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उत्तर कोरिया का पैंतरा : वैश्विक शांति के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं किम जोंग उन

सोमवार को जापान के सामुद्रिक क्षेत्र में मिसाइल दागने के बाद हो रही आलोचना के जवाब में उत्तर कोरिया ने कहा है कि वह अमेरिका के लिए जल्द ही ‘और बड़ा उपहार’ देने की तैयारी कर रहा है.उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार और मिसाइल कार्यक्रमों को लेकर बीते कई सालों से राजनयिक जगत में हलचल […]

सोमवार को जापान के सामुद्रिक क्षेत्र में मिसाइल दागने के बाद हो रही आलोचना के जवाब में उत्तर कोरिया ने कहा है कि वह अमेरिका के लिए जल्द ही ‘और बड़ा उपहार’ देने की तैयारी कर रहा है.उत्तर कोरिया के परमाणु हथियार और मिसाइल कार्यक्रमों को लेकर बीते कई सालों से राजनयिक जगत में हलचल रही है, पर उस पर दबाव बना पाने में सफलता नहीं मिल सकी है. जापान, चीन और दक्षिण कोरिया के साथ इस खींचतान में अमेरिका और रूस की भी बड़ी भूमिका है. इस मुद्दे के विविध पक्षों पर चर्चा आज के इन-डेप्थ में…
पुष्परंजन
(ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक)
सोमवार को नये सिरे से उत्तर कोरिया और जापान के बीच ठन गयी है. वजह बैलेस्टिक मिसाइल का प्रक्षेपण है. उत्तर कोरिया ने जो मिसाइल दागी है, वह शार्ट रेंज की स्कड मिसाइल है, जिसकी अधिकतम दूरी 500 किलोमीटर की होती है.
तीन हफ्ते के भीतर उत्तर कोरिया का यह तीसरा मिसाइल टेस्ट था. जापान सरकार के प्रवक्ता योशिहीदे सुगा के अनुसार, मिसाइल ने जापान सागर में गिरने से पहले 400 किलोमीटर की दूरी तय की. मिसाइल ‘शिमाने प्रिफैक्चर’ में जापान के सुदूर ओकी द्वीपों से करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर गिरी है, और इससे जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ है. जापान इससे भड़का हुआ है. प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने बयान दिया कि हम चुप नहीं बैठेंगे, इसका जवाब देने के वास्ते अमेरिका से मिलकर काम करेंगे. आबे ने आगे की रणनीति के लिए अपने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् की बैठक बुलायी है. दक्षिण कोरिया के नये राष्ट्रपति मून जे-इन ने भी अपने देश में ऐसी ही बैठक इस विषय पर बुलायी है.
अमेरिका और दक्षिण कोरिया गुस्से में
अमेरिकी नौसेना के ‘पैसिफिक कमांड’ की निगाहें उत्तर कोरिया की गतिविधियों पर निरंतर बनी हुई है. इसी कमांड ने जानकारी दी कि उत्तर कोरिया के वोसान द्वीप से मिसाइल दागी गयी, जिसने लगभग चार सौ किलोमीटर की दूरी छह मिनट में तय की. यह मिसाइल सादो और ओकी द्वीप समूहों के बीच गिरी है. यह इलाका जापान के ‘स्पेशल इकोनाॅमिक जोन’ में आता है.
ताकोशोकू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हितेशि ताकेसादा ने कहा कि अपनी मिसाइल निर्देशित करनेवाली प्रणाली से उत्तर कोरिया को पता था कि वह जापान के विशेष आर्थिक क्षेत्र में गिरेगी. ट्रंप तो जैसे इस इंतजार में थे कि उत्तर कोरिया कुछ गड़बड़ करे, और उसे दबोचा जाये और इसमें उन्हें भी लपेटा जाये, जो उत्तर कोरिया के मददगार देश हैं. ट्रंप ने सबसे पहले चीन पर तंज कसा कि उत्तर कोरिया ने पिछली बार चीन की तरफ मिसाइल दाग कर अपने मित्र का अपमान कर दिया. मगर चीन अपनी ओर से ‘पूरी कोशिश’ कर रहा है. ट्रंप ने ‘चाइना ट्राइंग हार्ड’ जैसे शब्द पर जोर देते हुए चीन को संदेश दिया कि आप भी उत्तर कोरिया का कुछ नहीं कर पाये.
चीन की जवाबदेही तय करने की तैयारी
इसमें कोई शक नहीं है कि उत्तर कोरिया चीन के बल पर उछलता रहा है. मगर, इस बार ट्रंप की कोशिश रही है कि चीन को किसी तरह घेर कर उसे उत्तर कोरिया को निपटाने में आगे किया जाए. संयुक्त राष्ट्र के जरिये इस दफा जिस तरह के प्रतिबंध को लगाने की बात हो रही है, उसमें पेट्रोलियम और गैस सप्लाई शामिल है. गैस व पेट्रोल के लिए उत्तर कोरिया सबसे अधिक चीन पर आश्रित है. चीन इसके लिए कितना तैयार होगा, इस विषय को आने वाले समय पर छोड़ना होगा.
जी-7 और संयुक्त राष्ट्र को सक्रिय करेंगे
वैसे उत्तर कोरिया द्वारा किये गये ताजा प्रक्षेपास्त्र परीक्षण के चंद दिन पहले 26-27 मई को सिसली में जी-7 की बैठक हुई थी, जिसमें उत्तर कोरिया एजेंडे में सबसे ऊपर था. शिंजो आबे ने उस बैठक के हवाले से कहा कि सदस्य देशों को पिछले हफ्ते के उस प्रस्ताव को याद दिलाते हुए उत्तर कोरिया के विरूद्ध एकजुट होने का आह्वान करेंगे.
जी-7 में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, जापान, इटली, कनाडा के अलावा यूरोपीय संघ भी शामिल है. ये देश और संगठन संयुक्त राष्ट्र में उत्तर कोरिया की मुश्कें कसने में आगे रहेंगे, इसमें संदेह की बात नहीं है. उसका दूसरा आधार 2006 में संयुक्त राष्ट्र का वह प्रस्ताव भी रहेगा, जिसमें उत्तर कोरिया द्वारा मिसाइल परीक्षण पर प्रतिबंध आयद की गयी थी.
यह पहला परीक्षण नहीं
उत्तर कोरिया ने जिस अंदाज में लगातार मिसाइलें दागी हैं, उससे लगता है कि उसे किसी भी ऐसे प्रस्ताव या प्रतिबंध की परवाह नहीं है. वर्ष 2016 में 3500 किलोमीटर तक मार करने वाली मुसूदान मिसाइलों का उत्तर कोरिया ने परीक्षण कर लिया था.
ट्रंप के शपथ ग्रहण करने के महीने भर के भीतर 14 फरवरी को ‘पुख्गुक्सोंग-2’ मिसाइल उत्तर कोरिया ने दागी थी. उस घटना के बाद बयानबाजी तो खूब हुई, पर अमेरिका कोई त्वरित कार्रवाई नहीं कर सका था. इस हफ्ते जापान की जल सीमा में परीक्षण के दूसरे दिन मंगलवार को जो कुछ उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन ने कहा है, उससे अमेरिका के कान जरूर खड़े हुए हैं. किम जोंग उन ने कहा कि हम जो छठा टेस्ट करेंगे, उस अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल की मार अमेरिका तक होगी. इसका मतलब यह होता है कि उत्तर कोरिया इस महत्वाकांक्षी परियोजना के करीब पहुंच चुका है. राजधानी फ्योंगयांग में 2012 की परेड में दो बैलेस्टिक मिसाइलें दिखी थीं. एक थी ‘केएन-14’, जिसकी मारक क्षमता दस हजार किलोमीटर तक बतायी गयी है. दूसरी मिसाइल ‘केएन-08’ 11 हजार 500 किलोमीटर तक प्रहार कर सकती है.
उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम के पीछे कौन?
प्रशांत महासागर वाले इलाके में अमेरिका और उसके मित्रों केे विरूद्ध बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस एक आत्मधाती देश खड़ा हो, उसमें सबसे अधिक किसकी दिलचस्पी हो सकती है? उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम में जो सबसे बड़ा सहयोगी रहा है, उस पर ध्यान दें, तो सारी बातें समझ में आ जाती है.
यह सारी रणनीति शीतयुद्ध के दौर में बनी थी. उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रमों को सबसे अधिक ताकत रूस से मिली है. मिस्र के जरिये उत्तर कोरिया को मिसाइलों के उपकरण किस्तों में भेजे जाते रहे. वर्ष 2012 में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पुतिन को किम जोंग उन द्वारा भेजा पत्र चर्चा का विषय था. पुतिन उत्तर कोरिया के इस युवा तानाशाह से इतने प्रभावित हुए कि सितंबर, 2012 में 11 अरब डालर की ऐतिहासिक कर्ज माफी दे दी. ट्रंप अपने परम मित्र पुतिन को प्रतिबंध लगाने के लिए क्यों नहीं कह रहे?
पड़ोसी देशों के साथ उत्तर कोरिया की नजदीकी चिंताजनक
अमेरिका के सामने निकट भविष्य में एक विकराल चुनौती खड़ी हो जाये, उससे पहले ट्रंप प्रशासन को उत्तर कोरिया के नाभिकीय हथियार कार्यक्रमों को रोकने के लिए अंतराष्ट्रीय समुदाय की मदद से राजनयिक और आर्थिक पेच को कसना होगा. उत्तर कोरिया के साथ चीन की व्यापारिक साझेदारी और सहयोग तो जगजाहिर है, लेकिन असली चुनौती दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ उसके राजनयिक संबंध और छोटे-मोटे व्यापारिक संबंधों को रोकने की है.
हाल की संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में भी खुलासा किया गया कि दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ जारी राजनयिक संबंध और उत्तर कोरियाई राजनयिकों की बड़ी भूमिका की वजह से उत्तर कोरिया को वाणिज्यिक गतिविधियों को जारी रखने में मदद मिल रही है. इससे नाभिकीय व मिसाइल कार्यक्रमों और तकनीकी हस्तांतरण को रोकने के लिए लागू किये सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों का उल्लंघन हो रहा है.
अमेरिका का आसियान देशों को निर्देश
उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों की पकड़ मजबूत करने और उसे अलग-थलग करने के लिए अमेरिकी विदेश सचिव रेक्स टिलरसन ने दक्षिण-पू्र्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के देशों को उत्तर कोरिया से दूरी बनाने का निर्देश दिया था. पीटरसन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के शोध विश्लेषक केंट बॉयड्स्टन के मुताबिक आसियान देशों के रवैये से फिलहाल ऐसा संकेत नहीं मिल रहा है, जिससे यह संकेत मिले कि ये देश उत्तर कोरिया पर शिकंजा कसने को तैयार हैं.
आसियान और उत्तर कोरिया संबंध
फिलीपींस और ब्रुनेई को छोड़कर आसियान के सभी देशों में उत्तर कोरिया का दूतावास है. इस बात की पूरी संभावना जतायी जाती रही है कि इनका इस्तेमाल गैर-राजनयिक कार्यों के लिए किया जा रहा है.
दूसरी ओर, इंडोनेशिया, वियतनाम, लाओस, मलयेशिया और कंबोडिया के दूतावास उत्तर कोरिया में संचालित हो रहे हैं. बॉयड्स्टीन के अनुसार बिना दूतावास के मनीला वर्ष 2016 में उत्तर कोरिया का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है. फिलीपींस उत्तर कोरियाई ड्रग्स माफियाओं के लिए सबसे मनमाफिक जगह बन चुका है. इन देशों में उत्तर कोरिया के लिए मिल रहे खाद-पानी का बड़ा खुलासा फरवरी माह में उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के भाई किम जोंग नम की मलयेशिया में हत्या के बाद हुआ था.
जांच में यह बात सामने आयी थी कि उत्तर कोरियाई एजेंट कुआलालमपुर में सैन्य उपकरणों की फर्म चलाते हैं. विशेषज्ञ उत्तर कोरिया के साथ आसियान देशों के साथ व्यापारिक संबंध को ही समस्याओं की जड़ के रूप में देखते हैं. हालांकि, उत्तर कोरिया का आसियान देशों के साथ व्यापार मात्र 181 मिलियन डॉलर का ही है, लेकिन इसे नजरअंदाज तो नहीं किया जा सकता.
– ब्रह्मानंद िमश्र
उत्तर कोरिया का मिसाइल कार्यक्रम और अमेरिका से तनातनी का इतिहास
2017
मार्च : उत्तर कोरिया ने जापान के समुद्र में चार बैलिस्टिक मिसाइलें दागी. ये मिसाइलें जापान की तटरेखा से 200 मील के भीतर दागी गयीं.
फरवरी : एक मध्यम लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल जापान के समुद्र में दागी गयी.
जनवरी : उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन ने कहा कि उनका देश परमाणु हथियारों से लैस एक लंबी दूरी की मिसाइल को अंतिम रूप देने में जुटा है.
2016
सितंबर : संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी प्रतिबंध के विरोध में उत्तर कोरिया ने अपने स्थापना दिवस के सालगिरह पर पांचवां और संभवत: सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण किया.
सितंबर : तीन बैलिस्टिक मिसाइलें छोड़ी गयीं जिनमें एक जापान के एयर स्पेस में प्रवेश कर गयी.
अगस्त : दुर्घटनाग्रस्त पनडुब्बी से जापान के समुद्र में बैलिस्टिक मिसाइल दागी गयी.
फरवरी : लंबी दूरी के रॉकेट ने उपग्रह को कक्षा में भेजा. अमेरिका का कहना था कि उपग्रह कक्षा में औंधे मुंह गिर गया है और सही तरीके से काम नहीं कर रहा है.
जनवरी : विशेषज्ञों ने उत्तर कोरिया के इस दावे पर संदेह व्यक्त किया कि उसने चौथा परमाणु परीक्षण और हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है. संयुक्त राष्ट्र ने एक बार फिर नये प्रतिबंधों को मंजूरी दी.
2015
सितंबर : उत्तर कोरिया ने अमेरिका पर परमाणु हमले की धमकी दी. इसके जवाब में अमेरिका ने उत्तर कोरिया से अंतरराष्ट्रीय शांति दायित्वों को पूरा करने को कहा.
2014
जुलाई : चीनी राष्ट्रपति के दक्षिण काेरिया यात्रा से पहले मिसाइल परीक्षण किया गया.
मार्च : प्रशांत महासागर में दो बैलिस्टिक मिसाइलों का परीक्षण किया गया.
2013
फरवरी : तीसरे परमाणु परीक्षण के बाद संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर नये प्रतिबंध लगाये. उत्तर कोरिया ने दावा कि उसने एक छोटे परमाणु उपकरण का परीक्षण किया है, जिसका सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा पता लगाना कठिन है. इसकी स्वतंत्र पुष्टि नहीं की गयी.
2012
अप्रैल : अमेरिका तक मार करने में सक्षम लंबी दूरी के रॉकेट का असफल परीक्षण किया गया.
2009
मई : दूसरा भूमिगत परमाणु परीक्षण किया गया, इस पर अनेक देशों ने नाराजगी जतायी.
अप्रैल : लंबी दूरी के रॉकेट का परीक्षण हुआ. उत्तर कोरिया के अनुसार यह परीक्षण सफल रहा. लेकिन अमेरिका ने कहा कि यह परीक्षण असफल रहा और रॉकेट समुद्र में गिर गया.
2006
अक्टूबर : पहला परमाणु परीक्षण भूमिगत किया गया. संयुक्त राष्ट्र ने परीक्षण से नाराज होकर उत्तर कोरिया पर व्यापक प्रतिबंध लगाये.
जुलाई : अमेरिका को लक्ष्य कर लंबी दूरी के लक्ष्य को भेदने में सक्षम सात मिसाइलों का परीक्षण किया गया.
2005
फरवरी : उत्तर कोरिया ने स्वीकार किया कि आत्मरक्षा के लिए उसने परमाणु हथियार विकसित किये हैं. साथ ही यह भी कहा कि परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता में उसकी दिलचस्पी नहीं है.

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