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साफ हवा में सांस लेना है तो सोच बदलना होगा

दशकों की गलतियों से निबटने के लिए दूरगामी और समग्र चिंतन की जरूरत दुनू रॉय पर्यावरणविद एवं निदेशक, हैजार्ड सेंटर वायु प्रदूषण के लिए कुख्यात चीन को भी मात दे दिया है दिल्ली ने. यह विकट स्थिति डरानेवाली है. दशकों की गलतियों की देन इस संकट से मुक्ति के लिए अगर कोई तात्कालिक उपाय जैसे […]

दशकों की गलतियों से निबटने के लिए दूरगामी और समग्र चिंतन की जरूरत
दुनू रॉय
पर्यावरणविद एवं निदेशक, हैजार्ड सेंटर
वायु प्रदूषण के लिए कुख्यात चीन को भी मात दे दिया है दिल्ली ने. यह विकट स्थिति डरानेवाली है. दशकों की गलतियों की देन इस संकट से मुक्ति के लिए अगर कोई तात्कालिक उपाय जैसे चमत्कार की बात करे, तो समझिए कि वह आंख में धूल झोंक रहा है. पढ़िए एक विश्लेषण.
प्रदूषण के मामले में हमारी सरकारें और हम खुद भी कुंभकर्णी निंद्रा में रहते हैं और जब संकट विकराल रूप में सामने आ खड़ा होता है, तब हाथ-पैर मारने लगते हैं. दिल्ली में स्मॉग कोई आज का संकट नहीं है. इसकी बुनियाद बहुत पहले ही पड़ चुकी थी, लेकिन इस संकट के अब ज्यादा गहन होने से हम विचलित हो रहे हैं. इससे तत्काल मुक्ति का कोई कारगर उपाय नहीं है. अगर कोई तात्कालिक उपाय जैसे चमत्कार की बात करे, तो समझिए कि वह आंख में धूल झोंक रहा है. लेकिन हां, अगर हम अब भी सावधान हो गये, तो आगे आनेवाले लंबे समय में हवा की क्वालिटी बेहतर होगी.
जब हवा में कणों की मात्रा (पीएम यानी पार्टिकुलेट मैटर) बढ़ जाती है, तो स्मॉग की स्थिति बनती है. ये कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि हमारी आंखों से दिखाई नहीं देते. लेकिन, कणों की संख्या बढ़ने से उन पर कुछ जहरीले रसायन सवार हो जाते हैं, और वे धुंध की शक्ल में दिखने लगते हैं. कणों के ऊपर सवार ये प्रदूषणकारी रासायनिक तत्व ही स्मॉग के लिए जिम्मेवार हैं. अगर स्मॉग को कम करना है, तो हमें इन कणों की मात्रा को कम करना होगा और इन्हें कम करने के लिए जहां-जहां से ये कण उत्पन्न हो रहे हैं, उन स्रोतों पर पाबंदी लगाने की कोशिश करनी होगी.
दिल्ली में अंधेरे में तीर चला रही सरकार : दिल्ली में इस समय स्मॉग को खत्म करने के लिए जो कुछ भी किया जा रहा है, वह अंधेरे में तीर चलाने सरीखा है, क्योंकि ये कण कहां से उत्पन्न हो रहे हैं, इसी बात पर अभी दुविधा बनी हुई है. जब तक यह दुविधा दूर नहीं होगी और कणों के ठोस स्रोतों के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिलेगी, तब तक हम हवा में ही तीर चलाते रहेंगे. हमें सबसे पहले यह तय करना होगा कि दिल्ली में इस समय स्मॉग बढ़ने का कारण क्या है. पहले लोगों ने माना कि इसका कारण परिवहन-व्यवस्था है. उसके बाद माना गया कि धूल का हवा में मिलना इसका कारण है. इन दोनों तर्कों के बाद अब कहा जा रहा है कि हरियाणा-पंजाब में किसानों द्वारा जलायी जा रही फसलों की खूंटी इसका कारण है.
मेरा मानना है कि खूंटी जलाने को इसका मुख्य कारण मानना मूर्खता है, क्योंकि प्रदूषण किसी एक चीज से और तुरंत नहीं फैलता है. पंजाब-हरियाणा में साल में एक या दो बार खूंटी जलायी जाती है, फिर उसके कारण पूरे साल दिल्ली में प्रदूषण कैसे बढ़ सकता है? जाहिर है, प्रदूषण के कारणों और इसकी रोकथाम के बारे में हमें एक समग्र सोच बनानी होगी, जो हम अब तक नहीं बना पाये हैं.
किसी एक कारण को दूर करना काफी नहीं
किसी एक चीज को कारण मान कर उस पर हंगामा मचाने से प्रदूषण खत्म नहीं होनेवाला है, जैसा कि सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायर्नमेंट (सीएसइ) ने किया है. सीएसइ ने कहा था कि डीजल को बंद करके सीएनजी लाया जाये, तभी वायु प्रदूषण रुकेगा, जबकि विशेषज्ञ लगातार यह कहते चले आ रहे हैं कि सिर्फ डीजल बंद कर देने से इस समस्या का हल हो ही नहीं सकता, क्योंकि कई और भी तथ्य और कारक स्मॉग के लिए जिम्मेवार हैं. इसीलिए मेरा मानना है कि इस मसले पर दूरगामी सोच के साथ एक समग्र चिंतन करना होगा. लेकिन, हमारी सरकारें और विशेषज्ञ समग्र चिंतन नहीं करना चाहते हैं.
वह चाहे स्मॉग हो या किसी अन्य तरह का प्रदूषण, इसका तात्कालिक निदान संभव नहीं है. मसलन, दिल्ली सरकार ने कहा है कि दस दिन तक निर्माण-कार्य बंद रखा जायेगा, ऑड-इवेन लाया जायेगा, वगैरह-वगैरह. इन सबसे प्रदूषण कम नहीं होगा, अगर कम होगा भी तो 5-7 प्रतिशत ही.
वायु प्रदूषण दशकों की गलतियों की देन है, जिससे दस दिन में मुक्ति की बात करना किसी जादू या चमत्कार की बात करने जैसा है, और विज्ञान किसी जादू-चमत्कार को नहीं मानता. एक वैज्ञानिक होने के नाते प्रदूषण को रोकने के उपाय को लेकर मेरी स्पष्ट राय है कि प्रदूषण पैदा होने के स्रोतों के बारे में एक समग्र व्याख्या तैयार की जाये. फिर उससे निपटने के स्थायी उपायों के बारे में सोचा जाये, क्योंकि समस्या की जड़ को पहचान लेना ही उसे खत्म करने के उपाय को तलाश लेना है.
नगर प्रशासन की लापरवाही बंद हो
एक मिसाल देता हूं. अगर हमने सड़क के किनारे कचरा छोड़ दिया या कोई गड्ढा खोद कर मिट्टी वहीं रख दी, तो उसकी धूल हवा में तब तक नहीं जा मिलेगी, जब तक कि उसे कोई मशीन उड़ा कर हवा में न मिला दे. इस मशीन का काम करते हैं वाहन, जो धूल को उड़ा कर हवा में मिला देते हैं. ऐसे में अगर नगर निगम और पीडब्ल्यूडी के सफाई कर्मचारी सड़क को साफ करके कचरे को तुरंत वहां से हटा दें, तो धूल के हवा में मिलने की संभावना बहुत कम हो जायेगी. लेकिन, ज्यादातर महानगरों में यह बरसों से होता आ रहा है कि सड़कों के आसपास कचरा काफी देर तक या कभी-कभी कई दिनों तक पड़ा रह जाता है.
लोगों को जागरूक करना भी जरूरी
दूसरी बात यह है कि हम गाड़ियों के धुएं को ही वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण मान लेते हैं, जबकि उसके घिसे हुए पहियों के और घिसने से भी छोटे-छोटे हानिकारक कण निकलते हैं. जाहिर है, इन कणों को रोकने के लिए साफ सड़क और नये पहियों का होना जरूरी है.
ऐसे में प्रदूषण पर समग्र चिंतन के लिए जिस अनुमापन की आवश्यकता है, उस अनुमापन को तत्काल कम-से-कम शुरू किया जाना चाहिए. और यह काम जनता की तरफ से भी होना चाहिए. सरकारों को चाहिए कि अपनी जनता को भरोसे में लें और प्रदूषणकारी गतिविधियों पर हरसंभव लगाम लगाने की कोशिशें शुरू करें.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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