कलकत्ता हाइकोर्ट ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट और यूट्यूब चैनल पर जनता के देखने के लिए मुख्य न्यायाधीश की अदालत की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की है. यह कदम स्वप्निल त्रिपाठी बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया रिट पिटीशन (सिविल) नंबर 1232/2017 मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तैयार किये गये दिशा-निर्देशों के अनुरूप है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने राय दी थी कि ””धीमी गति से हम अपनी उम्र की जटिलताओं के अनुकूल हो गये हैं, फिर भी न्यायपालिका के लिए यह आवश्यक है कि वह तकनीक के साथ आगे बढ़े.”” टेक्नोलॉजी को अपनाने से हम केवल न्यायिक प्रक्रिया में अधिक से अधिक विश्वास को बढ़ावा देंगे, इसलिए हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को उपलब्ध संसाधनों और तकनीकी सहायता के अनुरूप चरणों में हाइकोर्ट और जिला न्यायपालिकाओं दोनों में लाइव-स्ट्रीमिंग को अपनाने पर विचार करना चाहिए.
बताया गया है कि उच्च न्यायालयों को उपयुक्त नियम बनाकर ऐसा करने के तौर-तरीकों का निर्धारण करना होगा. कलकत्ता हाइकोर्ट ने पहले एक मामले में सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति दी थी, जिसमें पारसी महिलाओं और गैर-पारसी पुरुषों से पैदा हुए बच्चों को शहर में एक अग्नि मंदिर, जोरास्ट्रियन पूजा स्थल में प्रवेश की मांग की गयी थी. उक्त मामले में पारसी जोरास्ट्रियन एसोसिएशन ऑफ कलकत्ता के वकील फिरोज एडुल्जी ने इस आधार पर लाइव स्ट्रीमिंग की अनुमति मांगी थी कि मामले की सुनवाई देश के सभी पारसियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इस मामले के परिणाम से उन्हें लाभ होगा.
लाइव स्ट्रीम सुनवाई के इस ऐतिहासिक कदम से जनता मुख्य न्यायाधीश की बेंच की कार्यवाही को वर्चुअली देख सकेगी और न्यायिक प्रणाली की जवाबदेही के साथ-साथ न्याय तक पहुंच भी बढ़ सकेगी. हालांकि, लाइव स्ट्रीमिंग के संबंध में नियमों और अधिसूचना को कलकत्ता हाइकोर्ट द्वारा अधिसूचित किया जाना बाकी है.
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बिना काउंसिलिंग के ही अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र प्रदान किया गया है. ऐसा ही आरोप लगाते हुए माध्यमिक शिक्षा पर्षद के खिलाफ सलमा सुल्ताना नामक अभ्यर्थी ने कलकत्ता हाइकोर्ट में याचिका दायर की है, जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश विश्वजीत बसु ने पर्षद को आगामी सोमवार तक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. हाइकोर्ट ने पर्षद से पूछा है कि आखिर बिना काउंसिलिंग के कैसे नियुक्ति पत्र सौंपा गया, इसका जवाब पर्षद को देना होगा. सिर्फ यहीं नहीं, इसके साथ ही न्यायाधीश ने संबंधित जिले के शिक्षा विभाग के निरीक्षक को अदालत में पेश होकर जवाब देने का निर्देश दिया. न्यायाधीश ने स्पष्ट कहा कि वह पर्षद को इस मामले में कोई अतिरिक्त समय नहीं देंगे.
अगर बयान में थोड़ी-सी भी गड़बड़ी पायी गयी, तो फॉरेंसिक टीम को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा जायेगा. गौरतलब है कि दक्षिण दिनाजपुर जिले की रहने वाली सलमा सुल्ताना ने दावा किया है कि 2019 में उच्च प्राथमिक स्कूल में शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए आयोजित की गयी काउंसिलिंग में उसे पर्षद ने नहीं बुलाया था, लेकिन उसके पास इसका पुख्ता सबूत है कि उसके नाम पर किसी और को नियुक्ति पत्र सौंपा गया है. अब इसी मामले में हाइकोर्ट ने पर्षद से जवाब मांगा है.