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लोहिया ले जाये गये हजारीबाग जेल

लोहिया ले जाये गये हजारीबाग जेल श्रीकांत, वरिष्ठ पत्रकार डॉ लोहिया को एक कैदी वैन में हजारीबाग ले जाया गया. वैन का नाम था- ब्लैक मारिया. वैन दरअसल बख्तरबंद गाड़ी थी. बाहर से कोई देख नहीं सकता था. उसकी खिड़कियों पर पतले तार लगे हुए थे. डॉ लोहिया समेत सभी नेताओं को वैन की बेंच […]

लोहिया ले जाये गये हजारीबाग जेल
श्रीकांत, वरिष्ठ पत्रकार
डॉ लोहिया को एक कैदी वैन में हजारीबाग ले जाया गया. वैन का नाम था- ब्लैक मारिया. वैन दरअसल बख्तरबंद गाड़ी थी. बाहर से कोई देख नहीं सकता था. उसकी खिड़कियों पर पतले तार लगे हुए थे. डॉ लोहिया समेत सभी नेताओं को वैन की बेंच पर बिठाया गया. सरकार ने नजरबंद नेताओं को हजारीबाज जेल पहुंचाने की जवाबदेही एएसपी हेडक्वार्टर एसके सक्सेना (जो बाद में बिहार के डीजीपी बने) को दी थी. रात को सक्सेना को एसएसपी ने बुलाया था और कहा था, सुबह आ जाना. और लोहिया समेत पांच लोगों को हजारीबाग पहुंचाना है. सक्सेना उस समय प्रोबेशन पर थे. पटना की घटनाओं के बारे में उन्हें पता था.
डॉ लोहिया को वह जानते थे. डीएम जेएन साहू ने सक्सेना को राह खर्च के लिए सौ रुपये दिये व कहा-ठीक से ले जाना. जानते ही हो नेहरू को हिलाने वाला नेता है. दूसरे दिन सक्सेना समय पर पहुंच गये. डॉ लोहिया व सुनील मुखर्जी को एसपी कार्यालय में बिठाया गया था. सुबह छह बजे नेताओं को बताया गया कि अगर वे बाथरूम जाना चाहते, तो चले जाएं, अन्यथा हमलोग हजारीबाग रवाना होनेवाले हैं. वैन में डॉ लोहिया के साथ भाकपा विधायक दल के नेता सुनील मुखर्जी, भोला प्रसाद सिंह, कर्मचारी नेता रामएकबाल सिंह और रेवती कांत सिन्हा को बिठाया गया . सक्सेना खुद वैन के ड्राइवर की सीट की बगल में बैठे थे. वहां से वह नेताओं को देख-सुन सकते थे.
पटना से हजारीबाग रवाना होने के साथ जल्दी ही वैन तीन मील दूर अगमकुंआ क्रॉसिंग पर पहुंचा. क्रॉसिंग बंद थी. कोई ट्रेन गुजरनेवाली थी. वहां वैन रुका, पर इंजन स्टार्ट रखा गया. शायद लोहिया ने कहा कि वैन को ट्रेन के ऊपर से निकालोगे क्या? वैन रुका तो सभी उससे नीचे उतरे और चाय-पान की और खुद जाकर वैन में बैठ गये.
डॉ लोहिया व अन्य नेताओं को लेकर वैन गिरियक पहुंचा. यह पटना से लगभग 89 किलोमीटर दूर है. यहां एक सर्किट हाउस में वैन को रोका गया. डॉ लोहिया ने सक्सेना से पूछा, कहां के रहने वाले हो? सक्सेना ने बताया कि इलाहाबाद के. डॉ लोहिया ने कहा, जहां के मोतीलाल और जवाहर लाल थे. सक्सेना उनकी बात सुनकर मुस्कुराये. डॉ लोहिया बोले, यार लगता नहीं कि तुम इलाहाबाद के हो. गिरियक पहुंचकर डॉ लोहिया और उनके साथ हजारीबाग जा रहे नेताओं ने स्नान किया और वहां वे लगभग दो घंटा तक ठहरे. उसके बाद, 11 बजे हजारीबाग के लिए प्रस्थान किया. थोड़ी ही देर में वैन नवादा पहुंचने वाला था कि डॉ लोहिया की आवाज सुनायी पड़ी, खुद आगे बैठ कर हवा खा रहा है. देखिए, मजे से बैठा है और हम गरमी में मर रहे हैं. सक्सेना को अहसास हुआ कि वाकई गरमी है. डॉ लोहिया ने नवादा में पांच मिनट रु कने को कहा. सभी वहां रु के. उनके लिए ताड़ का पंखा खरीद कर दिया. यात्र के दौरान किसी को पता नहीं चला कि डॉ लोहिया वैन में सफर कर रहे हैं. नेताओं ने भी किसी से संपर्क करने की कोशिश नहीं की.
झुमरीतिलैया में डॉ लोहिया समेत अन्य लोगों को दोपहर का खाना मुहैया कराया जा सका. 1.30 बजे वैन नवादा से झुमरीतिलैया पहुंचा. सक्सेना ने वेज एंड ननवेज खाना गिरफ्तार नेताओं की इच्छा के अनुसार खिलाया. उन्हें चाय, नींबू-पानी और चीनिया बादाम भी िदये गये. जेल पहुंचने पर उन्होंने दो पेज सादा कागज मंगवाया. जेल अधीक्षक नूर साहब वहीं थे. उन्होंने एक आदमी को सादा कागज लाने को कहा. डॉ लोहिया ने एक पत्र लोकसभा अध्यक्ष को लिखा ओर एक पत्र सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को.
डॉ लोहिया को पहले दूसरे वार्ड में रखा गया था, लेकिन कपिलदेव सिंह के जेल में पहुंचने के बाद डॉ लोहिया को वार्ड नं. 6 में रखा गया. 1942 क्र ांति के नामी-गिरामी बंदी इसी वार्ड में रखे गये थे.
बाद में कर्पूरी ठाकुर, रामशरण सिंह, रामावतार शास्त्री सहित अन्य लोग जेल में पहुंचे. घायलों को जेल के हॉस्पिटल में रखा गया था, उनमें कर्पूरी ठाकुर भी थे. हजारीबाग जेल में लोहिया के बाद गिरफ्तार कर पहुंचने वाले इंद्रदीप सिन्हा लिखते हैं, ‘हजारीबाग जेल में हम और डॉ. राम मनोहर लोहिया 15 दिन साथ-साथ रहे. वह बहुत ही भले आदमी थे. हमलोगों को वीआइपी वार्ड में रखा गया था. हम करीब 15 लोग थे.
लोहिया जी से जब जेल सुपरिटेंडेंट ने पूछा कि आपको क्या चाहिए, तो वह बोले, हमारे लीडर सुनील मुखर्जी हैं. डॉ लोहिया को अपने लिए कुछ नहीं चाहिए था. वह साधारण कुर्ता-पायजामा और साधारण चप्पल पहनते थे. हमसे बहस करते थे और कहते थे तुम बिहार वाले अच्छे कम्युनिस्ट हो. दिल्ली में जो कम्युनिस्ट बैठते हैं, वे तो सिर्फ भाषण देते हैं. रात को डॉ लोहिया को पढ़ने की आदत थी. बिना पढ़े वह सोते नहीं थे. कपिलदेव सिंह को लोहिया जी ने बताया कि वे ‘काफ्का’ को पढ़ रहे हैं और यह भी बताया कि उन्हें तिहाड़ जेल ट्रांसफर किया जा रहा है. जेल में डॉ. लोहिया खूब बातचीत करते थे.
वे देश-दुनिया, सामने वाले व्यक्ति के घर-परिवार का हाल-चाल, जमीन-जायदाद आदि के बारे में भी पूछते थे. एक दिन उन्होंने पृथ्वी नाथ तिवारी से पूछा कि तुम अपनी पत्नी को पीटते तो नहीं हो? अगर शिकायत मिली तो पार्टी से निकाल दूंगा. पृथ्वी नाथ तिवारी तब नौजवान थे. डॉ साहब ने उनसे कहा कि एक घंटा देश को दो और 23 घंटा खुद के लिए रखो. तिवारी ने पूछा कि इसका क्या अर्थ है? तो लोहिया ने समझाया कि तुम्हारे गांव के पास अस्पताल है?
अगर है तो वहां जाओ, मरीजों की सेवा करो. तिवारी ने पूछा यह देश सेवा कैसे हुआ? डॉ साहब ने समझाया हर व्यक्ति देश की इकाई है और तुम मरीज की सेवा कर देश की सेवा करोंगे. डॉ लोहिया ने इंद्रदीप सिन्हा से कहा कि मैं तुमसे बात करना चाहता हूं. उन्होंने एक किताब लिखी थी ‘इकॉनामिक्स आफ्टर कार्ल मार्क्स’. वे बोले, अर्थशास्त्र के विद्यार्थी हो, तो तुमसे उस पर कुछ बात करना चाहता हूं. मैंने कहा, हां, कीजिए, तो एक दिन हमलोगों ने दो घंटे बहस की. जाहिर है किसी नतीजे पर तो पहुंच नहीं सकते थे. दूसरे दिन सिविल सर्जन उन्हें देखने आया, तो उनका ‘ब्लड प्रेशर’ बहुत बढ़ा पाया.
पता लगाया गया, क्यों बढ़ा, तो मालूम हुआ कि हमसे बहस हुई थी. उन सर्जन ने हमें कहा कि डॉक्टर लोहिया बीमार हैं, इनसे बहस मत कीजिए. दूसरे दिन से हमने बहस को ‘अवॉयड’ करना शुरू किया. बस यही बात करते थे कि डाक्टर साहब, चलिए फूलों की बात करें, यह राजनीति छोड़ दीजिए, तभी तो हमलोग जेल में हैं, काहे को इस पर बात करते हैं, हम टाल देते थे.
जेल में तो हम लोगों की जो िनत्य क्रिया थी, घूमना-फिरना.डॉ लोहिया हिन्दी में बातें करते थे. बीच-बीच में अंग्रेजी भी बोलते थे, वह तो जर्मनी से पीएचडी करके आये थे. वह विचारवान और पढ़े-लिखे विद्वान थे. उन्होंने शादी नहीं की थी.
वह अयोध्या के नजदीक अकबरपुर के रहने वाले थे, 15 दिन के बाद उनका जो ‘रिट पिटीशन’ सुप्रीम कोर्ट में फाइल था, उसकी तारीख पड़ी. तब वह दिल्ली चले गये और हमलोग वहीं हजारीबाग में रह गये. (लेखक जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं शोध संस्थान के निदेशक हैं.)

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