कोलकाता: ममता बनर्जी ने चुनाव से पहले वादा किया था कि फिर से सत्ता में आने के बाद पश्चिम बंगाल में वह विधान परिषद की स्थापना करेंगी. विधानसभा चुनाव में जिन लोगों को वह टिकट नहीं दे पायीं हैं, उन्हें विधान परिषद में भेजा जायेगा. ममता बनर्जी सत्ता में लौट आयी हैं. विधान परिषद बनाने की तैयारी भी कर रही हैं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए तैयार है.
भाजपा संसदीय दल के सूत्रों के अनुसार, ममता बनर्जी के ‘पसंदीदा’ लोगों को दूसरे दरवाजे से समायोजित करने के लिए खजाने पर खर्च का बोझ डालना व्यर्थ है. इसलिए राज्य सरकार के कदम का विधानसभा से संसद तक विरोध किया जायेगा. हालांकि, सत्तारूढ़ दल विधानसभा में बहुमत के साथ अपने प्रस्ताव पर आगे बढ़ने में सक्षम था, लेकिन अगर भाजपा इसका विरोध करती है, तो ममता के लिए यह राह आसान नहीं होगी.
बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश जैसे कई भाजपा या एनडीए शासित राज्यों में विधान परिषद हैं. इन राज्यों के मामले में भाजपा का तर्क है कि विधायिका लंबे समय से है. भाजपा ने कभी खत्म कर दिये गये विधान परिषद को फिर से बनाने की कोशिश नहीं की. विधान परिषद की स्थापना के प्रस्ताव पर मंगलवार को बैठक में चर्चा होनी है. भाजपा के शुभेंदु अधिकारी इस बहस में भाग ले सकते हैं.
यह पहला मौका नहीं है, जब तृणमूल कांग्रेस ने विधान परिषद बनाने की कोशिश की हो. पहली बार सत्ता में आने के बाद ही ममता बनर्जी ने विधान परिषद का पुनर्गठन करने की कोशिश की थी. तत्कालीन संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी के नेतृत्व में सरकार और विपक्ष के प्रतिनिधियों के साथ विधानसभा में एक तदर्थ समिति का गठन किया गया था.
तीसरी बार सत्ता में लौटने के बाद राज्य मंत्रिमंडल में विधान परिषद गठन का प्रस्ताव पारित किया गया है. उसके बाद मामले को फिर से विधानसभा में लाया जा रहा है. वामपंथी इस बार भी विधान परिषद के गठन के खिलाफ मुखर हैं. उसी तरह से जैसे उन्होंने 10 साल पहले किया था. हालांकि, अब विधानसभा में उनका एक भी प्रतिनिधि नहीं है.
वर्तमान विपक्षी दल भाजपा का भी तर्क है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार विधानसभा के पास विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति नहीं है. मुख्य विपक्षी दल का कहना है कि राज्य सरकार खुद कह रही है कि वित्तीय स्थिति गंभीर है. ऐसे में इस सिस्टम की क्या जरूरत है, जो गतिरोध पैदा करता हो? सरकार के खजाने पर बोझ डालने की क्या जरूरत है? भाजपा ने पूछा है कि सत्ताधारी दल की ‘पसंद के लोगों’ को लाने के लिए विधायिका का गठन करना क्यों आवश्यक है?
सत्तारूढ़ दल आज भी अपने 10 साल पुराने स्टैंड पर अडिग है. कैबिनेट मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं कि विधानसभा के बाहर कई ‘योग्य शख्सीयतें’ हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने समाज के सभी वर्गों को लोकतांत्रिक और संसदीय व्यवस्था में शामिल करने की पहल की है. तृणमूल सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने तर्क दिया कि लोकतंत्र में संतुलन का महत्व बहुत अधिक है.
Posted By: Mithilesh Jha