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भारत में सफाई करती ब्रिटेन की ‘गारबेज गर्ल’

हमारे देश में कूड़ा-कचरा हर जगह देखने को मिल जाता है. शायद हमें इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता, लेकिन आठ वर्ष पहले भारत घूमने आयीं ब्रिटेन की जोडी अंडरहिल को इस गंदगी ने इतना विचलित कर दिया कि उन्होंने इस कूड़े के खिलाफ जंग छेड़ दिया़ अपनी टीम के साथ मिल कर जोडी देहरादून […]

हमारे देश में कूड़ा-कचरा हर जगह देखने को मिल जाता है. शायद हमें इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता, लेकिन आठ वर्ष पहले भारत घूमने आयीं ब्रिटेन की जोडी अंडरहिल को इस गंदगी ने इतना विचलित कर दिया कि उन्होंने इस कूड़े के खिलाफ जंग छेड़ दिया़ अपनी टीम के साथ मिल कर जोडी देहरादून और धर्मशाला में कूड़ा हटाने और लोगों को जागरूक करने का काम करती हैं. आइए जानें इस ‘गारबेज गर्ल’के बारे में-

जो डी अंडरहिल, एक ब्रिटिश नागरिक हैं. वर्ष 2008 में वह भारत की यात्रा पर आयीं. तब उनकी उम्र 32 वर्ष थी़ अन्य विदेशियों की तरह उन्होंने भी ‘अतुल्य भारत’ की सभ्यता-संस्कृति और दर्शनीय स्थलों के बारे में काफी कुछ सुन रखा था, जिसकी जिज्ञासा उन्हें ब्रिटेन से भारत खींच लायी़ यहां आकर उन्होंने मुंबई, गोवा, केरल, कर्नाटक और कन्याकुमारी सहित देश के कई हिस्सों की सैर की़ इन जगहों की खूबसूरती को निहार कर और इतिहास को जान कर जोडी काफी प्रभावित हुईं, लेकिन साथ ही इन पर्यटन स्थलों पर फैली गंदगी से निराश भी हुईं.

वह कहती हैं, देश के जिस भी हिस्से में मैं गयी, सबकी अलग-अलग खासियतें थीं, लेकिन उन सबके बीच एक समानता थी- वहां फैली गंदगी़ कहीं कम तो कहीं ज्यादा़ चाहे वह कोई धार्मिक स्थल हो या पर्यटन स्थल, सबकी वही कहानी नजर आयी़

मेरी यात्रा का आखिरी पड़ाव धर्मशाला था़ वहां भी मैंने कूड़े और प्लास्टिक के कचरे का अंबार देखा़ मुझे बड़ा दुख हुआ़ तब मैंने सोचा कि इस स्थिति को कोसने से अच्छा है कि इससे निबटने की खुद कोशिश की जाये़ बताते चलें कि जोडी के पिता ब्रिटेन में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाते हैं और खुद जोडी ने भी अपने करियर में तरह-तरह के काम किये हैं. इसमें चैरिटीज के लिए फंड-रेजिंग से लेकर रिसेप्शनिस्ट, पर्सनल असिस्टेंट और लीगल एडिटर तक के काम शामिल हैं.

बहरहाल, जोडी ने यहीं रह जाने का मन बना लिया और गंदगी से भरे इलाकों में अपने स्तर पर साफ-सफाई के साथ-साथ लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का भी काम करना शुरू किया. बीतते समय के साथ-साथ जोडी ने ‘द माउंटेन क्लीनर्स’ और ‘वेस्ट वॉरियर्स’ नाम से गैर-सरकारी संगठनों की शुरुआत की़ ताकि इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ा जा सके़ गंदगी भरे इलाकों में हाथ में झाड़ू लिये और दस्ताने पहने साफ-सफाई करते उन्हें देखा जा सकता है.

धर्मशाला और देहरादून में यही उनकी पहचान बन चुकी है और इसीलिए लोग उन्हें ‘गार्बेज गर्ल’ के नाम से भी पुकारते हैं.

जोडी कहती हैं, भारत में सामाजिक स्थानों पर पड़े कचरे का अंबार देख कर मेरा दिल टूटता है. खासकर प्लास्टिक को लेकर जागरूकता का अभाव. मैं इसे बिलकुल देख नहीं सकती. इसलिए पहले मैंने अकेले ही कचरा उठाना शुरू किया, बाद में मुझ जैसे कई लोग इस अभियान में साथ जुड़ गये. जोडी की संस्था के सदस्य धार्मिक स्थानों के बाहर बिखरा हुआ कचरा उठाने का भी काम करते हैं. उनके हाथ में बड़े थैले होते हैं और उनमें वे उस कचरे को उठाकर डालते हैं जो भक्तगण यहां-वहां फेंक देते हैं. पान की पीक, गंदे नालों का कूड़ा… किसी भी तरह की साफ-सफाई में जोडी को कोई शर्म महसूस नहीं होती. वे भारत में रह कर यही काम करते रहना चाहती हैं और फिलहाल उनकी प्राथमिकता उत्तराखंड है.

तीन वर्ष पहले उत्तराखंड में आयी भीषण तबाही के बाद जब हमारी सेना बचाव और राहत कार्यों में जुटी हुई थी और स्थानीय लोग देहरादून में अपनों का इंतजार कर रहे लोगों की सेवा में व्यस्त थे, इस बीच खाना-पानी और जरूरी सामानों से शिविरों में कूड़े का अंबार लग गया. यह अपने आप में एक बड़ी समस्या हो गयी थी. ऐसे में जोडी और उनके ‘वेस्ट वॉरियर्स’, गंदगी की बिना परवाह किये बिना कूड़ा-कचरा हटाने में जुटे रहे. उस घटना को याद करते हुए जोडी कहती हैं, मैं यहां हर जगह गंदगी देख कर सन्न रह गयी थी़ बड़ी मात्रा में मानव-जनित कचरा पड़ा था. स्थानीय नागरिकों और अधिकारियों की पहली प्राथमिकता, वहां फंसे लोगों को बचाना रहा, लेकिन मेरा ध्यान यहां जमा हुए कचरे पर था.

जोडी कहती हैं कि उन्हें यह काम करने में कोई शर्म महसूस नहीं होती. वह आगे कहती हैं, अगर आप ईश्वर से प्रेम करते हैं, तो आपको इसका प्रदर्शन करने के लिए तीर्थ यात्रा पर जाने की जरूरत नहीं रह जाती. चढ़ावा चढ़ाने से कहीं ज्यादा अच्छा अपने से कमजोर के प्रति कुछ दया दिखाना है.

आप ईश्वर का अनुग्रह नहीं खरीद सकते, लेकिन आप उनकी बनायी धरती का सम्मान कर उन्हें खुश जरूर कर सकते हैं. वह कहती हैं, हमने इस काम की शुरुआत उत्तराखंड से की है, लेकिन हमें और आगे जाना है. इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा. अभी तो शुरुआत है. बहुत काम करना बाकी है.

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