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आइसीजे में कुलभूषण मामला : फांसी पर रोक, लेकिन, आगे अभी कई पेच

पाकिस्तान के पैंतरों को जोरदार झटका देते हुए भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगाने में सफलता पायी है. लेकिन, अभी इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है. हालांकि, पाकिस्तान ने खुद माना है कि उसका पक्ष कमजोर है, पर वह इस रोक को हटाने के लिए पूरी कोशिश करेगा. […]

पाकिस्तान के पैंतरों को जोरदार झटका देते हुए भारत ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगाने में सफलता पायी है. लेकिन, अभी इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है. हालांकि, पाकिस्तान ने खुद माना है कि उसका पक्ष कमजोर है, पर वह इस रोक को हटाने के लिए पूरी कोशिश करेगा. न्याय की मान्य प्रक्रियाओं को किनारे रख जाधव को पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने मौत की सजा सुनायी है. इस प्रकरण पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का संडे-इश्यू…
पुष्पेश पंत
वरिष्ठ स्तंभकार
जाधव प्रकरण का डिप्लोमेसी में सौदेबाजी के लिए इस्तेमाल कर सकता है पाकिस्तान
हेग में स्थित इंटरनेशनल कोर्ट आॅफ जस्टिस द्वारा कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान सरकार द्वारा दिये मृत्यदंड पर स्थगन आदेश दिये जाने से यह लग रहा है कि भारत सरकार अपने नागरिक के प्राण बचाने में सफल हुई है. यह बात याद रखने लायक है कि स्थगन आदेश इस अदालत का अंतिम फैसला नहीं.
गोपनीय सुनवाई जारी है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पीड़ित परिवार को इस राहत की सूचना देकर आश्वस्त करते देर नहीं लगायी. इस बात का श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए कि उन्होंने सर्वोच्च स्तर पर सतर्कता बरतते हुए हर संभव कदम उठाया है. इंटरनेशनल कोर्ट अॉफ जस्टिस में भारत की तरफ से पैरवी करने के लिए अधिवक्ता हरीश साल्वे को नियुक्त किया गया अौर मामले की गंभीरता को देखते इसकी तत्काल सुनवाई की मांग की. जाहिर है कि साल्वे फिलहाल कामयाब रहे हैं, पर इससे यह नतीजा निकालना बुद्धिमानी नहीं कि भारत की जीत हुई है या हमारा राजनय सफल हुआ है.
इंटरनेशनल कोर्ट किसी देश के सर्वोच्च न्यायालय से बहुत भिन्न है. इसके फैसले को भले ही कोई पक्ष चुनौती नहीं दे सकता अौर न ही इससे ऊपर कहीं अपील की गुंजाइश है, परंतु इसके फैसलों को मानने की कोई बाध्यता किसी संप्रभु राज्य को नहीं होती.
पाकिस्तानी सूत्र अभी से यह कहने लगे हैं कि इस मामले में अदालत के क्षेत्राधिकार को वह स्वीकार नहीं करेंगे अौर इसी आधार पर स्थगन आदेश को मानने से इनकार करेंगे. ऐसी हालत में फिर से यह बैताल उसी डाल पर जा लटकेगा. पाकिस्तान मृत्युदंड को अदालत के फैसले के अनुसार नहीं, बल्कि अपनी इच्छानुसार अनियत काल तक स्थगित रख सकता है अौर इसे भारत के साथ राजनय में सौदेबाजी के लिए इस्तेमाल कर सकता है.
इस समय भले ही ऐसा लग रहा हो कि अपने एक निर्दोष नागरिक की जान बचाने में भारत सफल हुआ है, पर यह सोचना नादानी ही कही जायेगी कि इस राजनयिक संकट का समाधान हो गया है.
जाधव प्रकरण ने इसी बात को रेखांकित किया है कि निरंकुश पाकिस्तानी तानाशाही के आगे हमारी जनतांत्रिक सरकार कितनी लाचार है. जाधव को सजा उनके तथाकथित इकबालिया बयान के आधार पर सुनाई गयी है. पाकिस्तान में काम कर चुके राजदूत राजीव डोगरा का मानना है कि यह बयान असह्य यंत्रणा के बाद हासिल किया गया है अौर शायद इस यंत्रणा की वजह से ही जिस शारीरिक अौर मानसिक स्थिति में जाधव हैं, उसी की वजह से भारतीय दूतावास के किसी अधिकारी के साथ उनका साक्षात्कार नहीं कराया जा सकता है.
याद रखने लायक बात यह है कि पाकिस्तान की जेलों में बरसों से बंद भारतीय कैदियों, सैनिकों तथा नागरिकों के बारे में हम तभी चिंतातुर होते हैं, जब किसी को मृत्युदंड दिये जाने की घोषणा अचानक की जाती है. तभी असाधारण राजनयिक सक्रियता के दर्शन होते हैं. कुछ समय पहले सरबजीत सिंह के मामले में भी यही देखने को मिला था. सरकार के प्रयास असफल होने के बाद बंदी के परिवार की रहम की भीख को भी पाकिस्तान ने निर्ममता से ठुकरा दिया था.
यहां दो-तीन महत्वपूर्ण मुद्दों को याद रखना परमावश्यक है. पाकिस्तान सरकार का आरोप है कि जाधव निर्दोष भारतीय नागरिक नहीं अौर खतरनाक जासूस है, जो पाकिस्तान में आतंकवादी घटनाअों को अंजाम देता रहा है. इसी कारण उसके साथ सामान्य अंतरराष्ट्रीय कानून की पारंपरिक व्यवस्था के अनुसार बरताव नहीं किया जा सकता. अर्थात्, न तो भारतीय दूतावास के किसी राजनयिक के समक्ष उसके प्रत्यक्षीकरण की कोई बाध्यता है अौर न ही वह खुली अदालत मुकदमे के दौरान बचाव के वकील की नियुक्ति का अधिकारी है.
यदि बहस के लिए इस कुतर्क को पल भर के लिए स्वीकार भी कर लें, तब भी इस बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि वियेना कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करनेवाला कोई भी देश अपनी इस जिम्मेवारी से मुकर नहीं सकता कि बंदी बनाये गये सैनिकों अौर युद्ध अपराधियों को भी उनके मानवाधिकारों से वंचित प्राणी नहीं समझा जा सकता. उनके प्राण हरने से पहले समुचित विश्वसनीय कानूनी कार्रवाई की जायज अपेक्षा रहती है.
जासूसी अौर दहशतगर्दी का आरोप किसी भी विदेशी या स्वदेशी नागरिक पर लगाया जा सकता है. बंद फौजी अदालत में चलाये मुकदमे में पेश गवाही सबूत सार्वजनिक नहीं किये जा सकते. अतः इन आरोपों की विश्वसनीयता संदिग्ध ही बनी रहती है. सरहद पर बसे किसी गांव के नागरिक के द्वारा भूले-भटके ‘विदेश’ पहुंचने की घटनाएं आम हैं. ऐसा ही मछुआरों के साथ भी होता रहता है. प्रांरभिक जांच-पड़ताल के बाद इन्हें छोड़ा जाता रहा है.
जाधव के मामले में कुछ पेचीदगियां अौर भी हैं. बरसों पहले नौसेना के अफसर रह चुके जाधव बरसों पहले सेवा निवृत्त हो चुके थे अौर प्राप्त जानकारी के अनुसार ईरान में छलकपट से बंधक बनाये जाने के बाद ‘गिरफ्तार’ किये गये. इसी समय क्यों उनको मौत की सजा सुनाई गयी? क्या इसके पहले भारत सरकार को कोई जानकारी उन पर चलाये जा रहे ‘मुकदमे’ की थी? अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दो शत्रु देशों के बीच गिरफ्तार ‘जासूसों’ के आदान-प्रदान के अनेक उदाहरण पेश किये जा सकते हैं. पर, यह तब आसान होता है, जब मामला सुर्खियों में न छाया हो. क्या इस बार इस मामले में कुछ चूक हुई है?
पाकिस्तानी मामलों के जानकारों के अनुसार, दोनों ही देशों के बीच तनाव बढ़ाने (अौर कभी-कभार घटाने) के लिए इस तरह के बंदियों का दुरुपयोग खुफिया एजेंसी आइएसआइ अौर फौज करते हैं.
हाल के महीनों में जम्मू-कश्मीर में हालात लगातार बिगड़ते रहे हैं. किशोरों द्वारा सुरक्षा कर्मियों पर पथराव अौर मासूम कश्मीरियों की दहशतगर्दों द्वारा बर्बर हत्या का जो सिलसिला बुरहान वानी की मृत्यु से शुरू हुआ, वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा. भारतीय सुरक्षाकर्मियों पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि वह जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग कर रहे हैं, पर किसी भी निष्पक्ष व्यक्ति के लिए यह नकारना असंभव है कि घाटी में तैनात फौजी या सह-सैनिक दस्ते लगभग हाथ बांध कर खूंखार उपद्रवियो का सामना कर रहे हैं.
विडंबना यह है कि बाढ़ या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाअों के समय अपने प्राणों अौर संपत्ति के रखवाले वर्दीधारियों को दुश्मन करार देने में हुर्रियत समर्थक देर नहीं लगाते. अब तक यह बात कई बार जगजाहिर हो चुकी है कि शांति अौर सुव्यवस्था को अस्थिर करने का अभियान सरहद पार से सुनियोजित साजिश के तहत चलाया जा रहा है.
जब कभी भारत इस साजिश के लिए पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करता है, तो पाकिस्तान के हुक्मरान अन्यत्र ध्यान बंटाने के लिए कोई नया शिगूफा छोड़ देते हैं. यह सुझाना तर्क संगत है कि इस समय जाधव प्रकरण को पाकिस्तान द्वारा तूल दिया जाना इसी का उदाहरण है.
कुलभूषण जाधव मामले की आइसीजे में सुनवाई
भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा दी फांसी की सजा पर एक अहम फैसला लेते हुए हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत (आइसीजे) ने रोक लगा दी है. जाधव को सुनायी गयी सजा के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारत की अपील के एक दिन बाद यानी नौ मई को यह फैसला आया. इस मसले पर अदालत 15 मई को सुनवाई करेगी. पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने जासूसी के आरोप में पिछले महीने जाधव को फांसी की सजा सुनायी थी.
जाधव की फांसी के आदेश पर कैसे लगी रोक?
अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारत का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने जाधव की गिरफ्तारी को संदिग्ध, आरोपों को मनगढ़ंत और ट्रायल को दुर्भावनापूर्ण बताया. साल्वे ने कहा कि पाकिस्तान ने जाधव की गिरफ्तारी के काफी समय बाद भारत को सूचित किया और सजा की खबर भी मीडिया द्वारा ही प्राप्त हुई है.
साल्वे ने कहा कि एक साल से अधिक समय से भारत लगातार पाकिस्तान से कंसुलर एक्सेस की मांग करता आ रहा है. लेकिन, पाकिस्तान ने भारत को इसकी इजाजत नहीं दी. पाकिस्तान का यह रवैया विएना कन्वेशन का उल्लंघन है. साल्वे ने जाधव की फांसी की सजा को रुकवाने के लिए आइसीजे कानून के अधिनियम 41 व 74 (4) के तहत आइसीजे अध्यक्ष के अधिकारों का प्रयोग करने की अपील भी की. भारत की दलीलों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय अदालत के अध्यक्ष रॉनी अब्राहम ने रुल्स ऑफ द कोर्ट के अधिनियम 74 (4) के तहत पाकिस्तान को पत्र लिख कर जाधव की फांसी को रोकने का आदेश दिया और इस संबंध में 15 मई को सुनवाई की अगली तारीख मुकर्रर की.
वियेना कन्वेंशन
वियेना कन्वेंशन ऑन कंसुलर रिलेशंस, 1963, जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों पक्ष हैं, के आर्टिकल 36 (1) (सी) के अनुसार, जब एक देश दूसरे देश के व्यक्ति को किसी आरोप के तहत गिफ्तार करता है या उसे अपने देश की सीमा पर रोकता है, तो ऐसे में आरोपी के गृह राज्य से कंसुलर को भेजे जाने का प्रावधान है, ताकि वह अपने नागरिक के पक्ष को जान सके, उसके लिए कानूनी प्रतिनिधि उपलब्ध करा सके. साथ ही उसकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके. यह संधि 19 मार्च, 1967 को अस्तित्व में आयी थी और इस पर भारत व पाकिस्तान दोनों ने हस्ताक्षर किये थे.
आइसीजे के अादेश पर पाकिस्तानी अखबारों की राय
डॉन – सैन्य अदालत द्वारा भारतीय जासूस कुलभूषण जाधव की मौत की सजा सुनाये जाने के मामले में भारत ने वियना कन्वेंशन के उल्लंघन को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालत का रुख किया है.
द न्यूज इंटरनेशनल – जाधव की मौत की सजा के खिलाफ भारत अंतरराष्ट्रीय अदालत गया. अखबार ने यह भी लिखा कि भारतीय मीडिया का दावा है कि आइसीजे ने पाकिस्तान सैन्य अदालत द्वारा दिये गये मौत की सजा पर रोक लगा दी है.
डेली पाकिस्तान ग्लोबल – कुलभूषण जाधव के मामले को लेकर भारत ने अंतरराष्ट्रीय अदालत में अपील की. भारतीय मीडिया, सरकार ने गलत दावा कर जाधव की मौत पर रोक लगवायी है.
जियो न्यूज – रॉ एजेंट कुलभूषण जाधव की मौत के खिलाफ भारत आइसीजे गया, जबकि जाधव को बलूचिस्तान के मशकेल में खुफिया ऑपरेशन के दौरान पकड़ा
गया था.
भारत पहली बार गया है आइसीजे में
भारत द्वारा जाधव के मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाना बड़ी बात है, क्योंकि यह हमेशा से द्विपक्षीय मामले को बहुपक्षीय एजेंसी या अदालत में ले जाने से इनकार करता रहा है. यह पहली बार है, जब भारत ने इस तरह के मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाने की पहल की है. इस द्विपक्षीय मसले के अंतरराष्ट्रीय कानूनों द्वारा हल करने की पहल का नतीजा क्या होगा, यह अभी अस्पष्ट है. इससे पहले पाकिस्तान दो बार 1973 में और दूसरी बार 1999 में आइसीजे का रुख कर चुका है.
कैसे काम करता है आइसीजे
आइसीजे की स्थापना 1945 में यूएन चार्टर के द्वारा की गयी थी. आइसीजे के संवैधानिक अधिकार यानी स्टैट्यूट इसे दिशा-निर्देश देते हैं. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य तकनीकी रूप से इसके पक्षकार हैं, लेकिन सभी देश को यह घोषणा करनी होती है कि वे अदालत के आधिकारों को स्वीकार करते हैं. इस अदालत में 15 न्यायाधीश हैं, जिनका चयन संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा किया जाता है. प्रत्येक न्यायाधीश की कार्य अवधि नौ वर्ष की होती है.
आइसीजे में दो तरह के मामले की सुनवाई होती है- राज्यों के बीच होनेवाले कानूनी विवाद (कंटेंट्यूस केसेज) और संयुक्त राष्ट्र के अंगों और विशेष एजेंसियों द्वारा किसी कानूनी मसले पर सलाह देने का आग्रह करना (एडवाइजरी प्रोसिडिंग्स).
कंटेंट्यूस केसेज – इसके तहत संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्य और वैसे राज्य जो स्टैट्यूट ऑफ द कोर्ट के पक्ष रह चुके हैंया जिन्होंने विशेष परिस्थितियों में इसके अधिकारों को स्वीकार किया है, वे राज्य यहां अपील कर सकते हैं यानी पार्टी बन सकते हैं.
एडवाइजरी प्रोसिडिंग्स – इसके तहत केवल संयुक्त राष्ट्र के पांचों अंगों और संयुक्त राष्ट्र परिवार के 16 विशेष एजेंसियों की सुनवाई होती है. इसे तहत संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् किसी तरह के कानूनी प्रश्न के लिए एडवाइजरी ओपिनियन का आग्रह कर सकती है.
क्या है अधिनियम
74 (4) व 41
अधिनयम 74 (4) का प्रयोग तब किया जाता है, जब आइसीजे में दूसरे पक्ष द्वारा की गयी कार्रवाई को रोकने के लिए पहला पक्ष अस्थायी आदेश देने का आग्रह करता है, जैसा कि भारत ने जाधव के मामले में किया. वहीं अधिनियम- 41 आइसीजे को यह अधिकार देता है कि जरूरत पड़ने पर वह एक पक्ष के अधिकार की रक्षा के लिए अंतरिम आदेश जारी कर सकता है.
क्या है पाकिस्तान का रुख
– आइसीजे द्वारा जाधव की सजा पर रोक लगाने के अगले दिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सैन्य प्रमुख कमर जावेद बाजवा, आइएसआइ डायरेक्टर जनरल नवीद मुख्तार, वित्त मंत्री और अन्य अधिकारियों व मंत्रियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक की और इस मामले पर विस्तृत बातचीत की.
– इस संबंध में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह हेग में भारत द्वारा दायर अपील का निरीक्षण कर रहा है.
– रक्षामंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा है कि भारत खुद के प्रायोजित आतंकवाद से ध्यान भटकाने के लिए इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले गया है.
– शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने इस संबंध में कहा है कि पाकिस्तान भारत की अपील और इस मामले में आइसीजे के अधिकारों का विश्लेषण कर रहा है. सरताज ने आगे कहा कि विदेश कार्यालय इस संबंध में एक बयान जारी करेगा.
सुनवाई के दौरान क्या कह सकता है पाक
कल 15 मई को अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाधव मामले पर सुनवाई होगी. पाकिस्तान आइसीजे के आदेश को मानेगा या नहीं, इसका उत्तर स्पष्ट नहीं है. फिलहाल, पाकिस्तान यह कह चुका है कि इस मामले में दखल देने का कोई अधिकार आइसीजे के पास नहीं है, क्योंकि यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला है.
भारत और पाकिस्तान राष्ट्रमंडल देश के सदस्य हैं, एेसे में अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला इस मामले के ऊपर लागू नहीं होगा. पाकिस्तान अपने इस रुख पर कायम रहने की पूरी कोशिश करेगा. हालांकि, पाकिस्तान ने अभी तक अपनी दलीलों के बारे में किसी भी तरह के खुलासे से इनकार किया है.
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत का पक्ष मजबूत
कमर आगा
विदेश मामलों के जानकार
एक तो पहले ही कश्मीर में और भारत-पाक सीमा पर तनाव का माहौल बना रहता है, दूसरे पाकिस्तान हर रोज कोई न कोई ऐसी हरकत कर बैठता है, जिससे माहौल और भी बिगड़ जाता है. जिस तरह से कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान ने किडनेप करके रखा और फिर उन्हें फांसी की सजा तक सुना दी गयी, इससे लगता है कि हालात कुछ ठीक नहीं हैं. जाधव ईरान में बिजनेस करते थे और उन पर लगाये पाकिस्तान के आरोपों का इनकार करते हुए ईरान ने कहा है कि जाधव एक अच्छे व्यापारी थे, उनके खिलाफ कोई गलत रिपोर्ट नहीं है और उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है. इसके बावजूद पाकिस्तान तमाम कायदे-कानूनों की अनदेखी कर रहा है, तो ऐसे में भारत के पास अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में जाने का ही रास्ता था.
पाकिस्तान अगर यह सोच रहा है कि इस तरह के हालात पैदा कर उसे कुछ फायदा होगा, तो वह गलत सोच रहा है, क्योंकि ऐसे हालात में उसके समर्थक भी उससे दूर होते चले जायेंगे. भारत एक शक्तिशाली देश है और हम धैर्यवान भी हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि मामला बातचीत से सुलझ जाये. भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध भी अच्छे हैं, इसलिए पाकिस्तान की हरकतों से उसे ही खतरा है.
कुलभूषण जाधव के मामले में भारत हरसंभव प्रयास करेगा कि उन्हें सजा न हो. अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने भी जाधव की सजा पर रोक लगा दी है. लेकिन, पाकिस्तान अब भी कह रहा है कि यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है और इसलिए इस पर अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकार क्षेत्र का दखल नहीं होना चाहिए. लेकिन, वियेना कन्वेंशन प्रोटोकाल इस बात को कहता है कि अगर कोई भी बाहर का व्यक्ति किसी देश में किसी अवांछनीय गतिविधि में पकड़ा जाता है, तो उसे कंसुलर एक्सेस और कानूनी सहायता मुहैया करानी चाहिए. उसके घरवालों से उसे मिलने देना चाहिए. लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा कुछ नहीं किया. भारत जिस मजबूती के साथ अंतरराष्ट्रीय कोर्ट गया है, ऐसे में अगर अंतरराष्ट्रीय कोर्ट भी पाकिस्तान के खिलाफ कोई निर्णय दे देता है और पाकिस्तान उस निर्णय की अवमानना करता है, तो यह मसला यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल में चला जायेगा.
उसके बाद यूएन में इस मसले पर बहस होगी और वहां से होकर यह पाकिस्तान पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई तक भी पहुंच सकता है. ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान इस बात को नहीं समझ रहा है, लेकिन पाकिस्तान ने यह नहीं सोचा था कि भारत अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में चला जायेगा. यही वजह है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की ओर से भी इस बात के संकेत भी मिले हैं कि बातचीत होनी चाहिए.
कुछ लोग यह कह रहे हैं कि जिस तरह से जाधव मामले में भारत ने अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, ठीक उसी तरह पाकिस्तान भी कश्मीर मसले पर कर सकता है. लेकिन, मैं समझता हूं कि यह सब कहने की बात है. दरअसल, भारत-पाक के बीच विवाद के सारे मामले द्विपक्षीय हैं.
यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय हमेशा से यही मानता है कि बिना इंटरनेशनल फोरम में जाये ही भारत-पाक को अपने मसले खुद ही बातचीत से सुलझा लेने चाहिए. पाकिस्तान हमेशा कोशिश करता है कि मामला इंटरनेशनल फोरम में जाये, लेकिन भारत की ऐसी कोशिश कम ही रहती है, जब तक कि जरूरी न हो. फिलहाल भारत का पक्ष मजबूत है और अब देखना यह है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की कितनी
बात मानता है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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