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कश्मीर में मोदी : कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत’ ही है कश्मीर के विकास का मंत्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कश्मीर यात्रा में जम्मू-कश्मीर राज्य को 80 हजार करोड़ रुपये का विशेष पैकेज देकर न सिर्फ राज्य के विकास के प्रति अपनी सरकार की प्राथमिकता को रेखांकित किया है, बल्कि पिछले साल की भयावह बाढ़ से तबाह राज्य को फिर से सजाने-संवारने के अपने वादे को भी पूरा किया है. […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कश्मीर यात्रा में जम्मू-कश्मीर राज्य को 80 हजार करोड़ रुपये का विशेष पैकेज देकर न सिर्फ राज्य के विकास के प्रति अपनी सरकार की प्राथमिकता को रेखांकित किया है, बल्कि पिछले साल की भयावह बाढ़ से तबाह राज्य को फिर से सजाने-संवारने के अपने वादे को भी पूरा किया है.
कश्मीर की संस्कृति और उसके राष्ट्रीय महत्व का बखान करते हुए उन्होंने स्पष्ट घोषणा की है कि राज्य के नागरिकों, विशेष रूप से युवाओं, की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्त्ति के लिए सरकार हरसंभव प्रयत्न करेगी. केंद्र में भारी बहुमत और राज्य सरकार में भाजपा की हिस्सेदारी होने के कारण राज्य की जनता को प्रधानमंत्री मोदी से बहुत अपेक्षाएं हैं तथा प्रधानमंत्री स्वयं भी इस बात से भली-भांति परिचित हैं.
यही कारण है कि बतौर प्रधानमंत्री 17 महीने के अपने कार्यकाल में वे पांच बार कश्मीर की यात्रा कर चुके हैं. कई पर्यवेक्षकों को यह लग सकता है कि प्रधानमंत्री ने सीधे शब्दों में अलगाववाद, असंतोष और सीमा-संबंधी समस्याओं की चर्चा नहीं की है, जो कि बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि घाटी में सरकार के प्रति भरोसे की बहाली राज्य की बेहतरी की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम है. इसमें दो राय नहीं है कि अपनी घोषणाओं और योजनाओं के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी दिशा में अग्रसर हैं. प्रधानमंत्री की कश्मीर यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर आधारित आज की विशेष प्रस्तुति…
यह मेरा सौभाग्य है कि किसी प्रधानमंत्री को सबसे ज्यादा कश्मीर की धरती पर आने का सौभाग्य मिला हो, तो मेरा भी नाम उसमें जुड़ गया है. कश्मीर मुझे खींच कर ले आता है. मैंने कश्मीरियों के प्यार को अनुभव किया है. मैं जब भाजपा का संगठन का कार्य देखता था, तब यहां बहुत बार आता था.
दूर-सुदूर इलाकों में जाने का मुझे सौभाग्य मिलता था. मैंने यहां के प्यार को अनुभव किया है. और यही प्यार है जब पिछले वर्ष यहां की बाढ़ के कारण मैं भी दिल्ली में उतनी ही पीड़ा महसूस कर रहा था जितनी की आप कर रहे थे. और उसी कारण मैं तुरंत चला आया था. उस समय की सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर आपके दुख-दर्द को बांटने के लिए प्रयास किया था.फिर जब दिवाली का त्योहार आया, मेरे लिए दिल्ली में यार-दोस्तों के बीच दिवाली मनाना बड़ा सरल था.
लेकिन मेरा मन कर गया कि जिस धरती में अभी-अभी आपदा से लोग गुजरे हैं, मैं दिवाली मनाने के बजाय अच्छा होगा कि मैं श्रीनगर चला जाऊं और मैं यहां चला आया था. जब यहां आपदा आयी, उसी समय चीन के राष्ट्रपति भारत यात्रा पर आये थे. उन्होंने डेट भी ऐसी चुनी थी कि वो 17 सितंबर को मेरे होम स्‍टेट गुजरात आना चाहते थे. 17 सितंबर उन्होंने इसलिए पसंद की थी कि वो मेरा जन्मदिन था. चीन के राष्ट्रपति बड़ी उमंग के साथ मेरा जन्मदिन मनाने के लिए योजना बना करके आये थे. लेकिन, मैंने उस समय घोषित किया था कि कश्मीर में बाढ़ के कारण मेरे बंधु पीड़ित है, मैं जन्मदिन नहीं मना सकता. मैंने उनका स्वागत किया, सम्मान किया, पर जन्मदिन मनाने से मना किया.
मैं मेरी मां के पैर छूने गया था, आशीर्वाद लेने गया था. मेरा जो सामाजिक बैकग्राउंड है, जिस अवस्था में मैं पैदा हुआ, पला-बढ़ा, तो मेरी मां ने, पहले जब भी जन्मदिन पे जाता था, तो कभी वो मुझे सवा रुपया देती थी आशीर्वाद में, कभी 5 रुपया देती थी. ज्यादा से ज्यादा 11 रुपया देती थी. 11 रुपये से ज्यादा मेरी मां ने मुझे नहीं दिया. लेकिन उस दिन जब मैं गया तो मैं हैरान था. और ये संस्कार है, ये भावना है, जो मेरी रगों में भरी हुई है.
मेरी मां ने मुझे 5000 रुपया दिया मेरे जन्मदिन पर और मां ने कहा ‘बेटे, ये पैसे कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों के लिए ले जाना.’ ये संस्कार की ताकत है जो मुझे आपके दुख-दर्द को बांटने के लिए प्रेरणा भी देती है, ताकत भी देती है.
आपका प्यार मेरा हौसला बुलंद बनाये रखता है. और जिस मंत्र को ले करके हमने शासन व्यवस्था को संभाला है वो मंत्र है – ‘सबका साथ-सबका विकास’. अगर हिंदुस्तान को कोई कोना साथ न हो तो मेरा सपना अधूरा रहता है. हिंदुस्तान का कोई कोना विकास से वंचित रहे, तो भी मेरा सपना पूरा नहीं होता है.
इसलिए हिंदुस्तान का हर कोना, हिंदुस्तान का हर भू-भाग, हिंदुस्तान का जन-जन – उनका हमें साथ चाहिए और हर कोने का, हर जन का विकास चाहिए. और इस सपने को पूरा करना है तो मुझे जम्मू-कश्मीर में वो दिन लौटा कर लाने है जब हिंदुस्तान इस सर-जमीन पर आने के लिए पागल हुआ करता था. इस मिट्टी को माथे पर लगाने के लिए वो लालायित होता था. अगर थोड़े से पैसे भी बच जाएं, तो परिवार का एक सपना होता था कि इस छुट्टियों में कश्मीर चले जाएंगे.
सवा सौ करोड़ देशवासियों में फिर से मुझे वो उमंग पैदा करना है, वो इच्छा को पैदा करना है, ताकि वे कश्मीर की वादियों में आ करके आपके प्यार को अनुभव करें, आपकी सेवा को अनुभव करें और प्रकृति ने जो जन्नत बनायी है, उस जन्नत को जीते जी जीने का एहसास करें, यह सपना ले करके मैं चल रहा हूं.
कौन कहता है कि संकटों के साथ के बाद भी उभरा नहीं जा सकता? मैं उस विश्वास के साथ जीनेवाला इंसान हूं, और मैंने अपने जीवन में देखा है कि संकट कितने ही गहरे क्यों न हो, लेकिन एक जज्बा होता है जो संकटों को परास्त करना है और जीने की आस पैदा कर देता है. भाइयों, बहनों जो हिंदुस्तान का स्वभाव है, कश्मीरी का अलग नहीं हो सकता है. थोड़ा सा अगर व्यवस्था मिल जाए, तो कश्मीरी अपने-आप कश्मीर को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने की ताकत रखते हैं. हमें अटल जी के नक्शे-कदम पर चलना है. कश्मीर के लिए मुझे दुनिया के किसी की सलाह की आवश्यकता नहीं है.
इसी धरती पर, इसी मंच पर अटल बिहारी वाजपेयी जी ने जो बात कही थी, इससे बड़ा कोई संदेश नहीं हो सकता. उन्होंने तीन मंत्र दिए थे. उन्होंने कहा था- ‘कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत’. मैं आज भी इसी बात को मानता हूं कि कश्मीर के विकास का रास्ता इन तीन पिलर पर खड़ा होना है. इसी को मजबूती देनी है.
जब जम्हूरियत की बात वाजपेयी जी करते थे, क्या कभी किसी ने सोचा था, इतने कम समय में कश्मीर के लोग जम्हूरियत को इतना बल देंगे और लोकसभा के चुनाव में, विधानसभा के चुनाव में कितना भारी मतदान किया? और आज जब मुफ्ती साहब कह रहे हैं कि मैं पंचायतों को अधिकार देना चाहता हूं, ये ही तो वो अटलजी वाली जम्हूरियत है. वो ही तो जम्हूरियत है.
एक-एक गांव का पंच होगा, पंच के पास अधिकार होगा. वो अपने फैसले कर पायेगा और सरकार उसको हाथ पकड़ करके जो मदद चाहिए, मदद करती रहेगी. हमारा एक-एक गांव कितना ताकतवर बनेगा. ये जम्हूरियत की कसौटी पर वाजपेयीजी ने जो सपना देखा था कश्मीर के लोगों ने पूरा करके दिया है. और इसलिए मैं आज कश्मीर के मेरे लाखों बहनों-भाइयों को शत-शत नमन करता हूं. मैं उनका अभिनंदन करता हूं, उन्होंने जम्हूरियत को यह ताकत दी है.
भाइयों-बहनों ‘कश्मीरियत’ के बिना सिर्फ कश्मीर ही नहीं, हिंदुस्तान अधूरा है. दुनिया कितनी ही बदल क्यों न जाये, इंसान आसमान में घर बनाने की ताकत बना ले, लेकिन ‘इंसानियत’ के बिना कुछ भी आगे नहीं बढ़ सकता है.
और इसलिए जिंदगी कितनी ही आगे क्यों न बढ़े, तकनीक हमें कहां से कहां पहुंचा दे, आर्थिक संप्रभुता हमें कितनी ही नयी ऊंचाइयों पर क्यों न ले जाये, लेकिन इंसानियत, हमारे भीतर की जो आत्मा है, वो ही जीने के लिए, औरों के जीने के लिए, सबके जीने के लिए एक प्रेरणा देता है, ताकत देता है और इसलिए ‘कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत’ – इसी दायरे को लेकर के हम आगे बढ़ना चाहते हैं.
भाइयों-बहनों, विकास का एक जो खाका मन में बना है, उसको हमें समय सीमा में पूरा करना है. मेरे लिए पहली आवश्यकता है, पिछली बाढ़ में जिन किसानों को परेशानी हुई, व्यापार को जो नुकसान हुआ, घरों को जो नुकसान हुआ, प्राथमिक सुविधा की जो व्यवस्थाओं को नुकसान हुआ, जल्द-से-जल्द उसको पूरा करना और हर परिवार को संकट से बाहर लाना. और उसके लिए हमने पहले भी, मैंने पहले दिन आकर एक हजार करोड़ घोषित किया था.
बाद में भी जैसी जरूरत पड़ी देते रहे और आज भी. इस काम को पूरा करने में जम्‍मू-कश्मीर सरकार के साथ दिल्ली कंधे से कंधा मिला कर चलेगा, ये मैं मेरे जम्मू-कश्मीर के भाई-बहनों को विश्वास दिलाता हूं. कश्मीर को बहुत आगे ले जाना है. इसके लिए हमारे सामने सबसे बड़ा काम जो मुझे लगता है, वो है- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के नौजवानों को रोजगार. हमारी सारी समस्याओं का समाधान हमारे नौजवानों के रोजगार में है.
उन्हें काम का अवसर मिलना चाहिए. आइएएस की परीक्षा हो, आइपीएस की परीक्षा हो, आइआइटी हो, आइआइएम हो, पिछले कुछ समय से हर वर्ष कश्मीर के नौजवान सबसे उत्तम प्रदर्शन करते हैं. ये ताकत कश्मीर के नौजवान में है, जिसे मैं भली भांति पहचानता हूं, दोस्तों. और जिसे मैं पहचानता हूं उसके लिए मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूं.
मुझे कभी ये स्टेडियम में पहले भी आया था तब भी मेरे मन में विचार आया था. 30 साल पहले इस स्टेडियम में मैच खेला गया था. जिस प्रदेश के पास परवेज रसूल हो, उस प्रदेश में आज एक इंटरनेशनल मैच क्यों नहीं होना चाहिए?
क्रिकेट में हमारा परवेज नाम कमा रहा है, आगे बढ़ रहा है वो लड़का, गर्व होता है हमें, इस स्टेडियम में हम वो सपना क्‍यों न देखें कि यही पर फिर से एक बार इंटरनेशनल क्रिकेट मैच शुरू हो जाये और देश-दुनिया देखे? दुनिया में हमारे सचिन तेंडुलकर हो, युवराज हो, सहवाग हो, धौनी हो, कोई भी नाम ले लीजिए. अगर उन्होंने छक्के मारे हैं न, तो बैट तो मेरी कश्मीर की धरती से बना हुआ था. यहां की जो लकड़ी है जो उत्तम से उत्तम बैट बनाती है. ये ताकत है यहां और उस ताकत को बल देना है.
इसलिए भाइयों-बहनों मैं जिस विकास के चित्र को लेकर के चर्चा करता हूं, उसमें मेरी प्राथमिकता यह है कि यहां पर विकास का वो मॉडल बने जो हमारे नौजवान को रोजगार दे, जैसे टूरिज्म यहां का मुख्य क्षेत्र है. अब टूरिज्म में आज जो हमारी व्यवस्था है, इसको अगर हम आधुनिक नहीं बनाते, हमारा इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं करते, तो टूरिज्म बढ़ नहीं सकता है.
हम रेल ट्रेक और बलवान बनाना चाहते हैं. मुफ्ती साहब ने कहा, चीन में बन सकता है, यहां क्यों नहीं. बन सकता है, कश्मीर की धरती पर भी बन सकता है. और इसलिए मेरे भाइयों-बहनों बिजली हो, पानी हो, सड़क हो, साथ-साथ अब सिर्फ हाइवे से चलनेवाला नहीं है.
हाइवे की एक जरूरत है, उसके बिना चलना नहीं है, लेकिन सिर्फ हाइवेज से भी नहीं चलना है, आइ-वेज (i-ways) की भी जरूरत है. और इसलिए हमारा लक्ष्य हाइवेज का भी है, आइ-वेज का भी है. आइ-वेज यानी इनफॉरमेशन-वेज. विश्व के साथ जुड़ने के लिए हमारे मोबाइल फोन पर दुनिया हो, वो नेटवर्क कश्मीर की धरती पर मिलना चाहिए. और जो नोटिस आप कॉलसेंटर की बात करते थे, जिसके कारण नौजवान को रोजगार मिले. यहां का नौजवान बड़ी आसानी से अंगरेजी बोल लेता है. अगर हम कॉल सेंटर का नेटवर्क खड़ा करते हैं, हमारे नौजवान को यहीं पर रोजगार मिल सकता है और उसको हम बल देना चाहते हैं.
हम आधुनिक एम्स अस्पताल बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जिसका लाभ जम्मू को भी मिलेगा, श्रीनगर को भी मिलेगा. हम आइआइटी शुरू करना चाहते हैं, आइआइएम शुरू करना चाहते हैं, ताकि हमारे नौजवान को उत्तम से उत्तम शिक्षा मिले और सस्ती शिक्षा मिले. भाइयों-बहनों अच्छी शिक्षा, मानव संसाधन विकास के लिए बल, बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य की व्यवस्थाएं हों, ताकि उनकी आवश्यकताएं पूरी हों. गांव और किसान के लिए यहां की जो पैदावर है उसको बल, नौजवान को रोजगार के लिए अवसर इन बातों को ले करके हम चल रहे हैं. और उस सपने को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लिए 80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज देने का घोषित किया है.
80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज मेरे नौजवानों मेरी दिली इच्छा है कि 80 हजार करोड़ रुपया आपके भाग्य को बदलने के लिए काम आना चाहिए. कश्मीर के नौजवान को ताकत देने के लिए पैसा काम आना चाहिए. एक नया कश्मीर, एक आधुनिक कश्मीर, एक प्रगतिशील कश्मीर बनाने के लिए ये 80 हजार करोड़ रुपया लगना चाहिए. ये सपना लेकर मैं आपके पास आया हूं और मेरे भाइयों-बहनों इसे आप, इसे आप पूर्ण विराम मत समझना, ये तो सिर्फ शुरुआत है.
जो बातें मैंने बताई उसको करके दिखाइये. ये दिल्ली का खजाना आपके लिए है. मैं फिर एक बार कश्मीर की धरती को नमन करता हूं, आप सबको शुभकामनाएं देता हूं और नौजवानों के भरोसे से एक नया कश्मीर, एक नया ताकतवर कश्मीर उसे बनाने के लिए आगे बढ़े. मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं.
सवा सौ करोड़ देशवासियों में फिर से मुझे वो उमंग पैदा करना है, वो इच्छा को पैदा करना है, ताकि वे कश्मीर की वादियों में आ करके आपके प्यार को अनुभव करें, आपकी सेवा को अनुभव करें और प्रकृति ने जो जन्नत बनायी है, उस जन्नत को जीते जी जीने का एहसास करें, यह सपना ले करके मैं चल रहा हूं.
कश्मीर को बहुत आगे ले जाना है. इसके लिए हमारे सामने सबसे बड़ा काम जो मुझे लगता है, वो है- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के नौजवानों को रोजगार. हमारी सारी समस्याओं का समाधान हमारे नौजवानों के रोजगार में है. उन्हें काम का अवसर मिलना चाहिए.
एक नया कश्मीर, एक आधुनिक कश्मीर, एक प्रगतिशील कश्मीर बनाने के लिए ये 80 हजार करोड़ रुपया लगना चाहिए. ये सपना लेकर मैं आपके पास आया हूं और मेरे भाइयों-बहनों इसे आप, इसे आप पूर्ण विराम मत समझना, ये तो सिर्फ शुरुआत है.
– नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री मोदी की पांच कश्मीर यात्राएं
4 जुलाई, 2014
प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली कश्मीर यात्रा में मोदी ने जम्मू-कश्मीर के लोगों का दिल जीतने को अपनी प्राथमिकता बताते हुए राज्य की विकास के प्रति अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया था. इस एक-दिवसीय यात्रा में कटरा-उधमपुर के बीच रेल-सेवा ‘श्री शक्ति एक्सप्रेस’ का उद्घाटन किया था.
उन्होंने उरी में नियंत्रण रेखा के समीप 240 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमतावाले संयत्र को भी राज्य की जनता को समर्पित किया था. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान इन दोनों परियोजनाओं की रूपरेखा तैयार होने के तथ्य का स्मरण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने वाजपेयी के कार्यों को आगे ले जाने का भरोसा भी दिया था. उन्होंने श्रीनगर में बादामी बाग कैंट का दौरा कर वहां तैनात सैनिकों से भी मुलाकात की थी.
8 सितंबर, 2014
राज्य में बाढ़ की विभीषिका से हुई तबाही और राहत एवं बचाव कार्य का जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री जम्मू-कश्मीर गये थे. उन्होंने आपदा राहत कोष से राज्य सरकार को दिये गये 1,100 करोड़ रुपये के अलावा 1,000 करोड़ के तुरंत राहत की घोषणा की. उन्होंने इस आपदा को राष्ट्रीय स्तर की त्रासदी बताते हुए राज्य सरकारों से जम्मू-कश्मीर की सहायता का आह्वान किया.
इसके साथ ही उन्होंने बाढ़ पीड़ितों को बड़े पैमाने पर राहत सामग्री उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. मोदी ने प्रधानमंत्री राहत कोष से बाढ़ में मारे गये हर व्यक्ति के परिजनों को दो लाख तथा गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को 50 हजार रुपये की सहायता की घोषणा भी की. उन्होंने राज्य सरकार को हरसंभव सहायता का भरोसा भी दिया था.
23 अक्तूबर, 2014
प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरे में बाढ़ राहत के लिए 745 करोड़ रुपये के अतिरिक्त मदद की घोषणा करते हुए बताया कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा दिये गये 44 हजार करोड़ के नुकसान के आकलन का अध्ययन कर रही है. श्रीनगर में मोदी ने विभिन्न दलों, स्वयंसेवी, व्यापारिक व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से मिले थे. इस दौरे में वे सियाचिन इलाके में तैनात सैनिकों से भी मिले थे.
8 दिसंबर, 2014
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में अपने दल भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में प्रचार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ दिसंबर को श्रीनगर में एक चुनावी सभा को संबोधित किया था. अपने भाषण में उन्होंने रोजगार और समृद्धि देने और भ्रष्टाचार को खत्म करने का वादा किया था.
कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा लोकतंत्र की रक्षा की प्रशंसा के साथ उन्होंने सैनिकों द्वारा नागरिकों पर गोली चलाने को लेकर कश्मीरियों की चिंता का भी उल्लेख किया था. उन्होंने कहा था कि 30 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब सेना ने दो युवाओं की मौत में अपनी गलती को माना है और यह न्याय देने के उनके उद्देश्यों का परिचायक है.
नवंबर 7, 2015
जम्मू-कश्मीर की अपनी पांचवीं यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की. इस दौरे में उन्होंने बगलिहार हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के दूसरे चरण का उद्घाटन किया और जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाइवे-44 के उधमपुर-बनिहाल के हिस्से को चार लेन बनाने की परियोजना की आधारशिला रखी. राज्य के विकास के प्रति अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को दुहराते हुए उन्होंने कश्मीर की बेहतरी के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ‘कश्मीरियत, जम्हूरियत, इंसानियत’ के मंत्र को अपना आदर्श बताया तथा उनके नक्शे-कदम पर चलने की बात कही.
अलगाववादी और अलगाव की भावना पर काबू करना जरूरी
नागेश के ओझा राजनीतिक विश्लेषक
जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 80 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की है. यह स्वागत योग्य है. हालांकि, हमें यह ध्यान रखना चाहिए की किसी समस्या के निदान के दो तरीके होते हैं. एक शार्ट टर्म और दूसरा लांग टर्म. जहां शार्ट टर्म की जरूरत है, वहां लांग टर्म काम नहीं कर सकता है. कश्मीर को दिये गये 80 हजार करोड़ के पैकेज का असर लंबी अवधि में दिखेगा. हमारे नीति-निर्माताओं की दिक्कत रही है कि वे इस विरोधाभास को समझ नहीं पाते हैं.
अकसर देखा गया है कि जब हालात खराब होते हैं, तो उसके लिए सरकारें तात्कालिक कदम उठाती हैं. आज कश्मीर में हालात खराब हैं. सिर्फ पैकेज की घोषणा से स्थितियों में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती है. केंद्र सरकार को चाहिए था कि जब जम्मू-कश्मीर में नयी सरकार बन रही थी, उसी समय पैकेज की घोषणा की जाती. अगर ऐसा होता, तो जमीनी स्तर पर विकास के कुछ काम हो गये होते.
जब हालात खराब हैं, तो पैकेज का असर नहीं होता है. कश्मीर में अलगाववाद की समस्या का निराकरण शार्ट टर्म तरीके से नहीं हो सकता है. पीडीपी के नेतृत्व में बनी सरकार अलगाववाद को नियंत्रित नहीं कर पायी है. अलगाववाद दो तरीके से नियंत्रित हो सकता है.
पहला, विकास को गति देकर और दूसरा, पावर और संवाद के जरिये. इसके अलावा सरकार को अलगावावाद से सहानुभूति रखनेवालों को अपने पाले में लाने की पहल करनी चाहिए. पंजाब में आतंकवाद को इसी आधार पर खत्म करने में मदद मिली थी. आर्थिक पैकेज का असर जमीनी स्तर पर तब दिखेगा, जब विकास में लोगों की हिस्सेदारी हो. रोजगार, इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास के साथ अलगाववाद और अलगाववाद की भावना को कमजोर करने की कोशिश करनी होगी. अलगावाद की भावना को विकास से और अलगवादियों को सत्ता के साथ संवाद के लिए तैयार करके ही कश्मीर के हालात सुधारे जा सकते हैं. इस फर्क को समझे बिना समस्या का हल नहीं होगा.
यूपीए सरकार की कश्मीर नीति और मोदी की नीति में फर्क है. मोदी सरकार की कश्मीर नीति में आक्रामकता है. कश्मीर के लिए अच्छी बात है कि भाजपा ने पीडीपी के साथ सरकार बना कर एक दूरदर्शी राजनीतिक फैसला लिया. भाजपा की कश्मीर और पाकिस्तान की नीति अलग-अलग है.
मौजूदा समय में आर्थिक पैकेज की महत्ता इसलिए भी अधिक है, क्योंकि देश में मॉनसून कमजोर रहा. वैश्विक स्तर पर जीडीपी 2.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है. भारत में विदेशी पूंजी निवेश उम्मीद से कम हो रहा है. ऐसे माहौल में कश्मीर के विकास के लिए 80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज देना महत्वपूर्ण है. उम्मीद है कि वहां विकास का माहौल बना कर लोगों में अलगाववाद की भावना को कम करने में मदद मिलेगी.
आर्थिक पैकेज जरूरी था, पर राजनीतिक पैकेज कब?
उर्मिलेश
वरिष्ठ पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा कर सही कदम उठाया है. सरहदी सूबे की सरकार और सियासतदान ही नहीं, लोग भी इसका लंबे समय से इंतजार कर रहे थे. सन् 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा घोषित 24 हजार करोड़ के आर्थिक पैकेज के बाद राज्य को केंद्र से बड़ी सहायता राशि नहीं मिली थी.
बाढ़ से तबाही के बाद कई चरणों मे केंद्र की तरफ से जो धनराशि मिली, वह तबाही की तीव्रता और व्यापकता को देखते हुए नाकाफी थी. निश्चय ही नये आर्थिक पैकेज से जम्मू-कश्मीर सरकार को बड़ी ताकत मिलेगी.
इससे न केवल बाढ़ से तबाह हुए सूबे में राहत-पुनर्वास, पुल-सड़क-राजमार्ग निर्माण या मरम्मत के काम को गति मिलेगी, अपितु राज्य की कई लंबित विकास परियोजनायेओं को भी पटरी पर लाया जा सकेगा. कुछ नये कार्यक्रम भी लि जा सकेंगे. राज्य को इसकी वाकई बहुत जरूरत थी, पर जम्मू-कश्मीर को इससे भी ज्यादा जरूरत जिस पैकेज की है, प्रधानमंत्री उस पर आज भी खामोश रहे. वह पैकेज है- राजनीतिक-राजनयिक.
केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जब एक नयी सरकार बनी तो उनसे कई अपेक्षाओं के साथ एक अपेक्षा यह भी थी कि जम्मू-कश्मीर में वह जरूर कोई बड़ी पहल करेंगे. उनके पूर्ववर्ती डॉ मनमोहन सिंह सरकार को शासन के कई मामलों में सवालों से जूझना पड़ा था.
यूपीए के कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले लंबित रहे, पूरी सरकार आरोपों के घेरे में रही, खासतौर पर यूपीए-2 की सरकार. लेकिन, डॉ सिंह की कश्मीर-नीति पर शायद ही किसी ने गंभीर सवाल उठाये. ज्यादातर विशेषज्ञों-रणनीतिकारों और राजनयिकों ने उनकी कश्मीर-नीति की प्रशंसा ही की. डॉ सिंह के दस वर्षों के कार्यकाल में कश्मीर में स्थितियां सुधरीं, राज्य की कानून-व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा में गुणात्मक परिवर्तन दिखा.
लोगों को राहत मिली और कश्मीर के पर्यटन में तेजी से विस्तार हुआ. मिलिटेंसी में न केवल कमी आयी, अपितु सरहद पार से होनेवाली घुसपैठ में भी कमी देखी गयी. कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का रुख पहले के मुकाबले कुछ लचीला हुआ. एक ऐसा दौर भी देखा गया, जब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और डॉ सिंह के बीच जम्मू-कश्मीर मामले के स्थायी समाधान के लिए कई बड़े कदम उठाये गये. इनमें एक था-चार सूत्री फार्मूले पर दोनों पक्षों के बीच संवाद का आगे बढ़ना, जिसकी शुरुआत हवाना में डॉ सिंह और मुशर्रफ की पहली मुलाकात के साथ हुई थी.
डॉ मनमोहन सिंह से पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए की पहली सरकार ने भी कश्मीर मामले में लचीला और व्यावहारिक सोच का प्रदर्शन किया था. करगिल की जंग न हुई होती तो उस वक्त भी बड़े फैसले संभव थे. लेकिन, पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष के रूप में तब मुशर्रफ की आक्रामक नीति ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और प्रधानमंत्री वाजपेयी के बीच बड़ी दरार पैदा कर दी. दरार इतनी गहरी थी कि दोनों तरफ सत्ता में बदलाव के बाद ही भारत-पाकिस्तान के बीच सार्थक संवाद की स्थिति बनती नजर आयी.
अपने शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित सभी पड़ोसी मुल्कों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित कर एक अच्छी शुरुआत की, लेकिन कश्मीर के मामले में पाकिस्तान से बात आगे नहीं बढ़ सकी. घरेलू स्तर पर भी अलगाववादियों और अन्य तंजीमों के साथ वाजपेयी या मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान जारी रहीं राजनीतिक कवायदें लगभग थम गयीं. लगभग डेढ़ साल के मोदी कार्यकाल में कश्मीर में सिर्फ एक बड़ा बदलाव हुआ है और वह है- सूबे में हिंदुत्ववादी राजनीति की ताकत में विस्तार. भाजपा ने मुफ्ती मोहम्मद सईद की पीडीपी के साथ मिल कर सूबे में सरकार का गठन करने में कामयाबी हासिल की. इतिहास में पहली बार भाजपा राज्य की सत्ता में हिस्सेदार है. इसे मोदीजी की बड़ी कामयाबियों की सूची में डाला जा सकता है. लेकिन, डॉ मनमोहन सिंह की सरकार के दौर में कश्मीर मे जो बेहतर माहौल बना था, वह अब बिखर चुका है. राजनीति ने समाज को बुरी तरह बांट रखा है.
हालात इतने बिगड़े हैं कि अब राज्य विधानसभा में सत्ताधारी भाजपा के विधायक खान-पान के सवाल पर असहिष्णुता दर्शाते हुए अपने प्रतिद्वद्वियों को पीटने तक लगे हैं. बीफ के मुद्दे पर निर्दलीय विधायक इंजीनियर राशिद पर भाजपा विधायकों ने सत्र के दौरान हिंसक हमला किया. अब घाटी में पाकिस्तान ही नहीं, आइएसआइएस सहित खूंखार आतंकी गिरोहों के झंडे भी फहराये जाने लगे हैं. इससे अशांति, आतंक, टकराव और दहशत के माहौल की वापसी का खतरा मंडराने लगा है.
सूबे में सार्थक संवाद और परस्पर विश्वास के लिए ठोस पहल की जरूरत है, लेकिन मोदी जी की पार्टी और संघ परिवार से जुड़े संगठन सूबे में सत्ता का हिस्सेदार बन कर अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाने के अभियान में जुटे दिखते हैं.
कश्मीर में भाजपा-संघ परिवार के उग्र हिंदुत्वादी रुझान, खासतौर पर अन्य समाजों-समुदायों, धार्मिक समूहों और दलों के प्रति असहिष्णु रवैये को लेकर सिर्फ सूबे में ही नहीं, सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदर भी विरोध और तनाव बढ़ता जा रहा है.
इसका नमूना आज भी देखने को मिला. प्रधानमंत्री की रैली सत्तारूढ़ गठबंधन की तरफ से आयोजित थी, लेकिन श्रीनगर से पीडीपी के सांसद तारिक हमीद कर्रा और बारामूला से पीडीपी सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता मुजफ्फर अहमद बेग ने कार्यक्रम में आने से इनकार कर दिया. दोनों के बहिष्कार को लेकर कश्मीर के मीडिया में कल से खबरें आने लगी थीं. बेग ने तो प्रधानमंत्री के नाम पत्र भी जारी किया, जिसमें भाजपा-संघ पर पूरे देश में और खासतौर पर कश्मीर में असहिष्णु रवैया अपनाने का आरोप लगाया गया है.
कुल मिलाकर, इस समय कश्मीर को आर्थिक सहायता की बहुत जरूरत थी, जो उसे मिला है. पर सूबे को ‘राजनीतिक पैकेज’ की उससे भी ज्यादा जरूरत है, जो फिलहाल दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा.
प्रधानमंत्री मोदी अपने कश्मीर दौरे में इस दिशा में नयी पहल का ठोस संकेत दे सकते थे, जो उनके भाषण में नहीं दिखा. सिर्फ यह कहने से बात नहीं बनती कि वह पहले जैसा कश्मीर चाहते हैं, जब देश के दूर-दराज के इलाकों के लोग अपनी गर्मी की छुट्टियों के लिए कश्मीर का टिकट कटाते थे. आर्थिक प्रगति के लिए ठोस योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के साथ अब कश्मीर में ठोस राजनीतिक पहल की भी जरूरत है.

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