैं. यह ज्ञातव्य है कि अमेरिका में ग्यारह चुनिंदे उद्योगपतियों के साथ नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई थी जिसमें अमेरिका के तीन बड़े दवा निर्माता भी मौजूद थे.
नरेंद्र मोदी ने अमेरिका जाने के पहले ही अपनी सरकार से भारतीय नागरिकों के लिए टीबी एवं कैंसर जैसे असाध्य रोगों की महंगी दवा बनाने वाले जेनेरिक उत्पादकों को लाभ पहुंचाने के लिए भारत में दवा के मूल्यों को नियंत्रित करने वाले नियामक आयोग की सूची से 108 दवाओं के नाम हटा दिये थे, ताकि अमेरिकी कंपनियां भारत की जनता से मनमानी कीमत वसूल सकें. मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार अब अनेक जीवन रक्षक दवाएं भारतीयों को कई सौ गुणा अधिक कीमत पर मिला करेंगी. भाजपा के किसी नेता की हिम्मत नहीं हुई कि वह इस बिंदु पर अपना मुंह तक खोल सके.
महात्मा गांधी के जन्मदिन पर चलाया गया स्वच्छता-अभियान सराहनीय तो है लेकिन जिस कदर इसको प्रचार का हथकंडा बनाया गया है वह व्यावहारिक नहीं लगता. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद एवं उन जैसे अन्य मंत्री कुछ ज्यादा ही नखरे दिखा रहे हैं. यह सब मोदी को खुश करने के लिए किया जा रहा है. तीन दशक पहले जो रुतबा इंदिरा गांधी का हुआ करता था उससे कहीं ज्यादा रुतबा आज भाजपा में नरेंद्र मोदी को हासिल हो गया है.
आज आवश्यकता है कि भाजपा अपनी पार्टी की इस परिवर्तित स्थिति पर गंभीर चिंतन करे क्योंकि जो विकृतियां कांग्रेस में साढ़े तीन दशकों के निरंकुश शासन के बाद पनपी थीं वे भाजपा में साढ़े तीन महीनों के अंदर ही दिखने लगी है. भाजपा को अंग्रेजी की कहावत प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर से सीख लेनी चाहिए क्योंकि परहेज करना निदान से कहीं बेहतर हुआ करता है.
लेखक पूर्व सांसद व विधानसभा स्पीकर रह चुके हैं

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