कोलकाता, अमर शक्ति : पश्चिम बंगाल के अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में भी बांग्ला भाषा की पढ़ाई अनिवार्य होगी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया. जल्द ही स्कूलों को दिशा-निर्देश जारी किये जायेंगे. राज्य सचिवालय के सूत्रों के अनुसार, पाठ्यक्रम में पहली और दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी और बांग्ला होगी. क्षेत्रीय भाषा को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जा सकता है.
ये क्षेत्रीय भाषाएं हिंदी, संथाली, उर्दू आदि होंगी. फैसले के मुताबिक, जल्द ही राज्य के सभी इंग्लिश मीडियम स्कूलों को गाइडलाइन जारी की जायेगी. इस नियम का पालन नहीं करने वाले स्कूलों के खिलाफ राज्य सरकार आवश्यक कार्रवाई करेगी. जरूरी हुआ तो राज्य सरकार स्कूल का लाइसेंस भी रद्द कर सकती है. गौरतलब है कि राज्य के हिंदी माध्यम के स्कूलों में पहले से ही बांग्ला भाषा की पढ़ाई का प्रावधान है.
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माना जा रहा है कि कोलकाता सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में फैले इंग्लिश मीडियम स्कूलों में बांग्ला भाषा की उपेक्षा आम बात हो गयी है. अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में जान-बूझकर बांग्ला न पढ़ाना एक चलन सा बन गया है. राज्य सरकार के साथ ही बांग्ला भाषी लोगों ने भी इस पर नाराजगी जतायी है. अब राज्य सरकार इन सभी घटनाओं को रोकने और राज्य की प्रादेशिक भाषा को उसका स्थान वापस दिलाने के लिए सख्त कदम उठाने जा रही है.
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राज्य सचिवालय से मिली जानकारी के अनुसार, अब राज्य के सभी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई होगी. इसे पहली या दूसरी भाषा के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल करना होगा. कहा गया है कि बांग्ला को नजरअंदाज कर किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा को किसी भी तरह से बढ़ावा नहीं दिया जा सकता. इसलिए राज्य सरकार ने अब बांग्ला भाषा के पाठ्यक्रम को अनिवार्य कर दिया है.
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गौरतलब है कि इससे पहले राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि यहां सिविल सर्विस की परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों के लिए बांग्ला भाषा का ज्ञान रहना अनिवार्य है. ऐसे में सवाल उठा था कि पहले सभी के लिए बांग्ला भाषा पढ़ने की व्यवस्था की जाये. इसे लेकर बुद्धिजीवियों व शिक्षा जगत के प्रतिनिधियों ने सवाल उठाये थे. माना जा रहा है कि इसी कड़ी में राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है.
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पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के सभी अंग्रेजी माध्यमू स्कूलों में बांग्ला भाषा का पाठ्यक्रम अनिवार्य करने की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है, लेकिन राज्य सरकार के लिए इसे लागू कर पाना कड़ी चुनौती होगी. शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं. शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों का दावा है कि पूरे बंगाल में स्थापित दिल्ली और सेंट्रल बोर्ड के तहत आनेवाले स्कूल राज्य सरकार के इस फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे. वे पहले कलकत्ता हाइकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे. क्योंकि ये स्कूल दिल्ली बोर्ड या सेंट्रल बोर्ड का पाठ्यक्रम अपनाते हैं.
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उन बोर्डों के निर्णय स्कूलों में छात्र प्रवेश से लेकर शिक्षक भर्ती तक सभी मामलों में लागू होते हैं और ये स्कूल राज्य शिक्षा विभाग के अधीन नहीं हैं, इसलिए राज्य इन स्कूलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. इसके अलावा, केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार किसी भी तरह देश के गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपना चाहती है. इसे थोपने में अंग्रेजी माध्यम स्कूल उनका बड़ा हथियार है. चूंकि केंद्र की भाजपा सरकार इन स्कूलों का समर्थन करती है, इसलिए ये अंग्रेजी माध्यम के स्कूल राज्य के फैसले को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे. वहीं, इस राज्य में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी व अन्य भाषाओं के भी कई छात्र पढ़ते हैं. उनकी मातृभाषा बांग्ला नहीं है. वे बांग्ला को दूसरी भाषा के रूप में कैसे स्वीकार करेंगे, यह भी शिक्षा समुदाय के लिए एक बड़ा सवाल है.
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कैबिनेट की बैठक में राज्य की नयी शिक्षा नीति को भी मंजूरी दे दी गयी. इसमें स्नातक स्तर का पाठ्यक्रम चार वर्ष का करने की सिफारिश की गयी है. गौरतलब है कि तृणमूल की नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने केंद्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मानने से इंकार कर दिया था. कहा गया था कि राज्य सरकार बंगाल के लिए अपनी शिक्षा नीति लेकर आयेगी. इसके लिए विशेषज्ञों की कमेटी का गठन किया गया था. विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी थी, जिसे अब कैबिनेट की मंजूरी मिल गयी.
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