खाक से भी दोबारा संवर सकती है जिंदगी
14 की उम्र में पहली बार शराब चखा था, फिर ये सिलसिला बन गया. पढ़ लिख कर प्रोफेसर बना. शराब की लत ने उसे इस मुकाम पर पहुंचा दिया कि मरने की सोचने लगा, तभी जिंदगी ने करवट ली और वह शराब की लत छुड़ाने वाला काउंसलर बन गया. बिना किसी सरकारी वित्तीय मदद के नशामुक्ति केंद्र चलाने लगा. अब उसकी जिंदगी में धूप ही धूप है. पढ़िए एक प्रेरक रिपोर्ट.
‘य ही कोई 14 की उम्र रही होगी, जब पहली बार शराब चखा था. फिर तो ऐसी लत लगी कि इसके बिना जी ही नहीं लगता था. घर में बाबूजी भी शराब पीते थे. उनके ही रास्ते पर चलने में मजा आने लगा था. शराब की लत के बावजूद बैचलर की पढ़ाई ठीक से निकल गयी. पहली रैंक मिली. पीएचडी की डिग्री पूरी की. साथ ही एलएलबी की डिग्री भी ले ली. ये जो शराब है न, मेरी पढ़ाई में कभी बाधक नहीं बना. एक कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी भी मिल गयी. मगर यह नौकरी ज्यादा दिन चल न सकी. शराब ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था.
टोला-मुहल्ला-समाज के लोग बेइज्जत करने लगे. खूब अपमानित होता, मगर, शराब थी कि मेरी जिंदगी से जाती ही न थी. अपनी पत्नी की तनख्वाह भी अपने नशे के लिए उड़ा देता था. एक बार तो यह हालत हो गयी कि शराब के लिए कुलीगीरी भी की. एक दिन सोचते हुए मुझे लगा कि इस जिंदगी का क्या फायदा, अगर मैं अपनी बीवी-बच्चों की देखभाल न कर सकूं, उन्हें प्यार न दे सकूं. तब मैंने तय किया कि मुझे अपनी जिंदगी खत्म कर लेनी चाहिए. कम से कम मेरी मौत से मेरे परिवार को लाभ मिलना चाहिए. मैंने एलआइसी की एक पॉलिसी लेने के बारे में सोचा. मगर, इस पॉलिसी के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट जरूरी था. सो, मैंने तय किया कि कुछ दिनों के लिए शराब छोड़ दूं और तब किसी डॉक्टर के पास फिटनेस सर्टिफिकेेट के लिए जाऊं.’
अपनी जिंदगी के बारे में यह वर्णन किया है- जॉनसन के मंगलम ने. वह फिलॉसफी के प्रोफेसर हैं और केरल के त्रिशूर केरल वर्मा कॉलेज में हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हैं. उन्होंने मलयालम भाषा में अपनी आत्मकथा ‘कुडियन्ते कुंबासरम’(शराबी की स्वीकारोक्तियां) लिखी है. अपनी आत्मकथा में आगे लिखते हैं – “ फिटनेस सर्टिफिकेट के लिए डॉ वीजे पॉल के पास गया. डॉक्टर ने कहा कि मैं मूर्ख हूं. मेरे अहम को ठेस पहुंची. मैं पीएचडी डिग्रीधारी था और वकालत की भी डिग्री भी मेरे पास थी. उसने मुझे मूर्ख कहा. यही नहीं उसने मुझे बार-बार याद कराया कि मैं अपने परिवार की देखभाल नहीं कर सकता … इसीलिए मैंने मरने की सोची, ताकि एलआइसी का लाभ मेरे परिवार को मिल सके. मुझे भी लगा कि मैं सचमुच मूर्ख ही हूं.” उसी क्षण जॉनसन को एक कौंध महसूस हुई. तय किया कि बस अब और शराब नहीं. कुछ दिन तक बगैर शराब के जीने की कोशिश शुरू कर दी. जॉनसन की पत्नी राजी और डॉक्टर ने काफी सहयोग किया. यह उतना आसान भी न था. 17 वर्षों की आदत को जीत पाना किसी बड़े संघर्ष से कम न था.
राजी किसी भी कीमत पर अपने पति जॉनसन को शराब की लत से मुक्त कराना चाहती थी. वह बताती हैं कि जॉनसन शराब छोड़ने की वजह से अक्सर मतिभ्रम की स्थिति में रहता और शारीरिक हालत गंभीर हो जाती. इस क्रम में उसे कई बार अस्पताल में भी भरती करना पड़ा. अंतत: जॉनसन शराब की लत से मुक्त हो कर स्वस्थ हो गये. जॉनसन अपनी आत्मकथा में आगे लिखते हैं-“जब पहली बार मैं डॉक्टर के पास गया. एक नर्स पास आयी और मेरे बालों में तेल लगाने लगी. मैं फूट-फूट कर रोया, क्योंकि शराबियों के साथ कोई प्यार से पेश आये, यह कल्पना भी नहीं कर सकता था. यह मेरे लिए बहुमूल्य धरोहर की तरह था.”
अब प्रो जॉनसन को यह समझ आ गयी थी कि जिंदगी अब उससे कुछ और चाहती है. जॉनसन ने शराब की लत छुड़ाने के लिए एक संस्था खड़ी की. नाम रखा- पुनर्जनी. यानी पुनर्जन्म. 14 साल की उम्र में जो किशोर अपने दोस्तों के संसर्ग में शराबी बन गया था, आज वह समाज का हो गया. शराब की लत छुड़ाने के काम में लग गया ताकि और लोगों की जिंदगी तबाह होने से बच सके.
पुनर्जनी त्रिशूर में है. पूमला डैम के दूसरी ओर स्थित है. इस नशमुक्ति केंद्र में एक समय में 25-30 मरीज रहते हैं. मरीजों का ध्यान शराब से हटाने के लिए उन्हें जानवर-पक्षी पालने, खेलने, कलात्मक काम करने आदि जैसे कई अन्य सामुदायिक कामों में लगाया जाता है. इस केंद्र में 21 दिनों की अवधि में मरीज को नशामुक्त कर दिया जाता है, वह भी बिना किसी औषधि के. जॉनसन बताते हैं कि एकदम से नशा छुड़वा देना मुश्किल काम है. पहले दो-तीन दिन तक मरीजों को पीने के लिए शराब दी जाती है, ताकि ‘विदड्रावल प्रॉब्लम’ से मुक्त हो सकें. पहले दिन शराब पीने के बाद उनकी गतिविधियों की वीडियो की रिकार्डिंग की जाती है.
और जब कोर्स खत्म हो जाता है तो उसे केंद्र छोड़ते समय यह वीडियो दिखाया जाता है ताकि वे फिर से आदत पकड़ न लें. “शराबी मरीजों से उनकी ही भाषा में बात करता हूं, एक प्रोफेसर की तरह नहीं. ट्रीटमेंट के दौरान कई बार अभद्र भाषा भी बोलनी पड़ती हैं, क्योंकि मरीज ऐसी भाषा आसानी से समझते हैं. इसीलिए मैं उनके जैसा ही बन जाता हूं. यह सारा कुछ मनोवैज्ञानिक उपचार का एक तरीका है.” इस केंद्र से अब तक 10,000 मरीज नशामुक्त हो चुके हैं. यह केंद्र पुनर्जनी चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गत चलता है. अब तक राज्य सरकार या केंद्र सरकार से किसी भी किस्म की कोई वित्तीय मदद नहीं ली है.
पुनर्जनी के परिसर में जब आप प्रवेश करेंगे, तो आपको फीनिक्स पक्षी की बड़ी मूर्ति मिलेगी. संदेश साफ है खाक से भी जिंदगी दोबारा संवर सकती है, अगर आप चाहें.