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चला गया जलशक्ति की महासाधना का मार्गदर्शक

वैकल्पिक चिंतन और नवनिर्माण की खोज में जुटे मनीषी थे अनुपम प्रो आनंद कुमार समाजशास्त्री अनुपम मिश्र जी का कैंसर की पीड़ा झेलते हुए अवसान होना पूरे देश के लिए एक असाधारण क्षति का समाचार है. ‘गांधी मार्ग’ पत्रिका के संपादक से पूरा जनांदोलन परिवार सुपरिचित था. ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लेखक से […]

वैकल्पिक चिंतन और नवनिर्माण की खोज में जुटे मनीषी थे अनुपम
प्रो आनंद कुमार
समाजशास्त्री
अनुपम मिश्र जी का कैंसर की पीड़ा झेलते हुए अवसान होना पूरे देश के लिए एक असाधारण क्षति का समाचार है. ‘गांधी मार्ग’ पत्रिका के संपादक से पूरा जनांदोलन परिवार सुपरिचित था. ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लेखक से कस्बे-नगर में पानी का संकट झेल रहे लोग मार्गदर्शन पाते थे. उन्होंने सुप्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी के पुत्र के रूप में जो सांस्कृतिक-साहित्यिक विरासत पायी थी, उसमें गांधी धारा के महानायकों के अनुशासन ने असाधारण चमक पैदा की. हमलोग उन्हें सत्तर के दशक के संपूर्ण क्रांति के लिए समर्पित जयप्रकाश की सेना के युवा नायक के रूप में तब से जानते थे, जब वे अपने निजी विचारों में लोहिया के बनाये और किशन पटनायक के चलाये ‘समाजवादी युवजन सभा’ के दिल्ली विश्वविद्यालय के नायक थे.
अनुपम जी की सामाजिक प्रतिबद्धता की पहली झलक जयप्रकाश जी द्वारा चंबल के बागियों के समर्पण की अमरकथा के चित्रांकन से मिली. उससे उनकी लेखनी लगातार गांधीधारा को प्रवाहित करने में समर्पित रही. गांधी शांति प्रतिष्ठान के एक स्थायी स्तंभ के रूप में अनुपम जी ने देशभर के और समूचे एशिया के वैकल्पिक चिंतन और नवनिर्माण की खोज में जुटे लोगों के लिए हमेशा एक सहयोगी और बाद के दिनाें में तो मार्गदर्शक का अमूल्य कर्तव्य निभाया.
अगर उनके पचास साल के यशस्वी जीवन को देखा जाये, तो यह सुखद आश्चर्य होता है कि समाज के नवनिर्माण के लिए समर्पित इस साधक ने अपने को हमेशा गांधी-विनोबा-जयप्रकाश की परंपरा के साथ इतने अभिन्न रूप से कैसे जोड़े रखा, क्योंकि कम-से-कम 1977-80 के मोरारजी देसाई वाले दौर में और 1990-92 के वीपी सिंह के दौर में बड़े-बड़े गांधीवादियों के मन में भी सत्ता की चमक का कुछ आनंद लेने का भाव जाग गया था. अनुपम जी की अपनी निर्मलता ने सत्ता की कहानियों से अलग समाजसेवा की महागाथा में सतत और सार्थक योगदान के लिए सक्षम बनाये रखा.
अनुपम जी के विविध रूपों ने एक तरफ जयप्रकाश जैसे लोकनायक को आकर्षित किया, तो दूसरी तरफ जलपुरुष राजेंद्र सिंह जैसे पर्यावरण सेवकों को नि:संकोच अपने मार्गदर्शक के रूप में आकर्षित किया. गांधी मार्ग के संपादक के रूप में चमक के साथ उन्होंने गांधी-विनोबा-जयप्रकाश की विरासत को समूचे हिंदी क्षेत्र में लगातार प्रवाहमान रखा. यह हम सबके लिए अनुकरणीय है.
अनुपम जी के निजी जीवन में गांधी जीवन की परंपराओं की आकर्षक छवि भरपूर थी. किसी भी महान विचार एवं सपने की कसौटी यही होती है कि उसके प्रवक्ता और समर्थक अपने निजी जीवन में उसे किस हद तक उतार पाते हैं. आज जब चारों तरफ कथनी और करनी के बीच एक गहरी खाई बढ़ती जा रही है, ऐसे समय में अनुपम भाई ने अपने जीवन के हर दिन का अनमोल तरीके से सदुपयोग किया. अब गांधी शांति प्रतिष्ठान की एक कुर्सी खाली हो गयी है.
गांधी मार्ग का अगला अंक बिना उनके पारस स्पर्श के समाज के सामने आयेगा, लेकिन उन्होंने अपनी सजगता और सूझबूझ से लगभग हर मोरचे पर- विचार से लेकर रचना और आंदोलन तक- इतने लोगों के बीच में अपनी ऊर्जा बांटी थी कि ढेर सारे प्रतिबिंब में जगह-जगह अनुपम भाई की उपस्थिति बनी रहेगी. यह जरूर गहरे संताप की बात है कि आज जब उनका चालीस साल से उठाया गया पानी का सवाल और उसके समाधान का समय आ गया था, तब एकाएक जलशक्ति की महासाधना का मार्गदर्शक हमारे बीच से चला गया. उन्हें हृदय की गहराई से नमन!
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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