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राजेंद्र साहिल “तुम्हारे तो मजे हैं भैया! सरदार जी खुद तो कनाडा चले गये… मय परिवार…. और खेत-घर सब तुम्हें सौंप गये… इतनी बड़ी कोठी में मौज ले रहे हो…” रामफेर चमत्कृत था रामलोट के भाग्य पर… कैसे उसने सरदार जी का भरोसा पूरी तरह जीत रखा है. उधर बिहार के बमनपुरी गांव में कैसी […]

राजेंद्र साहिल
“तुम्हारे तो मजे हैं भैया! सरदार जी खुद तो कनाडा चले गये… मय परिवार…. और खेत-घर सब तुम्हें सौंप गये… इतनी बड़ी कोठी में मौज ले रहे हो…”
रामफेर चमत्कृत था रामलोट के भाग्य पर… कैसे उसने सरदार जी का भरोसा पूरी तरह जीत रखा है. उधर बिहार के बमनपुरी गांव में कैसी धूम है उसकी…. सारा गांव उसे एक बड़ा आदमी समझता है. बड़े सरदारों का कारिंदा खुद भी बड़ा ही हुआ ना…!
रामलोट के चाचा का लड़का है रामफेर… वह यही सोचकर यहां पंजाब उसके पास आया है कि अगर वह उसे कहीं कोई ठीक-ठाक सा काम दिलवा दे तो उसकी जिंदगी भी संवर जाये.
“ भैया… हमें भी ऐसा ही कोई काम-धाम दिलवा दो तो बड़ी मेहरबानी हो…”
रामलोट फोल्डिंग बेड पर चद्दर बिछाते हुए बोला- “तनिक धीरज रखो छोटे… हम एक ही दिन में यहां नहीं पहुंचे हैं… पहले इनकी गाय-भैंस का गोबर उठाये हैं… फिर ‘दोधी’ बने… फिर खेतों में काम किये… बहुत ही मेहनत किये हैं हम… ईमानदारी से… तब ही ना भरोसा जीते हैं सरदार जी का…”
तकिया सिरहाने और खेस पैंताने रखते हुए रामलोट थोड़ी देर रुका और फिर बोला- “सरदार जी के भाई-वाई तो पहिले ही बाहिर हैं… जब ये भी कनेडा गये तो सारे नौकर निकाल दिये… खेत-ऊत ठेके पर चढ़ा दिये… और हमसे कहे कि ऐ लोटे तुम कोठी में ही रहना… खेतों और बीबी-बापू का ख्याल रखना… और कभी जरूरत पड़े तो फून पे बतिया लेना… नंबर-ऊंबर दे के गये हैं… तब से यही सब चल रहा है… बापू तीन बरस पहिले गुजर गये… अब बीबी जी हैं…”
रामफेर ने रामलोट की ‘विजय-गाथा’ ध्यान से सुनी और मन ही मन भविष्य की योजनाएं बुनने लगा.
“ तुम यहीं बैठो… हम तनिक बीबी जी को दूध पिला आवें…” रामलोट की बात पर रामफेर ने धीरे-से सिर भर हिला दिया.
रामलोट ‘सर्वेंट क्वार्टर’ से बाहर निकला और लंबे चौड़े लॉन में से होकर कोठी के मुख्य दरवाजे की ओर बढ़ने लगा…
जब सब ने कनेडा में ही रहना है तो इतनी बड़ी कोठी बनाने का क्या फायदा! लॉन में से गुजरते हुए रामलोट अक्सर यह सोचा करता है…
कोठी का दरवाजा जरा-सा भिड़ा हुआ ही था… रामलोट ने धकिया कर खोला और सीधे किचन में चला गया. दूध गरम किया… फिर उसे पीने लायक करके… बीबीजी के कमरे की ओर चला. बीबीजी का कमरा ड्राइंग-रूम के दूसरे कोने पर था.
बीबीजी अभी सोयी नहीं थीं… सिर्फ लेटी हुई थीं. रामलोट ने उन्हें दूध दिया… सिरहाने के पास पड़ी तिपाई पर रखी दवा के पत्तों में से गोलियां निकाल कर बीबी जी की हथेली पर धरीं और कहा- “अब आप सो जाइये… सुबह आ जाऊंगा.”
बीबीजी ने कोई हां-हूं न की… जरा-सा उठ कर गोलियां मुंह में फेंकी… दो-तीन घूंट दूध पिया और लेट गयीं. यह रामलोट का रोज का काम है. इस वक्त बीबीजी के पास उसका यह आखिरी चक्कर होता है. सुबह पानी गरम करने के बाद नाश्ता… दुपहिर का भोजन… संझा की चाय… रात का खाना… और फिर इसी समय दूध…. काम की गिनती बड़ी है, पर बीबीजी बहुत ही कम खाती हैं… बाकी का सारा उसे खुद ही खाना पड़ता है.
भले रामलोट अपने आश्रयदाताओं की मां की खूब मन लगा कर सेवा करता है़… पर सगे बेटों की जगह तो नहीं ले सकता ना… इसीलिए बीबीजी ज्यादातर चुपचाप रहती है़ं… खोई-खोई-सी… रामलोट जानता है कि उन्हें अपने कनेडा जा बसने वाले बेटों से बेहद नाराजगी है़ महीने-पंद्रह दिनों में फून भी आता है पर बीबी जी कोई खास बात नहीं करतीं… जरा-सा हां-हूं करके रख देती हैं. बीबीजी सारा दिन सोचों में डूबी रहती हैं और रामलोट अपने काम में लगा रहता है़
हमेशा की तरह रामलोट ने अपना काम खत्म किया और ‘सर्वेंट क्वार्टर’ में लौट आया़
रामफेर फोल्डिंग बेड पर अधलेटा-सा पड़ा था़ रामलोट को लौटा देख… उठ कर बैठ गया़
“अरे…अरे… लेटे रहो… हम भी अब लेटते हैं…”
रामलोट की बात सुन कर रामफेर फिर अधलेटा हो गया़ रामलोट भी अपने फोल्डिंग पर पसर गया़ “ये सरदार जी तो बहुत पैसा कमाते होंगे विदेश में”, रामफेर कोठी की विशालता और भव्यता से प्रभावित था़
“पैसा है… तभी ना इतनी बड़ी कोठी बनाये हैं… दो करोड़ खर्चा हुआ है… इनके भाई-वाई तो कई सालों से कनेडा में हैं… पांच-छह साल हुए सरकार जी भी चले गये… वहां भी इनके अपने कई मकान हैं…”
रामलोट ने अपनी उपलब्ध जानकारी के आधार पर बताया और करवट बदल कर मुंह रामफेर की ओर कर लिया़
“ वे बीबीजी को कनाडा में अपने पास क्यों नहीं रखते?” रामफेर को बीबीजी का धनी पुत्रों से अलग इस तरह इस हालत में रहना कुछ जंच नहीं रहा था़
“ पहले बीबी-बापू दोनों वहीं रहने गये थे… पर तीन-चार महीनों में लौट आये… सुना है वहां खर्चा बहुत है… घर का हर आदमी काम करे तभी पूरा पड़ता है… सभी काम पर चले जाते थे… पीछे संभालने वाला कोई था नहीं… सो सरदार जी उन्हें वापस छोड़ गये और जिम्मेदारी हमें दे गये…”
रामलोट थोड़ी देर रुका और फिर बोला- “ महीने-दो महीने में फून-ऊन कर लेते हैं… आये हुए तो तीन साल हो गये… बापू के गुजरे ही वे आये थे.” इतना कहते-कहते रामलोट जैसे किसी गहरी सोच में डूब गया़ “ बीबीजी का अकेले में मन नहीं लगता होगा…?”
रामफेर की बात ने दोनों को अपनी-अपनी मां का चेहरा याद करा दिया, जिन्हें वे पीछे गांव में छोड़ कर आये हैं. “ जब तक बापू थे, तब तक सब ठीक था… पर उनके गुजरने के बाद तो बीबीजी ने बोलना ही छोड़ दिया है…” रामलोट बीबीजी की हालत समझता है, पर वह कर भी क्या सकता है? वह अक्सर सोचता है कि क्या यह रोजी कमाने की मजबूरी है या आदमी का बेदर्दीपन, जो उससे अपने मां-बाप की परवाह करनी तक छुड़वा देता है़
रामलोट और रामफेर में देर तक उस परिवार और इधर-उधर की बातें होती रहीं. थके होने के कारण रामफेर को पहले नींद आयी़ उसे सोया देख रामलोट भी सो गया़
सुबह रामफेर की अचानक नींद खुली. रामलोट उसे झिंझोड़ कर जगा रहा था- “ जल्दी उठो… अरे गजब हो गया… रात को बीबी जी सुरगवास कर गयी.”
रामफेर झटके से उठ खड़ा हुआ- “अरे! यह कैसे हो गया?”
“ पता नहीं. रात को तो ठीक छोड़ कर आये थे… सुबह जाकर देखा तो… दौड़ के डॉक्टर साहेब को लेकर आये… तो वे बोले गुजर गयीं हैं.” रामलोट चिंता में डूबा-सा बोल रहा था़
अब क्या करें? रामफेर को लगा जैसे बैठे-बिठाये एक झंझट आ खड़ा हुआ हो.“कोई बात नहीं. चिंता ना करो. सरदार जी कह गये थे कि अगर कुछ हो-हवा जाये तो… फ्रीजर में रखवा देना… और फून कर देना. ” रामलोट थोड़ा आश्वस्त हो चला था. “ बापूजी के समय भी ऐसा ही हुआ था. हम उन्हें फ्रीजर में रखवा दिये थे. सरदार जी तीन-चार दिन बाद आये थे. फिर सारे रिश्ते-नातेदार इकट्ठा किये. संस्कार के दो ही दिन बाद भोग डाल दिये थे़ फिर दो-तीन दिन में कचहरी में जाकर दे-दवा जमीनें अपने नाम करायीं… और हफ्तेभर में वापिस कनेडा.” रामलोट ने अपने पूर्व-अनुभव के आधार पर निर्णय लिया, “ अब बीबी जी को फ्रीजर में रखवाना होगा.”
“ यह फ्रीज… क्रीज… क्या…?” रामफेर फ्रीजर ठीक से नहीं बोल पाया़
“ अब क्या बतावें. यहां पंजाब में गांव-गांव में फ्रीजर लगे हुए हैं. सारे लोग तो बाहिर कनेडा-अमरीका में हैं… बूढ़े-बुजुर्ग पीछे हैं… जब कोई गुजर जाये तो उसे फ्रीजर में रखवा देते हैं. सबके बाहिर से आने में तीन-चार दिन तो लग ही जाते हैं. दस हजार रोज का किराया है फ्रीजर का. पर सगे-संबंधी आखिरी दर्शन पा जाते हैं. तुम जरा कोठी का ध्यान रखो. हम अभी आये.”
यह कह कर रामलोट फ्रीजर बुक करवाने और सरदार जी को फोन करने के लिए निकल पड़ा.

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