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आइओटी स्टार्टअप्स की राह में चुनौतियां

इंटरनेट ऑफ थिंग्स गूगल, एप्पल, आइबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, सिस्को और एसएपी जैसी आइओटी यानी इंटरनेट ऑफ थिंग्स के क्षेत्र में कार्य करनेवाली अनेक कंपनियों की कामयाबी से प्रेरित होकर भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में उद्यमियों ने गैर-पारंपरिक उद्योगों की ओर ध्यान दिया है. ‘गार्टनर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 तक इस सेक्टर […]

इंटरनेट ऑफ थिंग्स
गूगल, एप्पल, आइबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, सिस्को और एसएपी जैसी आइओटी यानी इंटरनेट ऑफ थिंग्स के क्षेत्र में कार्य करनेवाली अनेक कंपनियों की कामयाबी से प्रेरित होकर भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में उद्यमियों ने गैर-पारंपरिक उद्योगों की ओर ध्यान दिया है. ‘गार्टनर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2020 तक इस सेक्टर में सालाना 309 अरब डॉलर राजस्व सृजित होने की उम्मीद है.
लेकिन, सफलता हमेशा ही चुनौतियों से घिरी होती है और यह केवल उन्हीं लोगों को मिलती है, जो सभी प्रकार के हालात के मुताबिक अपनी योजनाएं, नीतियां और रणनीतियां बनाते हैं व उस पर अमल करते हैं. कुछ निर्धारित कारोबारी चुनौतियों के अलावा प्रत्येक स्टार्टअप को शुरुआती दौर में अनेक मुश्किलों का सामना करना होता है. आइओटी स्टार्टअप्स के साथ भी ऐसा ही है. फंडिंग, वर्किंग कैपिटल, मार्केटिंग ओर भर्ती की चुनौतियों के बावजूद आइओटी कंपनियाें को आरंभिक दौर में विविध प्रकार की तकनीकी और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी चुनौतियों से मुकाबला करना होता है, जिनके बारे में विस्तार से बता रहा है आज का स्टार्टअप आलेख …
जटिल सिस्टम को मैनेज करने के लिए अनुभव की कमी
आइओटी एक तरह से हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और अन्य डिजिटल तकनीकों का एक जटिल मिश्रण है, जो क्लाउड आधारित तकनीक के इस्तेमाल से अनगिनत सिस्टम्स व डिवाइसों को कनेक्ट करने में मदद करता है. इस उच्च जटिल मैकेनिज्म के कारण सभी प्रोटोकॉल और मानकों का समुचित अनुपालन बेहद कठिन है. जरा-सी लापरवाही यहां व्यापक नुकसान का कारण बन सकती है. साथ ही इस दशा से उबरने के लिए संगठन पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पैदा हो सकता है. लिहाजा शीर्ष स्तर के मैनेजर्स की शैक्षणिक योग्यता और अनुभव उनकी जिम्मेवारियों के मुताबिक होनी चाहिए, ताकि कुशलता से सभी चीजों को मैनेज किया जा सके.
कनेक्टिविटी की बाधा
कनेक्टिविटी को आइओटी सिस्टम का ऑक्सीजन कहा जाता है. क्लाउड के तहत आपस में कनेक्टेड विविध डिवाइस एक जटिल परिघटना है और आइआेटी फ्रेमवर्क के तहत, जिसमें बेशुमार डाटा और संकेतों का प्रवाह बना रहता है, उन सभी के लिए यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी डिवाइस क्लाउड से इतर न रहे. लेकिन, भारत जैसे विकासशील देशों में इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह व्यवस्थित नहीं है और महज कुछ ही शहरों तक 24 घंटे बिजली आपूर्ति होती है. ऊर्जा और इंटरनेट की समस्या को दूर करने के लिए स्टार्टअप्स बहुत ज्यादा निवेश नहीं कर सकते हैं. ऐसे में क्लाइंट्स को बाधारहित आइओटी सेवाएं मुहैया कराना स्टार्टअप कंपनियों के लिए चुनौती बन जाती है.
आंकड़ों की सुरक्षा का खतरा
आइओटी सेटअप में डाटा शेयरिंग की भी भूमिका है, क्योंकि क्लाउड पर विविध इंटरकनेक्टेड डिवाइसों में व्यापक पैमाने पर डाटा संचय होता है. क्लाउड पर मौजूद आंकड़ों की सुरक्षा और देखभाल के लिए ज्यादा खर्च करना होता है, जबकि स्टार्टअप्स के पास बजट सीमित होते हैं. इसकी अनदेखी करने की दशा में, एकीकृत उपकरणों की व्यापकता और ऑटोमेशन के कारण हैकरों के लिए बहुत सी चीजें आसान बन जाती हैं. कारोबार की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता. सभी स्टार्टअप्स इसे स्पष्ट रूप से समझते भी हैं. लेकिन, सीमित संसाधनों के कारण सुरक्षा संबंधी खतरों से बचाव के लिए स्टार्टअप्स ज्यादा रकम खर्च करने की स्थिति में नहीं होते हैं.
एलायंस और आउटसोर्सिंग नहीं होते सफल
मैन्यूफैक्चरिंग व सर्विस सेक्टर में अनेक उद्योगों में गुणवत्ता को कायम रखने और सांगठनिक संसाधन व धन को बचाने के लिए एलायंस और आउटसोर्सिंग की रणनीतियां बनायी जाती हैं और वे कारगर भी साबित होती हैं. लेकिन, आइओटी में इस तरीके से संसाधनों की बचत करना बेहद मुश्किल है. हालांकि, इसके कई कारण हैं.
(क) जटिल इंटरफेस : लाखों डिवाइसों व मशीनों को बाधारहित कनेक्टिविटी मुहैया कराना सबसे बड.ी समस्या है.
(ख) हाइ सेंसिटीविटी : चूंकि सभी डिवाइस में कुछ महत्वपूर्ण आंकड.े होते हैं और सभी डिवाइस ऑटोमेटिक तौर पर आंकड.ों का संचय करते हैं.
यानी, जो कोई भी क्लाउड में दाखिल होने में सक्षम हो गया, वह आसानी से इन डिवाइसों तक घुसपैठ कर सकता है. ऐसे में बाहरी लोगों से हमेशा जोखिम बना रहता है. यही कारण है कि ज्यादातर आइओटी स्टार्टअप्स दूसरों के साथ मिल कर गंठबंधन में काम नहीं करना चाहते और न ही आउटसोर्स काम करवाते हैं
मौजूदा परिदृश्य के मुताबिक जरूरी है बदलाव
स्टार्टअप शुरू करनेवाले उद्यमी को सबसे ज्यादा ध्यान इस बात पर देना होता है कि मार्केट में क्या नया हो रहा है. संभावित बदलावों को समझते हुए अपने कारोबार को उसी के मुताबिक उसे ढालना होता है. तकनीक के बढते प्रभाव के दौर में यह जरूरी हो गया है. जानते हैं इस संबंध में प्रमुख तथ्यों को :
लिखित में करें प्लानिंग : स्टार्टअप की शुरुआत करनेवाले उद्यमी एक बड़ी गलती यह करते हैं कि वे बिजनेस से जुड़े सारे प्लान अपने दिमाग में ही रखते हैं. इसका नुकसान यह होता है कि लिखित खाका नहीं होने से अपने सहयोगियों को सही तरीके से गाइड नहीं किया जा सकता. बिना किसी लिखित प्लानिंग के स्टार्टअप शुरू करने गलती आप नहीं करें. लिखित बिजनेस प्लान मुश्किल स्थितियों में सही दिशा दिखाने का काम कर सकता है.
विजन के साथ चलना जरूरी : स्टार्टअप आइडिया को लेकर जिस विजन के साथ आप चले हैं, उसमें यकीन करना अच्छा है, लेकिन अनुभवी लोगों की सलाह को खारिज कर देना सही नहीं है. आप भले ही अपने मन की करें, लेकिन जिस क्षेत्र में आप परेशानी का सामना कर रहे हैं, उससे जुड़े विशेषज्ञों की सलाह लेने से परहेज न करें. इससे आपको फायदा ही होगा.
प्रसार नहीं, जमाने पर दें ध्यान : स्टार्टअप की शुरुआती सफलता से बेहद प्रभावित होकर कई उद्यमी अपने बिजनेस का बहुत ज्यादा प्रसार करने लगते हैं. कारोबार को जमाने की बजाय वे नयी-नयी जगहों पर उसे फैलाने पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं. शुरुआती दौर में यह नजरिया सही नहीं है. पहले एक स्थान पर कारोबार को अच्छी तरह तरह से स्थापित करने के बाद ही इसे ज्यादा फैलाने पर जोर देना चाहिए.
समय के साथ बदलाव : कारोबार की योजना निर्धारित उन नियमों की तरह नहीं होती, जिसमें कभी बदलाव नहीं किया जा सकता. बदलते वक्त के दौर में कामयाबी हासिल करने के लिए मौजूदा परिदृश्य के अनुरूप अपनी योजना में बदलाव किया जा सकता है. मुमकिन है कि पिछले साल तक आप जिस नीति के तहत काम कर रहे थे, अब वह ज्यादा कारगर नहीं रह गयी हो. लिहाजा आपको सदैव बदलावपर ध्यान देना होगा.
स्टार्टअप क्लास
खुदरा कारोबार शुरू करने के लिए इन प्रमाणपत्रों की होती है दरकार
– छह माह पहले मैंने एक लाख रुपये से खुदरा जनरल स्टोर शुरू किया है़ इसके लिए मुझे किन-किन लाइसेंस की जरूरत होगी़ – सुशील कुमार
देखिये, खुदरा व्यापार सबसे आसानी से शुरू किया जा सकने वाला व्यापार है, लेकिन इसके लिए भी थोड़ी बहुत प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है. आपके व्यापार के लिए इन लाइसेंस का होना जरूरी है :
(क) रजिस्ट्री : आप अपने व्यापार को पार्टनरशिप या फिर प्रोपराइटरशिप के जरिये चला सकते हैं. अगर आप पार्टनरशिप के अंदर व्यापार करना चाहते हैं, तो आपको नोटरी से 100 रुपये के स्टांप पेपर पर एक पार्टनरशिप डीड बनवा लेनी होगी. यदि प्रोपराइटरशिप करना है, तो इसकी भी जरूरत नहीं है. हालांकि, पार्टनरशिप में व्यापार करना अच्छा होता है, क्योंकि उसमें टैक्स और दूसरी अलग सुविधाएं मिलती हैं और बैंक भी पार्टनरशिप फर्म को लोन आसानी से देते हैं. आप अपने किसी भी परिवार के सदस्य को पार्टनर बना सकते हैं.
(ख) बैंक अकाउंट : फर्म गठन के बाद बैंक अकाउंट व पैन कार्ड बनाना होगा. यदि प्रोपराइटरशिप फर्म है, तो नये पैन की जरूरत नहीं है. लेकिन पार्टनरशिप फर्म का नया पैन बनेगा.
(ग) सरकारी रजिस्ट्री : दुकान खोलने की जगह को आपको 1953 के शॉप्स एंड इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्टर करवाना होगा. यह रजिस्ट्री आप अपने जिला के श्रम और रोजगार कार्यालय में करवा सकते हैं. इसके तहत आपको अपने व्यापार की जानकारी और लोगों का विवरण देना होगा. आपको बिजली कार्यालय में व्यापारिक बिजली कनेक्शन के लिए भी आवेदन देना होगा.
(घ) वैट रजिस्ट्रेशन : आपको अपना वैट रजिस्ट्रेशन तथा टिन नंबर लेना होगा, जिसे हर रसीद पर छपवाना जरूरी होता है. साथ ही आपको यह प्रमाणपत्र दुकान में टंगवाना जरूरी है.
इन कार्यों के बाद आप अपना व्यापर शुरू कर सकते हैं.
सस्ती तकनीक आधारित आम और लीची के जूस
– बिहार में आम और लीची की व्यापक खेती होती है़ स्थानीय स्तर पर इसका जूस तैयार करने और मार्केटिंग के तौर पर स्टार्टअप शुरू किया जा सकता है?
बिहार में आम और लीची से तैयार जूस और जैम का अच्छा काम शुरू किया जा सकता है. इसके लिए इस तरह की तैयारी करनी पड़ेगी.
(क) उत्पादन : जूस और जैम के उत्पादन के लिए सस्ती तकनीक पर आधारित मशीनरी फरीदाबाद और सूरत में बड़े पैमाने पर बनती है. आप इन शहरों में अपना संपर्क बना कर बढ़िया मशीने ले सकते हैं. मशीनें ऐसी हों, जो कम-से-कम लोगों के द्वारा चलायी जा सकें, ताकि मजदूरी का खर्च कम हो.
(ख) पैकेजिंग : जो दिखता है, वही बिकता है. बढ़िया और टिकाऊ पैकेजिंग में निवेश करें. अच्छे डिजाइनर से अपनी पैकेजिंग डिजाइन करवायें. पैकेजिंग हल्की हो और बड़े पैक में भी उपलब्ध हो तो बेहतर है.
(ग) मार्केटिंग : आपको मार्केटिंग में निवेश करना पड़ेगा. छोटे पैमाने पर हर शहर में लोकल मार्केटिंग के लिए एजेंसी मिल जाती है. होर्डिंग और इवेंट में भी खर्च करना पड़ेगा, लेकिन बिना मार्केटिंग के मुनाफा नहीं कमा पायेंगे.
(घ) वितरण : अच्छे डिस्ट्रिब्यूटर बनायें. मार्केटिंग से ज्यादा डिस्ट्रिब्यूटर मायने रखते हैं, क्योंकि माल वही बेचते हैं. इसीलिए आप बड़े डिस्ट्रिब्यूटर के साथ काम करें व ज्यादा-से-ज्यादा स्कीमें चला कर उनका साथ जीतें.
शुरुआती दौर में स्टार्टअप के लिए ये चीजें हैं जरूरी
– स्टार्टअप के पहले तीन साल में किस चीज पर ध्यान देना चाहिए. मैं एक छोटी सॉफ्टवेयर कंपनी चलाता हूं और अभी दो महीने पहले ही काम शुरू किया है. – सुधांशु शेखर, रांची
हर स्टार्टअप की अपनी अलग तरह की जरूरतें होती हैं. उत्पाद तैयार करनेवाले स्टार्टअप को शुरू में अच्छे प्रोडक्ट पर ध्यान देना होता है, तो इ-कॉमर्स वालों को मार्केटिंग पर. मैं आपके उद्योग से जुड़े बड़े पहलुओं पर जानकारी देता हूं.
(क) सॉफ्टवेयर का फोकस : हर कंपनी हर तरीके का सॉफ्टवेयर नहीं बना सकती. बनाती भी है, तो इतना अच्छा नहीं कि वह बिक सके. इसका कारण उस उद्योग से जुड़े पहलुओं के बारे में जानकारी की कमी, जिसके लिए आप सॉफ्टवेयर बना रहे हैं. पहले तीन साल इस बारे में ध्यान देना पड़ेगा कि आप अपनी विशेषज्ञता किस उद्यम के लिए सॉफ्टवेयर बनाने में करना चाहते हैं. जैसे आप शिक्षा संबंधी सॉफ्टवेयर बनायेंगे या स्वास्थ्य संबंधी. ऐसा कर अपनी पहचान विशेषज्ञ के तौर पर बना लेंगे, जिससे दूरगामी फायदा मिलेगा.
(ख) टीम : आपको एक समझदार और बढ़िया टीम बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए. आप जिस उद्योग में हैं, उसमें ज्ञान एक बड़ा हथियार है. यदि लोग टिकेंगे नहीं, तो सॉफ्टवेयर की उपयोगिता में सुधार धीमा होगा, क्योंकि नये आदमी को सॉफ्टवेयर पर हाथ जमाने में समय लगेगा.
(ग) मुनाफा : सॉफ्टवेयर उद्योग में अक्सर आप कॉन्ट्रैक्ट तो एक दाम पर कर लेते हैं, लेकिन चूंकि सॉफ्टवेयर बनाने में समय लगता है और कुछ खर्चे जरूरत से ज्यादा हो जाते हैं. जैसे आपने एक कॉन्ट्रैक्ट जनवरी में किया कि आपको जून तक सॉफ्टवेयर बना कर देना है और आपको 10 लाख रुपये मिलेंगे. आपके काम करने के दौरान कुछ नयी जरूरतें आ गयीं और आपको एक या दो नये लोग लगाने पड़े. इससे आपकी लागत बढ. जायेगी और मुनाफा नहीं होगा. इसलिए आप अच्छे प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और सही दाम पर ही ध्यान दें, ताकि मुनाफे की गुंजाइश कम न हो.

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