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लूला प्रकरण : ब्राजील में घोटाला व राजनीतिक संकट

ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जांच ने देश में राजनीतिक संकट पैदा कर दिया है. जांचकर्ताओं ने अवैध रूप से एक सरकारी कंपनी से धन की निकासी और आवास खरीदने का आरोप लगाया है, तो लूला और उनकी पार्टी ने इसे राजनीतिक षड्यंत्र कहा है. इसी बीच […]

ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा के विरुद्ध भ्रष्टाचार की जांच ने देश में राजनीतिक संकट पैदा कर दिया है. जांचकर्ताओं ने अवैध रूप से एक सरकारी कंपनी से धन की निकासी और आवास खरीदने का आरोप लगाया है, तो लूला और उनकी पार्टी ने इसे राजनीतिक षड्यंत्र कहा है.
इसी बीच अर्थव्यवस्था में गिरावट को रोक पाने में असफल रहने के लिए विपक्ष ने राष्ट्रपति दिल्मा रौसेफ से पद छोड़ने की मांग की है. माना जा रहा है कि इस प्रकरण के दक्षिण अमेरिका और वैश्विक राजनीति पर भी असर हो सकते हैं. साधारण मजदूर से ब्राजील के सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रपति बनने और देश को असाधारण विकास की राह पर लानेवाले लूला के लिए यह समय बहुत चुनौती भरा है. प्रस्तुत है लूला के व्यक्तित्व और उपलब्धियों के आकलन के साथ पूरे मामले तथा इसके विविध पहलुओं पर व्यापक विश्लेषण…
राजनीति के बजाय न्याय ही तय कर सकेगा ब्राजील का भविष्य
ब्राजील की हालिया घटनाओं से विस्मित होने के लिए किसी को ब्राजीलवासी होने की जरूरत नहीं है. 4 मार्च की एकदम सुबह ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा के आवास पर पुलिस अधिकारी पहुंचे और उन्हें पूछताछ के लिए अपने साथ ले गये. पुलिस ब्राजील सरकार द्वारा नियंत्रित तेल कंपनी पेट्रोब्रास पर केंद्रित रिश्वतों के महाघोटाले से लूला तथा उनके सहयोगियों के लाभान्वित होने के सबूत तलाश रही थी. इसके पांच दिनों बाद अभियोजकों ने एक सागरतटीय फ्लैट के स्वामित्व का तथ्य छिपाने के आरोप में लूला के विरुद्ध मुकदमा दायर कर दिया.
इस घोटाले में रिश्वत लेने के संदेह में दर्जनों राजनीतिज्ञों और उन्हें भुगतान करनेवाले कारोबारियों को हिरासत में लिया जा चुका है. 2003 से लेकर 2010 तक राष्ट्रपति रहनेवाले लूला इस घोटाले से प्रभावित होनेवाले सबसे प्रमुख व्यक्ति हैं, हालांकि वे किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार करते हैं. 8 मार्च को ब्राजील की सबसे बड़ी निर्माण कंपनी के पूर्व प्रमुख मार्सेलो ओदरब्रेख्त को 19 वर्षों से भी अधिक के कारावास की सजा सुनायी जा चुकी है.
ब्राजीलवासियों को यह देख कर संतोष हो रहा है कि बड़े रसूखवालों के भ्रष्टाचार पर भी कार्रवाई हो रही है. सर्जियो मोरो नामक जज, जो इन आरोपों की तहकीकात का नेतृत्व कर रहे हैं, आज बहुतों की निगाहों में नायक जैसी छवि हासिल कर चुके हैं. मगर यह घोटाला लूला तथा उनकी उत्तराधिकारी वर्तमान राष्ट्रपति दिल्मा रौसेफ के वामपंथी राजनीतिक दल, वर्कर्स पार्टी बनाम कई दलों सहित लोकप्रिय जनआंदोलनों से निर्मित विपक्ष के बीच एक भीषण राजनीतिक संघर्ष का केंद्र भी बन चुका है. रौसेफ को पदच्युत करने की मांग को लेकर सरकार विरोधी समूह 13 मार्च को प्रदर्शन करनेवाले हैं, जबकि इसी दिन रौसेफ के समर्थक भी उनके पक्ष में प्रदर्शन की तैयारी में हैं.
वर्कर्स पार्टी के राजनीतिज्ञों ने अभियोजकों पर सत्तापलट के षड्यंत्र का आरोप लगाया है. किंतु, यह भी सच है कि रौसेफ की पदच्युति की मांग करनेवालों के पास भी इतने बड़े कदम के लिए आवश्यक और उचित साक्ष्यों का अभाव है. उनके विरुद्ध मुख्य माना जा रहा एक आरोप कि उन्होंने 2014 में राजकोषीय घाटे की सही रकम छिपाने के लिए लेखा के तिकड़मों का सहारा लिया, उनकी पदच्युति का पर्याप्त वैधानिक आधार प्रदान नहीं करता.
ब्राजीलवासी शायद ही कभी अपने राजनीतिक विवादों को सुलझाने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं, मगर दोनों पक्षों के मिजाज में व्याप्त तीव्रता देश की प्रशंसनीय लोकतांत्रिक परंपराओं की आधारभूत सर्वसम्मति को खतरे में डालती लग रही है. इस कार्य में वर्कर्स पार्टी और उसके गंठबंधन सहयोगी अधिक बड़े गुनाहगार दिखते हैं.
लूला की नजरबंदी के बाद संसद के निचले सदन में वर्कर्स पार्टी के नेता ने ‘राजनीतिक युद्ध’ का एेलान कर दिया और पार्टी ने लूला को ‘राजनीतिक बंदी’ करार दिया. दूसरी ओर लूला को पूछताछ हेतु स्वयं प्रस्तुत होने को कहने के बजाय उनकी जबरन नजरबंदी निश्चित कर मोरो ने भी सीमातिक्रमण ही किया है. सर्वोच्च न्यायालय के एक जज ने उन्हें ‘बुनियादी नियमों’ के उल्लंघन का दोषी बताया है.
शांत रहें तथा तहकीकात जारी रखें
इन सबके बावजूद, पेट्रोब्रास घोटाला सरकार तो गिरा ही सकता है. निर्वाचन अदालत इस आरोप की छानबीन कर रही है कि क्या 2014 में रौसेफ के पुनर्निर्वाचन मुहिम के लिए तेल कंपनी से पैसे निकाले गये थे. यदि ऐसा पाया गया, तो अदालत उस निर्वाचन को रद्द कर फिर से एक नये निर्वाचन का आदेश दे सकती है, जिसमें वर्कर्स पार्टी के किसी उम्मीदवार को लगभग निश्चित पराजय मिलेगी.
एक नयी सरकार को शायद इसका बेहतर मौका मिलेगा कि वह ब्राजील को उसकी वर्तमान निराशा से उबार सके. इस बीच खुद पर आये संकटों की वजह से रौसेफ राजकोषीय सुधारों से पीछे हट गयी हैं, जबकि ब्राजील को 1930 के बाद की सबसे बदतर मंदी से उबार पाना सिर्फ उसी के बूते संभव हो सकता है. रौसेफ का हटना यकीनन जश्न की वजह बनेगा, मगर केवल तभी, जब वह अदालत अथवा मतपेटियों के द्वारा हो, किसी दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक हथकंडे से नहीं.
दि इकॉनोमिस्ट से साभार (अनुवाद : विजय नंदन)
आरोपों के घेरे में लूला
धोखाधड़ी के एक मामले में पुलिस ने कुछ िदनों पहले लूला के घर पर छापा मारा था और फिर उन्हें हिरासत में लिया गया था.
यह मामला सरकारी तेल कंपनी पेट्रोब्रास में वित्तीय गड़बड़ियों से जुड़ा है.
साओ पाउलो के अभियोजकों ने लूला और उनकी पत्नी समेत 16 के खिलाफ हवाला का मुकदमा दायर कराया है. बताया जा रहा है कि लूला के बेटे का नाम भी इस सूची में शामिल है.
‘ऑपरेशन कारवॉश’ के तहत पेट्रोब्रास में वित्तीय गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच लंबे समय से चल रही है.
ब्रिक्स के पतन की शुरुआत!
वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की परस्पर निर्भरता पर देशों की आंतरिक राजनीति का असर पड़ना स्वाभाविक है. इसी तरह, वैश्विक राजनीति और आर्थिक गतिविधियां भी किसी देश की राजनीति और आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डालते हैं. इस पृष्ठभूमि में ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लूला पर चल रहे कथित भ्रष्टाचार के मुकदमे और इस मुकदमे के देश की राजनीति पर असर को देखते हुए यह कयास लगाया जा रहा है कि इस प्रकरण से पांच देशों- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- के संगठन ब्रिक्स का भविष्य खतरे में पड़ सकता है.
दो साल से अधिक समय से ब्राजील के औद्योगिक उत्पादन में निरंतर कमी हो रही है. ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओइसीडी) का अनुमान है कि इसमें पिछले साल आयी 3.8 फीसदी की गिरावट इस वर्ष चार फीसदी हो सकती है, जो 1901 के बाद से सबसे बड़ी कमी होगी. मौजूदा स्थिति 2008 के चरम आर्थिक विकास से बिल्कुल विपरीत है, जब वित्तीय शोध संस्था स्टैंडर्ड एंड पूअर ने ब्राजील के राष्ट्रीय कर्ज को निवेश के स्तर का दर्जा दे दिया था.
अब हालत यह है कि पांच आर्थिक संस्थानों ने चेतावनी दी है कि अगर वित्तीय प्रबंधन को समुचित तरीके से ठीक नहीं किया गया, तो देश का सार्वजनिक ऋण नियंत्रण से बाहर जा सकता है. सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के अनुपात में हर साल 10 फीसदी के दर से बढ़ रहा राष्ट्रीय कर्ज 2017 तक जीडीपी के 80 फीसदी तक पहुंच सकता है जो कि किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए बहुत खतरनाक है.
टेलीग्राफ, लंदन के वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार एंब्रोस इवांस-प्रिटचार्ड ने लिखा है कि ब्राजील ब्रिक्स समूह का पहला ऐसा देश है, जो कई मोर्चों पर एक साथ बिखर गया है, लेकिन रूस और दक्षिण अफ्रीका भी बड़े संकट से घिरे हैं तथा चीन का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम होता जा रहा है.
सिर्फ भारत ही किसी तरह संतुलन बना रखने में एक हद तक सफल रहा है, हालांकि उसकी मुश्किलें भी कम गंभीर नहीं हैं. प्रिटचार्ड की राय में ब्रिक्स की अवधारणा अब अर्थहीन हो चुकी है. लूला प्रकरण के बाद ब्राजील की सरकार में भी तनाव बढ़ गया है और ऐसे में आर्थिक प्रबंधन को पटरी पर ला पाना संभव नहीं दिखता. देश में हर रोज छह हजार अच्छी नौकरियां खत्म हो रही हैं. आर्थिक सुधारों के पक्षधर बहुत जल्दी सत्ता परिवर्तन चाहते हैं, ताकि उन नीतियों में बदलाव हो सके जो लूला की विरासत हैं.
ब्राजील में पैदा हुए अंतरराष्ट्रीय पत्रकार और टिप्पणीकार पेपे एस्कोबार पूरे प्रकरण को वैश्विक व्यापार पर कब्जा जमाये आर्थिक संगठनों और उनके साथ खड़े देशों के निहित स्वार्थों को साधने की कोशिश का नतीजा मानते हैं. इसमेंकोई दो राय नहीं है कि ब्रिक्स समूह और उसकी आर्थिक गतिविधियां आर्थिक महाशक्तियों के एकाधिकार के लिए बड़ी चुनौती हैं.
रूस और चीन के साथ अमेरिका और यूरोपीय देशों की तनातनी लंबे समय से चल रही है. ब्रिक्स देशों में ब्राजील ऐसा देश है, जिसे अस्थिर करना अपेक्षाकृत आसान था. दुनिया की सातवींं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की प्रगति अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़ी मिसाल रही है. ऐसे में उसका पतन महाशक्तियों की नीतियों की वैधता के लिए जरूरी है.
ब्राजील के बहाने ब्रिक्स को खत्म करने के ठोस कारण हैं, जिनमें ब्रिक्स बैंक का विकास, सदस्य देशों का अपनी मुद्रा में आपसी व्यापार को तरजीह देने की कोशिश, डॉलर की जगह भंडारण के लिए नये वैश्विक मुद्रा को स्थापित करने का प्रयास, अमेरिका के नियंत्रण से परे ब्राजील और यूरोप के बीच वृहत फाइबर ऑप्टिक टेलीकॉम केबल लगाना तथा दक्षिण अमेरिका को पूर्वी एशिया से केबल द्वारा जोड़ना आदि शामिल हैं. लूला ने बड़ी तेल कंपनियों को दरकिनार कर ब्रिक्स के समझौतों के तहत चीन के साथ करार किया था.
कई रिपोर्ट ऐसी सार्वजनिक हो चुकी हैं, जिनमें अमेरिका और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लूला और मौजूदा राष्ट्रपति दिल्मा रौसेफ समेत ब्राजील की तेल कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों पर नजर रखने की बात कही गयी है. बहरहाल, अब देखना यह है कि ब्राजील की राजनीति आगामी दिनों में क्या करवट लेगी, और लूला के 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने की संभावना का स्वरूप क्या होगा. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि ब्रिक्स का भविष्य संकट में है.
– प्रकाश कुमार रे
ब्राजील का सर्वाधिक घृणित बनाम चहेता चेहरा- लूला
डेनियल गेलास, बीबीसी संवाददाता, ब्राजील
फ रवरी का महीना ब्राजील में आमतौर पर छुट्टियों के मिजाज के लिए जाना जाता है, जब गरमियां अपनी उतार पर होती हैं और दसियों लाख लोग समुद्रतटीय शहरों में जश्न मना रहे होते हैं.
मगर 17 फरवरी के दिन दर्जनों लोग साओ पाउलो के क्रिमिनल कोर्ट के सामने खड़े थे, क्योंकि वहां ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा को अधिकारियों द्वारा कोर्ट में बुलाया गया था, ताकि वे तथाकथित भ्रष्ट लोगों द्वारा उन्हें भेंट किये गये जायदादों की एक पूरी शृंखला के संबंध में अपना स्पष्टीकरण पेश कर सकें. उस इमारत के सामने लूला समर्थक तथा उनके विरोधियों के बीच एक झड़प भी हुई. लूला-विरोधी इस अवसर पर कैदियों की धारीदार पोशाक में लूला के एक गुब्बारेनुमा पुतले में हवा भरने की कोशिश कर रहे थे, जब उनके समर्थकों ने वहां पहुंच कर उसे नष्ट कर दिया. अंततः, लूला उस अदालत में पेश भी नहीं हुए. उन्होंने इस बुलावे को खारिज करने का अदालती आदेश हासिल कर लिया. मगर इस बीच, हिंसक झड़प के शिकार कुछ लोग जख्मी हो चुके थे.
एक विभाजक शख्सीयत
ब्राजील में लूला के सिवा और कोई भी व्यक्ति अपने समर्थन तथा विरोध में भावनाओं का ऐसा उग्र उफान नहीं भड़का सकता. एक अत्यंत गरीब परिवार से उठ राष्ट्र के सर्वोच्च शिखर तक पहुंच कर लूला 1970 के दशक से ही ब्राजील में राजनीति की केंद्रीय शख्सीयत के रूप में तीव्र समर्थन और वैसे ही तीव्र विरोध के पात्र रहे हैं. कुछ लोग यह मानते हैं कि उन्होंने ब्राजील में सदियों से चले आ रहे कुलीनों के शासन का खात्मा कर जनसाधारण के जीवन स्तर में सुधार के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया.
वहीं दूसरा पक्ष उन्हें सस्ती लोकप्रियता के पीछे भागनेवाले भ्रष्ट राजनेता के रूप में देखता है, जिसने अपनी पार्टी को सत्ता में बनाये रखने के लिए धोखाधड़ी से भरे सौदे तथा गंठजोड़ किये. दो छोरों पर स्थित ये मत अन्वेषकों, प्रेस तथा जनता के लिए यह जान पाना और भी मुश्किल कर देते हैं कि वे भ्रष्ट कंपनियों के साथ संदिग्ध सौदे में वस्तुतः लिप्त थे अथवा, जैसा उनका दावा है, उन्हें एक बड़ी साजिश का शिकार बनाया गया है.
ठप पड़ा ब्राजील
लूला मुद्दे के चलते ब्राजील पिछले दो दशकों से भी ज्यादा अरसे की सबसे बुरी मंदी झेलता हुआ पक्षाघात जैसी स्थिति में पहुंच चुका है. पूरे देश में उनके समर्थन तथा विरोध के प्रदर्शनों की बाढ़-सी आयी है और वर्तमान राष्ट्रपति रूसेफ की सरकार का समर्थन केवल इसी बिंदु से त्रिशंकु-सा टंगा है कि लूला भ्रष्ट हैं या नहीं. सामान्यतः, इसे हाशिये पर स्थित एक सवाल होना चाहिए था, किंतु ब्राजील की वर्तमान राजनीति में यह एक केंद्रीय प्रश्न बन गया है.
लूला के कार्यकाल की अच्छी अथवा बुरी दोनों किस्म की उपलब्धियों के लिए वहां सिर्फ आत्यंतिक विशेषणों का ही प्रयोग किया जाता है. विश्व में सर्वाधिक आय असमानता वाले देशों में शुमार ब्राजील में लूला के शासनकाल को इस महती उपलब्धि का श्रेय दिया जाता है कि वहां के दसियों लाख गरीब नागरिक आर्थिक विकास तथा नकद-हस्तांतरण जैसे कदमों की वजह से गरीबी रेखा से ऊपर उठ सके.
इसने लूला को अंतरराष्ट्रीय ख्याति और ब्राजील के गरीब तबकों तथा वामपंथी बौद्धिकों के बीच एक नायक जैसी छवि दिलायी. दूसरी ओर, इसी काल में उनकी वर्कर्स पार्टी देश के सर्वाधिक बड़े घोटाले में फंसी पायी गयी और उनके बहुत-से पार्टीकर्मी वहां के सांसदों को उनके राजनीतिक समर्थन के बदले मासिक रिश्वत देने के आरोप में जेल पहुंच गये. देश के कई मुख्य तथा गंभीर समाचारपत्रों ने उनकी राजनीति का विरोध करते हुए लूला के विरुद्ध कई आरोप उजागर किये.
खतरे में पड़ी विरासत
आज न केवल लूला की नेकनामी, बल्कि विगत 14 वर्षीय वामपंथी शासन की विरासत और भविष्य की उसकी संभावनाओं पर संदेह के बादल छाये हैं. लूला ने 2010 में सत्ता तब छोड़ी, जब उन्हें अपार जन समर्थन हासिल था और उनके बाद भी उनके ही द्वारा चयनित उत्तराधिकारी चार वर्षों के दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रपति पद पर आसीन है. रविवार को ब्राजील भ्रष्टाचार के विरोध में एक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन की चुनौतियों से जूझने की तैयारी में लगा है.
पिछले प्रदर्शनों के विपरीत, इस बार लूला समर्थक भी सड़कों पर उतरने को तैयार हैं और नतीजतन, शंकाएं हैं कि अब तक जो विवाद सोशल मीडिया की सीमाओं तक सिमटा था, वह कहीं सड़कों पर न उतर आये.
(अनुवाद : विजय नंदन)

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