रांची : बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी हिंसक आंदोलन के सोमवार को दो महीने पूरे हो गये. इस समय पूरा बांग्लादेश आरक्षण विरोधी आग में जल रहा है. यहां छात्र 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने का विरोध कर रहे हैं. हालांकि, 21 जुलाई को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की सीमा कम कर दी थी, परंतु आंदोलन कम होने की बजाय और उग्र हो गया. बता दें कि 1972 में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में किये गये 30% आरक्षण को 2018 में तत्कालीन सरकार ने समाप्त कर दिया था, लेकिन 05 जून, 2024 को हाइकोर्ट ने सरकार के इस निर्णय को अवैध बताते हुए कुल आरक्षण 56% कर दिया. इसके बाद से आरक्षण िवरोधी आंदोलन शुरू हो गया. 19 जुलाई को आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया.
कब-कब हुए आरक्षण प्रणाली में बदलाव
1972 : स्वतंत्रता सेनानी, पिछले जिले और महिलाओं के लिए प्रथम श्रेणी की नौकरियों में 80% आरक्षण का प्रावधान किया गया था. 20% सीटें अनारक्षित थीं. इन 80% आरक्षण में से स्वतंत्रता सेनानियों के लिए 30% और महिलाओं के लिए 10% सीटें आवंटित थीं.
1976 : पहली बार आरक्षण व्यवस्था में परिवर्तन किया गया. 40% सीटें अनारक्षित की गयीं. हालांकि, स्वतंत्रता सेनानियों के लिए नौकरियों में 30%, महिलाओं के लिए 10%, युद्ध में घायल महिलाओं के लिए 10% और पिछड़े जिलों के आधार पर 10% सीटें आरक्षण का प्रावधान किया गया.
1985 : आरक्षण प्रणाली के तहत प्रथम और द्वितीय श्रेणी के पदों के लिए मेरिट आधारित कोटा 45% और जिलेवार कोटा 55% कर दिया गया. इस 55% में से 30% पद स्वतंत्रता सेनानी के वंशजों के लिए, 10% महिलाओं और 05% धार्मिक अल्पसंख्यक के लिए था.