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जली सिगरेट का टोटा पर्यावरण के लिए खतरनाक

उद्यम : पर्यावरण के लिए नुकसानदेह सिगरेट का अवशेष बना कमाई का जरिया अब तक सुनते आये थे कि सिगरेट पीना खतरनाक है, मगर अब पता चल रहा है कि पीने के बाद फेंक दी गयी सिगरेट भी पर्यावरण के लिए उतनी ही खतरनाक है. इस खतरे को भी साधने का इंतजाम गुड़गांव के दो […]

उद्यम : पर्यावरण के लिए नुकसानदेह सिगरेट का अवशेष बना कमाई का जरिया
अब तक सुनते आये थे कि सिगरेट पीना खतरनाक है, मगर अब पता चल रहा है कि पीने के बाद फेंक दी गयी सिगरेट भी पर्यावरण के लिए उतनी ही खतरनाक है. इस खतरे को भी साधने का इंतजाम गुड़गांव के दो नौजवानों ने कर दिया है. कमाई भी हो रही है और पर्यावरण भी बच रहा है. पढ़िए एक रिपोर्ट.
सिगरेट पीने के बाद इसका बट फेंक दिया जाता है. सिगरेट जितना नुकसानदेह आदमी के लिए है, उससे कहीं ज्यादा नुकसानदेह फेंका हुआ बट हमारे पर्यावरण के लिए है. दुनिया भर में सिगरेट पीने वालों की तादात बहुत बड़ी है. एक आकलन के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग 110 करोड़ लोग सिगरेट पीते हैं. उनमें 80 करोड़ पुरुष हैं, जो स्मोकर हैं.
पूर्वी यूरोप, दक्षिण कोरिया, कजाखस्तान और जापान के लोग सर्वाधिक सिगरेट पीनेवालों में हैं. अब इन आंकड़ों से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतनी ही मात्रा फेंके गये सिगरेट-बटों की होगी. अकेले बेंगलुरु में प्रति दिन 31 लाख सिगरेट-बट फेंके हुए मिलते हैं. एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में औसतन हर साल फेंके गये सिगरेट-बटों का वजन लगभग 1.69 बिलियन पौंड होता है. ये बट पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह होते हैं. ये बट बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं, यानी जैविक रूप से नष्ट नहीं किये सकते हैं. यह जहरीला कचड़ा मनुष्य की सेहत के लिए भी चुनौती है. सिगरेट-बट सेेल्यूलोज एसीटेट नामक सिंथेटिक पॉलीमर का बना होता है.
यह एक किस्म का प्लास्टिक फिल्टर है. जानकारों के मुताबिक, इसे पूरी तरह से सड़ने-घुलने में डेढ़ साल से लेकर 10 साल का समय लग जाता है.
मिलिए विशाल कांत और नमन गुप्ता से. दोनों नौजवान गुड़गांव के हैं. 25 वर्षीय विशाल पेशे से इंजीनियर हैं और नमन दिल्ली यूनिवर्सिटी के ग्रेेजुएट हैं. उन्होंने एक स्टार्टअप बनाया है- ‘कोड’. इसका काम सिगरेट-वेस्ट यानी फेंके गये सिगरेट-बटों को रिसायकल करना. इस स्टार्टअप को शुरू करने का विचार उन्हें एक पार्टी में आया, जहां उनकी नजर जमीन पर फेंके हुए सिगरेट के टुकड़ों पर पड़ी. इतनी बड़ी मात्रा में सिगरेट-बट का कचड़ा देख कर वे सन्न रह गये.
तभी उन्होंने यह पक्का कर लिया कि इसी क्षेत्र में स्टार्टअप शुरू किया जाये. हालांकि वे पहले से ही ऐसा स्टार्टअप शुरू करने की सोच रहे थे. इस एक घटना ने उनके इरादे को ठोस रूप देने में मदद कर दी. उन्हें लगा कि इस कचड़े को रिसायकल करके कुछ बना सकें तो सिगरेट-बट वाले कचड़े का निस्तारण हो सकेगा.
इसी योजना के तहत जुलाई 2016 में उन्होंने ‘कोड’ लांच किया. यह हर किस्म के रिसाइक्लिंग का वन-स्टॉप सोल्यूशन उपलब्ध कराता है. यह स्टार्टअप पीने के बाद बची हुई सिगरेट के हर अवयव का रिसाइक्लिंग करता है. सबसे मजेदार बात यह है कि यह स्टार्टअप ग्राहक को बची हुई सिगरेट देने के बदले में पैसे भी देता है, यानी बची हुई सिगरेट की भी कीमत है. कंपनी हर 100 ग्राम सिगरेट-बट के लिए 80 रुपये और एक किलोग्राम सिगरेट-बट के लिए 700 रुपये का भुगतान करती है. यानी सिगरेट का ग्राहक और वेंडर दोनों को ही बची हुई सिगरेट बेच कर कमाने का अवसर है.
ट्रीटमेंट के बाद यह फिल्टर 99 फीसदी तक इस्तेमाल के लिए सुरक्षित होता है. इसे एक केमिकल से ट्रीट किया जाता है. इससे बने बाइप्रोडक्ट की जांच की जाती है. यह ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड द्वारा अनुमोदित है. यह स्टार्टअप नोएडा में स्थित है. इनके कस्टमर और वेंडर बढ़ते ही जा रहे हैं. अभी 50 वेंडर हैं. सिगरेट-बट का कूड़ा इकट्ठा करने के लिए वीबिन बनाया गया है. ‘कोड’ के लिए कूड़ा इकट्ठा करनेवाला हर 15 दिन में एक बार ग्राहक के पास से सिगरेट-बट इकट्ठा करता है.
हेल्थ केयर ग्लोबल कैंसर सेंटर के डॉ विशाल राव बताते हैं कि -“ सिगरेट का कूड़ा हमारे पर्यावरण के लिए बहुत ही खतरनाक है. ज्यादातर सिगरेट फिल्टर कैंसर रोग पैदा करनेवाले होते हैं. अगर इसे पानी में डाल दें तो पानी को भी प्रदूषित कर देता है. मछली, जानवर और पक्षी यदि इसे खा लें, तो यह और भी खतरनाक हो सकता है. ”
(इनपुट: योरस्टोरी डॉटकॉम)

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