Pentagon रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने आर्कटिक क्षेत्र में सैकड़ों सोवियत युग की सैन्य स्थलों को फिर से सक्रिय कर दिया है. चीन, जो खुद को “निकट-आर्कटिक” राज्य मानता है, भी इस क्षेत्र में महत्वाकांक्षाएं रखता है और “पोलर सिल्क रोड” बनाने की योजना में है. चीन का ध्यान यहां के खनिज संसाधनों और नई शिपिंग मार्गों पर है, जो बढ़ते तापमान के कारण खुल रहे हैं.
अमेरिका की चिंता
पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया है कि , “रूस और चीन राष्ट्रीय शक्ति के विभिन्न साधनों के माध्यम से आर्कटिक में एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं.” हालांकि चीन और रूस के बीच कई मामलों में असहमति बनी हुई है, लेकिन इस क्षेत्र में उनका बढ़ता मेल चिंता का विषय है और अमेरिकी रक्षा विभाग इस सहयोग की निगरानी कर रहा है.
आर्कटिक शिपिंग मार्गों का महत्व
ग्लोबल वार्मिंग के कारण बर्फ की चादरें घटने से समुद्र में लंबे समय तक बर्फ रहित अवधि हो रही है, जिससे प्रशांत और अटलांटिक महासागरों के बीच प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने के लिए आर्कटिक समुद्री मार्गों का उपयोग बढ़ रहा है. चीन और रूस मिलकर इन मार्गों को विकसित कर रहे हैं. रूस, पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच चीन को अधिक तेल और गैस भेजना चाहता है, जबकि चीन मलक्का जलडमरूमध्य पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक शिपिंग मार्ग की तलाश में है.
चीन का बयान
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने मंगलवार को कहा, “चीन सम्मानजनक, आपसी लाभ और स्थायी विकास के सिद्धांतों के तहत आर्कटिक मामलों में भाग ले रहा है और शांति व स्थिरता बनाए रखने के लिए अन्य पक्षों के साथ सहयोग को मजबूत कर रहा है.”
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सुरक्षा विशेषज्ञों की राय
सुरक्षा विशेषज्ञों और क्षेत्रीय सैन्य अधिकारियों का कहना है कि भारतीय महासागर शिपिंग मार्गों पर चीन की निर्भरता बीजिंग के लिए एक रणनीतिक कमजोरी है, खासकर ताइवान पर किसी संघर्ष की स्थिति में. पेंटागन की रिपोर्ट में कहा गया कि चीन आर्कटिक में बदलती परिस्थितियों का लाभ उठाकर अधिक प्रभाव और पहुंच प्राप्त करने, आर्कटिक संसाधनों का उपयोग करने और क्षेत्रीय शासन में बड़ी भूमिका निभाने की कोशिश कर रहा है.