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शिक्षा की बेहतरी के लिए करना होगा बहुत कुछ

डॉ रुक्मिणी बनर्जी सबसे ज्यादा चिंता का विषय है बच्चों की पढ़ाई का स्तर. ‘असर’ 2014 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में बच्चों की पढ़ाई का स्तर अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. झारखंड में कक्षा-5 में पढ़ने वाले बच्चों में से मात्र 30 फीसदी बच्चे ही साधारण पाठ यानी कक्षा -2 स्तर […]

डॉ रुक्मिणी बनर्जी
सबसे ज्यादा चिंता का विषय है बच्चों की पढ़ाई का स्तर. ‘असर’ 2014 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में बच्चों की पढ़ाई का स्तर अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है. झारखंड में कक्षा-5 में पढ़ने वाले बच्चों में से मात्र 30 फीसदी बच्चे ही साधारण पाठ यानी कक्षा -2 स्तर का पाठ पढ़ पाते हैं, वहीं गणित में इसी कक्षा के सिर्फ 40 फीसदी बच्चे दो अंकों का हासिल वाले घटाव के सवाल हल कर पाते हैं.
यह स्थिति राज्य के शिक्षा प्रणाली के लिए एक बड़ी समस्या है. बहुत कुछ करने की आवश्यकता है, उदाहरण के तौर पर शिक्षकों की संख्या बढ़ानी होगी. यह संख्या इस तरह से बढ़ानी होगी कि हर स्कूल तक ज्यादा से ज्यादा शिक्षक पहुंचें. शिक्षकों की तैयारी की प्रक्रियाओं में सुधार लाना होगा.
ऐसे बदलाव रातों रात नहीं होते हैं. इसको करने में समय लगेगा. लेकिन तब तक क्या? तुरंत और अभी हमें अपने बच्चों की पढ़ाई को बेहतर बनाने के लिए क्या करना चाहिए? आज क्या किया जा सकता है? ऐसा क्या करें ताकि बच्चों में, शिक्षकों में और अभिभावकों में उम्मीद बनी रहे और छोटे छोटे प्रगति के कदम उठाये जा सकें?
एक बहुत ही आसान, सरल और सीधा तरीका है. बच्चों को मूल रूप से जब पढ़ना एवं जोड़-घटाव करना नहीं आता है तो पाठ्य-पुस्तक से पढ़ाना उपयोगी नहीं होता. ‘प्रथम’ ने कई राज्यों की सरकार के साथ कई सफल प्रयोगात्मक परीक्षण किये हैं. ऐसे प्रयोग हाल ही में हरियाणा, महाराष्ट्र एवं बिहार में कक्षा 3, 4 और 5 के बच्चों के साथ बड़े पैमाने पर किये गये हैं. देखा गया है कि अगर बच्चों को उनके पढ़ने के स्तर के आधार पर विभाजित किया जाये और उन्हें स्तर अनुसार समूह में पढ़ाया जाये तो उनकी प्रगति तेजी से होती है.
ऐसे में कक्षा – 3, 4, और 5 के बच्चों को असर मूल्यांकन प्रपत्र की साधारण विधि का इस्तेमाल करते हुए बच्चों के समूह बनाएं. रोज एक घंटा भाषा और एक घंटा गणित की मूलभूत क्षमताओं को बढ़ाने के लिए रखना जरूरी है.
हर दिन इन बच्चों को समूहवार उनके स्तर के अनुसार उपयुक्त गतिविधियों के द्वारा पढ़ाया जाये तो जल्दी ही बदलाव दिखने लगता है. स्कूल में मौजूद शिक्षक अपने स्कूल समय में से केवल 2 घंटे का समय इस प्रकार की गतिविधियों में स्तर अनुसार इस्तेमाल करते हैं तो बच्चों में तेजी से गुणात्मक सुधार होता है. विगत कुछ वर्षो में झारखंड के कुछ जिलों में अधिकारियों ने आगे आकर इस तरीके को भी सफलतापूर्वक अपनाया है.
कोई भी बच्चा जब पढ़ना सीखता है तो उसके आस-पास सबको यह उपलब्धि दिखती है. जब शिशु चलना सीखता है या बड़े हो कर जब लड़के-लड़कियां साइकिल चलाना सीखते हैं तो खुशी महसूस होती है और सबको बच्चों की इस नयी क्षमता को विकसित होते देखकर गर्व महसूस होता है.
पढ़ना एवं गणित करना भी ऐसी ही दक्षताएं हैं. यह बच्चों को ऊर्जा देती है एवं आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है. बच्चों की प्रगति से शिक्षक एवं माता-पिता को भी ऊर्जा मिलती है. राज्य के बच्चों की मूलभूत पढ़ाई में कमजोरी का सामना सरकार को डटकर करना होगा. यह समस्या पूरे हिंदुस्तान की है.
झारखंड की अपनी भी कुछ खास समस्याएं हैं. अलग-अलग भाषाओं की समस्याएं, साथ ही दुर्गम और नक्सलग्रस्त इलाकों के प्रश्न भी हैं. राज्य की नयी सरकार के सामने चुनौती के साथ-साथ यह एक अनोखा मौका भी है. अगर सरकार चाहती है तो घोषणा कर सकती है कि अगले दो-तीन वर्षों में कक्षा 3 के आगे की कक्षाओं के सभी बच्चे पढ़ना और गणित करना सीख जाएंगे. इस लक्ष्य के साथ-साथ उन्हें अपनी शिक्षा व्यवस्था का पुन: नियोजन करना होगा ताकि आज से ही लक्ष्य प्राप्ति की तरफ बढ़ सकें.
चाईबासा के गांव में बच्चों ने हमें नये खेल सिखाये. बच्चे जानना चाह रहे थे कि क्या हम कल दुबारा आयेंगे और उन्हें और नयी चीजें बतायेंगे? अप्रैल से स्कूल में नया साल शुरू होता है. साल की शुरुआत में, राज्य एवं जिला पदाधिकारी कार्यक्रम बनाने में व्यस्त होते हैं.
शिक्षा के अधिकार कानून को पांच साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन क्या नयी सरकार पूरी तरह से बच्चों को सिर्फ स्कूल पहुंचाने के लिए तैयार है या उसे आगे बढ़कर उन्हें सीखने-सिखाने के लिए? क्या झारखंड देश का पहला राज्य होगा जो ‘शिक्षा के अधिकार’ को सिखाने के अधिकार में परिवर्तित कर पायेगा?
लेखिका ‘असर’ संस्था की निदेशक हैं.

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