25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भारतीय सेना में है पूरा दम

पहले पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने उड़ी पर हमला किया और उसके बाद भारत की ओर से जवाबी कार्रवाई की गयी. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी बढ़ गयी है. कहना गलत न होगा कि हालात ऐसे हो गये हैं कि दोनों देशों के बीच कभी भी युद्ध छिड़ सकता है. ऐसे में यह […]

पहले पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने उड़ी पर हमला किया और उसके बाद भारत की ओर से जवाबी कार्रवाई की गयी. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तल्खी बढ़ गयी है. कहना गलत न होगा कि हालात ऐसे हो गये हैं कि दोनों देशों के बीच कभी भी युद्ध छिड़ सकता है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि हमारी तैयारियां किस स्तर की हैं और युद्ध के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमारी सेना कहां खड़ी है.

हमारा भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है. ऐसे में सुरक्षा की जिम्मेवारी भी उतनी ही बड़ी है. हम अपनी ताकत के बलबूते बीते कुछ दशकों में दुनिया के नक्शे पर एक शक्तिशाली देश के तौर पर उभर कर सामने आये हैं. देश की सेना में 30 रेजिमेंट और 63 सशस्त्र रेजिमेंट्स हैं, जो सात ऑपरेशनल कमांड्स और तीन प्रकार की सेनाओं में 37 डिवीजंस में फैली है. भारतीय सेना की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके पास 2414 टी-72 युद्धक टैंक, 807 टी-90 टैंक, 248 अर्जुन एमके-2 टैंक हैं. इसके अलावा 550 टी-55 टैंक भी हैं. 807 पिनाका और 150 से ज्यादा बीएम-21 बहुउपयोगी रॉकेट लांचर्स हैं. एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल्स में भारत के पास 443 नाग, 30000 मिलन, 4100 मिलन 2टी और 15000 9एम113 कोंक्रूज मिसाइल्स हैं. यही नहीं, कोरेंट, फगोट, शत्रुम, अताका-वी, मल्युक्त और फालंका जैसी हजारों एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल्स हैं.

पृथ्वी, सूर्या, अग्नि ब्रह्मोस जैसी बैलेस्टिक मिसाइल्स की पूरी रेंज है.

13,25000 सक्रिय जवानों और 21,43,000 रिजर्व सैनिकों के साथ भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी फौजी ताकत भी रखता है. इनमें सेना के अलावा एक बड़ी आर्म्ड-ब्रिगेड और मैकेनाइज्ड इंफेंट्री शामिल है. इस ब्रिगेड की ताकत बढ़ाते हैं मेन बैटल टैंक अर्जुन और भीष्म. एक किले की तरह सुरक्षा प्रदान करनेवाले टी-90 भीष्म टैंक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस टैंक के ऊपर किसी भी प्रकार के बायोलॉजिकल या फिर रेडियोएक्टिव हमले का असर नहीं होगा. 48 टन वजनवाले इस टैंक पर 12.7 एमएम की मशीनगन भी लगी हुई है, जिसे टैंक के भीतर बैठा हुआ कमांडर जैसे भी चाहे, मैन्युअली या रिमोटली प्रयोग में ला सकता है.

इसके अलावा, भारतीय सेना को ताकत देनेवाले अन्य हथियारों और उपकरणों की बात करें, तो इनमें पहला नाम आता है एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (अवाक्स) का. यह एक एयरक्राफ्ट बेस राडार सिग्नल प्रणाली है. इसी कारण से अवाक्स 360 डिग्री सुरक्षा कवरेज देता है. इस सुविधा के होने पर हवा में कम या फिर ज्यादा ऊंचाई पर उड़नेवाले लड़ाकू विमानों, मिसाइल, जमीनी युद्ध और पानी में तैरते हुए जहाजों या फिर पनडुब्बी पर भी इसके जरिये नजर रखी जा सकती है. अवाक्स सिस्टम के द्वारा सीधे वार रूम को सिग्नल भेजे जा सकते हैं, जिसके बाद कोई भी देश युद्ध में निर्णायक भूमिका अदा कर सकता है. यह नयी तकनीक है और दुनियाभर में केवल यूएस, स्वीडन, इजरायल और भारत के पास ही यह तकनीक उपलब्ध है. फिलहाल भारत के पास ऐसे चार विमान हैं, जिनके ऊपर अवाक्स लगा हुआ है. हालांकि भविष्य में भारत के काफी विमानों पर इसे लगाने की योजना है.

अगला नाम है पिनाका रॉकेट का. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय सेना द्वारा संयुक्त रूप से विकसित इस मल्टी-बैरल रॉकेट लांचर को वेपन एरिया सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है. पिनाका मार्क-2 रॉकेट के अत्याधुनिक संस्करण की मारक क्षमता 40-60 किलो मीटर के बीच है. इस रॉकेट सिस्टम की सबसे बड़ी खास बात यह है कि पिनाका 44 सेकंड में 12 रॉकेट दाग सकता है. इस कड़ी में अगला नाम आता है बीएमडी प्रोग्राम मिसाइल का. इस भारतीय बीएमडी प्रोग्राम को उस समय चर्चा मिली जब पहली बार इसे लेकर घोषणा की गयी. एक शॉर्ट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल पर इसका सफल परीक्षण किया गया है. डीआरडीओ द्वारा इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आइजीएमडीपी) के तहत विकसित किया गया नाग (हेलिना) मिसाइल हेलीकॉप्टर-प्रक्षेपित मिसाइल है. आठ जुलाई, 2013 को पोखरण में गर्म रेगिस्तान स्थितियों में टैंक भेदी मिसाइल के परीक्षण किये गये थे.

अब बात करें पी81 विमान की तो, यह पी-8ए पोसिडोन विमान का रूप है, जिसे अमेरिकी नौसेना के पुराने पी-3 जहाज के स्थान पर विकसित किया गया था. भारतीय नौसेना पी-8 विमान के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता बन गया है. अब तक आठ विमानों को भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया है. पी-81 विमान में लंबी दूरी की पनडुब्बी रोधक रक्षा उपकरण, सतह से हमले को रोकने के रक्षा उपकरण, खुफिया, निगरानी के लिए उपकरण लगे हुए हैं. अगला नाम है सुखोई 30एमके आइ का. यह विमान भारतीय वायुसेना के सबसे अग्रिम मोरचे के लड़ाकू विमान है. इस विमान को भारत ने रूस के सहयोग से बनाया है.

यह एक मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट है. भारत और रूस के संयुक्त तत्वावधान में बने सुखोई एमकेआइ-30 विमानों को दुनिया के सबसे बेहतरीन फाइटर जेट्स में गिना जाता है. यह विमान 3000 किमी की दूरी तक जा कर हमला कर सकता है. इस विमान में 30 मिमी की तोप भी लगी हुई है. इस विमान में दो बेहतरीन जेट इंजन लगे हुए हैं. साथ ही, इस फाइटर जेट में एयररिफ्यूलिंग की व्यवस्था भी की गयी है, जो इसे और भी घातक बनाती है.

नौसेना की प्रमुख ताकत विक्रमादित्य की बात करें, तो 44,500 टन वजनी इस विमान वाहक पोत को 2013 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था. 44,500 टन क्षमता वाले इस युद्धपोत की लंबाई 283.1 मीटर और ऊंचाई 60.0 मीटर है. इस पर डेकों की संख्या 22 है. कुल मिलाकर इसका क्षेत्र तीन फुटबॉल मैदानों के बराबर है. इस पोत में कुल 22 तल और 1,600 लोगों को ले जाने की क्षमता है. यह 32 समुद्री मील (59 किमी/घंटा) की रफ्तार से गश्त करता है और 100 दिन तक लगातार समुद्र में रह सकता है. यह 24 मिग -29के/केयूबी ले जाने में सक्षम है. इस पोत का नाम ऐडमिरल गोर्शकोव था, जिसका नाम बाद में बदल कर विक्रमादित्य कर दिया गया. विक्रमादित्य में विमानपट्टी भी है. अगला नाम है आइएनएस चक्र-2 का. यह परमाणु क्षमता युक्त रूस निर्मित पनडुब्बी नौसेना का बड़ा हथियार है. मूल रूप से ‘के-152 नेरपा’ नाम से निर्मित अकुला-2 श्रेणी की इस पनडुब्बी को रूस से एक अरब डॉलर के सौदे पर 10 साल के लिए लिया गया है.

नौसेना में शामिल करने से पहले इसका नाम बदल कर आइएनएस चक्र-2 कर दिया गया. यह पनडुब्बी 600 मीटर तक पानी के अंदर रह सकती है. यह तीन महीने लगातार समुद्र के भीतर रह सकती है. नेरपा पनडुब्बी की अधिकतम गति 30 समुद्री मील है और यह आठ टॉरपीडो से लैस है.

अगला नाम आता है इंडियन नेवी के स्पेशल मरीन कमांडो ‘मार्कोस’ का. इन्हें आम नजरों से बचा कर रखा गया है. मार्कोस को जल, थल और हवा में लड़ने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जाती है. समुद्री मिशन को अंजाम देने के लिए इन्हें महारत हासिल है. हाल ही में उन्हें अमेरिकी मरीन जैसे ड्रेस में देखा गया है. अधिकारियों का कहना है कि अभी फाइनल ड्रेस को लेकर एक्सपेरिमेंट चल रहा है. 26/11 हमले में आतंकवादियों से निबटने में इनकी खास भूमिका थी. इसके बाद बारी आती है एयरफोर्स की गरुड़ कमांडो फोर्स की.

इसकी स्थापना भारतीय वायु सेना ने 2004 में अपने एयर बेस की सुरक्षा के लिए की. लेकिन, गरुण को युद्ध के दौरान दुश्मन की सीमा के पीछे काम करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. इस सूची में सीआरपीएफ की कमांडो फोर्स कोबरा का नाम नहीं लेने पर यह अधूरी रह जायेगी. कोबरा कमांडो बटालियन फॉर रिज्योल्यूट एक्शन, नक्सल समस्या से लड़ने के लिए बनायी गयी है. यह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पैरामिलिट्री फोर्सेस में से एक है, जिन्हें विशेष गोरिल्ला ट्रेनिंग दी जाती है.

खास ऑपरेशन के लिए कमांडो फोर्सेज

सैनिक शक्ति से इतर हमारे देश के पास कुछ कमांडो फोर्सेज भी हैं जो कुछ खास ऑपरेशन के लिए उपयोग की जाती हैं या जिन्हें किसी विशेष कार्य के लिए लगाया जाता है. इनमें शामिल हैं सेना के एलीट पैराकमांडोज, जो कुछ हजार स्पेशल ट्रेन्ड कमांडोज होते हैं. ये कमांडोज पैराशूट रेजिमेंट का हिस्सा हैं. इसमें स्पेशल फोर्सेस की सात बटालियंस शामिल हैं. इनकी इजराइली टेओर असॉल्ट राइफल इन्हें पैरामिलिट्री फोर्स से अलग बनाती है.

दूसरा नंबर आता है, नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स, यानी एनएसजी का. यह देश के सबसे अहम कमांडो फोर्स में एक है, जो गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करते हैं. आतंकवादियों की ओर से आंतरिक सुरक्षा के मोरचे पर लड़ने के लिए इन्हें विशेष तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. बम निरोधक और एंटी हाइजैकिंग ऑपरेशंस के लिए इन्हें खासतौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इनकी फुर्ती और तेजी की वजह से इन्हें ‘ब्लैक कैट’ भी कहा जाता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें