19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गैर जिम्मेवार पाक से ऐसे निबटे भारत

क्या है रास्ता उड़ी हमले के बाद इसका प्रभाव यह हो सकता है कि भारत पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए राजनयिक और आर्थिक विकल्पों के न्यायिक इस्तेमाल पर जोर दे. इस तरह का कदम दीर्घावधि में राष्ट्रीय विकास के सकारात्मक विकास के संदर्भ में बड़े पैमाने पर योगदान देगा. पढ़िए दूसरी कड़ी उड़ी हमले […]

क्या है रास्ता

उड़ी हमले के बाद इसका प्रभाव यह हो सकता है कि भारत पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए राजनयिक और आर्थिक विकल्पों के न्यायिक इस्तेमाल पर जोर दे. इस तरह का कदम दीर्घावधि में राष्ट्रीय विकास के सकारात्मक विकास के संदर्भ में बड़े पैमाने पर योगदान देगा. पढ़िए दूसरी कड़ी

उड़ी हमले कुछ घंटे पहले ही ‘डॉन’ अखबार में छपे एक आलेख में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी राजदूत रह चुके मुनीर अकरम ने वाशिंगटन में पाकिस्तान के ऊपर पड़ रहे दबावों के बारे में लिखा था.

उन्होंने लिखा था कि ‘उम्मीद है कि अागामी अमेरिकी प्रशासन अफगानिस्तान में पाकिस्तान की अराजकता, आतंकवाद रोधी कार्रवाई, हथियारों का प्रसार रोकने में सहयोग और भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते खतरे आदि मसलों के निहितार्थ सावधानी से समीक्षा करेगा और इस निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि पाकिस्तान के साथ संबंधों के लिए दादागिरी विकल्प नहीं हो सकता है.’ उनका यह कथन निश्चित तौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों की पाठ्यपुस्तकों में एक उदाहरण के तौर पर शामिल किया जायेगा कि एक शरारती देश कैसे गुमराह करता है.

उड़ी हमले को अंजाम देकर पाकिस्तान ने हमें चुनौती दी है. इस समय हमें यह देखना है कि इस हमले को किस तरह अंजाम दिया गया. हमले का मंसूबा भारत या विदेशों में होनेवाले अन्य युद्धों की तरह ही था, जिसमें दो राष्ट्र सोच-विचार कर अनेक छोटे-मोटे आतंकी हमले से बड़े हमले की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं. आम भारतीयों में उपजे गुस्से की वजह से अब पाकिस्तान को दंड देने के लिए भारतीय राजनेताओं पर दबाव आ गया है. इस समय समझदारी बरतने की जरूरत है.

जम्मू-कश्मीर लंबे समय से कर्फ्यू के साये में है और पाकिस्तान इस मसले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठा रहा है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस समय न्यूयॉर्क में हैं और वह संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे, जहां पूरे विश्व के नेता उपस्थित होंगे. खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए महासभा में उड़ी हमले को लेकर पाकिस्तान यह दोषारोपण कर सकता है कि यह कृत्य अराजक तत्वों द्वारा किया गया है और उसका इन तत्वों पर कोई नियंत्रण नहीं है. इसके प्रत्युत्तर में यदि भारत कार्रवाई करता है, तो यह एक देश द्वारा दूसरे देश पर कार्रवाई माना जायेगा. अब तो राजनयिक स्तर पर भी इस मामले को लेकर गरमाहट बढ़ गयी है.

भारतीय खुफिया एजेंसियां भी उड़ी हमले को लेकर आतंकियों के तार पाकिस्तान से जोड़ने के लिए साक्ष्यों को इकट्ठा कर रही हैं. सैन्य बल इसके लिए सरकार को उपलब्ध विकल्प मुहैया करायेंगे. यह निश्चित है कि भारत की ओर से किसी भी तरह की बड़ी सैन्य कार्रवाई पर पाकिस्तान प्रतिक्रिया देगा. नतीजा, युद्ध की नौबत आ सकती है. लेकिन, इससे पहले कि भारत इस अंतिम फैसले पर पहुंचे, उसके पास युद्ध से इतर विकल्प भी मौजूद हैं, जिस पर गौर करना होगा.

ऐसा करने के लिए भारत को एक जिम्मेदार राष्ट्र के तौर पर खुद को पेश करना होगा और इस तरह के राजनयिक कदम उठाने होंगे, जिससे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अलग-थलग पड़ जाय.

अभी संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) सम्मेलन चल रहा है, हो सकता है कि पाकिस्तान को शर्मिंदगी उठानी पड़े. हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि इससे पाकिस्तान को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन यह सत्य नहीं है, क्योंकि कोई भी देश यह नहीं चाहेगा कि वह राजनयिक स्तर पर दूसरे देशों के लिए चर्चा का विषय बने.

सार्क देश पाकिस्तान को किनारे कर ही रहे हैं और अफगानिस्तान के साथ भी इसके संबंध बेहद खराब हो चुके हैं और वह पाकिस्तान को अपना दुश्मन मानने लगा है. उधर, यूएस ने भी पाक को और एफ-16 के लिए अनुदान देने से मना कर दिया है. ऐसे में मुनीर अकरम जैसों के वक्तव्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए खतरे की घंटी है.

आर्थिक रूप से भारत आगे बढ़ रहा है. कई चुनौतियां हैं, जिससे अभी निबटना है. किसी भी सरकार की प्राथमिक जरूरत बिना किसी बाधा के आर्थिक उतार-चढ़ाव को बनाये रखना है.

ऐसे में द्विपक्षीय अर्थ व व्यापार बाधाएं पाकिस्तान पर दबाव डालने का काम कर सकती हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच जिस तरह से फासला बढ़ रहा है, उससे उसे दीर्घकालिक जवाब मिलेगा, जो यह साबित कर देगा कि वर्तमान में पाकिस्तान जो कृत्य कर रहा है, उसका उसे कोई सार्थक परिणाम प्राप्त होनेवाला नहीं है.

एक परिपक्व देश के तौर पर भारत कभी भी युद्ध में उतरना नहीं चाहेगा. वह भी जब सब कुछ आर्थिक और राजनयिक तौर पर हो रहा हो. यहां एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या मुनीर अकरम का आलेख पाकिस्तान द्वारा खेले गये बड़े खेल का हिस्सा था? वह धमकी देते हैं कि अगर पाकिस्तान पर दबाव डाला गया और उस पर बल प्रयोग किया गया, तो भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध होगा और इसके लिए पाकिस्तान सभी तरीकों को अपनायेगा. डॉन का उनका आलेख, स्पष्ट तौर पर परमाणु अप्रसार पर साथ देेने से पीछे हटने (एक्यू खान की तरह) की धमकी देना और आतंकवाद रोधी कार्रवाई में सहयोग नहीं देना है.

इसका मतलब यह भी निकलता है कि पाकिस्तान अफगानी तालिबानियों को सहायता देता रहेगा और अफगानिस्तान में यूएस सैन्य बलों के लिए परेशानी खड़ा करता रहेगा. क्या पाकिस्तान से इस धोखे के लिए बात की जानी चाहिए? यह वह प्रश्न है जिसे पाकिस्तान ने हमेशा ही भारतीय राजनेताओं के सामने रखा है. रणनीतिक रूप से भारत ने संयम बनाये रखा है; उड़ी हमले के बाद इसका प्रभाव यह हो सकता है कि भारत पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए राजनयिक और आर्थिक विकल्पों के न्यायिक इस्तेमाल पर जोर दे. इस तरह का कदम दीर्घावधि में राष्ट्रीय विकास के सकारात्मक विकास के संदर्भ में बड़े पैमाने पर योगदान देगा.

(साभार: टाइम्स ऑफ़ इंडिया ऑफ इंडिया )

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें