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रीयल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट से मकान खरीदारों को राहत

बिल्डरों की मनमानी पर लगाम रीयल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 को विगत एक मई से लागू कर दिया गया है. यह भारतीय संसद का एक अधिनियम है, जो घरेलू खरीदारों की रक्षा के साथ रीयल एस्टेट में पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करने में मददगार साबित होगा. इस अधिनियम (रेरा) लागू होने के बाद […]

बिल्डरों की मनमानी पर लगाम

रीयल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 को विगत एक मई से लागू कर दिया गया है. यह भारतीय संसद का एक अधिनियम है, जो घरेलू खरीदारों की रक्षा के साथ रीयल एस्टेट में पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करने में मददगार साबित होगा. इस अधिनियम (रेरा) लागू होने के बाद डेवलपरों को नये और पुराने प्रोजेक्ट्स का रजिस्ट्रेशन कराना होगा. डेवलपरों को अब वर्तमान में चल रहे उन प्रोजेक्ट्स का रजिस्ट्रेशन करावाना होगा, जिनके कंप्लेशन सर्टिफिकेट जारी नहीं हुए हैं. इसके तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्राधिकरण बनाना अनिवार्य है.

घर खरीदने वालों के लिए यह किसी खुशखबरी से कम नहीं है. सरकार द्वारा रीयल एस्टेट कानून के रूप में एक उपभोक्ता केंद्रित कानून के लागू होने को एक ऐसे युग की शुरुआत माना जा रहा है, जहां उपभोक्ता की महत्ता सबसे ज्यादा होगी. – इस अधिनियम की इन धाराओं को एक मई, 2016 से लागू कर दिया गया था.

धारा 2, धारा 20 से 39, धारा 41 से 58, धारा 71 से 78 और धारा 81 से 92.

इस एक्ट की शेष सभी धाराएं एक मई 2017 से लागू की जा चुकी हैं.

इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान

– राज्य स्तर पर रीयल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (आरइआरए) के गठन का प्रावधान.

– त्वरित न्यायाधिकरणों द्वारा विवादों का दो माह की समयसीमा के भीतर निपटारा.

– 500 वर्ग मीटर या आठ अपार्टमेंट तक की निर्माण योजनाओं को छोड़ कर सभी निर्माण योजनाओं को रीयल एस्टेट नियामक प्राधिकरण में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है.

– ग्राहकों से ली गयी 70 फीसदी रकम को अलग बैंक में रखने और उस रकम को केवल संबंधित निर्माण कार्य में इस्तेमाल का प्रावधान.

– परियोजना संबंधी जानकारी जैसे-प्रोजेक्ट का ले-आउट, स्वीकृति, ठेकेदार और प्रोजेक्ट की मियाद का विवरण खरीददार को अनिवार्यतः देने का प्रावधान.

– पहले से बतायी गयी समय-सीमा में निर्माण कार्य पूरा नहीं करने पर बिल्डर द्वारा उपभोक्ता को ब्याज के भुगतान का प्रावधान. यह उसी दर पर होगा, जिस दर पर वह भुगतान में हुई चूक के लिए उपभोक्ता से ब्याज वसूलता.

– रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के आदेश की अवहेलना की स्थिति में बिल्डर के लिए तीन वर्ष की सजा व जुर्माने का प्रावधान.

– इसके अंतर्गत भरोसा, विश्वसनीय लेनदेन और किसी निर्माण प्रोजेक्ट के कुशल और समयबद्ध निष्पादन के माहौल में रियल एस्टेट क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहन दिया जायेगा.

साथ ही उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए संस्थागत बुनियादी ढांचे का सृजन और जरूरी संचालन नियम बनाने की प्रक्रिया पर जोर दिया जा रहा है.

अधिनियम का इतिहास और भूमिका

आवासीय और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय इस संबंध में पिछले आठ वर्षों से प्रयासरत है. जनवरी, 2009 में राज्यों के आवासीय मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में रीयल एस्टेट के लिए एक कानून का प्रस्ताव रखा गया था. वर्ष 2013 में केंद्र की यूपीए सरकार ने इस बिल को प्रस्तुत किया था. दिसंबर, 2015 में केंद्रीय कैबिनेट ने इसमें से 20 प्रमुख संशोधनों को मंजूरी दी, जिसकी सिफारिश राज्यसभा की एक समिति की ओर से की गयी थी. इससे पहले जुलाई, 2015 में एक चयन समिति ने भी इस संबंध में अपनी रिपोर्ट दी थी.

इस अधिनियम की प्रमुख धाराएं और उनके प्रावधान

– धारा 20 : रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन करना.

– धारा 28 : समुचित प्राधिकरण के परामर्श से रेगुलेटरी अथॉरिटी के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति.

– धारा 34 : नागरिकों के लिए सार्वजनिक रूप से रिकॉर्ड्स प्रदर्शित किये जाने हेतु एक वेबसाइट की देखरेख के लिए प्राधिकरण की जिम्मेवारियां इस प्रकार हैं :

– प्राधिकरण के साथ पंजीकृत की गयी सभी परियोजनाओं समेत उनके संबंध में समग्र जानकारियों को नियमों और अधिनियमों के मुताबिक वेबसाइट पर प्रदर्शित करना.

– प्रोमोटर्स के फोटोग्राफ्स के साथ उनका विस्तार से वर्णन.

– इस एक्ट के तहत रजिस्टर्ड एजेंट्स का विस्तृत फोटो के साथ विवरण.

– धारा 41 : केंद्र सरकार द्वारा सेंट्रल एडवाइजरी काउंसिल का गठन.

– धारा 43 : अपीलेट ट्रिब्यूनल का गठन और संबंधित अन्य नियम इस प्रकार से हैं :

– अंतरिम अपीलेट ट्रिब्यूनल के तौर पर किसी अन्य कानून के तहत मौजूदा ट्रिब्यूनल को निर्दिष्ट करना.

– हाइ कोर्ट के चीफ जस्टिस के परामर्श से अपीलेट ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन की नियुक्ति.

– चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर अपीलेट ट्रिब्यूनल के सदस्यों की नियुक्ति.

– धारा 51 : अपीलेट ट्रिब्यूनल के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति.

– धारा 75 : रीयल एस्टेट रेगुलेटरी फंड का गठन.

– धारा 84 : विविध सरकारों द्वारा बनाये गये अधिनियमों को छह माह के भीतर नियमों के तौर पर लागू कराना.

(स्रोत : मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अरबन पॉवर्टी एलिविएशन, भारत सरकार)

अब तक इन राज्यों व संघ शासित

प्रदेशों में जारी हो चुकी अधिसूचना

रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर अवैध माने जायेंगे बिल्डर : रीयल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट के तहत बिल्डरों को अपने प्रोजेक्ट 31 जुलाई तक सरकार के पास रजिस्टर्ड करवाने पड़ेंगे. ऐसा नहीं करने पर इन प्रोजेक्ट्स को अवैध निर्माण की तरह समझा जायेगा. रियलिटी रेगुलेटर के पास नये और मौजूदा, दोनों प्रोजेक्ट रजिस्टर्ड करवाने पड़ेंगे. इस एक्ट के तहत प्रॉपर्टी खरीदारों को बिल्डरों की ठगी से बचाने के कई प्रावधान किये गये हैं. इस सेक्टर के विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा इस एक्ट को लागू करने के बाद अब न केवल बिल्डरों की जवाबदेही बढ़ेगी, बल्कि प्रॉपर्टी डीलरों की राह भी पहले की तरह आसान नहीं होगी. डीलर और बिल्डर अब ग्राहकों को बरगला नहीं सकेंगे.

रेरा कानून की राह में हैं कई अड़चनें

– उमानाथ सिंह/रीयल एस्टेट सेक्टर के जानकार

री यल एस्टेट रेग्युलेशन एक्ट (रेरा) के बारे में जितनी चर्चा और खुशफहमी है, वह उतना रीयल है नहीं. अर्थव्यवस्था की सुस्त रिकवरी, अधिकांश निवेशकों व बायर्स का भरोसा खो चुके और लगभग डूबने के कगार पर पहुंच चुके रीयल एस्टेट सेक्टर में जान डालने के लिए सरकार ने आनन-फानन में एक मई से रेरा को लागू तो कर दिया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल इसके क्रियान्वयन और असर को लेकर है.

केंद्र सरकार द्वारा पेश रेरा महज एक मॉडल कानून है, क्योंकि जमीन राज्य सूची में आती है. केंद्रीय रेरा के दिशानिर्देशों के आधार पर अब राज्यों को इस कानून को लागू करना है. अभी तक महज नौ राज्यों और छह केंद्रशासित प्रदेशों ने ही इसे लागू यानी नोटिफाई किया है. जबकि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से 30 अप्रैल तक इस कानून को नोटिफाई करने के लिए कहा था. इससे राज्यों की गंभीरता खुद-ब-खुद साफ हो जाती है. जिन राज्यों ने रेरा लागू कर दिया है, वहां भी इसमें कई तरह के बदलाव किये गये हैं, जो इसकी मूल भावना के खिलाफ है.

हाउसिंग रेगुलेटर की नियुक्ति

पंजीकरण के बाद राज्यों को हाउसिंग रेगुलेटर नियुक्त करना और वेबसाइट बनानी है. जबकि महज तीन राज्यों- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान ने रेगुलेटर नियुक्त किया है और महाराष्ट्र को छोड़ कर किसी ने भी इसके लिए वेबसाइट नहीं बनायी है, जहां डेवलपर्स और ब्रोकर्स खुद को पंजीकृत कराने के साथ ही वर्तमान या नये प्रोजेक्ट को भी रजिस्टर करा सकें. बेशक कुछ राज्य इस प्रक्रिया में काफी आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन ये जरूरतें पूरी करने में उन्हें अभी कुछ महीने जरूर लगेंगे.

सबसे अधिक भ्रम की स्थिति वर्तमान प्रोजेक्ट को लेकर है. हालांकि, केंद्र और राज्य सरकारों ने लगातार साफ किया है कि वर्तमान प्रोजेक्ट के मामले में डेवलपर्स और बायर्स में से किसी को भी परेशान होने की जरूरत नहीं है. डेलवपर्स को वर्तमान प्रोजेक्ट के मामले में 31 जुलाई तक संबंधित राज्यों के रेरा के समक्ष रजिस्टर कराने का वक्त मिल गया है. अभी तक वर्तमान प्रोजेक्ट के विज्ञापन, मार्केटिंग और खरीद-बिक्री को लेकर भी भम्र की स्थिति थी, लेकिन अब यह काफी हद तक दूर हो गयी है, क्योंकि 31 जुलाई तक वे ये सबकुछ कर सकते हैं.

डेवलपर्स पर बनेगा दबाव

लेकिन नये प्रोजेक्ट के मामले में दिक्कत अभी भी बनी हुई है. जब तक राज्यों में रेरा का गठन नहीं हो जाता है और वहां रेगुलेटर की नियुक्ति नहीं की जाती है, नये प्रोजेक्ट लॉन्च करने के लिए डेवलपर्स को इंतजार करना पड़ेगा. रेरा का नोटिफिकेशन, रेगुलेटर की नियुक्ति, वेबसाइट के साथ अन्य बुनियादी जरूरतें पूरी करने में कुछ महीने लगने तय हैं. इसका नकारात्मक असर इस सेक्टर पर होना तय है. वैसे ही काफी समय से नये प्रोजेक्ट की लॉन्चिंग बहुत ही कम हो रही है, क्योंकि अधिकांश मौजूदा प्रोजेक्ट लटके हुए हैं, जिससे खरीदार का दम लगातार घुट रहा है.

रीयल एस्टेट सेक्टर से लाखों की संख्या में लोग प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. ब्रोकर्स की तो छोडिये, अभी तक कई सारे डेवलपर्स को भी इस कानून की कई सारी पेचीदगियां पता नहीं हैं. ब्रोकर्स के साथ कई डेवलपर्स को भी यह पता नहीं है कि वे किस तरह खुद का रजिस्ट्रेशन कराएं. रेरा की औपचारिकताओं के अनुरूप खुद को ढालने के लिए उन्हें अभी कई सप्ताह या फिर महीने लग सकते हैं. इधर बिल्डिंग मटीरियल्स की लगातार बढ़ी कीमतों के साथ फ्लैट्स की बिक्री और उसकी कीमतों में गिरावट से डेवलपर्स पहले से ही काफी दबाव में हैं.

इन सबके बावजूद इसमें कोई शक नहीं कि शुरुआत में भले ही रेरा अपनी उम्मीदों पर खरा उतरता हुआ नहीं दिखे, लेकिन पूरी तरह से गैर-रेगुलेटेड इस सेक्टर को रेगुलेट करने, पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और डेलवपर्स की जिम्मेवारी तय करने का यह एक प्रशंसनीय प्रयास है.

मौजूदा प्रोजेक्ट यानी जो प्रोजेक्ट अभी चल रहे हैं, उनमें जो बायर्स फंसे हुए हैं, उन्हें भी बड़ी राहत मिलनी तय है, क्योंकि डेवलपर्स को 31 जुलाई तक राज्य रेरा को बताना होगा कि कोई रुका हुआ प्रोजेक्ट कब तक बन कर तैयार हो जायेगा. समय पर प्रोजेक्ट तैयार नहीं होने पर उसे दंडित भी किया जा सकता है.

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