अफगानिस्तान में तालिबान राज में महिलाओं के साथ आम लोगों का जीवन बद से बदतर है. तालिबानी शासन का सबसे ज्यादा खामियाजा पत्रकारों को उठाना पड़ रहा है. न्यूज एजेंसी एएनआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 के बाद अफगानिस्तान में दूसरी बार तालिबान के कब्जे के बाद से देश में 50 फीसदी पत्रकारों की नौकरी चली गई है. टोलो न्यूज की ओर से अफगानिस्तान नेशनल जर्नलिस्ट्स यूनियन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए ये जानकारी दी है.
18 महीनों में 50 फीसदी पत्रकार बेरोजगार: टोलो न्यूज की जानकारी के मुताबिक अफगानिस्तान में तालिबान शासन में अब तक देश के 50 फीसदी पत्रकारों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में 18 महीने या डेढ़ साल के अंदर देश के 50 फीसदी पत्रकारों की नौकरी चली गई. वहीं, तालिबानी शासन में आधे से ज्यादा मीडिया संस्थानों पर भी ताला लग गया है. आज हालात है कि पत्रकारों की आर्थिक के साथ-साथ कई और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
मीडिया गतिविधियों पर लगाम: रिपोर्ट के मुताबिक, कट्टर तालिबान शासकों ने देश में मीडिया की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. जिससे पत्रकारों के सामने आर्थिक संकट मुंह बाये खड़ा है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, अफगानिस्तान में पत्रकारों की गिरफ्तारी आम बात हो गई है. देश में मीडिया की आजादी अब नाम मात्र की रह गई है. संवेदनशील मामलों को कवरेज करने वाले पत्रकारों को धमकी दी जा रही है. उन पर पाबंदी लगा दी गई है.
संयुक्त राष्ट्र ने मांगी स्वतंत्र राय: इन सबसे इतर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर पूछा है कि किस तरह एकजुट अंतरराष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान के सामने मौजूद विशाल चुनौतियों को दूर कर सकता है. जापान और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की ओर से पेश प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस से अफगानिस्तान की स्थिति के आकलन के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने का आग्रह किया गया है. प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के अंदर और बाहर राजनीतिक, मानवीय और विकास संबंधी मुद्दों पर काम कर रहे देशों से स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाने का अनुरोध किया गया है.
भाषा इनपुट के साथ