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इस वर्ष तीसरी तिमाही के दौरान स्टार्टअप्स में कम हुआ निवेश

इन्वेस्टमेंट ट्रेंड केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों से देशभर में स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके अलावा अनेक उद्यमी अपने-अपने स्तरों पर स्टार्टअप्स को विस्तार देने के लिए विविध स्रोतों से निवेश हासिल कर रहे हैं. हालांकि, स्टार्टअप्स द्वारा मुहैया करायी जानेवाले सेवाओं और प्रोडक्ट की ओर लोगों के रुझान में भी […]

इन्वेस्टमेंट ट्रेंड
केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों से देशभर में स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके अलावा अनेक उद्यमी अपने-अपने स्तरों पर स्टार्टअप्स को विस्तार देने के लिए विविध स्रोतों से निवेश हासिल कर रहे हैं.
हालांकि, स्टार्टअप्स द्वारा मुहैया करायी जानेवाले सेवाओं और प्रोडक्ट की ओर लोगों के रुझान में भी दिनों-दिन वृद्धि होती दिख रही है. लेकिन, ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि स्टार्टअप्स को हासिल होनेवाले निवेश में इस वर्ष की तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर, 2016) में कुछ कमी आयी है. इस दौरान विलय और अधिग्रहण के मामलों में वृद्धि हुई है, जो बाजार के परिपक्व होने का संकेत है, लेकिन निवेश के लिए की जानेवाली डील्स की संख्या और रकम में कमी आयी है. जानते हैं तीसरी तिमाही में भारतीय स्टार्टअप की गतिविधियों से संबंधित रिपोर्ट की खास बातों को..
सावधानी बरत रहे हैं निवेशक
इस वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही की तरह तीसरी (जुलाई- सितंबर, 2016) तिमाही के दौरान भी निवेशकों का नजरिया बेहद सावधानी भरा देखा गया और उन्होंने फूंक-फूंक कर निवेश किया है.
1.5 अरब डॉलर का निवेश हुआ था पहली तिमाही के दौरान इस वर्ष भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में.
1.7 अरब डॉलर निवेश हासिल करने में सक्षम रहे इस वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान भारतीय स्टार्टअप.
1.363 अरब डॉलर का निवेश ही हासिल कर पाये हैं इस वर्ष तीसरी तिमाही के दौरान भारतीय स्टार्टअप यानी इसमें कुछ कमी
आयी है.
विलय और अधिग्रहण में तेजी का रुख
तीसरी तिमाही के दौरान भारतीय बाजार में विलय और अधिग्रहण की संख्या में तेजी आयी है, जिसके आंकड़े इस प्रकार हैं :
40 डील्स हुए पहली तिमाही में विलय और अधिग्रहण से संबंधित.
48 मसले सामने आये विलय और अधिग्रहण के दूसरी तिमाही के दौरान भारतीय स्टार्टअप सिस्टम के तहत.
65 विलय और अधिग्रहण के डील्स किये गये तीसरे तिमाही के दौरान.
आरंभिक चरण के डील्स में आयी कमी
21 फीसदी कमी आयी है आरंभिक चरण के दौरान होनेवाली डील्स में दूसरी तिमाही के मुकाबले तीसरी तिमाही के दौरान.
50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है हालिया बीती तिमाही के दौरान ‘लेट-स्टेज’ में होनेवाली डील्स में यानी निवेशक अब स्टार्टअप के केवल बिजनेस प्लान व आइडिया पर नहीं, बल्कि उसके प्रदर्शन को देखने के बाद ही इन्वेस्ट करने पर जोर दे रहे हैं.
स्टार्टअप की सफलता के लिए जरूरी है बेहतर प्लानिंग
दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं- एक वे जो किसी संगठन के साथ जुड़ कर काम करना चाहते हैं और दूसरे वे जो अपने आइडिया को हकीकत में तब्दील करते हुए खुद अपना संगठन शुरू करते हैं. इसमें दूसरे प्रकार के लोग अपना स्टार्टअप शुरू करते हैं. ये ऐसे उद्यमी होते हैं, जो चीजों को अपने अनुरूप ढालते हैं. वे किसी मौके का इंतजार नहीं करते, बल्कि अपने लिए मौके तैयार करते हैं. ऐसे उद्यमी दूसरों के लिए नजीर पेश करते हुए अपने जीवन की नयी शुरुआत करते हैं. यदि आप भी उद्यमिता की ओर अग्रसर हैं, तो इन तथ्यों को जरूर अमल में लाएं :
– समुचित नियोजन : एक पुरानी कहावत है, यदि आप नियोजन में असफल रहे हैं, तो आपकी योजना कामयाब नहीं होगी. स्टार्टअप की कामयाबी के लिए आइडिया का समुचित नियाेजन जरूरी है. ज्यादातर उद्यमी बिना नियोजन के नया स्टार्टअप शुरू करते हैं, जो असफलता की ओर ले जाता है. केवल आइडिया के बूते कोई उद्यमी सफल नहीं हो सकता. इसके लिए उसका समुचित नियाेजन जरूरी है.
– अलग तरीका अपनाएं : ग्राहक हमेशा ऐसे कारोबार की ओर आकर्षित होते हैं, जो कुछ हट कर काम करते हैं. ऑनलाइन कारोबार करनेवाली कंपनियों ने लोगों के बाजार जाने की जरूरत को कम कर दिया और ऑनलाइन शॉपिंग का क्रेज बढ़ गया. इसलिए अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने के लिए आपको कोई नया आइडिया लॉन्च करना होगा.
– ग्राहकों की जरूरतों को समझें : आज के दौर में ग्राहक राजा है. यदि आप स्टार्टअप शुरू करना चाहते हैं, तो अापको यह पता होना चाहिए कि आपके ग्राहक वास्तविक में चाहते क्या हैं.
उदाहरण के तौर पर आपके शहर में छात्रों के लिए अनेक कोचिंग सेंटर होंगे. यदि आप इस क्षेत्र में आना चाहते हैं, तो कुछ अलग और इनाेवेटिव आइडिया के साथ आना होगा, ताकि छात्र आपके कोचिंग सेंटर की ओर आकर्षित हो सकें.
– लागत के प्रति वास्तविक नजरिया : कारोबार शुरू करना आसान है, लेकिन बढ़ते खर्चों और लागत के कारण उसमें टिके रहना मुश्किल है. यदि आप इसमें बने रहना चाहते हैं, तो सभी खर्चों और लागत का वास्तविक आकलन करना होगा. उद्यम शुरू करने के बाद हरेक माह खर्चों की समीक्षा करनी होगी.
इ-कॉमर्स का वर्चस्व कायम
हाल के दिनों में यह कहा जाने लगा था कि इ-कॉमर्स के दिन लद रहे हैं, लेकिन हालिया रिपोर्ट ने इस बारे में फिर से गौर करने पर जोर दिया है. यह उद्यम अब भी सबसे पसंदीदा बना हुआ है. इस सेक्टर से जुड़े 46 स्टार्टअप्स ने निवेशकों को आकर्षित किया है, जो तथ्य इस ओर इशारा करते हैं कि इस बिजनेस मॉडल में निरंतरता कायम है.
स्टार्टअप क्लास
प्रोडक्ट तैयार करने और सिर्फ पैकेजिंग
के लिए अलग-अलग होते हैं लाइसेंस
– मैं नमकीन पैकेजिंग का काम शुरू करना चाहता हूं. इसके लिए क्या-क्या लाइसेंस लेना होगा? – प्रमोद कुमार, गिरीडीह
आप सिर्फ पैकेजिंग का काम करना चाहते हैं, तो अलग तरह के लाइसेंस और यदि नमकीन बनाने के साथ पैकेजिंग भी करना चाहते हैं, तो अलग तरह के लाइसेंस लेने होंगे. खाद्य पदार्थ से जुड़े उद्यमों को सबसे पहले ‘एफएसएसएआइ’ के निर्देशों का पालन करते हुए रजिस्ट्रेशन और मशीनरी लगाना पड़ता है. फिर उत्पादन क्षमता के अनुसार लाइसेंस के लिए आवेदन देना होता है.
यदि आप सिर्फ पैकेजिंग का काम कर रहे हैं, तो इसके सही और हानिकारक नहीं होने को प्रमाणित करते हुए लाइसेंस का आवेदन देना होगा. छोटी सी जांच प्रक्रिया के बाद लाइसेंस मिल जायेगा. सेल्स टैक्स कार्यालय में टैक्स के लिए भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा. लेकिन यदि आप खाद्य पदार्थ बना कर पैकेजिंग कर रहे हैं, तो आपको खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत नियमों का पालन करते हुए अलग-अलग आवेदन देना होगा. खाद्य पदार्थ की नियमित अंतराल पर सरकारी मान्यता प्राप्त लैब से जांच भी करवानी पड़ेगी. हालांकि, यह कठिन या लंबी प्रक्रिया नहीं है, लेकिन इसमें नियम सख्त हैं और थोड़ी सी लापरवाही होने पर बड़ा जुर्माना लगता है. ज्यादा जानकारी के लिए ‘एफएसएसएआइ’ की आधिकारिक वेबसाइट देखें.
खर्चीला और कठिन है आयुर्वेदिक दवा का निर्यात
– डायबिटीज की आयुर्वेदिक दवा का निर्यात करने के लिए क्या करना होगा? – राष्ट्रवादी उलमा-ए-हिंद (चैरिटेबल ट्रस्ट), दिल्ली
डायबिटीज की आयुर्वेदिक दवा निर्यात करना खर्चीला और कठिन काम है. हालांकि, भारत में आयुर्वेद को मान्यता मिली है, लेकिन विदेशों में दवाओं के नियम और कानून काफी सख्त हैं.
अमेरिका की संबंधित एजेंसी ‘एफडीए’ किसी भी दवा को आयात होने देने से पहले कई बार सख्त वैज्ञानिक टेस्ट करवाती है. इसके बाद भी इस बात की गारंटी नहीं लेती कि आप दवा निर्यात कर पायेंगे. इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल और मॉलेक्यूलर बायोलॉजिकल सर्टिफिकेशन की जरूरत होती है. इसी प्रकार के नियम यूरोप और मध्य एशिया में भी हैं. इसके अलावा निर्यातक की फैक्ट्री साल में कम-से-कम दो बार जांची जाती है. इस पूरी प्रक्रिया में करोड़ों रुपये तक खर्च हो सकते हैं. आप आयुष मंत्रालय से संपर्क कर सकते हैं.
प्लान, आइडिया व जोखिम देख निवेश करते हैं इन्वेस्टर
– एजुकेशन सेक्टर संबंधी स्टार्टअप का मेरे पास बेहतर प्लान है, पर पैसा नहीं. पिछले माह एक कॉलम में आपने बताया है कि इन्वेस्टर को भी शेयर देना होता है़ स्टार्टअप को घाटा या दिवालिया होने पर क्या इन्वेस्टर अपना पैसा मांग सकते हैं? कृपया मार्गदर्शन करें.
– आदित्य गुप्ता, सीतामढ़ी
इन्वेस्टर जब किसी भी स्टार्टअप में पैसा लगाता है, तो वह लोन नहीं होता है. निवेशक स्टार्टअप के आइडिया, बिजनेस प्लान व जोखिम को समझ कर पैसा लगाता है. चूंकि जोखिम हर व्यापार का हिस्सा होता है और मुनाफे में उसका भी हिस्सा है, तो घाटा भी उसको सहन करना पड़ता है. हालांकि, घाटा होने पर आपका निवेशक के साथ हुए समझौते के अनुसार ही किसी भी प्रकार का व्यवहार होगा, लेकिन यदि आपने देख समझ कर िनवेशक से पैसे लिए हैं, तो आपको ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. निवेशक को हर बात सच बतानी चाहिए और मेहनत से व्यापार करना चाहिए.
अवसर के साथ जोखिम और चुनौतियों को भी समझें
– व्हॉट्सएप्प, वेबसाइट के माध्यम से ऑर्डर लेकर घरेलू सामग्रियों को घरों तक पहुंचाने का ऑनलाइन स्टार्टअप शुरू करना चाहता हूं. इस क्षेत्र में चुनौतियों और अवसरों के बारे में बताएं? – बृजेश कुमार, मोतिहारी
आजकल ज्यादातर लोग यह सवाल करते हैं, इसे इस तरह समझिये :
(क) अवसर : व्यस्त दिनचर्या और बाजारों में बढ़ती भीड़ के कारण लोग हर चीज घर बैठे पाना चाहते हैं. बड़े शहरों के बाद छोटे शहरों में भी धीरे-धीरे यह चलन बढ़ता जा रहा है. तकनीक का उपयोग कर आप इसे कम खर्चीला बना सकते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर कम खर्च से आॅर्डर प्रोसेस कर सकते हैं.
(ख) जोखिम : यह खर्चीला व्यापार है. इसमें डिलीवरी के लिए काफी लोगों और वाहनों की जरूरत होगी. साथ ही काफी दुकानदारों पर निर्भर रहना पड़ेगा या अपना गोदाम बना उसमें माल रखना पड़ेगा. शुरू में आपके मुनाफे का प्रतिशत कम होगा. मार्केटिंग में काफी खर्च करना पड़ेगा.
(ग) बाजार : इस सेक्टर में दो बड़े स्टार्टअप हैं- बिग बास्केट और ग्रोफर्स. दो सालों में ये बड़ा बाजार खड़ा कर चुके हैं. शॉप किराना, पेप्परटैप और आस्कमी जैसे इनके कई प्रतिस्पर्धी बंद हो चुके हैं. मार्केटिंग में ही ये सालाना 200-300 करोड़ रुपये खर्च करते हैं. इसलिए सोच समझ कर फैसला लें.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये जोड़ सकते हैं छात्रों को
– शिक्षा के क्षेत्र में बिहार में स्टार्टअप में किस तरह की संभावनाएं हैं? कृपया मार्गदर्शन करें.शिक्षा से जुड़े ज्यादातर स्टार्टअप डिजिटल तकनीक आधारित हैं. ये कम खर्च में अच्छी शिक्षा मुहैया करा रहे हैं. स्टार्टअप अब शहर या राज्य की सीमा से आगे निकल चुके हैं. बायजू या कैरियर 360 जैसे स्टार्टअप ने शिक्षा के मायने बदल दिये हैं. बायजू पूरे सिलेबस को वीडियो बना कर इंटेरेक्टिव एजुकेशन की सुविधा देता है, जबकि कैरियर 360 शिक्षा संस्थानों के बारे में जानकारी और ऑनलाइन टेस्ट की सुविधा देता है.
आप भी कोई ऐसी सुविधा दे सकते हैं, जो छात्रों की बड़ी मुश्किल हल करे. मेरे अपने अनुभव से, बिहार के छोटे शहरों के बच्चे अच्छी कोचिंग के अभाव में कोटा और दिल्ली जाकर पढ़ाई करते हैं. अगर आप उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा कोटा और दिल्ली के कोचिंग संस्थानों से जोड़ पाएं, तो उनको कम खर्च में यह सुविधा मिल सकती है. कम निवेश में यह अच्छा कारोबार हो सकता है.

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