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बुढ़ापा दर्शानेवाली कोशिकाओं के खास हिस्सों की हुई पहचाने, झुर्रियां कम करने में मिलेगी कामयाबी!

बुढ़ापा दर्शानेवाली कोशिकाओं के खास हिस्सों की हुई पहचान झुर्रियां कम करने में मिलेगी कामयाबी! इनसान हमेशा जवान दिखना चाहता है, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ ऐसा मुमकिन नहीं होता. वैज्ञानिकों ने शोध के जरिये एक ऐसी प्रक्रिया विकसित की है, जो एजिंग को रोकने में समर्थ हो सकती है. आज के आलेख में जानते […]

बुढ़ापा दर्शानेवाली कोशिकाओं के खास हिस्सों की हुई पहचान

झुर्रियां कम करने में मिलेगी कामयाबी!

इनसान हमेशा जवान दिखना चाहता है, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ ऐसा मुमकिन नहीं होता. वैज्ञानिकों ने शोध के जरिये एक ऐसी प्रक्रिया विकसित की है, जो एजिंग को रोकने में समर्थ हो सकती है. आज के आलेख में जानते हैं इस संदर्भ में वैज्ञानिकों को किस तरह की मिली है कामयाबी और आपके लिए भविष्य में कैसे वह उपयोगी साबित हो सकती है व इससे संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में …

बढ़ती उम्र के साथ इनसान की त्वचा में झुर्रियां पड़ने लगती हैं और वह बूढ़ा दिखने लगता है. त्वचा हमेशा जवान दिखे, इसके लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक संबंधित कोशिकाओं पर अनेक परीक्षणों को अंजाम दे रहे हैं. ‘डेली मेल डॉट को डॉट यूके’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने कोशिकाओं की बैटरी समझी जानेवाली माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर म्यूटेटेड डीएनए को लक्षित करते हुए इसे अंजाम दिया है. बढ़ती उम्र के साथ हमारा डीएनए टूटता जाता है और उसमें बदलाव आता रहता है. लेकिन शरीर के अन्य अंगों के मुकाबले डीएनए की मरम्मत करने में माइटोकॉन्ड्रिया पूरी तरह सक्षम नहीं होते हैं.

कैलटेक और यूसीएलए यानी कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया लॉस एंजिल्स के वैज्ञानिकों ने जीन्स को मैनिपुलेट करते हुए एक प्रक्रिया विकसित की है, जिससे म्यूटेटेड डीएनए को तोड़ा और हटाया जा सकेगा व कोशिकाओं को दोबारा से जेनरेट किया जा सकेगा. अपनेआप में यह एक डॉक्यूमेंटेड प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे अॉटोफेजी यानी स्वायत्तजीवी या स्वपोषी कहा जाता है. ऑटोफेजी के जरिये कोशिकाएं निष्क्रिय माइटोकाॅन्ड्रिया को पचा सकती हैं और हेल्दी रिप्लेसमेंट की राह को आसान कर सकती हैं.

मौजूदा समय में यह ज्यादा चर्चा में इसलिए भी है, क्योंकि ऑटोफेजी से जुड़े शोध कार्य को इस बार नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गयी है. हालांकि, अभी यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो सका है कि इस प्रक्रिया से म्यूटेंट या एजिंग डीएनए के चयनात्मक उन्मूलन को प्रोत्साहित किया जा सकेगा या नहीं.

लंबी अवधि तक उत्परिवर्ती एमटी डीएनए का संचय अलजाइमर, पार्किंसन और सेक्रोपेनिया जैसी एजिंग संबंधी बीमारियों को बढ़ाने के कारक के रूप में पाया गया है. साथ ही एमटी डीएनए में आनुवंशिक गड़बड़ियां बच्चों में अनेक कारणों से संबद्ध पायी गयी हैं, जिसमें ऑटिज्म भी

शामिल है. कैलटेक में बायोलॉजी और बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर ब्रुश हे कहते हैं, ‘हम यह जान पाये हैं कि एमटी डीएनए म्यूटेशन की बढ़ोतरी दरों का कारण प्रीमेच्योर एजिंग से जुड़ा है.’

इसका परीक्षण करने के लिए टीम ने फ्रूट फ्लाइ का इस्तेमाल किया है. इसके तहत मांशपेशियों में माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को फोकस किया गया है. इनसानों की तरह फ्रूट फ्लाइ की मांसपेशियां एजिंग के स्पष्ट संकेत दर्शाती हैं. इसके अलावा इन दोनों में बीमारियों से संबंधित अनेक जीन्स में समानता पायी गयी है. इस परीक्षण के दौरान फ्रूट फ्लाइ को जेनेटिकली इंजीनियर्ड किया गया था, ताकि इसके एमटी डीएनए के 75 फीसदी को आरंभिक दौर में परिवर्तित किया जा सके.

प्रोफेसर ब्रुश हे कहते हैं, ‘परीक्षण से दर्शाया गया है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से कोशिकाओं में एमटी डीएनए के स्तर को कम किया जा सकता है और भविष्य में दिमाग, मांसपेशी और अन्य ऊतकों से क्षतिग्रस्त एमटी डीएनए को हटाने में कामयाबी मिल सकती है. इससे इनसान की बौद्धिक क्षमता और भौतिक गतिविधियों को बरकरार रखते हुए हेल्दी एजिंग को सामान्य बनाया जा सकता है.

एजिंग को कम करने में सक्षम ये खाद्य पदार्थ

शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों पर परीक्षण करके यह पाया है कि ये कोशिकाओं के नियमित निर्माण में सक्षम हैं. जानते हैं इनमें से कुछ चीजों के बारे में :

ब्लूबेरीज : ब्लूबेरीज एक एंटी-एजिंग फल है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन कंटेंट व्यापक तादाद में मौजूद होते हैं, जिनकी मदद से कोशिका के नवीकरण की क्षमता बढ़ती है.

पिस्ता : इसमें विटामिन इ की भरपूर मात्रा होती है, जो हमारे शरीर में नयी और सेहतमंद कोशिकाओं को पैदा करने में मदद करता है. इस प्रकार त्वचा में पैदा होनेवाली झुर्रियों की प्रक्रिया को यह धीमा करता है.

सैल्मन : सैल्मन एंटी-एजिंग खाद्य पदार्थ है, जिसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है, जो बड़े पैमाने पर कोशिकाओं को नवीनीकृत करता है. आंखों और त्वचा के लिए यह खास तौर से ज्यादा बेहतर माना गया है.

छांछ-मट्ठा : चूंकि इनमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए यह मांसपेशियों की ग्रोथ को बनाये रखता है. साथ ही यह बढ़ती उम्र के

साथ मांसपेशियों में होनेवाले नुकसान को कम करता है और शारीरिक रूप से तंदुरुस्त बनाये रखता है.

योगर्ट : दही की तरह दिखनेवाला यह खाद्य पदार्थ एंटी-एजिंग माना जाता है, जो हमारे शरीर में सेहतमंद बैक्टीरिया के उत्पादन को बढ़ाता है और शरीर की इम्यूनिटी को बेहतर बनाता है. हेल्दी इम्यून सिस्टम से शरीर की एजिंग प्रक्रिया धीमी होती है.

ओट : फाइबर के मामले में ओट ज्यादा धनी है और कैलोरी की मात्रा कम होती है, जिससे यह शरीर का वजन नियंत्रित रखता है. शरीर मोटा होने से इनसान जल्द बूढ़ा दिखने लगता है और इसका असर त्वचा पर भी पड़ता है. इसलिए ओट का सेवन तंदुरुस्त व जवान बनाये रखता है.

बुढ़ापे की शुरुआत गर्भ से ही

सामान्यतया करीब 50-60 वर्ष की उम्र गुजरने के बाद त्वचा में झुर्रियां आने लगती हैं और इनसान बूढ़ा दिखना शुरू होता है. लेकिन वैज्ञानिकों ने एक शोध के जरिये यह पता लगाया है कि बुढ़ापे की प्रक्रिया की शुरुआत उस समय ही हो जाती है, जब बच्चा गर्भ में पल रहा होता है.

ब्रिटेन की कैंब्रिज यूनिसर्विटी और नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने एक शोध के जरिये इसका पता लगाया है. दरअसल इनसान का डीएनए क्रोमोजोम पर दर्ज होता है. इनसान के शरीर में सामान्य रूप से 23 जोड़े होते हैं. क्रोमोजोम के आखिरी छोर को टेलोमेरस कहा जाता है, जो उन्हें आपस में बांधे रखता है. बढ़ती उम्र के साथ यह टेलोमेरस छोटा होने लगता है. इसकी लंबाई के मुताबिक इसकी उम्र पता लगायी जा सकती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि रक्त कणिकाओं में मौजूद टेलोमेरस की लंबाई के जरिये बुढ़ापे की रफ्तार भी जानी जा सकती है.

गर्भावस्था के दौरान मां के खून में ऑक्सीजन की कमी होने का सीधा असर गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है. शोधकर्ताओं ने मादा चूहे पर इसका परीक्षण किया है और उसके असर को समझने की कोशिश की है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जुसानी का कहना है कि जीन आसपास के वातावरण से प्रभावित होते हैं- जैसे मोटापा, धूम्रपान, व्यायाम नहीं करने आदि से यह हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है.

एंटी-एजिंग पिल से झुर्रियां खत्म करने की तैयारी

एंटी-एजिंग दवा को विकसित करने की दिशा में वैज्ञानिक एक कदम आगे बढ़ने में सक्षम हुए हैं. ‘डेली मेल’ के मुताबिक, पीट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि कोशिकाओं में प्रत्येक बार होनेवाले विभाजन में वे छोटे होते जाते हैं और इससे कुछ हद तक क्रोमोजाेम्स को नुकसान पहुंचता है. क्रोमोजोम्स के आखिर में डीएनए के प्रोटेक्टिव बिट्स के तौर पर टेलोमेरेस की पहचान की गयी है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसी कारण से बढ़ती उम्र के साथ बीमारियों का जोखिम बढ़ता जाता है और लाेग बूढ़े दिखने लगते हैं. वैज्ञानिकों ने कोशिकाओं में कुछ ऐसे लक्षणों की पहचान की है, जो एजिंग को बढ़ावा देते हैं और इन्हें दवाओं के जरिये रोका जा सकता है.

उन्होंने कुछ ऐसे संकेतों की भी पहचान की है, जो कोशिका में पैदा होनेवाले कैंसर का कारण बनते हैं, लिहाजा इससे कैंसर काे भी पहचाना जा सकेगा. टेलोमेरेस जब ज्यादा छोटे होने लगते हैं, तो वे कोशिकाओं को स्थायी रूप से बंटने की प्रक्रिया को रोकने का संकेत भेजते हैं और इसी के जरिये इसे मुमकिन करने की तैयारी है. पहले के शोधों में पाया गया कि ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के दौरान क्षतिग्रस्त होनेवाले अणु, जिन्हें फ्री रेडिकल्स के नाम से जाना जाता है, कोशिका के भीतर इस प्रक्रिया को तेज कर देते हैं. फ्री रेडिकल्स डीएनए को क्षतिग्रस्त कर सकते हैं, जो टेलोमेरेस का निर्माण करते हैं.

प्रमुख शोधकर्ता पैट्रिसिया ओप्रेस्को का कहना है कि सेहतमंद कोशिकाओं में टेलोमेरेस को प्रीजर्व करने के लिए नयी थैरेपी को विकसित करने के लिए यह नयी जानकारी इस्तेमाल में लायी जायेगी. और इस तरह यह एजिंग के असरको कम करने में सहायक साबित होगी.

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