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तीन हालिया शोधों से जगी उम्मीद: ब्रेस्ट कैंसर का अब आसान होगा इलाज

जागरूकता है जरूरी दुनियाभर में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते जोखिम के प्रति जागरूक करने के मकसद से अक्तूबर माह में ब्रेस्ट कैंसर अभियान चलाया जाता है. इस बीच कुछ ऐसी शोध रिपोर्टें आयी हैं, जिनमें बताया गया है कि निकट भविष्य में इस बीमारी की आरंभिक अवस्था में पहचान मुमकिन हो पायेगी, जिससे […]

जागरूकता है जरूरी
दुनियाभर में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते जोखिम के प्रति जागरूक करने के मकसद से अक्तूबर माह में ब्रेस्ट कैंसर अभियान चलाया जाता है. इस बीच कुछ ऐसी शोध रिपोर्टें आयी हैं, जिनमें बताया गया है कि निकट भविष्य में इस बीमारी की आरंभिक अवस्था में पहचान मुमकिन हो पायेगी, जिससे इनका इलाज समय रहते आसानी से हो सकता है. ब्रेस्ट कैंसर से संबंधित इन्हीं हालिया शोध रिपोर्टों और उनसे जगी उम्मीदों के बारे में बता रहा है आज का यह आलेख …
हिस्टोपैथोलॉजी इमेज से होगी कैंसर कोशिकाओं की पहचान
इंजीनियरों, गणितज्ञों और डॉक्टरों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने ब्रेस्ट कैंसर हिस्टोपैथोलॉजी इमेज में कैंसरकारी कोशिकाओं की पहचान करने के लिए समुद्र के भीतरी स्ट्रक्चर में होनेवाले नुकसान का पता लगानेवाली तकनीक का इस्तेमाल किया है. आरंभिक परीक्षणों में इसके नतीजे अच्छे रहे हैं, जिससे इसकी पहचान तेजी से होने की उम्मीद बढ़ी है. दुनियाभर में महिलाओं में बीमारी को कैंसर का सर्वाधिक प्रचलित प्रारूप माना जा रहा है. मौजूदा समय में इसकी पहचान और इलाज के लिए ब्लूम-रिचर्ड्सन ग्रेडिंग सिस्टम का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.
‘यूरेका अलर्ट डाॅट ओआरजी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, माइक्रोस्कोप से टिस्सू बायोप्सी स्पेसीमेन के जरिये पैथोलॉजिस्ट विजुअल परीक्षण के तहत इसमें स्कोर दर्शाते हैं, लेकिन कई बार एक ही नमूने की जांच से विभिन्न पैथोलॉजिस्ट्स अलग-अलग स्कोर दर्शाते हैं. हालांकि, डिजिटल पैथोलॉजी और फास्ट डिजिटल स्लाइड स्कैनर्स ने इमेज प्रोसेसिंग मेथॉड लागू करने के लिए ऑटोमेटिक प्रक्रिया अपनाये जाने की राह खोली है. लेकिन, हाइ-ग्रेड ब्रेस्ट कैंसर सेल्स का विश्लेषण करने में इमेज प्रोसेसिंग मेथॉड से अब भी दिक्कतें आती हैं, इसलिए इसकी सफलतापूर्वक पहचान चुनौतीपूर्ण है.
शोध में भारतीय विशेषज्ञ भी रहे शामिल
न्यूमेरिकल मेथॉड और इमेज प्रोसेसिंग के विशेषज्ञों ने मेडिकल पैथोलॉजिस्ट्स के साथ मिल कर इस नये शोध को अंजाम दिया है. ट्रिनिटी कॉलेज, डब्लिन में सिविल इंजीनियरिंग की असिस्टेंट प्रोफेसर बिदिशा घोष का कहना है, ‘इस अनूठे शोध से इस संबंध में गहन और व्यापक समझ कायम हुई है.’ क्रिश्चन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड इम्यूनोहेमेटोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जॉय जॉन मैमेन का कहना है, ‘हाइ-ग्रेड ब्रेस्ट कैंसर इमेजेज में कैंसरकारी तत्वों को खोजना बेहद चुनौतीपूर्ण है, लिहाजा यह नया शाेध इस बीमारी के इलाज की दिशा में पहले चरण के तौर पर कामयाब रहा है.’
विकसित की गयी तकनीक को अब तक समुद्र के भीतर पुलों के पिलर्स की मरम्मत, समुद्र में टरबाइन प्लेटफॉर्म और पाइप-लाइन बिछाने में किया जाता है. मद्रास क्रिश्चन कॉलेज में मैथमेटिशियन और इस शोध अध्ययन के प्रमुख डॉक्टर मैक्लीन परमानंदम का कहना है, ‘यह तकनीक बेहद सक्षम पायी गयी है.’ इस प्रोजेक्ट से जुड़े यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क के विशेषज्ञ डॉक्टर माइकल ओब्रायन का कहना है, ‘सिविल इंजीनियरिंग में इस्तेमाल होनेवाले इमेज-प्रोसेसिंग टूल्स को इस तरह डिजाइन किया गया है, जो शरीर के भीतर हो रहे नुकसान का मूल्यांकन करता है.’
महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम से बचाने के लिए वैज्ञानिक एक नयी दवा विकसित कर रहे हैं. ‘डेली मेल’ के मुताबिक, इस बीमारी से पीड़ित प्रत्येक छह में से एक महिला में इसका जोखिम खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है और इसकी गंभीर चपेट में आने पर करीब एक-चाैथाई महिलाएं पांच साल के भीतर दम तोड़ देती हैं. वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्रत्येक छह में से एक महिला में ब्रेस्ट ट्यूमर के लिए ट्रिपल निगेटिव कैंसर सेल्स जिम्मेवार होते हैं.
उनमें ‘पीआइएम-1’ का स्तर अत्यधिक पाया जाता है, जिसे इलाज के लिहाज से प्रतिरोधी बनाया जा सकता है. लेकिन इसमें एक नयी रुकावट पायी गयी है, जो कीमोथेरेपी के जरिये होनेवाले इलाज के दौरान इसे बाधित करता है. ‘
पीआइएम-1’ का इस्तेमाल ल्यूकेमिया जैसी बीमारी के इलाज के लिए किये जा रहे परीक्षण में पहले से ही हो रहा है. ल्यूकेमिया के मरीजों में पाया जानेवाला यह मॉलेक्यूल टॉक्सिक कीमोथेरेपी ड्रग्स से पैदा होनेवाले डेथ सिगनलों की अनदेखी करता है और ट्यूमर्स को पनपने में मदद करता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि मेडिकेशन के जरिये इस अणु को ब्लॉक करने पर कैंसरकारी कोशिकाओं का इलाज किया जा सकेगा.प्रमुख शोधकर्ता और किंग्स कॉलेज लंदन के प्रोफेसर एंड्रयू ट्यूट का कहना है, ‘ज्यादातर ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाएं कीमोथेरेपी के खिलाफ प्रतिरोधी होती हैं और उनका संचालन उन खास जींस के जरिये होता है, जिन पर दवाओं का असर नहीं होता है. हमने यह दर्शाया है कि पीआइएम-1 इस लिहाज से इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह घातक हाे चुके ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर कोशिका को अपना आदी बना लेता है.’
शोधकर्ताओं ने उम्मीद जतायी है कि पीआइएम-1 अवरोधी दवाओं का विकास भले ही अभी आरंभिक चरण में है, लेकिन इससे कैंसर के जींस को समझने में आसानी हाे सकती है. साथ ही इन तथ्यों की मदद से आगामी दो वर्षों के दौरान इस दवा का परीक्षण किया जायेगा. किंग्स कॉलेज लंदन और इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च के शोधकर्ताओं ने दो हजार से अधिक चूहों में इस तरह के ट्यूमर्स के इलाज का परीक्षण किया है.
रेडियो तरंगों से होगा स्तन कैंसर का इलाज!
मोबाइल फोन से निकलनेवाली रेडियो तरंगों को भले ही कैंसर के संभावित कारणों में गिना जाता हो, लेकिन आइआइटी, रोपड़ के शोधकर्ताओं ने अलग किस्म के एक रेडियो तरंग को इसके इलाज का जरिया बनाया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहायक एजेंसी ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर’ दुनियाभर में कैंसरकारी चीजों की तलाश करती है और इसने अनेक प्रकार की रेडियो तरंगों को कैंसर का कारक बताया है. रेडियो तरंगें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का एक बड़ा हिस्सा हैं और रेडियो से लेकर सेटेलाइट जैसे संचार के विभिन्न साधनों में इनका इस्तेमाल किया जाता है. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की तीव्र फ्रीक्वेंसी से ज्यादा ऊर्जा निकलती है, जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक होती है. गर्दन और पीठ दर्द के इलाज के लिए इन तरंगों का इस्तेमाल काफी पहले से हो रहा है. अब वैज्ञानिकों ने कम और मध्यम फ्रीक्वेंसी की रेडियो तरंगों का इस्तेमाल ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए किया है, जो इस प्रकार है :
रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन ट्रीटमेंट : रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन ट्रीटमेंट यानी आरएफए के तहत एक नीडल इलेक्ट्रॉड के जरिये कैंसरकारी ऊतक को जला दिया जाता है. इसके लिए पहले अल्ट्रासाउंड, कंप्यूटेड टोमोग्राफी या मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग यानी एमआरआइ जैसी प्रक्रियाओं के जरिये हाइ-रिजोलुशन इमेजेज ली जाती है, ताकि सटीक जगह का निर्धारण किया जा सके.
इसके बाद मरीज को इलेक्ट्रॉड के माध्यम से उच्च-फ्रीक्वेंसी के इलेक्ट्रिकल करेंट प्रवाहित किये जाते हैं, जिससे पैदा हुई हीट कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. अमेरिकन रेडियोलॉजी एसोसिएशन के मुताबिक, आरएफए का इलाज उन मरीजों में प्रभावी हो सकता है, जिनमें ट्यूमर का आकार डेढ़ इंच व्यास से कम हो और सर्जरी से इलाज करना मुश्किल हो.
क्या है ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर ट्यूमर?
यह ब्रेस्ट कैंसर का एक प्रकार है, जो ओएस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन या प्रोटीन एचइआर2 जैसे हार्मोंस के लिए अभिग्राही (रिसेप्टर्स) का कार्य नहीं करते हैं यानी इनके प्रति कोई लक्षण नहीं दर्शाते हैं. 40 वर्ष से कम उम्र और ब्लैक महिलाओं में यह ज्यादा पाया जाता है.
ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित कुछ महिलाओं में विघटनकारी ‘बीआरसीए1’ जीन पाया गया है. आम तौर पर इसका इलाज रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी की मिश्रित सर्जरी से किया जाता है. यदि इसकी पहचान समय रहते हो जाती है, तो अक्सर इसका इलाज कामयाब रहा है. लेकिन, ब्रेस्ट कैंसर के अन्य प्रारूपों के मुकाबले इसके ठीक होने की दर कम है.
प्रस्तुति
कन्हैया झा

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