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साल 2016 में दर्ज कामयाबी, 10 इनोवेटिव युवाओं ने तलाशे बड़े समाधान

दुनियाभर में साइंस और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इनोवेशन की प्रक्रिया नियमित रूप से जारी है. विज्ञान और तकनीक की प्रसिद्ध पत्रिका ‘पॉपुलर साइंस’ पिछले 15 सालों से प्रत्येक वर्ष 10 सर्वाधिक इनोवेटिव युवाओं की तलाश करता है. इन शोधकर्ताओं द्वारा मुहैया कराये गये समाधान दुनियाभर में ज्यादातर लोगों से जुड़ी समस्याओं से निजात दिला […]

दुनियाभर में साइंस और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इनोवेशन की प्रक्रिया नियमित रूप से जारी है. विज्ञान और तकनीक की प्रसिद्ध पत्रिका ‘पॉपुलर साइंस’ पिछले 15 सालों से प्रत्येक वर्ष 10 सर्वाधिक इनोवेटिव युवाओं की तलाश करता है. इन शोधकर्ताओं द्वारा मुहैया कराये गये समाधान दुनियाभर में ज्यादातर लोगों से जुड़ी समस्याओं से निजात दिला सकते हैं. आज के आलेख में जानते हैं इन युवाओं और उनके इनोवेशन के बारे में …

1. विलियम रेटक्लिफ

(जॉर्जिया टेक में इवोलुशनरी बायोलॉजी का अध्यापन)

कोशिका विकास की सुलझी गुत्थी

जीवन की एक सबसे बड़ी गुत्थी है कि सिंगल सेल्स यानी कोशिकाएं किस तरह आपस में जुड़ कर बहुकोशीय जीव का निर्माण करते हैं. विकासवादी नजरिये से देखा जाये, तो यह अजीब प्रतीत होता है. कोशिकाओं के समूह के अस्तित्व के लिए उन्हें अपनी फिटनेस को त्यागना होता है. लेकिन, अनेक परीक्षणों के जरिये विलियम रेटक्लिफ ने पाया कि इस बदलाव में कुछ और भी जरूरी चीजें शामिल होती हैं. रेटक्लिफ ने सिंगल-सेल्ड यीस्टर पर परीक्षण में पाया कि कई बार कोशिकाएं अपनी कॉपी कर लेती हैं और विभाजित नहीं होती हैं, लेकिन आपस में जुड़ कर वे स्नोफ्लेक नामक लेसी मल्टीसेलुलर स्ट्रक्चर तैयार कर लेती हैं. अब वे यह जांच रहे हैं कि खुद को समूह में जोड़ने के लिए क्या स्नोफ्लेक अपने भीतर विविध प्रतिभा विकसित कर सकते हैं.

2. सिद्धार्थ गर्ग

(न्यूयाॅर्क यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियर)

थमेगी माइक्रोचिप से सेंधमारी

हैकर्स द्वारा माइक्रोचिप के जरिये हार्डवेयर की सुरक्षा का जोखिम बढ़ता जा रहा है. कई मामलों में हैकरों ने व्यापक स्तर पर सेंधमारी करते हुए उस पूरे डिवाइस को नष्ट कर दिया है, जिसमें लगे संबंधित चिप को उन्होंने शिकार बनाया. कई बार तो डिवाइस के निर्माण के दौरान फैक्टरी में ही इस तरह की चीजें इंस्टाॅल कर दी जाती हैं. सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कंपनी जब निर्माता को डिजाइन भेजती है, तो यह समझ पाना तकरीबन असंभव होता है कि अंतिम रूप से निर्मित उत्पाद में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गयी है. सिद्धार्थ गर्ग इसी का समाधान तलाशने में सक्षम हुए हैं, जो निर्माता द्वारा रणनीतिक रूप से किसी चिप के साथ की गयी छेड़छाड़ को जान पायेगा.

3. डेनिएल बैसेट

(यूनिवर्सिटी आॅफ पेनसिलवानिया के नेटवर्क न्यूरोसाइंस में अध्यापक)

सामने आया अवचेतन का रहस्य

डेनिएल ने अपने कैरियर की शुरुआत न्यूरोसाइंस के केंद्रीय सिद्धांत को समझने जैसे चुनौतीपूर्ण कार्य से की है. इसके लिए उन्होंने दिमाग के भीतरी हिस्सों का व्यापक अध्ययन किया है. डेनिएल के मुताबिक, हमारे अनुभवों के आधार पर दिमाग में न्यूरॉन्स के नेटवर्क की कार्यप्रणाली और उनके विभाजन में समयानुसार बदलाव आता रहता है. बैसेट अपने इस मॉडल के जरिये यह जानने की कोशिश में जुटी हैं कि कुछ लोग क्यों ज्यादा तेजी से सीखने की प्रक्रिया में सक्षम होते हैं. इसके लिए उन्होंने एमआरआइ मशीन का भी इस्तेमाल किया. उन्होंने इस तथ्य की तलाश की है कि धीमे सीखनेवाले लोग ब्रेन नेटवर्क से जुड़ी चेतना नियंत्रण का इस्तेमाल करने में ज्यादा समय लगाते हैं.

4. कोनर वॉल्श

(हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वियरेबल रोबोटिक्स में कार्यरत)

रोबोटिक सूट से बढ़ेगी इनसान की कार्यक्षमता

कोनर वॉल्श की दिलचस्पी बैटरी-पावर आधारित ऐसे रोबोटिक या वियरेबल सूट्स तैयार करने में रही है, जिससे सैनिकों और आम लोगों को अपने साथ ज्यादा सामान लाद कर तेजी से चलने में सुविधा हो और थकान भी कम हो. सबसे पहले उन्होंने अपने लिए ऐसा रोबोटिक सिस्टम विकसित किया. शुरुआती दिक्कतों और डिजाइन संबंधी खामियों को दूर करने के बाद वॉल्श और उनकी टीम ने एक नाइलॉन-एंड-स्पैंडेक्स सूट प्रदर्शित की है, जिसे पहन कर चलने में आसानी होती है. बैटरी-पावर आधारित इस वियरेबल डिवाइस के जरिये अपने साथ ज्यादा वजन लेकर चलने में लोगों को आसानी होगी. सैनिकों के लिए तो यह वरदान साबित होगी और वे भारी उपकरण को लाद कर तेजी से चल पायेंगे. माना जा रहा है कि इनसान को सुपरह्यूमैन की तरह स्टेमिना प्रदान करने में इस डिवाइस का व्यापक योगदान हो सकता है.

5. सूची सरिया जॉन्स हाॅपकिंस यूनिवर्सिटी के हेल्थ

(इनफोर्मेटिक्स एंड मशीन लर्निंग में अध्यापक)

एल्गोरिथम के माध्यम से शिशुओं की बीमारियों की समझ

सूची सरिया को एल्गोरिथम के प्रति दिलचस्पी रही है. सरिया ने कंप्यूटर की मदद के बिना भी इन कार्यों को अंजाम दिया है. वर्ष 2007 में एक शिशु रोग विशेषज्ञ ने उन्हें बताया कि नवजातों के संदर्भ में डाॅक्टरों ने व्यापक आंकड़े संग्रह किये हैं, लेकिन उनका विश्लेषण करना मुश्किल है. सरिया ने इसे चुनौती के रूप में लिया और एलगोरिथम के जरिये इसे समझने में जुट गयीं. इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स में हजारों पीटाबाइट्स का उन्होंने विश्लेषण किया. इसका मुख्य मकसद यह था कि इस पैटर्न को तलाशने के जरिये किसी मरीज के मेडिकल भविष्य का अनुमान लगाना. सरिया ने अर्ली-वार्निंग सिस्टम के तौर पर शरीर में विकसित होनेवाले ऐसे संक्रमण का अनुमान लगाने में कामयाबी हासिल की, जो शिशुओं की मृत्यु के कारणों में शामिल है. एल्गोरिथम के जरिये उन्होंने एक ऐसे सिस्टम को भी विकसित किया है, जो यह अंदाजा लगाने में सक्षम होगा कि भविष्य में किस शिशु को ज्यादा चिकित्सकीय देखभाल की जरूरत होगी.

6. कॉन्स्टेंटिन बेटिजिन

(कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक के प्लेनेटरी एस्ट्रोफिजिक्स में अध्यापक)

सोलर सिस्टम में नये ग्रह की तलाशी संभावनाएं

हाल ही में दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने अनुमान व्यक्त किया है कि सोलर सिस्टम में नौवां ग्रह भी हो सकता है. कॉन्स्टेंटिन बेटिजिन अपने सहयोगी के साथ इसी की तलाश में जुटे हैं. उन्होंने सोलर सिस्टम में घूम रही विभिन्न वस्तुओं का अध्ययन किया है. वैज्ञानिकों की मदद से उन्होंने तरंगे भी भेजी हैं, ताकि सूर्य के आसपास घूम रहे संभावित नौवें ग्रह का पता लगाया जा सके. बेटिजिन ने कुछ तसवीरों को भी पेंट किया है, जो दर्शाते हैं कि हम इस ग्रह को देखने में कैसे सक्षम हो पायेंगे.

7. सिगाल कैडोच

(बोस्टन में कैंसर बायोलॉजी की विशेषज्ञ)

आसान हुई कैंसर की पहचान

सिगाल ने कैंसर के कारणों को समझने का तरीका विकसित करने में काफी हद तक कामयाबी पायी है. ज्यादातर कैंसर विशेषज्ञ अब तक इसे समझने के लिए बीएएफ नामक खास जटिल प्रोटीन पर ज्यादा जोर देते रहे हैं, जिसका डीएनए ढांचा कैंसर से प्रभावित होता है, लेकिन बीएएफ जीन्स भी कैंसर में म्यूटेट हो जाते हैं. ऐसे में कैडोच ने मांसपेशी के ऊतकों में मौजूद एसएस 18 नामक प्रोटीन को जाना है, जो कैंसर के मरीजों में 100 फीसदी तक म्यूटेट होता है. कैंसर के 20 फीसदी से ज्यादा मामलों में बीएएफ डिफेक्ट्स का अस्तित्व मौजूद होता है, लिहाजा यह जानकारी इस बीमारी की तलाश में अहम भूमिका निभा सकती है.

8. जॉन कार्लसन

(यूएससी में इंडस्ट्रियल एंड सिस्टम इंजीनियर)

वितरण समस्या का समाधान

सेन फ्रांसिस्को में एक स्टेडियम के निर्माताओं की टीम ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से सलाह मांगी कि सभी दर्शकों तक बेहतर तरीके से कैसे स्नैक्स वितरित किया जा सकता है. इस टीम को जॉन कार्लसन के पास भेजा गया. कार्लसन ज्यामितीय तरीकों से ऐसी समस्याओं का समाधान करने में माहिर हैं. गणितीय तरीकों से वे सुझाते हैं कि सामान लदे हुए 1,000 ट्रकों को मालवाहक विमान तक आसानी से कैसे पहुंचाया जा सकता है, ताकि कम समय में सामान लोड किया जा सके. आनेवाले समय में बोइंग, ओरेकल और यहां तक कि अमेरिकी एयर फोर्स भी जटिल चुनौतियों को सुलझाने में कार्लसन की मदद ले सकते हैं.

9 श्याम गोलाकोटा

(यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में अध्यापक)

वाइ-फाइ से हािसल होगी ऊर्जा

स्मार्टफोन्स और लैपटॉप जैसे डिवाइसों में वाइ-फाइ चिप्स के जरिये रेडियो सिगनल्स जेनरेट होते हैं और संचार मुमकिन होता है. लेकिन, इसमें ऊर्जा की दरकार होती है. टिपिकल वाइ-फाइ चिप के मुकाबले यह करीब 10,000 गुना और सर्वाधिक सक्षम ब्लूटूथ के मुकाबले करीब 1,000 गुना कम ऊर्जा खपत करता है. वाइ-फाइ के अदृश्य सिगनल्स में व्यापक ऊर्जा छिपी है, जिससे माध्यम से डिवाइसों को ऊर्जा प्रदान की जा सकती है. गोलाकोटा और उनकी टीम ने एक ऐसी राह तलाशी, जिसके तहत पारंपरिक वाइ-फाइ नेटवर्क के इस्तेमाल नहीं किये जा रहे चैनल्स के जरिये ऊर्जा भेजी जा सकती है.

10. लिआंगफांग झांग

(यूनिवर्सिटी आॅफ कैलिफोर्निया, नैनोमेडिसिन और केमीकल इंजीनियरिंग में अध्यापक)

बीमारियों से बचायेंगे नैनो-ड्रग्स

नैनोपार्टिकल्स दवाओं का विकल्प बन सकते हैं. इसकी राह में चुनौतियां जरूर हैं, लेकिन इससे निपटा जा सकता है. इम्यून सिस्टम के तहत वायरस आकार के पार्टिकल्स देखे गये हैं, जो इस चुनौती को बढ़ाते हैं. लिआंगफिंग झांग ने इसके लिए लाल रक्त कोशिकाओं से मेंब्रेन हटा दिया ताकि नैनोपार्टिकल्स का इस्तेमाल किया जा सके.

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